बुधवार, 29 अगस्त 2012

बी डी एल में हिन्दी कार्यशाला संपन्न




भारत सरकार के रक्षा मंत्रालयाधीन उद्यम भारत डायनामिक्स लिमिटेड में विभिन्‍न प्रभागों के अधिकारी एवं कर्मचारियों के लिए दि. 24 से 25 अगस्‍त तक एक द्वि-दिवसीय हिंदी कार्यशाला का आयोजन किया गया.

कार्यशाला के आरंभ में उद्यम के वरिष्‍ठ प्रबंधक (का. एवं प्रशा. - राजभाषा) श्री होमनिधि शर्मा ने प्रतिभागियों का स्‍वागत करते हुए कार्यशाला का उद्देश्‍य और महत्‍व बताया. इसके बाद, हिंदी शिक्षण योजना, हैदराबाद के प्राध्‍यापक मोहम्‍मद कमालुद्दीन ने संस्‍कृत, हिंदी, तेलुगु, उर्दू, अंग्रेजी का तुलनात्‍मक विश्‍लेषण करते हुए शब्‍दावली निर्माण की प्रक्रिया और इसके प्रयोग की जानकारी दी. उन्‍होंने प्रतिभागियों से व्‍यावहारिक तौर पर वर्तनी, लिंग व मातृभाषा में विचार कर अनुवाद करते समय लेखन में होनेवाली त्रुटियों पर विशेष रूप से अभ्‍यास करवाया.

दूसरे सत्र में हिंदी शिक्षण योजना, हैदराबाद के प्राध्‍यापक श्री नवीन नैथानी ने हिंदी भाषा के मानकीकरण पर विस्‍तार से चर्चा करते हुए शुद्ध व मानक वर्तनी का प्रतिभागियों से अभ्‍यास करवाया. साथ ही, हिंदी भाषा की व्‍याकरणिक संरचना का सोदाहरण परिचय दिया. 

कार्यशाला के दूसरे दिन उद्यम के हिंदी अनुवादक डॉ. बालाजी ने राजभाषा के रूप में हिंदी का औचित्‍य स्‍पष्‍ट करते हुए संघ की राजभाषा नीति का विस्‍तृत परिचय दिया.

अगले सत्र में हिंदी अनुवादक डॉ. नरसिंहम शिवकोटि ने भारत सरकार द्वारा निर्धारित यूनिकोड भाषिक अनुप्रयोग समझाते हुए प्रतिभागियों को कंप्‍यूटर पर मंगल यूनिकोड फाण्‍ट सक्रिय करने और इंडिक फॉनेटिक माध्‍यम से कंप्‍यूटर पर हिंदी, तेलुगु एवं अन्‍य भारतीय भाषाओं में टाइपिंग का अभ्‍यास कराया. 

कार्यक्रम के अंत में, प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त करते हुए प्रतिभागियों ने बताया कि आयोजित कार्यशाला उनके लिए बहुत ही उपयोगी साबित हुई. प्रतिभागियों ने कायर्शाला के सत्रों में दी गई जानकारी का प्रयोग अपने दैनिक काम-काज में करने का संकल्‍प दोहराया. इस कार्यशाला की सफलता में हिंदी शिक्षण योजना, हैदराबाद के प्राध्‍यापक श्री श्रीरामसिंह शेखावत सहित उद्यम के राजभाषा विभाग के सभी कर्मचारियों का सक्रिय योगदान रहा. 

(प्रस्तुति- डॉ. नरसिंहम शिवकोटि)

विजयवाडा में तेलुगु-हिंदी-संस्कृत साहित्य पर त्रिदिवसीय संगोष्ठी संपन्न

यार्लगड्डा लक्ष्मी प्रसाद का भाषण


मंगलवार, 28 अगस्त 2012

तेलुगु से अनूदित ''अक्षर मेरा अस्तित्व'' के लोकार्पण पर ऋषभ देव शर्मा का अध्यक्षीय

तेलुगु कवयित्री सी.भवानीदेवी कृत ‘अक्षर मेरा अस्तित्व’ का लोकार्पण संपन्न


हैदराबाद, 28 अगस्त 2012

आज यहाँ ‘बिंदु आर्ट्स’ के तत्वावधान में प्रो.ऋषभ देव शर्मा की अध्यक्षता में आंध्रप्रदेश हिंदी अकादमी के सभा कक्ष में संपन्न साहित्यिक समारोह में तेलुगु की समकालीन वरिष्ठ कवयित्री डॉ.चिल्लर भवानीदेवी की प्रतिनिधि कविताओं के हिंदी अनुवाद ‘अक्षर मेरा अस्तित्व’ को ज्ञानपीठ पुरस्कार ग्रहीता पद्मभूषण डॉ.सी.नारायण रेड्डी ने लोकार्पित किया. 

