शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

मैसूर में ''राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषा : स्वरूप और संभावनाएँ'' विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न



मैसूर विश्वविद्यालय में संपन्न राष्ट्रीय संगोष्ठी के अवसर पर प्रो. विनोद गायकवाड के मराठी उपन्यास ''साईं'' के हिंदी अनुवाद का लोकार्पण करते हुए प्रो. ऋषभ देव शर्मा. साथ में - डॉ. रेखा अग्रवाल, प्रो.शशिधर गुडिगेनवर,
अनुवादिका प्रो. प्रतिभा मुदलियार, प्रो. सुशीला थॉमस एवं प्रो. राम प्रकाश.
मैसूर, 12 अगस्त 2004.

हिंदी अध्ययन विभाग, मैसूर विश्वविद्यालय, मानसगंगोत्री, मैसूर में 12 अगस्त 2014 को एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न हुई। उक्त संगोष्ठी का विषय ''राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषा  : स्वरूप और संभावनाएँ'' था।उद्घाटन सत्र में प्रारंभ में मनोज तथा रूपा ने वंदना गीत प्रस्तुत किया। उसके बाद विभाग की अध्यक्षा प्रो. प्रतिभा मुदलियार ने प्रास्ताविक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने विषय का महत्व एवं प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। प्रो. शशिधर गुडिगेनवर  ने अतिथियों का स्वागत एवं परिचय कराया। उद्घाटक तथा बीज वक्ता प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी  दीप प्रज्वलन कर संगोष्ठी का उद्घाटन किया।


तदुपरांत प्रो. प्रतिभा मुदलियार द्वारा हिंदी में अनूदित मराठी उपन्यास  ''साईँ'' ( मूल लेखक प्रो. विनोद गायकवाड) का लोकार्पण प्रो. ऋषभदेव शर्मा के करकमलों से संपन्न हुआ। प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी ने लोकार्पित कृति  ''साईं'' पर अपना वक्तव्य दिया जिसमें उन्होंने आधुनिक भक्ति साहित्य में इस उपन्यास के महत्व का उल्लेख करते हुए अनुवाद की दृष्टि से सफल  तथा सरस बताया।


संगोष्ठी के विषय पर बीज वक्तव्य देते हुए प्रो. ऋषभदेव शर्मा  ने हिंदी के राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने हिंदी के राजनीतिक, सांस्कृतिक , भाषावैज्ञानिक, कोशवैज्ञानिक, अनुवाद, विज्ञापन तथा सिनेमा जगत एवं विदेशी स्वरूप पर प्रकाश डाला। उनका बीज वक्तव्य प्रभावी तथा ज्ञानवर्धक था। विभाग की अध्यापिका डॉ. वासंति जी ने धन्यवाद ज्ञापन किया। डॉ, रेखा अग्रवाल ने उद्घाटन सत्र का संचालन किया।

संगोष्ठी में  दो विचार-सत्रों में विभिन्न कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों से आए प्रतिभागियों ने स्तरीय आलेखों की प्रस्तुति की। प्रो. सुशीला थॉमस, क्षेत्रीय निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, मैसूर तथा प्रो. रामप्रकाश, एस. वी,यूनिवर्सिटी, तिरुपति ने विचार-सत्रों की अध्यक्षता निभाकर अपने प्रभावी वक्तव्य दिए। समापन समारोह में छात्रों तथा अध्यापकों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी। राष्ट्रगान के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ। 

प्रस्तुति - डॉ. रेखा अग्रवाल, प्राध्यापक, हिंदी विभाग, मैसूर विश्वविद्यालय,मानसगंगोत्री, मैसूर.

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

हैदराबाद में हिंदी पर चर्चा

अतिथि पत्रकारों के सम्मान में साहित्यिक संगोष्ठी संपन्न


हैदराबाद, 22 अगस्त 2014.

