रविवार, 23 सितंबर 2012

'भाषा और संवेदना' पर प्रो.ऋषभ देव शर्मा का भाषण : ऑडियो


भारी पानी संयंत्र, मणुगुरु में हिंदी दिवस के अवसर पर

भाषणकर्ता - प्रो. ऋषभ देव शर्मा 

दिनांक - 14 सितंबर 2012

सुनने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें- 


सोमवार, 17 सितंबर 2012

हिंदी हमारी संस्कृति का दर्पण है - डॉ. ऋषभ देव शर्मा





'भाषा एवं संवेदना' पर प्रो.ऋषभ देव शर्मा का व्याख्यान संपन्न


- भारी पानी संयंत्र, मणुगूरु में हिंदी दिवस समारोह -
मणुगूरु, 17 सितंबर 2012.

भारी पानी संयंत्र, मणुगूरु की राजभाषा कार्यान्वयन समिति के तत्वावधान में 14 सितंबर, 2012 को प्रशासन भवन के सभागार में हिंदी दिवस का आयोजन किया गया ।  इस अवसर पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद के उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ.ऋषभदेव शर्मा मुख्य अतिथि थे । आपने 'भाषा एवं संवेदना' विषय पर अत्यंत सारगर्भित व्याख्यान दिया । अपनी वार्ता के दौरान जहाँ आपने एक ओर वाल्मिकी की संवेदना से जागृत उनके हृदय परिवर्तन के संदर्भ में ऐतिहासिक घटनाओं से श्रोताओं को अभिभूत किया वहीं तुलसीकृत 'रामचरितमानस' से लेकर आधुनिक कवियों की कविताओं में मानव सहज संवेदना के उद्धरणों को सिलसिलेवार ऐसे ताने-बाने में प्रस्तुत किया कि बुद्धिजीवी वैज्ञानिक वर्ग भाषा के प्रवाह रूपी सागर में बह गए ।

हिंदी दिवस समारोह के प्रारंभ में संयंत्र के सहायक निदेशक (राजभाषा) श्री सैयद मासूम रज़ा ने अतिथि डॉ.ऋषभदेव शर्मा, डॉ.पूर्णिमा शर्मा, श्री सी.शेषसाई, मुख्य महाप्रबंधक, श्री एन.के.शाह, उप मुख्य महाप्रबंधक(यू), श्री वीकेएम पार्तिबन, उप महाप्रबंधक(पी), श्री वी.पी.नेमा, उप मुख्य महाप्रबंधक(ईएस), प्रशासनिक अधिकारी श्री एन.वेंकटेश्वर्लु सहित सभी आमंत्रित वरिष्ठ अधिकारियों, कर्मचारियों और हिंदी माह - 2012 के दौरान आयोजित 13 प्रतियोगिताओं के विजेताओं का स्वागत किया और पूरे वर्ष राजभाषा के कार्यान्वयन के संबंध में हुई प्रगति की संक्षिप्त रिपोर्ट प्रस्तुत की । 

प्रशासनिक अधिकारी ने अपने संबोधन में राजभाषा के कार्यान्वयन में प्रशासकीय प्रयासों की एक ओर जहाँ चर्चा की वहीं यह संकल्प लिया कि वर्ष 2012-13 के दौरान संयंत्र में अधिकाधिक टिप्पणियाँ हिंदी में लिखने की कोशिश की जाएगी ताकि राजभाषा विभाग एवं पऊवि द्वारा निर्धारित किए गए लक्ष्य को हासिल करने में कठिनाई न आने पाए ।






संयंत्र के मुख्य महाप्रबंधक एवं अध्यक्ष, राजभाषा कार्यान्वयन समिति श्री सी.शेषसाई ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में राजभाषा की उत्तरोत्तर प्रगति के लिए संयंत्र में किए जा रहे उपायों की चर्चा करते हुए बताया कि किस प्रकार वे स्वयं फाइलों में हिंदी में टिप्पणियाँ लिख रहे हैं और धारा 3(3) के उल्लंघन के नाममात्र के मामलों को भी गंभीरता से लेकर सुधारात्मक कार्रवाई पर विशेष ध्यान दे रहे हैं । आपने यह भी बताया कि धारा 3(3) से संबंधित अगर कोई फाइल/कागजात बिना हिंदी प्रति के प्रस्तुत हो भी जाता है तो वे उसे बिना हस्ताक्षर के द्विभाषी रूप में प्रस्तुत करें.... जैसी टिप्पणी लिखकर वापस भेज देते हैं । 
आपने उपस्थित वरिष्ठ अधिकारियों से कहा कि यद्यपि कार्य हो रहा है लेकिन लक्ष्य से आगे जाने के लिए और भी बहुत कुछ किया जाना है सभी मिलकर इस कार्य को करें ।  राजभाषा हिंदी देश को जोड़ने वाली भाषा है इसलिए इसका प्रयोग न केवल सरकारी फाइलों तक सीमित रहे बल्कि आचार-विचार एवं व्यवहार का एक हिस्सा बन जाना चाहिए ।  आपने यह भी कहा कि हमें आदर्श प्रस्तुत करना होगा तभी हमारे मातहत अधिकारी और कर्मचारी उनका अनुसरण करेंगे । केवल अनुदेश से काम नहीं बनेगा।


हिंदी दिवस के अवसर पर संयंत्र की गृह-पत्रिका गुरुजल गौतमी एवं दो पोस्टरों का भी लोकार्पण मुख्य महाप्रबंधक एवं अध्यक्ष, राजभाषा कार्यान्वयन समिति के करकमलों से हुआ ।