‘अक्षर मेरा अस्तित्व’ को लोकार्पित करते हुए डॉ.सी.नारायण रेड्डी ने कहा कि साहित्य के विकास के लिए अनुवाद की भूमिका महत्वपूर्ण होती है इसलिए विभिन्न भारतीय भाषाओं की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया जाना बहुत आवश्यक है. उन्होंने  नारी संवेदना और भाषा विषयक सजगता के लिए कवयित्री की प्रशंसा की और उनकी कुछ पंक्तियों का विवेचन भी किया. उन्होंने कहा कि भवानीदेवी ऐसी साहित्यकार हैं जिन्होंने अपने अस्तित्व को रचनाओं में ढालकर ‘अक्षरत्व’ प्रदान कर दिया है. डॉ.सी.नारायण रेड्डी ने उनका एक ‘नानी’ (लघु मुक्तक) भी पढ़कर सुनाया – विवाह, तुमने/ यह क्या किया/ मायके में मुझे/ मेहमान बना दिया.” 

इसी क्रम में समारोह के विशेष अतिथि के रूप में बोलते हुए साहित्य अकादमी पुरस्कृत एवं ‘नानी’ विधा के प्रवर्तक तेलुगु कवि प्रो.एन.गोपि ने सी.भवानीदेवी के साहित्य की विशेषताओं पर चर्चा की और कहा कि वे समकालीन तेलुगु कविता की विभिन्न प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करने में समर्थ रचनाकार हैं. 

अनुवादिका आर.शांता सुंदरी भी इस अवसर पर उपस्थित थीं. उन्होंने अपने वक्तव्य में अनुवाद प्रक्रिया का खुलासा करते हुए बताया कि काव्य का अनुवाद करना अपेक्षाकृत कठिन होता है. उन्होंने कहा कि जब तक अनुवादक रचना की संवेदना को आत्मसात नहीं कर लेता तब तक अनुवाद शाब्दिक स्तर का होने के कारण निष्प्राण रहता है. 

उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की प्राध्यापक एवं हिंदी-तेलुगु द्विभाषी पत्रिका ‘स्रवन्ति’ की संपादक डॉ.जी.नीरजा ने लोकार्पित कृति की विस्तार से समीक्षा करते हुए मूल तेलुगु कवयित्री डॉ.सी.भवानीदेवी और हिंदी अनुवादिका आर.शांता सुंदरी को प्रभावी सृजन और संप्रेषणीय अनुसृजन के लिए बधाई दी. उन्होंने मूल पाठ और अनूदित पाठ की तुलना करते हुए यह कहा कि इस संकलन की कविताओं में विषय और शिल्प की दृष्टि से विविधता है, वर्तमान समय की जटिल अनुभूतियों की व्यंजनापूर्ण अभिव्यक्ति निहित है तथा अनुवाद मूल रचनाओं के अनुरूप एवं लक्ष्य भाषा हिंदी के प्रकृति के अनुकूल है. 

इस अवसर पर मूल रचनाकार और हिंदी अनुवादिका ने क्रमशः तेलुगु और हिंदी में काव्य पाठ किया तथा लोकार्पित कृति की प्रथम प्रति डॉ.बी.वाणी ने स्वीकार की. 

अध्यक्षीय भाषण में डॉ.ऋषभ देव शर्मा ने राष्ट्रीय और वैश्विक समझ के विकास में अनुवाद की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए बलपूर्वक यह कहा कि अनुवाद किसी भी भाषा-समाज के सदस्यों को कूपमंडूकता और कट्टरवाद से मुक्त करता है. उन्होंने सी.भवानीदेवी की कविता के मानवीय सरोकारों की व्याख्या की और कहा कि वे सी.नारायण रेड्डी एवं एन.गोपि की मानवतावादी काव्यधारा को आगे बढ़ाने वाली समर्थ कवयित्री हैं. 

