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मंगलवार, 14 दिसंबर 2021

'श्रीरामकथा का विश्वसंदर्भ महाकोश' के पहले खंड का लोकार्पण संपन्न




30 नवंबर 2021 को नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन के प्लेनरी हॉल में संपन्न "रामकथा में सुशासन" विषयक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के अवसर पर 56 खंडों के 'श्रीरामकथा विश्वसंदर्भ महाकोश' के पहले खंड 'लोकगीत और लोक कथाओं में श्रीरामकथा का संदर्भ' का लोकार्पण मुख्य अतिथि जी. किशन रेड्डी (संस्कृति, पर्यटन व डोनर मंत्री, भारत सरकार) ने अतिविशिष्ट अतिथि अश्विनी कुमार चौबे (पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्यमंत्री,भारत सरकार) तथा विशिष्ट अतिथिगण साध्वी प्रज्ञा ठाकुर (सांसद,लोकसभा), स्वामी परिपूर्णानंद, विजय गोयल, श्याम जाजू, प्रोफेसर दिलीप सिंह, प्रोफेसर विनय कुमार, प्रोफेसर प्रदीप कुमार सिंह, डॉ. अमित जैन एवं समारोह अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण भाला की गरिमामय उपस्थिति में संपन्न किया।
इस अवसर पर बोलते हुए मुख्य अतिथि जी. किशन रेड्डी ने राम संस्कृति के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार के लिए साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था के कार्यों की प्रशंसा की तथा विश्वास प्रकट किया कि 56 खंडों के महाकोश के प्रकाशन की यह विराट योजना आगे और भी तीव्र गति से विकसित होगी। महाकोश के लोकार्पित प्रथम खंड के बारे में बताते हुए जी. किशन रेड्डी ने कहा की राम भारतवर्ष के आम जन के रोम-रोम में बसे हुए हैं, इसका जीता जागता प्रमाण हमारे सभी प्रान्तों, भाषाओं और समुदायों के लोकगीतों और लोककथाओं में राम कथा के प्रसंगों के गुँथे होने से मिलता है।


समारोह के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय से पधारे भाषाचिंतक प्रो. दिलीप सिंह ने की और संचालन दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के पूर्व प्रोफेसर डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने किया। "रामकथा में सुशासन" विषय पर न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय की प्रोफेसर बिंदेश्वरी अग्रवाल, 'उपमा' केलिफोर्निया की प्रतिनिधि डॉक्टर अलका भटनागर और डॉक्टर हेमप्रभा एवं साठये महाविद्यालय, मुंबई से पधारे प्रोफेसर लोखंडे और डॉ. सतीश कनौजिया सहित विभिन्न विद्वानों ने सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए और प्रोफेसर प्रदीप कुमार सिंह के द्वारा चलाए जा रहे चलाई जा रही 56 खंडों के महाकोश की प्रकाशन योजना का हार्दिक स्वागत किया। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री डॉ. श्याम सिंह शशि ने विस्तार से देश विदेश की रामकथाओं में उपलब्ध रामराज्य के विवेचन के आधार पर प्रजा के राज्य को सुशासन का श्रेष्ठ रूप सिद्ध किया। आरंभ में अंतरराष्ट्रीय पाक्षिक पत्रिका 'चाणक्य वार्ता' के संपादक डॉ. अमित जैन ने अतिथियों का स्वागत सत्कार किया।

कार्यक्रम के दूसरे चरण में डॉ. विनोद बब्बर, डॉ रंजय कुमार सिंह, डॉ. नारायण, डॉ. शीरीन कुरेशी तथा डॉ.आशा ओझा तिवारी ने रामराज्य और सुशासन के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला। इस सत्र की अध्यक्षता हंसराज कॉलेज, नई दिल्ली की प्रधानाचार्य प्रोफेसर रमा ने की और संचालन डॉ. भावना शुक्ल ने किया।