सभी प्रतियोगिताओं के प्रतिभागियों को मुख्य महाप्रबंधक एवं अध्यक्ष, राजभाषा कार्यान्वयन समिति ने पुरस्कार रा‍शि एवं प्रमाणपत्र वितरित किए । प्रतियोगिताओं के निर्णायकों को स्‍मृति-चिह्न प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ.ऋषभदेव शर्मा जी के कर कमलों से वितरित कराया गया । संयंत्र के वरि.हिंदी अनुवादक श्री सैयद इरफान अली के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हिंदी दिवस समारोह का समापन हुआ ।

प्रस्तुति : सैयद मासूम रज़ा, सहायक निदेशक (राजभाषा), भारी पानी संयंत्र, मणुगूरु

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद की स्मृति में श्रद्धांजलि-सभा संपन्न


हैदराबाद, 17 सितंबर 2012.
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सम्मलेन कक्ष में ‘विश्वंभरा’, ‘साहित्य मंथन’ और ‘हिंदी भारत’ के संयुक्त तत्वावधान में नगर के वरिष्ठ कलमकार चंद्रमौलेश्वर प्रसाद की स्मृति में श्रद्धांजलि-सभा आयोजित की गई. उल्लेखनीय है कि ‘कलम’ नामक ब्लॉग के लेखक, साहित्य समीक्षक, कवि और अनुवादक चंद्रमौलेश्वर प्रसाद का गत सप्ताह निधन हो जाने से हैदराबाद के हिंदी जगत में शोक की लहर व्याप्त है. उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए प्रो.एम.वेंकटेश्वर ने कहा कि चंद्रमौलेश्वर प्रसाद परम आत्मीय मित्र, स्नेही परिजन और मानवतावादी संत के समान थे जिनका सामाजिक और साहित्यिक योगदान चिरकालिक है. 

आंध्रप्रदेश मारवाड़ी युवा मंच के उपाध्यक्ष द्वारका प्रसाद मायछ ने प्रसाद जी की आत्मीयता और स्नेह को याद किया और अनेक प्रेरक प्रसंगों की चर्चा करते हुए उनके निधन को साहित्यिक परिवार की अपूरणीय क्षति बताया. 

कवि, समीक्षक और व्यंग्यकार लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने कहा कि चंद्रमौलेश्वर जी के लिए साहित्य की साधना एक गंभीर उद्देश्य थी तथा ईमानदारी और सहृदयता उनके जीवन और लेखन दोनों में झलकती थी.

आंध्रप्रदेश हिंदी अकादमी के शोध-अधिकारी प्रो.बी.सत्यनारायण ने उनकी साहित्य सेवा को अनुकरणीय बताया तो संपत देवी मुरारका ने उन्हें अपने ब्लॉग-गुरु के रूप में श्रद्धांजलि अर्पित की.

गुरुदयाल अग्रवाल ने अत्यंत भावाकुल होकर कहा कि एक मानवालंकार नहीं रहा, हम अधूरे हो गए. 

‘दस रंग’ के अध्यक्ष हास्य-व्यंग्य कवि अजित गुप्ता ने कहा कि कलम का खामोश सिपाही खामोश हो गया और झीनी सी चदरिया को ज्यों की त्यों धर कर चला गया. 

कवयित्री एलजाबेथ कुरियन मोना ने चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के कोमल स्वभाव और मधुर मुस्कान को याद किया तो डॉ.करन सिंह ऊटवाल ने उनकी निष्ठा और ईमानदारी की प्रशंसा की. राधाकृष्ण मिरियाला ने प्रसाद जी को हिंदी का एक प्रमुख ब्लॉगर बताया और कहा कि ब्लॉग जगत के सभी छोटे-बड़े लेखकों को उनकी धारदार और संतुलित टिप्पणी की प्रतीक्षा रहती थी. 

भारत डायनामिक्स लिमिटेड से जुड़े डॉ.बी.बालाजी ने याद दिलाया कि चंद्रमौलेश्वर जी विविध विषयों के विद्वान थे तथा जटिल विषयों पर बड़ी ही साफ़, सरल और बोधगम्य भाषा में लिखने में सिद्धहस्त थे. 

चवाकुल नरसिंह मूर्ति, भंवरलाल उपाध्याय और डॉ.देवेंद्र शर्मा ने दिवंगत लेखक के सरल स्वभाव और साफ़-सुथरे लेखन पर चर्चा की तो पवित्रा अग्रवाल, जी.संगीता, विनीता शर्मा और ज्योति नारायण ने उनकी सादगी, विद्वत्ता, मिलनसारिता और हाईकू लेखन के क्षेत्र में उनके योगदान का स्मरण किया. 

प्रसाद जी के स्नेहिल व्यक्तित्व को याद करते हुए वी.कृष्णा राव ने कहा कि वे जब भी मिलते थे भरपूर शुभकामनाएं और आशीर्वाद देते थे तथा उनके वक्तव्यों को सुनकर ऐसा लगता था कि वे सारे विषय को आत्मसात करके अत्यंत सहज और बोधगम्य बनाकर पेश करने में माहिर है. 

‘स्रवन्ति’ की सह-संपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा तथा उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के भाषा और साहित्य संबंधी कार्यक्रमों में चंद्रमौलेश्वर प्रसाद की सदा सन्नद्ध रहने की भूमिका पर चर्चा करते हुए कहा कि उनके रूप में हमने एक सच्चे शुभचिंतक और अभिभावक को खो दिया है. 

डॉ.बलविंदर कौर ने एक सुलझे हुए ब्लॉगर तथा सफल अनुवादक के रूप में प्रसाद जी के योगदान को अविस्मरणीय बताया और कहा कि वे सदा नए लोगों को आगे आने के लिए प्रोत्साहित करते थे और स्वयं परदे के पीछे रहकर सेवा और सहयोग करते थे. 