समारोह का संचालन उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, एरणाकुलम (केरल) से पधारे प्राध्यापक डॉ.पेरिसेट्टि श्रीनिवास राव ने किया.


इस समारोह पर दिए गए मुख्य वक्तव्य नीचे दिए जा रहे लिंकों पर क्लिक करके सुने जा सकते हैं -


Dr.C.Narayan Reddy On Bhavani Devi

N.gopi on bhavanidevi



सोमवार, 27 अगस्त 2012

तेलुगु से अनूदित पाँच पुस्तकें लोकार्पित



राचकोंडा बहनों द्वारा तेलुगु से अनूदित पाँच पुस्तकों और 'स्रवन्ति' के अगस्त अंक के लोकार्पण के अवसर पर (बाएं से - गुंटूर रजनी प्रभा, मुनुकुट्ला रजनी प्रभा, पारनंदि निर्मला,डॉ.स्वराज्य लक्ष्मी, एम.सीतालक्ष्मी,
डॉ.राधेश्याम शुक्ल, डॉ.ऋषभ देव शर्मा, डॉ.एम.वेंकटेश्वर, डॉ.गोपाल शर्मा, सी.एस.होसगौडर और डॉ.जी.नीरजा)

दर्शक दीर्घा में - डॉ.रामप्रवेश राय, वी.कृष्णा राव, जी.परमेश्वर, 
लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, डॉ.पी.घनाते, प्रमोद परीट और अन्य 

दर्शक दीर्घा में संपत देवी मुरारका, आर.शांता सुंदरी, डॉ.सी.भवानीदेवी , विनीता शर्मा, पवित्रा अग्रवाल, एलिजाबेथ कुरियन मोना,  ज्योति नारायण और अन्य 

उत्कृष्ट अनुवाद के लिए राचकोंडा बहनों का सारस्वत सम्मान : (दाएँ से ) डॉ.स्वराज्य लक्ष्मी, पारनंदि निर्मला, मुनुकुट्ला पद्मा राव और गुंटूर रजनी प्रभा 

सरस्वती वंदना करते हुए ज्योति नारायण 


हैदराबाद, 27 अगस्त 2012. 

साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘साहित्य मंथन’ के तत्वावधान में यहाँ खैरताबाद स्थित दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सम्मलेन कक्ष में प्रो.ऋषभ देव शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित एक समारोह में तेलुगु से हिंदी में अनूदित पाँच साहित्यिक और आध्यात्मिक पुस्तकों तथा सभा की द्विभाषी पत्रिका ‘स्रवन्ति’ के नए अंक का लोकार्पण संपन्न हुआ.

वकुलाभरणम रामकृष्ण की तेलुगु पुस्तक ‘कंदुकूरि वीरेशलिंगम’ के पारनंदि निर्मला द्वारा किए गए हिंदी अनुवाद को लोकार्पित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं भाषा चिंतक डॉ.राधेश्याम शुक्ल ने कहा कि यह कृति तेलुगु नवजागरण के एक पुरोधा के जीवन और साहित्य पर चर्चा के माध्यम से देश सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक चेतना को जगाने में समर्थ है.

दो खण्डों में प्रकाशित ‘तेलुगु की प्रतिनिधी कहानियां’ शीर्षक पुस्तकमाला के प्रथम खंड का लोकार्पण अंग्रेज़ी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य डॉ.एम.वेंकटेश्वर ने किया. उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में संकलित तेलुगु के बारह प्रमुख कहानीकारों की 24  कहानियों का पारनंदि निर्मला ने हिंदी भाषा की प्रकृति के अनुरूप सफल अनुवाद किया है जिसके कारण इसमें पठनीयता का गुण स्वतः ही आ गया है.