समापन सत्र में मुख्य अतिथि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और अति विशिष्ट अतिथि अश्विनी कुमार चौबे के हाथों देश- विदेश के हिंदी सेवियों और राम संस्कृति के पोषक सहयोगियों का सम्मान किया गया तथा प्रो. ऋषभदेव शर्मा सहित कई विशिष्ट विद्वानों को "विश्व राम संस्कृति सम्मान" से अलंकृत किया गया। अवसर पर छत्तीसगढ़ से रामकथा की मंचीय प्रस्तुति के लिए पधारे लोक कलाकारों का भी 'चाणक्य वार्ता' और साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था की ओर से अभिनंदन किया गया। सम्मान सत्र का संचालन प्रो. माला मिश्रा ने किया।

शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

मिधानि में राजभाषा ‘वाक प्रतियोगिता’ संपन्न





हैदराबाद, 26.07.2018।
आज यहाँ नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति (उपक्रम) के तत्वावधान में मिश्र धातु निगम लिमिटेड के सभागृह में विभिन्न उपक्रमों में कार्यरत कार्मिकों के लिए ‘वाक प्रतियोगिता’ आयोजित की गयी। प्रतियोगिता में 19 उन्नीस उपक्रमों से आए हुए 25 प्रतिभागियों ने ‘ एक देश-एक भाषा (संघ की राजभाषा के संदर्भ में)’ तथा ‘देश और अभिव्यक्ति की आजादी’ पर अपने विचार प्रकट किए।
प्रतियोगिता का उद्घाटन करते हुए मिश्र धातु निगम लिमिटेड के अपर महाप्रबंधक (मानव संसाधन एवं परिवर्तन प्रबंधन) के आनंद कुमार ने कहा इससे हम किसी विषय को तथ्यात्मक ढंग से संक्षेप में और प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत करना सीख सकते हैं। नराकास के सदस्य सचिव और बीडीएल के उप महाप्रबंधक (राजभाषा) होमनिधि शर्मा ने राजभाषा के रूप में हिंदी की व्यापक स्वीकार्यता बताते हुए प्रतिभागियों का स्वागत किया। प्रयोजक संस्था मिधानि की ओर से सहायक प्रबंधक (राजभाषा) डॉ बी बालाजी ने प्रतियोगिता के नियम स्पष्ट किए। निर्णायकद्वय प्रकाश जैन और ऋषभदेव शर्मा ने व्यक्तित्व विकास में मनुष्य के भाषाई और शारीरिक व्यवहार की महत्ता पर चर्चा की।
प्रतियोगियों के भाषणों के मूल्यांकन के आधार पर हिंदी भाषी वर्ग में ईएसआई आदर्श नगर के संदीप सिंह को प्रथम,बीएचईएल आरसी पुरम के विनोद सिंह को द्वितीय तथा बीडीएल के धीरज जोशी और एनएमडीसी की पल्लवी डांगे को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। अन्य भाषी वर्ग में एनएमडीसी की लक्ष्मी कुमार को प्रथम, एचपीसीएल की के एस अनंत लक्ष्मी को द्वितीय और बीएचईएल अनुसंधान एवं विकास के रामचंदर राव को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। नराकास के इन पुरस्कारों के अलावा डेली हिंदी मिलाप की ओर से चतुर्थ स्थान प्राप्त मिधानि के अमित सिंह (हिंदी भाषी वर्ग) और एचएएल की जयश्री (अन्य भाषी वर्ग) के लिए विशेष पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई।
आरंभ में सुरेखा, वर्षा, रमा मल्लिका, रतनसिंह और प्रतीक शर्मा ने मिधानि गीत प्रस्तुत किया। अंत में सभी प्रतिभागियों को मिधानी की ओर से स्मृति चिह्न के रूप में उपहार भेंट किया गया।
प्रतियोगिता में न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड से श्रद्धा नीलकंठ; बीडीएल से अंबिका मिशा; ईएसआई चिकित्सा महाविद्यालय से मिर्ज़ा असद बेग; बीएचईएल, आरसी पुरम से पी बाल सुब्रह्मण्यम; ईएसआई, अतिविशिष्ट अस्पताल से रत्नदीप सरकार; एचपीसीएल से नेहा कटारिया; आईटीआई से बी नंद किशोर; एमएमटीसी से राजेंद्र प्रसाद; मिधानि से डॉ प्रवीण ज्योति; ईसीआईएल से शर्मीला मुर्मू; एअर इंडिया से पी आर रवींद्र; आईओसीएल से ज़ाहिद अली एवं टीके शेखर; एचएएल से मंजय कुमार; तथा यूनाइटेड इंडिया इन्शुरेंस कंपनी से वी श्रवण कुमार ने उत्साह पूर्वक अपनी भागीदारी दर्ज कराई और राजभाषा हिंदी के प्रति निष्ठा व्यक्त की। इस अवसर पर हिंदी अधिकारीगण - बीडीएल के अवर प्रबंधक डॉ शिव कोटि, बीडीईएल आरसी पुरम के नवदीप कुमार, एनएमडीसी की जी सुजाता, एमएमटीसी के अजय कुमार मिश्र आईओसीएल के जितेंद्र साह तथा यूनाइटेड इंडिया इन्शुरेंस कंपनी की जी लक्ष्मी ने भी अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज कराई।
प्रेषक:
डॉ बी बालाजी, सहायक प्रबंधक (राजभाषा), मिधानि।