सीमा मिश्रा और अशोक तिवारी ने कहा कि प्रसाद जी का अवसान हिंदी जगत की अपूरणीय क्षति है क्योंकि वे एक संवेदनशील साहित्यकार थे और निरंतर सहकारिता और सहयोगपूर्ण साहित्यिक परिवेश के निर्माण के लिए कार्यरत थे. 

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, आंध्र के अपर सचिव गुत्तल, प्राध्यापक गोरखनाथ तिवारी, व्यवस्थापक ज्योत्स्ना कुमारी, ग्रंथपाल संतोष कांबले और कोसनम नागेश्वर राव ने भी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की. 

प्रो.टी.मोहन सिंह ने चंद्रमौलेश्वर प्रसाद को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि हमने एक अच्छे समीक्षक और एक अच्छे साहित्यकार को खो दिया है. यह क्षति अपूरणीय है. उनके परिवार के लोगों को भगवान इस दुःख में सहारा दे. 

श्रद्धांजलि सभा के दौरान लगातार फोन पर भी संवेदना सन्देश आते रहे. दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के कुलसचिव प्रो.दिलीप सिंह ने फोन पर कहा कि चंद्रमौलेश्वर जी एक अच्छे और सच्चे इंसान थे तथा उन्हें मनुष्यों के साथ-साथ साहित्य और भाषा की खरी पहचान थी. 

लन्दन से डॉ.कविता वाचक्नवी ने फोन पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के रूप में हमने एक अहेतुक स्नेही, परम आत्मीय, निस्स्वार्थ मित्र को खो दिया है. उन्होंने कहा कि प्रसाद जी जैसे निस्पृह मनुष्य विरले और दुर्लभ होते हैं. 

प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने भी प्रसाद जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में बताते हुए उनके साथ बिताए अंतरंग क्षणों को याद किया और कहा कि भाषा, साहित्य और संस्कृति के उन जैसे मौन साधक की कमी कभी पूरी नहीं हो सकती. 

इस अवसर पर सभी ने एक स्वर में स्वर्गीय चंद्रमौलेश्वर प्रसाद की रचनाओं के पुस्तक के रूप में प्रकाशन की आवश्यकता बताई और कहा कि उनके द्वारा अनूदित कहानियों, सिमोन द बुआ की कृति ‘द ओल्ड एज’ के सार-संक्षेप ‘वृद्धावस्था विमर्श’, मौलिक सृजन और ब्लॉग-लेखन को अलग अलग जिल्दों में प्रकाशित करने की जरूरत है क्योंकि यह सारी सामग्री शोध और अध्ययन के लिए स्थायी महत्त्व रखती है. 

दिवंगत आत्मा की चिरशांति के लिए मौन प्रार्थना और शान्तिपाठ के साथ श्रद्धांजलि सभा का विसर्जन हुआ.

रविवार, 16 सितंबर 2012

भाषा और संस्कृति की रक्षक स्त्रियाँ हैं – डॉ. राधेश्याम शुक्ल



हैदराबाद, 8 सितंबर 2012. 

अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति एवं महिला दक्षता समिति डिग्री कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में चंदानगर स्थित रामगोपाल गोयनका सभागृह में उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के आचार्य डॉ. ऋषभ देव शर्मा की अध्यक्षता में हिंदी समारोह आयोजित किया गया. इस अवसर पर डॉ. राधेश्याम शुक्ल मुख्य अतिथि, रामगोपाल गोयनका, डॉ. पूर्णिमा शर्मा, रेणु केवडिया, ब्रजभूषण बजाज और डॉ. भारत भूषण विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे.

मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार व भाषाविद डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने कहा कि सारी सृष्टि सरस्वतीस्वरूपा है क्योंकि उनका स्वरूप शब्दमय है. उन्होंने हिंदी को मनुष्यता की भाषा बताते हुए कहा कि कभी पूरे हिंदुस्तान की लोक व्यवहार की भाषा को हिंदी नाम दिया गया था. तब संस्कृत भी हिंदी थी. पालि, अवधी या यों कहें कि देश भर की सभी प्राकृत व संस्कृत भाषाएँ हिंदी थीं. पुरातात्विक प्रमाणों के अनुसार केस्पियन सागर के नीचे के भूभाग की भाषा संस्कृत थी. ईरान के प्रसिद्ध राजा नौशेरवां (531 – 579 ई.) ने बजरोया नाम के एक विद्वान को ‘पंचतंत्र’ का अनुवाद फ़ारसी में करने के लिए भारत भेजा. ‘पंचतंत्र’ संस्कृत का ग्रन्थ है. लेकिन इस अनुवाद की भूमिका में बजरोया ‘पंचतंत्र’ की भाषा को ‘ज़बाने हिंदी’ कहता है. यहाँ इतना स्पष्ट है कि बाहर के लोगों ने सिंधु नदी के पूर्व के सारे लोगों को हिंदू, उनकी भाषा को हिंदी और पूरे समुद्र पर्यंत क्षेत्र को हिन्दुस्तानी कहा. 15 अगस्त 1947 को आजाद राष्ट्र के रूप में अंग्रेजों का दिया देश हमने स्वीकार किया तो भाषा के रूप में उनकी दी हुई भाषा भी अपना ली और उनके द्वारा प्रदत्त बहुधर्मी, बहुजातीय, बहुभाषी खिचड़ी (Plural) पहचान भी स्वीकार कर ली. इतना ही नहीं उस पर गर्व भी करने लगे. अपनी इस नई पहचान में राष्ट्रीय एकता की भावना का कोई तत्त्व शेष नहीं रह गया – न भाषा, न जाति, न धर्म, न संस्कृति.



डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने छात्राओं को संबोधित करते हुए आगे कहा कि  भाषा और संस्कृति की रक्षक स्त्रियाँ हैं. आज का युग ब्रेन पावर का युग है – इस युग को भी सौंदर्य, दया, करुणा, ममता, सहनशीलता की सार्वकालिक आवश्यकता है. सृष्टि के केंद्र में स्त्री है. अतः उनमें संसार को बदलने की शक्ति है. हिंदी के माध्यम से दुनिया को हृदय की भाषा प्रदान करने का दायित्व वहन करने के लिए उन्हें आगे आना चाहिए क्योंकि हमारे राष्ट्र में उत्तर से दक्षिण तक व पूर्व से पश्चिम तक एक ही पूजा-पाठ, सामाजिक तीज त्यौहार मनाने का ढंग, रामायण, महाभारत जैसे एक समान आकरग्रंथ, राम, कृष्ण, शिव-पार्वती, गणेश, हनुमान आदि देवी-देवता हमारे आराध्य हैं.


हिंदी आज भी व्यवहारतः राजभाषा का पद प्राप्त नहीं कर सकी है इस बात पर दुःख व्यक्त करते हुए डॉ.शुक्ल ने कहा कि हमारे देश की आजादी के बाद आजादी प्राप्त करने वाले छोटे से देश इजराइल ने हिब्रू को राष्ट्रभाषा घोषित किया जो कि उस समय उपेक्षित व् विस्मृत स्थिति में थी, और उसी प्रकार तुर्की ने स्वतंत्रता प्राप्त करते ही तुर्की भाषा को तत्काल राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया; परंतु हमारे राजनेताओं में ऐसी संकल्पशक्ति और राष्ट्रीयभावना का अभाव रहा. 

अध्यक्ष के रूप में संबोधित करते हुए प्रो.ऋषभ देव शर्मा ने पूर्ण आत्मविश्वास से कहा कि आने वाला समय विश्वभाषा हिंदी का है. पूरे देश में 1652 परिगणित मातृभाषाएँ हैं परंतु एक हिंदी ही उनमें से अधिकतर के प्रयोक्ताओं को परस्पर जोड़ती है. उन्होंने स्मरण कराया कि एक समय में संपर्क भाषा संस्कृत थी – राम का निषाद, ऋषिगण, जटायु, सुग्रीव, विभीषण, रावण से संवाद इसे प्रमाणित करता है. उन्होंने हिंदी की विविध भूमिकाओं की चर्चा करते हुए बताया कि भारत के  प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) की असफलता का एक बड़ा कारण संप्रेषणीयता का अभाव था. इससे सीख लेकर  बाद में देशव्यापी प्रभावी संप्रेषण के लिए स्वीकार की गई हिंदी ने संपर्क भाषा और राष्ट्रभाषा की भूमिका बखूबी निभाई. 1917-1918 के अधिवेशनों और सम्मेलनों में महात्मा गांधी ने हिंदी को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए राष्ट्भाषा के रूप में अपनाते समय यह अनुभव  किया था कि पूरे देश को एक साथ संबोधित करना हिंदी के माध्यम से ही संभव है क्योंकि यह अधिसंख्य भारतीयों की भाषा है.


डॉ. ऋषभ देव शर्मा ने कहा कि हिंदी भाषा का शब्दभंडार सबसे बड़ा है क्योंकि एक ओर तो यह संस्कृत जैसी उर्वर भाषा के शब्दों से भरी है तथा दूसरी ओर अपनी 17 बोलियों की लोकशब्दावली उसे संपन्न बनाती है. साथ ही वह अंग्रेजी, उर्दू और विविध भारतीय भाषाओं के शब्दों को भी निःसंकोच ग्रहण कर लेती है. हिंदी की सबसे बड़ी शक्ति उसका लचीलापन है. उन्होंने दीपक की रश्मियों से इसकी तुलना करते हुए कहा कि जैसे एक दीपक का प्रकाश विस्तार प्राप्त कर दूर तक अंधेरे को दूर करता है वैसे ही केन्द्रापसारी प्रवृत्ति से युक्त हिंदी भाषा संकीर्णता को छोड़कर सब दिशाओं में फैलती है इसीलिए यह निरंतर प्रगति-पथ-गामिनी है. हिंदी की सर्वप्रथम भूमिका है – मातृभाषा की. द्वितीय भूमिका – संपर्क की भाषा की – यही व्यापार-व्यवसाय, तीर्थाटन से लेकर नाटक-फिल्म आदि में प्रयुक्त होती है – यही इसकी राष्ट्रीय भूमिका भी है. तीसरी भूमिका है राजभाषा की – सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में. 

प्रो.शर्मा ने स्पष्ट किया कि आज का संसार ग्लोबल विलेज बन रहा है जिसमें हमें ग्लोबल भाषाएँ चाहिए तथा हिंदी इस अपेक्षा को पूरा करती है. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वीकृत भाषाओं को अंतरराष्ट्रीय भाषा कहा और बताया कि यह आवश्यक नहीं है कि वे ‘ग्लोबल भाषा’ हों. उदाहरण के लिए चीनी (मंदारिन) संयुक्त राष्ट्र की भाषा (अंतरराष्ट्रीय भाषा) है पर वह ग्लोबल भाषा (विश्वभाषा) नहीं है. दुनिया के बाजार की भाषाई आवश्यकता हिंदी है. इसके माध्यम से आज बीस प्रतिशत दुनिया को अर्थात बृहत उपभोक्ता समाज को संबोधित किया जा सकता है. इसी आवश्यकता को ध्यान में रखकर भारतवर्ष के बाहर लगभग 200 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है. इसके अलावा हिंदी की आज के समय में महत्वपूर्ण भूमिका इंटरनेट या इन्फोर्मेशन टेक्नालॉजी के क्षेत्र में है. इस भूमिका में अपना दायित्व निबाहने के लिए  हम सभी का विशेष कार्य/ सहयोग/ सेवा तीव्रता से अपेक्षित है. यह संस्कृत की उत्तराधिकारिणी, कंप्यूटर संबंधी सभी संभावनाओं से संपन्न, लचीली भाषा है. बड़े भावुक स्वर में आपने सभी देशी-विदेशी भाषाभाषियों का आह्वान करते हुए कहा “अन्य भाषाभाषियो, मिलेगा मनमाना सुख/ हिंदी के हिंडोले में ज़रा तो बैठ जाइए.” 

विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित राम गोपाल गोयनका  ने कहा कि तकनीकी युग में उसी भाषा का अस्तित्व बना रह सकेगा जो मनुष्य की जरूरतों को पूरा  करती हुई तकनीकी के साथ साथ सह-अस्तित्व में रहेगी. हिंदी में अन्यान्य भाषाओं और बोलियों का महासागर बनने की असंदिग्ध क्षमता है.


समितिद्वय की अध्यक्ष डॉ. सरोज बजाज ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलनों की सफलता  विश्वभाषा के रूप में हिंदी की प्रबलता का द्योतक है . संस्कृति की आवश्यकता की प्रतिपूर्ति करने वाली हिंदी भाषा का विस्तार विश्व व मानव कल्याण के लिए अमोघ अस्त्र साबित होगा. अमेरिका में माता-पिता प्रति शनिवार व रविवार को अपने बच्चों को हिंदी पढ़ाने की अलग व्यवस्था करते हैं. कंपीटीशनों में हिंदी को एक विषय की तरह स्वीकार किया जाता है तथा उसके अंक जोड़े जाते हैं.


कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्वलन के द्वारा हुआ तथा अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति की सहसचिव ज्योति नारायण ने सरस्वती वन्दना की. 

प्रस्तुति – गुर्रमकोंडा नीरजा 

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

हैदराबाद के वरिष्ठ कलमकार चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी नहीं रहे....

चंद्र मौलेश्वर प्रसाद  : 7/4/1942 - 12/9/2012


अत्यंत शोक के साथ सूचित करना पड़  रहा है कि  श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी [जन्म- 7/4/1942] अब हमारे बीच नहीं रहे. वे काफी समय से अस्वस्थ थे. अभी कुछ देर पहले उनके सुपुत्र ने फोन पर 
यह दुखद समाचार दिया कि आज 12/9/2012  को रात के 10-50 बजे 
चंद्रमौलेश्वर जी का स्वर्गवास हो गया.

!!ओम् शांतिः!!

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

हिंदी मीडिया में कैरियर पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न




हिंदी मीडिया में कैरियर पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

चेन्नई, 7 सितंबर 2012.

मीडिया और फिल्म क्षेत्र में हिंदी भाषा एक अच्छा व सुनहरा कैरियर दे सकती है - आवश्यकता है लगन, मेहनत व भाषा पर पकड़ स्थापित करने की. हिंदी उन्मुखी कैरियर पर यह विचार स्टेला मैरिस कॉलेज के हिंदी विभाग व तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी के संयुक्त सौजन्य से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में उभर कर सामने आया.

स्टेला मैरिस कॉलेज के परिसर में आयोजित  कैरियर है पहली प्राथमिकता:हिंदी (फिल्म, दूरदर्शन व आकाशवाणी) विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन मुख्य अतिथि के रूप में पधारे केंद्रशासित प्रदेश पुदुचेरी के उपराज्यपाल डॉ. इकबाल सिंह, विशिष्ट अतिथियों केंद्रीय हिंदी निदेशालय, चेन्नई के उपनिदेशक डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा,  दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद के प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष डॉ. ऋषभ देव शर्मा, पांडिचेरी विश्वविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. पद्मप्रिया, तुलनात्मक भाषा व संस्कृति अध्ययनशाला,  इंदौर की अध्यक्ष प्रो.बी. वाई. ललिताम्बा ने दीप-प्रज्वलित कर किया

इससे पहले उपराज्यपाल की अगवानी कॉलेज की प्राचार्य सिस्टर डॉ. सी. जेसिता सी. क्वाड्रस अकादमी की संस्थापक डॉ. मधु धवन, कॉलेज की सचिव डॉ. सूजन ओमान, हिंदी विभाग की प्रवक्ता डॉ. श्रावणी पांडा व डॉ. मधु शर्मा ने की. उद्घाटन के बाद प्राचार्य ने हिंदी में उद्बोधन किया. अकादमी की अध्यक्ष डॉ. वत्सला किरण ने मुख्य अतिथि का परिचय दिया तथा महासचिव डॉ. निर्मला एस. मौर्य ने संस्था पर सारगर्भित तरीके से प्रकाश डाला और राष्ट्रीय संगोष्ठी के विषय चयन को स्पष्ट करते हुए कहा, ‘आज दिशा देना जरूरी है.

रामचरितमानस तमिल में
विशिष्ट अतिथियों ने संक्षेप में संगोष्ठी की प्रासंगिकता तथा रेडियो, टेलिविज़न और फिल्मों के बदलते स्वरुप के संदर्भ में रोजगार की भाषा के रूप में हिंदी की अपार संभावनाओं की ओर संकेत किया. कवि एवं साहित्यकार रमेश गुप्त नीरद के अतिरिक्त डॉ. मधु धवन ने पावर पाइंट प्रेजन्टेशन के माध्यम से नवमीडिया और हिंदी के अंतर्संबंध पर अपनी बात रखी. कॉलेज की ओर से परंपरागत तरीके से सम्मान के बाद उपराज्यपाल ने तमिल-हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. एम. शेषन द्वारा तमिल में अनूदित रामचरितमानस, डॉ. एन. जयश्री की कृष्णा सोबती एवं नारी अस्मिता, व्यंग्यकार प्रह्लाद श्रीमाली की ‘माटी जैसी घुन’ समेत आठ पुस्तकों का विमोचन किया. इकबाल सिंह ने हाल ही में पीएच.डी. करने वाली डॉ. श्रावणी, डॉ. तुलसी, डॉ. कृपानाथ सिंह व वरिष्ठ अनुवादक पी.के. बालसुब्रह्मण्यम एवं कॉलेज की छात्राओं के क्लब ‘अनुभूति’ के सदस्यों का सम्मान भी किया.