 इस पुस्तकमाला के द्वितीय खंड में तेलुगु की 22  कहानियों का हिंदी अनुवाद सम्मिलित है जो चार राचकोंडा बहनों के रूप में जानी जाने वाली अनुवादिकाओं डॉ.स्वराज्य लक्ष्मी, पारनंदि निर्मला, मुनुकुट्ला पद्मा राव और गुंटूर रजनी प्रभा द्वारा हिंदी में रूपांतरित की गई हैं. इस खंड को लोकार्पित करते हुए वोलेगा यूनीवर्सिटी (पूर्वी अफ्रीका) के अंग्रेज़ी विभाग के आचार्य डॉ.गोपाल शर्मा ने कहा कि राचकोंडा बहनों ने मूल रचनाओं को आत्मसात करके उन्हें लक्ष्य भाषा हिंदी के मुहावरे में इस प्रकार ढाला है कि यह अनुवाद मौलिक रचना पढ़ने जैसा आनंद देता है.

चौथी लोकार्पित पुस्तक ‘कार्तिक महात्म्य’ का विमोचन करते हुए दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा–आंध्र के सचिव सी.एस.होसगौडर ने भारतीय जीवन मूल्यों का संरक्षण करने वाले पौराणिक और आध्यात्मिक साहित्य की प्रासंगिकता पर भी चर्चा की और इस अनुवाद रूपी अनुष्ठान के लिए राचकोंडा बहनों को बधाई दी.

पांचवी पुस्तक ‘विज्ञान ज्योति’ का लोकार्पण कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ.ऋषभ देव शर्मा ने किया. उन्होंने अनुवादकर्ता चारों विदुषियों के अनुवादकर्म की प्रशंसा करते हुए कहा कि अनुवाद हमारे समक्ष अन्य समाजों तक पहुँचने वाली अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक खिड़कियाँ खोलता है और हमें कूपमंडूकता से मुक्त करके व्यापक और समृद्ध बनाता है.

इस अवसर पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा-आंध्र की अध्यक्ष एम.सीतालक्ष्मी ने सभा की साहित्यिक मासिक पत्रिका ‘स्रवन्ति’ के अगस्त 2012 के अंक का लोकार्पण किया. रचनाकारों और अनुवादकों को शुभकामनाएँ देते हुए उन्होंने कहा कि विभिन्न भारतीय भाषाओं की सामग्री को हिंदी में लाने का काम राष्ट्रभाषा और राष्ट्र की सेवा का काम है जिसके माध्यम से भारतीय साहित्य की मूलभूत एकता को समझने में सहायता मिलती है.

आरंभ में अतिथियों ने सरस्वती-दीप प्रज्वलित किया और ‘साहित्य मंथन’ की संरक्षक ज्योति नारायण ने मंगलाचरण किया. इस अवसर पर अनुवाद के क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए चारों राचकोंडा बहनों का सारस्वत अभिनन्दन भी किया गया.

कार्यक्रम का संचालन उच्च शिक्षा और शोध संस्थान की प्राध्यापक डॉ.गुर्रमकोंडा नीरजा ने किया तथा ‘साहित्य मंथन’ के संयोजक डॉ.बी.बालाजी ने धन्यवाद ज्ञापित किया.

इस अवसर पर डॉ.गोरखनाथ तिवारी, वेमूरि ज्योत्स्ना कुमारी, कोसनम नागेश्वर राव, राधाकृष्ण मिरियाला, जी.संगीता, डॉ.रामप्रवेश राय, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, पवित्रा अग्रवाल, विनीता शर्मा, संतोष काम्बले, प्रमोद परीट, डॉ.एम.रंगय्या, जे.परमेश्वर, एलिजाबेथ कुरियन मोना, देवेंद्र शर्मा, वी.कृष्णा राव, आर.शांता सुंदरी, पारनंदि माधवराम, संपत देवी मुरारका, अशोक तिवारी, सीमा मिश्रा, आकाश तिवारी, ए.जी.श्रीराम, डॉ.पी.घनाते, के.अनुराधा, उमा दुर्गा देवी, प्रो.पी.वी.रमणमूर्ति, पी.सुधा, पी.काव्या, चावली उषा, चावली विश्वेश्वर राव, फनी, पूर्णिमा, पल्लवी, सूर्या, तेजा चंद्रशेखर, वेंकटेश्वर राव, बी.पी.करुणाकर आदि उपस्थित होकर कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की.

[चित्र-सौजन्य : डॉ. बी बालाजी, सम्पत देवी मुरारका और राधाकृष्ण मिरियाला].