मंगलवार, 3 अक्टूबर 2017

प्रो. ऋषभदेव शर्मा को 'अंतरराष्ट्रीय हिंदी मित्र सम्मान'








28 -29 सितंबर,2017 को मुंबई में विले पार्ले स्थित साठ्ये महाविद्यालय में संपन्न "रामकथा और आदिवासी साहित्य" विषयक "द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी" के अवसर पर हैदराबाद के हिंदी आचार्य एवं साहित्यकार प्रो.ऋषभदेव शर्मा को मॉस्को की संस्था रूसी-भारतीय मैत्री संघ 'दिशा' एवं मुंबई की संस्था साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्थान की ओर से "अंतरराष्ट्रीय हिंदी मित्र सम्मान" से अलंकृत किया गया। यह सम्मान प्रो.ऋषभ को उनकी हिंदी भाषा, शिक्षा, साहित्य और सामाजिक कार्यों के प्रति अनवरत सेवाओं के लिए प्रदान किया गया है। साथ ही, पूर्वोत्तर भारत के सम्मान चिह्नों द्वारा भी उनका अभिनंदन किया गया। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता साठ्ये कॉलेज की प्राचार्य डॉ. कविता रेगे ने की। इस अवसर पर अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डॉ. योगेंद्र प्रताप सिंह, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के आचार्य डॉ. दिलीप सिंह, महात्मा गांधी संस्थान-मॉरीशस की निदेशक डॉ. विद्योत्तमा कुंजल, हिंदी प्रचारिणी सभा-मॉरीशस के प्रधान डॉ. यंतु देव बुधु, श्रीलंका की हिंदी लेखिका डॉ. वजीरा गुणसेना, सिने अभिनेत्री पुष्पा वर्मा, हिंदी संगम फाउंडेशन-अमेरिका के निदेशक डॉ. अशोक ओझा, वैश्विक राम साहित्य के विशेषज्ञ डॉ. प्रदीप कुमार सिंह, स्पाइल दर्पण-नार्वे के संपादक डॉ. सुरेश शुक्ल, संवाद पत्रिका के संपादक डॉ. अमित कुमार पांडेय, कुतुबनुमा की संपादक डॉ. राजम नटराजन पिल्लै सहित देश-विदेश के अनेक हिंदीसेवी एवं साहित्यकार उपस्थित थे। संचालन डॉ. अनिल सिंह ने किया।

(रिपोर्ट : डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा)
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शनिवार, 29 अक्टूबर 2016