भाषा में रम जाओ : डॉ. इकबाल सिंह
पुदुचेरी के उपराज्यपाल इकबाल सिंह ने राष्ट्रीय संगोष्ठी के विषय की सराहना करते हुए कहा कि दक्षिण ने देश को बहुत कुछ दिया है - वह चाहे संस्कृति हो या भाषा अथवा फिर संगीत.  कमल हासन, रेखा व जयप्रदा का ज़िक्र करते हुए उनका कहना था कि कैरियर की दृष्टि  से हिंदी फिल्मों व इनसे जुड़े विभिन्न आयामों व धारावाहिकों का भविष्य उज्ज्वल है. यही परिदृश्य रेडियो व टीवी का भी है. उन्होंने विद्यार्थियों का आह्वान किया कि वे भाषा सीखें और इसमें इतना आगे बढ़ें कि भाषा उनका अनुसरण करने लगे. उपराज्यपाल ने याद दिलाया कि भारत-चीन भाषा की दृष्टि से विश्व में अग्रणी हैं. विश्व में कई ऐसे देश हैं जहां हिंदीभाषी प्रधानमंत्री हैं. हमें हिंदी को सीखना व जीवित रखना है. हिंदी के अलावा हमें मातृभाषा का भी विकास-विस्तार करना चाहिए. सीखना एक सतत प्रक्रिया है लेकिन यह ध्यान देना होगा कि हम कुछ गलत नहीं सीखें.

मीडिया, कैरियर और हिंदी
उद्घाटन के बाद विशेष सत्र का आयोजन हुआ. ‘’सिनेमा और कैरियर’’ विषयक इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने की. दूसरे सत्र में फ़िल्मी गीत-संगीत से जुड़े हिंदी रोजगारों पर प्रकाश डाला गया जिसकी अध्यक्ष प्रो. बी.वाई. ललिताम्बा थीं, विषय विशेषज्ञ गायक व संगीतकार कुलदीप सागर थे और संचालन कवि ईश्वर चंद्र झा ‘करुण’ ने किया. दूसरे दिन डॉ. पद्मप्रिया की अध्यक्षता में रेडियो और टेलिविज़न के चैनलों में हिंदी संबंधी रोज़गार की संभावनाओं पर व्यापक चर्चा हुई. इस संगोष्ठी की एक बड़ी उपलब्धि यह रही कि विभिन्न सत्रों में चेन्नई के विभिन्न कॉलेजों के लगभग 70 छात्र-छात्राओं ने हिंदी में पत्र-वाचन किया.

युद्ध के पलों में प्रेम की स्मृति
वीमेंस क्रिश्चियन कॉलेज की छात्राओं ने भावपूर्ण नृत्यों की प्रस्तुति द्वारा इस द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी  को अतिरिक्त रंजकता प्रदान की.. संयोजिका डॉ. श्रावणी पांडा ने रवींद्र नाथ टैगोर के गीतों पर मनोरम नृत्य प्रस्तुत किया तों पुदुचेरी से पधारीं डॉ. पद्मप्रिया और अतुल्या ने युद्ध के पलों में प्रेम की स्मृति विषयक डॉ. धर्मवीर भारती की काव्यकृति ‘कनुप्रिया’ से जोड़कर सिनेमा के गीतों पर शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुत करके दर्शकों को मुग्ध कर दिया.


स्टेला मैरिस कॉलेज और तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा चेन्नई में आयोजित
कैरियर है पहली प्राथमिकता:हिंदी (फिल्म, दूरदर्शन व आकाशवाणी) विषयक 
द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन के अवसर पर दीप-प्रज्वलन :
 [दाएँ से] पुदुचेरी के उपराज्यपाल डॉ. इकबाल सिंह,
 डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा,प्रो. ऋषभ देव शर्मा, डॉ. मधु धवन एवं अन्य. 


स्टेला मैरिस कॉलेज और तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा चेन्नई में आयोजित
’’कैरियर है पहली प्राथमिकता:हिंदी (फिल्म, दूरदर्शन व आकाशवाणी)’’ विषयक
 द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के अवसर पर मचासीन 
पुदुचेरी के उपराज्यपाल डॉ. इकबाल सिंह.
 साथ में सिस्टर  डॉ. सी. जेसिंता सी. क्वाड्रस, डॉ. मधु धवन, डॉ. पद्मप्रिया, डॉ.वत्सला किरण, 
डॉ.प्रदीप कुमार शर्मा, प्रो. बी.वाई. ललिताम्बा, प्रो. ऋषभ देव शर्मा, 
प्रो.निर्मला एस. मौर्य, रमेश गुप्त नीरद और डॉ. श्रावणी पांडा.


[प्रस्तुति – डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा] 

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

लोकार्पण :बियॉन्ड इमेजेस : एलिजाबेथ कुरियन मोना की अंग्रेज़ी काव्यकृति

एलिजाबेथ कुरियन मोना, जगदीश मित्तल और संजय जाजू 

हैदराबाद, ४ सितंबर २००९.
विगत शनिवार [१ सितंबर, २००९] को साहित्य संगम इंटरनेशनल के तत्वावधान में यहाँ बहुभाषी कवयित्री एलिजाबेथ कुरियन मोना की मौलिक अंग्रेज़ी कविताओं के प्रथम संकलन को संजय जाजू, आईएएस, ने लोकार्पित किया. इस अवसर पर डॉ. सुनीति, पद्मश्री जगदीश मित्तल, प्रो. गोपाल शर्मा, शाशिनारायण स्वाधीन तथा संयोजक विनीता शर्मा मंचासीन हुए. समारोह में हैदराबाद के हिंदी, अंग्रेज़ी, उर्दू, तेलुगु और मराठी भाषाओँ के लेखकों-पत्रकारों ने शिरकत की.
डॉ.सुनीति, मोना, जगदीश मित्तल, संजय जाजू, डॉ. गोपाल शर्मा, स्वाधीन एवं विनीता शर्मा.