21वीं सदी की हिंदी कविता का तेलुगु अनुवाद लोकार्पित

 Dr.Yarlagadda Lakshmi Prasad, Dr.Venna Vallabha Rao, Smt.Arigapudi Poorna Ramesh., Nanduri Rajagopal (Editor,CHINUKU monthly), Patibandla Rajani,Golla Narayana Rao  and Dr.Gumma Sambasiva Rao 

Vijayawada

Dr Venna Vallabha Rao's 2 boos - "KAVITA BHARATI'' (Telugu Translation of Hindi Poems of 21st Century) and "ARIGAPUDI RAMESH CHOUDARY- Jeevitam,Rachanalu" were released in press club,VIJAYAWADA on 10th Aug.2012 by Padmasri Yarlagadda Lakshmi Prasad & Smt.Arigapudi Poorna Ramesh. Famous feminist Poet Smt.Patibandla Rajani reviewed 'Kavita Bharati' and renowned Telugu critic Dr.Gumma Sambasiva Rao reviewed the 2nd book. [-Venna Vallabha Rao]

शनिवार, 25 अगस्त 2012

BIRJEES QADAR KA KUNBA



See how a woman’s iron conviction and obsession with reputation, money and class destroys her family. Sample this:

“Auraton ke vaaste sui-thaaga aur mardon ke vaaste hull aur bail...khaandaani logon ke yahan ka yahee dastoor hota hai.”

...And defiance: “Mera jism uska hoga jisko main chahoongi...”

Spying and Conspiring: “Hum boodhiyaan deewaron ke aar paar dekh leti hain.”

Frustration: “Vo auratein hain, mardon ke bina auratein. aur kuch nahin...” 
SUTRADHAR

presents

   BIRJEES  QADAR KA  KUNBA
A full length play in Urdu adapted by the Late Dr. Raghuvir Sahay from Federico Garcia Lorca’s all-time classic
THE HOUSE OF BERNARDA ALBA
Running time: 1 hour 45 minutes without interval 
Directed by
Vinay Varma


Originally written as ‘The House of Bernarda Alba’ by Federico García Lorca in the 1930s, this play has been performed on stage and on film and translated into various languages all over the world, including a film in Hindi as Rukmavati Ki Haveli by Govind Nihalani. The present translation in Urdu was done by versatile Hindi poet, short-storywriter, essayist, literary critic, translator, journalist and Sahitya Akademi award winner, the late Dr. Raghuvir Sahay.

The stage opens to the house of Birjees Qadar, the matriarch of the clan who has just buried her second husband. She declares an 8 – year long period of mourning for the survivors, namely her 5 daughters, the maidservants and Birjees’ mother Akhtari Begum a woman with an undefeated lust for life in her strong and willful heart. Birjees Qadar rules the household with an iron fist.

A classic saga of repression, rebellion, love, rivalry between the siblings, loyalty, intrigue, betrayal, the different faces of conceit as shown by the various characters at different times, the depravity and the divinity of lust, a struggle between the natural instincts of man and the boundaries imposed by society, the dominion and suppression of woman over woman, the likes of which have seldom been seen on stage yet.

Featuring an all female cast, this play is much more than just a play about women. It is, among many other things, a depiction of the human within us, often the inhuman and sometimes the animal. It is about the ‘one’ that seeks to dominate the ‘other’ and the ongoing struggle between the two. Although the play is set in an Islamic household, if looked at closely we will find that the themes of oppression and struggle are universal and would hold true for any individual or society throughout history that has sought to be totalitarian in its aspect.

And yet, there is more. Many more layers to be uncovered and many more faces (even of our selves) to be unveiled.