गोइन्का पुरस्कार/सम्मान की घोषणा

रमेश गुप्त नीरद 
कमला गोइन्का फाउण्डेशन के प्रबंध न्यासी श्री श्यामसुन्दर गोइन्का जी ने एक प्रेस विज्ञप्ति द्वारा सूचित किया है कि कमला गोइन्का फाउण्डेशन द्वारा दक्षिण भारत के सर्वश्रेष्ठ हिंदी सेवियों के लिए घोषित "बालकृष्ण गोइन्का हिन्दी साहित्य सम्मान" से इस वर्ष चेन्नई निवासी गणमान्य हिंदी' साहित्यकार श्री रमेश गुप्त 'नीरद' जी को सम्मानित किया जाएगा।

पवित्रा अग्रवाल 

कमला गोइन्का फाउण्डेशन द्वारा मूल हिंदी कृति के लिए घोषित रु.31000/- रुपये का "बाबूलाल गोइन्का हिंदी साहित्य पुरस्कार" इस वर्ष हैदराबाद निवासी श्रीमती पवित्रा अग्रवाल जी को उनकी मूल हिंदी कृति "उजाले दूर नहीं" के लिए दिया जाएगा।

डॉ. वी. पद्मावती 



संग-संग हिंदी से तमिल या तमिल से हिंदी में अनूदित साहित्य के लिए घोषित रु.31000/- रुपए का "बालकृष्ण गोइन्का अनूदित साहित्य पुरस्कार" इस वर्ष कोयम्बतूर की निवासी डॉ. वी पद्मावती जी को दिया जाना निर्णीत हुआ है।

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2016

रामेश्वर सिंह के हैदराबाद आगमन पर स्नेह मिलन समारोह संपन्न


एम. वेंकटेश्वर और गुर्रमकोंडा नीरजा सहित 7 लेखकों को 
अंतरराष्ट्रीय हिंदी भास्कर, 2 को हिंदी रत्नाकर तथा
 रामेश्वर सिंह को संस्कृति-सेतु सम्मान प्रदत्त


आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी के गगन विहार, हैदराबाद स्थित सभाकक्ष में संपन्न सम्मान समारोह में मास्को स्थित रूसी-भारतीय मैत्री संघ ‘दिशा’ के संस्थापक डॉ. रामेश्वर सिंह को ‘साहित्य मंथन संस्कृति-सेतु सम्मान’ प्रदान करते हुए
 तेलुगु विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. एन. गोपि.
 साथ में (बाएँ से) डॉ. अनिल कुमार सिंह, डॉ. एम. वेंकटेश्वर, डॉ. ऋषभदेव शर्मा, डॉ. पूर्णिमा शर्मा, डॉ. आर. जयचंद्रन,
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा  डॉ. बाबू जोसफ एवं डॉ. प्रदीप कुमार सिंह.


हैदराबाद, 20 अक्टूबर, 2016 (मीडिया विज्ञप्ति).

‘’हिंदी केवल भारत की ही नहीं विश्व की बेहद शक्तिशाली भाषा है जो बहुत बड़े जन-समुदाय को तरह-तरह की भिन्नताओं के बावजूद जोड़ने का काम करती है. मैंने देश-विदेश की अपनी साहित्यिक यात्राओं में कभी भी अकेलापन अनुभव नहीं किया है क्योंकि हिंदी मेरे साथ हमेशा रहती है. आज जब विश्व-पटल पर भारत और रूस के मैत्री संबंध नई दिशा की ओर बढ़ रहे हैं, ऐसे समय भारतीय-रूसी मैत्री संघ ‘दिशा’ के संस्थापक डॉ. रामेश्वर सिंह का हैदराबाद में सम्मान तथा उनकी संस्था की ओर से भारत के कुछ हिंदी सेवियों का सम्मान हिंदी के माध्यम से परस्पर मैत्री को मजबूत बनाने की खातिर एक सराहनीय कदम है.’’