'वाडिपोनि माटलु' (न मुरझाने वाले शब्द) का लोकार्पण संपन्न


हैदराबाद, 1 सितंबर 2012

आज यहाँ मुदुगंटि सुजाता रेड्डी की अध्यक्षता में 'भूमिका' मासिक पत्रिका की संपादक के.सत्यवती के दो दशकों के  संपादकीयों का संकलन 'वाडिपोनि माटलु' (न मुरझाने वाले शब्द) का लोकार्पण संपन्न हुआ. इस अवसर पर के.ललिता, केतु विश्वनाथ रेड्डी और एम.उमा महेश्वरी ने लोकार्पित कृति पर समीक्षात्मक चर्चा करते हुए लेखिका को बधाई दी. डॉ.समता रोहिणी ने धन्यवाद ज्ञापित किया. 

(प्रस्तुति - आर. शांता सुंदरी)


"వాడిపోని మాటలు" రెండు దశాబ్దాల భూమిక సంపాదకీయాల సమాహారం  పుస్తకావిష్కరణ సభ నిన్న సాయంత్రం బషీర్ బాగ్ ప్రెస్స్ క్లబ్ లో అత్యంత ఉత్సాహంగా జరిగింది.
ముదిగంటి సుజాతా రెడ్డి అధ్యక్షత వహించారు.
కే.లలిత,కేతు విస్వనాథ రెడ్డి,ఏ.ఉమా మహేశ్వరి  పుస్తకం గురించి మాట్లాడారు.
డా సమతా రోషిణి వందన సమర్పణ చేసారు.
భూమిక మితృలు,ఆత్మీయులు శ్రేయోభిలాషులు సమక్షం లో  జరిగిన ఈ ఆవిష్కరణ సభ రెండు గంటలు కొనసాగి విజయవంతంగా ముగిసింది.

बीडीएल (भानूर) में हिंदी पक्षोत्सव का उद्घाटन

बाएँ से पी  आर वी प्रसाद, महा प्रबंधक (भा.इ),  ए वी के चारी, उप महा प्रबंधक (का. एवं  प्रशा.) 

हैदराबाद, 4 सितंबर 2012 [डॉ. बी. बालाजी] 

महा प्रबंधक बीडीएल भानूर पी आर वी प्रसाद 
भानूर [आंध्र प्रदेश] स्थित रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के उद्यम भारत डायनामिक्स लिमिटेड (बीडीएल) में दिनांक 03.09.2012 को हिंदी पक्षोत्सव समारोह का उद्घाटन किया गया। समारोह का उद्घाटन बीडीएल भानूर इकाई के महाप्रबंधक पी आर वी प्रसाद ने दीप प्रज्वलित करके किया। सरस्वती वंदना के पश्चात उन्होंने अपने उद्घाटन संबोधन में कहा कि हिंदी का प्रचार-प्रसार करना हम सबका संवैधानिक दायित्व है। हिंदी ही देश की राजभाषा है और रहेगी। राजनीतिक झमेलों में पड़े बिना हमारा अपनी भाषा के प्रति संवेदनशील होना आवश्यक है। उन्होंने आशा जताई कि बीडीएल के कर्मचारी बीडीएल में हिंदी का वातावरण बनाने में प्रबंधन का साथ देंगे। उन्होंने इस दौरान आयोजित प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को शुभकामनाएँ दीं। 

बीडीएल भानूर के कार्मिक एवं प्रशासन विभाग के उप महाप्रबंधक ए वी के चारी ने प्रतिभागियों को हिंदी पक्ष की शुभकामनाएँ देते हुए आशा व्यक्त की कि बीडीएल के कर्मचारी प्रतियोगिताओं में बढ़चढ़कर भाग लेकर इस कार्यक्रम को सफल बनाएँगे। उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यक्रम कर्मचारियों के लिए एक ओर जहां प्रतिभा को प्रदर्शित करने का माध्यम बनते हैं वहीं दूसरी ओर बड़ी आसानी से हिंदी का वातावरण तैयार हो जाता है। 

डॉ बी बालाजी, हिंदी अनुवादक ने हिंदी पक्षोत्सव के दौरान आयोजित की जाने वाली प्रतियोगिताओं का संक्षेप में विवरण प्रस्तुत करते हुए भाषाओं के अस्तित्व को बनाए रखने में भाषा-प्रयोक्ता की प्रभावी भूमिका की चर्चा की।  कर्मचारियों को भाषा अध्ययन विशेषकर हिंदी सीखने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने संबंधी उनकी पावर पाइंट प्रस्तुति की सबने भूरि-भूरि प्रशंसा की।    

बाद में बीडीएल के कर्मचारियों के लिए पावर पाइंट प्रस्तुतीकरण की प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें प्रथम पुरस्कार बिष्णु दत्ता जेना, द्वितीय कुलबंत सिंह सुमन और तृतीय पुरस्कार रश्मि को प्राप्त हुआ। इनके अलावा निर्णायक मण्डल अरुण कुमार, उ.म.प्र. (नवीन परियोजना), एन आर पति, उ.म.प्र.(योजना) तथा डॉ सीमा वर्मा, हिंदी प्राध्यापक के सुझाव के अनुसार जाधव प्रकाश तथा धनंजय शंकर को सांत्वना पुरस्कार दिए गए। 