Date: Friday, 24th & Saturday, 25th August 2012.
Time: 7:30 pm
Venue: NIFT Auditorium, National Institute of Fashion Technology, Madhapur, Hyderabad.
Vinay Varma,
Director,
SUTRADHAR
3-6-145/9/1/1, Himayatnagar,
Hyderabad – 500 029
+91-98480 52541

बुधवार, 22 अगस्त 2012

निमंत्रण : पारनंदि निर्मला की पुस्तकों का लोकार्पण


निमंत्रण
साहित्य   मंथन 

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डॉ.स्वराज्य लक्ष्मी (हैदराबाद), पारनंदि निर्मला (विशाखपट्टनम),
मुनकुट्ला पद्मा राव (गुंतकल) एवं गुंटूर रजनी प्रभा (भीमवरम)

द्वारा अनूदित कृतियों

कंदुकूरि वीरेशलिंगम,   कार्तिक माहात्म्य,
तेलुगु की प्रतिनिधि कहानियां भाग 1,2,
विज्ञान ज्योति
का 
लोकार्पण समारोह  

                  

                             अध्यक्ष             Ø    डॉ. ऋषभ देव शर्मा,
                   प्रोफेसर, उच्च शिक्षा और शोध संस्थानहैदराबाद                                   
              मुख्य अतिथि       Ø    डॉ.राधेश्याम शुक्ल,
                                     पूर्व संपादक, स्वतंत्र वार्ता, हैदराबाद  
              विशेष अतिथिगण     Ø    डॉ.एम.वेंकटेश्वर,
                                             पूर्व अध्यक्ष, भारत अध्ययन विभाग, इफ्लू, हैदराबाद
       Ø        डॉ.गोपाल शर्मा,
                   प्रोफ़ेसर, अंग्रेज़ी विभाग, वोल्लेगा विश्वविद्यालय,
                   आदिस अबाबा, पूर्वी अफ्रीका
       Ø       श्री सी.एस.होसगौडर,
                                      सचिव, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा -आंध्र  

दिनांक - 26 अगस्त, 2012 (रविवार), समय : अपराह्न 3.30 बजे
स्थान - दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, खैरताबाद,हैदराबाद – 4
आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थित है

डॉ.बी.बालाजी                                                                                      डॉ.गुर्रमकोंडा नीरजा
संयोजक – साहित्य मंथन                                                                                     कार्यक्रम संयोजक                                   

रविवार, 19 अगस्त 2012

संगोष्ठी निमंत्रण : भारतीय भाषाओं में स्वातंत्र्योत्तर साहित्य ...

विजयवाडा (आंध्र प्रदेश) के आंध्र लोयोला कॉलेज में 24-25 अगस्त 2012 को द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी हो रही है. विषय है-
 ''भारतीय भाषाओँ में स्वातंत्र्योत्तर साहित्य की प्रमुख विधाएं और प्रवृत्तियां 
[हिंदी, तेलुगु और संस्कृत के विशेष संदर्भ में]''


बुधवार, 8 अगस्त 2012

22 वाँ आचार्य आनंद ऋषि साहित्य पुरस्कार डॉ. सुनील देवधर को प्रदत्त

22 वाँ 'आचार्य आनंद ऋषि साहित्य पुरस्कार' ग्रहण करते हुए डॉ. सुनील देवधर. साथ में मुख्य अतिथि प्रो. एन. गोपि, समारोह अध्यक्ष
प्रो. ऋषभ देव शर्मा,  तेजराज जैन,  बालचंद बल्लावत, ओमप्रकाश जैन, उगम चंद सुराणा एवं अन्य.



हैदराबाद, 5 अगस्त 2012 .

राष्ट्रसंत आचार्य आनंदऋषि की स्मृति में गत 22 वर्षों से प्रतिवर्ष हैदराबाद के जैन समाज द्वारा दक्षिण भारत में मौलिक हिंदी साहित्य सृजन के लिए हिंदीतरभाषी हिंदी लेखकों को दिया जाने वाला 'आचार्य आनंद ऋषि साहित्य पुरस्कार' वर्ष 2012 के लिए पुणे के  56 वर्षीय मराठीभाषी हिंदी साहित्यकार डॉ. सुनील केशव देवधर को प्रदान किया गया. समारोह की अध्यक्षता दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के प्रो. ऋषभ देव शर्मा  ने की तथा विख्यात तेलुगु साहित्यकार प्रो. एन.गोपि मुख्य अतिथि के रूप में मंचासीन हुए.