आज हिंदी को लेकर पूरे देश में काम हो रहा है। हिंदीभाषी क्षेत्रों के अलावा हिंदीतरभाषी क्षेत्रों में भी प्रमुखता से हिंदी बढ़ रही है। साहित्य की अनेक विधाओं में रचनाएं हो रही हैं। ऐसे में भाषा को लेकर लड़ाने वाले राजनीतिज्ञ सफल नहीं हो सकते हैं। उक्त बातें दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के खैरताबाद स्थित सभाकक्ष में साहित्य मंथन और श्रीसाहिती प्रकाशन के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न साहित्यिक संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य प्रो. एम. वेंकटेश्वर ने कही। उन्होंने अपने वक्तव्य में यह भी कहा कि हैदराबाद विभिन्न भाषा-भाषियों का मिलन केंद्र है, हैदराबाद में लगभग सभी भाषाओं को बोलने वाले लोग रहते हैं तथा यहाँ आने वाले किसी भी व्यक्ति को भाषायी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है।

वरिष्ठ पत्रकार डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने कहा कि साहित्यकारों को राजनीति से दूर नहीं जाना चाहिए, बल्कि राजनीति के निकट रहकर उसे ठीक करना चाहिए। भाषा को लेकर कोई विवाद खड़ा करना ठीक नहीं है, भाषा लोगों को जोड़ने के लिए होती है तोड़ने के लिए नहीं।

नजीबाबाद उ.प्र. से आए पत्रकार अमन कुमार त्यागी ने कहा कि हैदराबाद को नजदीक से देखने का अवसर
मिला है, यह हमारे लिए बेहद खुशी की बात है कि यहाँ हिंदी बोलने वालों और समझने वालों की कमी नहीं है। हम हिंदी क्षेत्री लोगों को हैदराबाद और यहाँ के साहित्यकारों पर गर्व हो रहा है। उन्होंने आगे कहा कि सहजता से आने वाले भारत की सभी भाषाओं के शब्दों को अपना कर हिंदी को और भी व्यापक स्वीकार्यता प्रदान की जा सकती है।

आजमगढ़ से आए पत्रकार अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि मिलीजुली सभ्यता विकास का मार्ग खोलती है, हमें खुले दिल से एक दूसरे को अपनाना चाहिए। बंटवारा विकास के लिए हो तो बहुत अच्छा लगता है परंतु जब यह बंटवारा कड़वाहट लिए होता है तो नुकसान दोनों पक्षों को होता है और इसका खामियाजा आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ता है। हैदराबाद सुसंस्कृति वाला प्रेम का नगर है, इसका कैसे बंटवारा होगा, दो दिलों के बीच राजनीतिक कड़वाहट वाली दीवार अधिक समय तक खड़ी न रह सकेगी।

वरिष्ठ कवि और व्यंग्यकार लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने कहा कि भाषा के प्रति चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, वह अपना स्थान स्वयं बना लेती है, जैसे पानी अपने बहने के लिए स्वयं रास्ता बना लेता है।

वरिष्ठ अनुवादक डॉ. एम. रंगैया ने कहा कि हिंदी और भारतीय भाषाओं के मध्य बहुत सा अनुवाद कार्य हो रहा है। किसी भी साहित्य का अनुवाद होने से उसका महत्व बढ़ जाता है और अन्य भारतीय भाषाओं की रचनाओं का अनुवाद यदि हिंदी में हो जाता है तो वे रचनाएँ राष्ट्रीय फलक पर पहुँच जाती हैं। मुझे हिंदी क्षेत्र से इतना सम्मान मिला है कि मैं अपने आप को गौरवान्वित अनुभव करता हूं। जब भी किसी हिंदी विद्वान का कोई पत्र आता है तो मुझे बेहद प्रसन्नता होती है।

कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. जी. नीरजा ने एक कविता का अनूदित पाठ प्रस्तुत करते हुए कहा कि हिंदी और द्रविड भाषाओं में बहुत से शब्द समान हैं; ऐसे शब्दों के अर्थ की समानता और भिन्नता को ध्यान से देखते हुए प्रयोग करने से हिंदी की गुणवत्ता बढ़ जाती है।

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि हिंदी सर्वग्राह्य भाषा है, इसमें यह क्षमता है कि यह सभी भाषाओं के शब्दों को सरलता के साथ ग्रहण कर लेती है और फिर यह ग्रहण किए गए शब्द इसे अपने से लगने लगते हैं। अपनी इसी विशेषता के कारण यह किसी विशेष क्षेत्र तक सीमित नहीं रहती। 

वरिष्ठ अनुवादक डॉ. सी. वसंता ने ‘नाच्यो बहुत गोपाल’ और ‘अर्धनारीश्वर’ के तेलुगु अनुवाद से जुड़े अपने अनुभवों के बारे में विस्तार से बताया।

इस अवसर पर जी. परमेश्वर, भँवरलाल उपाध्याय, पवित्रा अग्रवाल, आर. शांता सुंदरी, ज्योति नारायण आदि ने काव्यपाठ किया। आरंभ में अतिथि पत्रकारों का पारंपरिक रीति से स्वागत सत्कार किया गया।