ये विचार अग्रणी तेलुगु साहित्यकार प्रो. एन. गोपि ने रूसी-भारतीय मैत्री संघ 'दिशा' (मास्को), साहित्यिक-सांस्कृतिक शोध संस्था (मुंबई) तथा 'साहित्य मंथन' (हैदराबाद) के संयुक्त तत्वावधान में आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी के सभाकक्ष में संपन्न 'स्नेह मिलन एवं सम्मान समारोह' की अध्यक्षता करते हुए प्रकट किए.

इस अवसर पर मास्को से आए डॉ. रामेश्वर सिंह को श्रीमती लाड़ो देवी शास्त्री की पावन स्मृति में प्रवर्तित ''साहित्य मंथन संस्कृति-सेतु सम्मान : 2016'' प्रदान किया गया. अपने कृतज्ञता भाषण में डॉ. रामेश्वर सिंह ने कहा कि कोई भी भाषा अपने बोलने वालों के दम पर विकसित होती है और विश्व भर में हिंदी अपने प्रयोक्ताओं की बड़ी संख्या तथा अपनी सर्व-समावेशी प्रकृति के कारण निरंतर विकसित हो रही है, अतः आने वाले समय में सांस्कृतिक से लेकर कूटनैतिक संबंधों तक के लिए हिंदी को बड़ी भूमिका अदा करनी है.

‘दिशा’ और ‘शोध संस्था’ की ओर से डॉ. आर. जयचंद्रन (कोचिन) और डॉ.मुकेश डी. पटेल (गुजरात) को ''हिंदी रत्नाकर अंतरराष्ट्रीय सम्मान'' से तथा डॉ. बाबू जोसेफ (कोट्टायम), डॉ. एम. वेंकटेश्वर (हैदराबाद), डॉ. अनिल सिंह (मुंबई), डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा (हैदराबाद), डॉ. वंदना पी. पावसकर (मुंबई), डॉ. सुरेंद्र नारायण यादव (कटिहार) और डॉ. कांतिलाल चोटलिया (गुजरात) को ''हिंदी भास्कर अंतरराष्ट्रीय सम्मान'' से अलंकृत किया गया. पुरस्कृत साहित्यकारों ने हिंदी भाषा के प्रति अपने पूर्ण समर्पण का संकल्प जताया.

कार्यक्रम के प्रथम चरण में आगंतुक और स्थानीय साहित्यकारों के परस्पर परिचय के साथ ‘चाय पर चर्चा’ का अनौपचारिक दौर चला तथा दूसरे चरण में सम्मान समारोह संपन्न हुआ. आरंभ में स्वस्ति-दीप प्रज्वलित किया गया तथा कवयित्री ज्योति नारायण ने वंदना प्रस्तुत की. साहित्यिक-सांस्कृतिक शोध संस्था के सचिव डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया और विश्व-मैत्री के लिए हिंदी की संभावित भूमिका पर विचार प्रकट किए. 

अपनी सक्रिय भागीदारी और उपस्थिति से चर्चा-परिचर्चा को जीवंत बनाने में डॉ. बी. सत्यनारायण, डॉ. अहिल्या मिश्र, डॉ. रोहिताश्व, डॉ. करण सिंह ऊटवाल, वुल्ली कृष्णा राव, डॉ. बी, बालाजी, डॉ. मंजु शर्मा, डॉ. बनवारी लाल मीणा, प्रभा कुमारी, मो. आसिफ अली, प्रवीण प्रणव, शशि राय, भंवर लाल उपाध्याय, जी. परमेश्वर, पवित्रा अग्रवाल, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, डॉ. राजेश कुमार, संपत देवी मुरारका, डॉ. मोनिका शर्मा, वर्षा, डॉ. सुनीला सूद, डॉ. राजकुमारी सिंह, टी. सुभाषिणी, संतोष विजय, अशोक तिवारी, आलोक राज, शरद राज, श्रीधर सक्सेना, श्रीनिवास सावरीकर, डॉ. रियाज़ अंसारी, मदन सिंह चारण और डॉ. पूर्णिमा शर्मा आदि ने महत्वपूर्ण योगदान किया.