इस वार्षिक धार्मिक और साहित्यिक समारोह  का अनूठापन यह है कि पुरस्कार प्रदान करने का समस्त अनुष्ठान जैन संतों और साध्वियों के सान्निध्य में संपन्न होता है तथा साहित्यिक जन के साथ ही बड़ी संख्या में जैन समाज के धर्मप्रेमी स्त्री-पुरुष इस अवसर पर उपस्थित रह कर समान रुचि से संतों के आशीर्वचन और साहित्यकारों के उद्गारों का आनंद उठाते हैं. इस वर्ष के आयोजन में आशीर्वाद देने हेतु पधारे-  श्रद्धेय श्री वीरेंद्र मुनि जी, श्रद्धेय साध्वीश्री रमणीक कँवर जी, श्रद्धेय साध्वीश्री प्रतिभा कँवर जी और उनकी सुशिष्या साध्वीवृंद. संतों-सध्वियों ने अपने ओजस्वी उद्बोधनों में कहा कि साहित्य-संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए दान करना जैन दर्शन के अनुसार अपने ज्ञानावरणीय कर्म के बंधन से मुक्त होने का मार्ग है. उन्होंने संतों और साहित्यकारों की  लोकमंगलकारी भूमिका पर प्रकाश डालते हुए यह भी कहा कि आत्मज्ञान और सम्यक दर्शन द्वारा जीवन और जगत की समस्याओं का निदान सुझाना भी साहित्य का एक प्रयोजन है.


पुरस्कारग्रहीता  साहित्यकार डॉ. सुनील देवधर ने कहा कि साहित्य समाज की विडंबनाओं का समाधान करता है तथा जब कभी राजनीति लडखडाती है तो साहित्य उसे संभाल लेता है. उन्होंने यह भी ध्यान दिलाया कि ऋषि सत्यद्रष्टा तथा कवि स्वप्नद्रष्टा हुआ करते हैं. 

मुख्य अतिथि प्रो. एन. गोपि ने अपने उद्बोधन में कहा कि वाणिज्य और वाणी दो भिन्न व्यापार हैं परंतु वाणिज्यरत समुदाय द्वारा वाणी के आराधकों को सम्मानित करना निश्चय ही वरेण्य है. उन्होंने यह भी बताया कि इस प्रकार के पुरस्कारों और आयोजनों से दक्षिण भारत में राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार प्रसार में लगे हिंदीतरभाषियों को पर्याप्त प्रेरणा और प्रोत्साहन मिलता है.

अध्यक्षासन से संबोधित करते हुए प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने देश और समाज में व्यापक परिवर्तन के लिए संतों और साहित्यकारों की सक्रिय भूमिका की बात उठाई और कहा कि इन दोनों पर  मनुष्य, मनुष्यता और नैतिक मूल्यों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है. उन्होंने जैन धर्म के अनेकांत, सत्य, अहिंसा, प्रेम और एकता जैसे मूल्यों की प्रासंगिकता की ओर ध्यान दिलाते हुए आचार्यश्री आनंद ऋषि द्वारा प्रवर्तित बालसंस्कार, आडम्बर उन्मूलन, समाज संगठन, व्यसन मुक्ति और धर्म जागृति के पंचसूत्री कार्यक्रम को आन्दोलन के रूप में विस्तार प्रदान करने की ज़रूरत बताई.

'नवकार मंत्र' के साथ आरंभ समारोह  श्रद्धेय श्री वीरेंद्र मुनि जी महाराज के  मांगलिक के साथ सम्पन्नता को प्राप्त हुआ. बीच में कल्पना सुराणा और सखियों ने गायन तथा सत्याप्रसन्ना ने विस्मयकारी संतुलन के प्रदर्शन से परिपूर्ण कुचिपुड़ी नृत्य द्वारा सभी का मन मोह लिया. स्वागत भाषण आचार्य आनंद ऋषि साहित्य निधि के अध्यक्ष  उगम चंद सुराणा  ने दिया.  निधि के कार्यदर्शी  कवि तेजराज जैन की पुस्तक 'प्यार लुटाता चला गया' का लोकार्पण भी पुरस्कृत लेखक के हाथों संपन्न हुआ. संचालन और धन्यवाद ज्ञापन का दायित्व सुरश गुगलिया, हर्ष कुमार मुणोत  और सुरेश बोहरा ने निभाया. 




चित्र सौजन्य : संपत देवी मुरारका [बाएँ से द्वितीय]