कार्यक्रम का संचालन कार्मिक विभाग के उप प्रबन्धक शोभित कुलश्रेष्ठ ने किया और धन्यवाद डॉ बी बालाजी ने प्रकट किया।

रविवार, 2 सितंबर 2012

श्रद्धांजलि : व्यंग्यकार भगवानदास जोपट नहीं रहे

हैदराबाद.
हैदराबाद के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार और पुस्तक समीक्षक भगवानदास जोपट ने कई महीने असाध्य रोग से लड़ते हुए 29 अगस्त 2012 [बुधवार] को रात्रि 10:35 बजे अंततः पार्थिव जगत से विदा ले ली. भगवानदास जोपट का जन्म 15 अगस्त 1946 को शमशेरगंज, हैदराबाद में श्री जगन्नाथ जोपट के घर में हुआ था. हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में असिस्टैंट एकाउंटेंट रहे भगवानदास जोपट ने तत्कालीन हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. विजेंद्र नारायण सिंह की प्रेरणा से अध्ययन और स्वतंत्र लेखन आरंभ किया था. वे स्वाध्याय व्यसनी थे तथा गद्य और पद्य दोनों विधाओं में व्यंग्य रचने में माहिर. कुछ वर्ष पहले विभाग से अवकाश प्राप्त करने के बाद से जोपट जी हैदराबाद की साहित्यिक संगोष्ठियों की  नियमित उपस्थिति बन् गए थे. एक संस्था के कार्यक्रम में कविता पढते तों दूसरी के आयोजन में गद्य सुनाकर तालियाँ बटोरते तथा तीसरी संस्था के मंच पर पुस्तक समीक्षा पढकर नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करते.

भगवानदास जोपट अपने पीछे अपनी धर्मपत्नी अमिता शर्मा [56 वर्ष], दो पुत्र -संजीव कुमार जोपट [36], राजीव कुमार जोपट [33] - और एक बेटी स्वाति जोपट [35] का भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं.

हँसमुख, मिलनसार और सौम्य व्यक्तित्व के धनी  जोपट जी अपने अंतिम दिन तक लिख रहे थे. उनके यों असमय चले जाने से उनके परिवार के साथ साथ हैदराबाद के साहित्यिक जगत की भी अपूरणीय क्षति हुई है. उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए  हम परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि दिवंगत आत्मा को चिर शांति और शोकाकुल परिवार को उनका विछोह सहन करने की शक्ति प्रदान करे! 

शनिवार, 1 सितंबर 2012

स्लाइड शो : अक्षर मेरा अस्तित्व : लोकार्पण समारोह

टॉलिक (उपक्रम) कोर-समिति की बैठक संपन्‍न



हैदराबाद, 29 अगस्त 2012. (होमनिधि शर्मा ).

नगर राजभाषा कार्यान्‍वयन समिति (उपक्रम) की कोर-समिति की बैठक इसके मुख्‍यालय भारत डायनामिक्‍स लिमिटेड (बीडीएल), कंचनबाग में दि. 29 अगस्‍त, 2012 को संपन्‍न हुई. 

वर्ष 2011-12 के दौरान उत्‍कृष्‍ट राजभाषा कार्यान्‍वयन के लिए टॉलिक की ओर से दी जाने वाली 'टॉलिक राजभाषा शील्‍ड/ट्रॉफी/कप' के अधिनिर्णय संबंधी यह बैठक विशेष रूप से आयोजित की गई. नगरद्वय स्‍थित उपक्रमों को प्रति वर्ष टॉलिक की ओर से तीन वर्ग - बड़े, मध्‍यम और छोटे कार्यालयों की श्रेणी में उत्‍कृष्‍ट राजभाषा कार्यान्‍वयन के लिए प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्‍कार के रूप में क्रमश: राजभाषा शील्‍ड, राजभाषा ट्रॉफी और राजभाषा कप प्रदान किए जाते हैं. इस मूल्‍यांकन बैठक में समिति के सचिव होमनिधि शर्मा, वरिष्‍ठ प्रबंधक (का. एवं प्रशा. - राजभाषा), बीडीएल सहित टॉलिक कोर समिति के सदस्‍य उपस्‍थित थे. इस बैठक में दक्षिण क्षेत्र के उप निदेशक (कार्यान्‍वयन)  अजय कुमार श्रीवास्‍तव ने विशेष रूप से भाग लेते हुए विशेष योगदान दिया. मूल्‍यांकन कार्य इस प्रयोजन के लिए समिति के मुख्‍यालय द्वारा बनाये गये मानदण्‍डों  के आधार पर सफलतापूर्वक संपन्‍न किया गया. 

दक्षिण क्षेत्र के उप निदेशक (कार्यान्‍वयन) अजय कुमार श्रीवास्‍तव सहित इस बैठक में टॉलिक कोर-समिति के सदस्‍य -  के एस पी राव, मुख्‍य प्रबंधक (राजभाषा), पॉवर ग्रिड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, लावण्‍या लवली, वरिष्‍ठ प्रबंधक (राजभाषा), एन एम डी सी लिमिटेड,  बी जे वसुंधरा, वरिष्‍ठ राजभाषा अधिकारी, बीएचईएल-आर अण्‍ड डी, के महेश, राजभाषा अधिकारी, बीएसएनएल-आंध्र प्रदेश परिमंडल, सुनीता भाटी, राजभाषा अधिकारी, युनाइटेड इंडिया इंश्‍योरेंस कंपनी लिमिटेड उपस्‍थित थे. इस कार्य में बी डी एल के राजभाषा विभाग के सदस्‍यों का सक्रिय योगदान रहा.