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2016

[शताब्दी समारोह संपन्न] अखंड हिंदी भक्ति के प्रतीक वेमूरि आंजनेय शर्मा

हैदराबाद, 10 नवंबर,2016 [महानवमी].  श्री वेमूरि आंजनेय शर्मा स्मारक ट्रस्ट  ने आज रवींद्र भारती सम्मलेन कक्ष में हिंदी सेवी वेमूरि आंजनेय शर्मा  शताब्दी समारोह का आयोजन किया. समारोह की अध्यक्षता डॉ. के. शिवा रेड्डी ने की तथा मुख्य अतिथि मंडलि बुद्ध प्रसाद रहे. विशेष वक्ता के रूप में डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने वेमूरि आंजनेय शर्मा के व्यक्तित्व और अवदान पर प्रकाश डाला. प्रस्तुत है उनका  वक्तव्य जो इस अवसर पर प्रकाशित और लोकार्पित ''शतजयंती विशेषांक'' में सम्मिलित है.  

जन्मशती के संदर्भ में वेमूरि आंजनेय शर्मा जी की मानसिक छवि मेरे समक्ष आज अखंड हिंदी भक्ति के विग्रह के रूप में उभरती है. पीढ़ियाँ उन्हें राष्ट्रभाषा के ऐसे समर्पित साधक के तौर पर याद करेंगी जिन्होंने अपना सारा जीवन हिंदी की सेवा के लिए समर्पित कर दिया. अपनी किशोरावस्था में वे स्वतंत्रता आंदोलन के अंग के रूप में स्वभाषा और स्वदेशी की ओर आकृष्ट हुए. उस काल में एक ओर तो आंध्र प्रदेश में हिंदी को तुरुक भाषा कहकर हिकारत की नज़र से देखा जाता था तथा दूसरी ओर उसे सीखना-सिखाना राजद्रोह के समान वर्जित कर्म था. शर्मा जी ने इन दोनों ही बातों की परवाह नहीं की और न केवल हिंदी सीखी बल्कि उसके प्रचार में भी सक्रियता से संलग्न हो गए. राष्ट्रभाषा प्रचार के प्रति उनकी निष्ठा के कारण ही उन्हें व्यावहारिक भाषा के नैसर्गिक वातावरण में हिंदी अध्ययन के लिए उत्तर भारत भेजा गया, जहाँ से उन्होंने हिंदी के मुहावरे पर मातृभाषावत अधिकार अर्जित किया. इस वातावरण के प्रभाव से वे अटल हिंदीव्रती बन गए और अपने बाद आने वाले असंख्य हिंदी सेवियों व प्रचारकों के प्रेरणास्रोत भी. हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ के बीच परस्पर आदान-प्रदान के लिए जो वे आजीवन सचेष्ट रहे, इसके पीछे भी उनके इसी काल के अनुभव विद्यमान थे.

मैंने वेमूरि आंजनेय शर्मा को पहली बार यों तो दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास में प्राध्यापक पद के अपने साक्षात्कार के समय देखा था. उन्होंने ही मुझसे यह प्रश्न किया था कि मैं आसूचना ब्यूरो छोड़कर सभा में क्यों आना चाहता हूँ. पर तब मुझे उनका नाम और पद ज्ञात न था. जब 15 मार्च, 1990 की सुबह मैं कार्यभार ग्रहण करने के उद्देश्य से सभा में पहुँचा तो द्वारपाल मुझे कुल सचिव के आवास पर ले गया और जिस विभूति ने वहाँ सहज घरेलू शिष्टाचार के साथ मेरा स्वागत किया वह शर्मा जी थे. कुछ ही मिनट की मुलाकात में उन्होंने यह दर्शा दिया कि उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के कुल सचिव के रूप में उनकी पहली चिंता शिक्षा के स्तर और भाषा के सम्यक व्यवहार की है. वे सच्चे अर्थ में भारतीय थे और उत्तर-दक्षिण या हिंदी-अहिंदी के भेदभाव से घृणा करते थे. वे ऐसे ही विचार वाले शिक्षकों को चाहते थे. उँगलियों से बाँसुरी सी बजाते हुए बोले थे – हमने तो विशेषज्ञों से कह दिया था कि सबसे उत्तम कैंडीडेट चुनकर हमें दें; हम कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे. विद्वत्ता का वे ह्रदय से सम्मान करते थे और आयु-भेद की सारी सीमाओं को लांघकर लघुतम व्यक्ति की भी सही बात को सहर्ष स्वीकार करते थे. अफ़सोस की बात है कि उनके जैसा उदार राष्ट्रीय सोच अब वहाँ नहीं रहा! 

वेमूरि आंजनेय शर्मा दिग्गज विद्वान होते हुए भी स्वयं को सदा विद्यार्थी समझने वाले आदर्श के रूप में भी याद आते हैं. पहले ही दिन उन्होंने मुझे ‘तमिल स्वयंशिक्षक’ पुस्तक दिखाते हुए बताया था कि कैसे वे ज़रुरत पड़ने पर उसका उपयोग करते हैं. उनके साधारण पहनावे और राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के ज़माने के संस्मरण सुनाते जाने से यह भ्रम होने की पूरी गुंजाइश थी कि वे अतीत में ठहरे हुए होंगे. लेकिन ऐसा था नहीं. उनके निकट जाने पर मुझे पता चला कि उनका व्यक्तित्व तो सतत प्रवाहशील सदानीरा नदी जैसा था. वे अधुनातन ज्ञान-विज्ञान से सीधे जुड़े हुए थे. अस्तित्ववाद के सैद्धांतिक और साहित्यिक पक्षों से उनका गहरा परिचय था. इस विषय को उन्होंने मौलिक लेखन और अनुवाद द्वारा भी तेलुगु पाठकों तक पहुँचाया. आज भी ऐसे ‘महापुरुषों’ की कमी नहीं जो कंप्यूटर और प्रौद्योगिकी से अछूतों सा बरताव करते हैं; लेकिन शर्मा जी भारत में कंप्यूटर की चौथी पीढी के अवतरण के ज़माने से ही उसे हिंदी और भारतीय भाषाओं के लिए सक्षम बनाने के लिए उद्यमशील थे. वे इस बारे में उत्साही और आशावान थे कि शायद देशभर में हिंदी माध्यम से कंप्यूटर की उच्चस्तरीय शिक्षा (एम सी ए) आरंभ करने की चुनौती सभा ने उनके नेतृत्व में सफलतापूर्वक स्वीकार की. एक और चुनौती उन्होंने एम ए हिंदी का भाषाविज्ञान प्रधान पाठ्यक्रम चलाने की भी उस वक़्त स्वीकार की थी जब अनेक पोंगापंथी संस्थाओं को ऐसा करना पागलपन लगता था. शर्मा जी इन चुनौतियों को स्वीकार सके क्योंकि उन्हें भाषा और शिक्षा के उस भविष्य का अनुमान था जिसमें प्रौद्योगिकी और प्रयोजनमूलकता को केंद्रीय महत्त्व मिलने वाला था. अतः कहना ही होगा कि वेमूरि आंजनेय शर्मा क्रांतदृष्टा भाषाचिंतक और शिक्षाविद थे.

मुझे याद आता है कि एक बार शर्मा जी ने हिंदी प्रचार और मीडिया के संबंध की चर्चा छिड़ने पर बताया था कि हिंदी प्रचार के आरंभिक दशकों में नाटक जैसे परंपरागत मीडिया का भी उपयोग किया जाता था और कि वे स्वयं ऐसी नाटक मंडलियों से जुड़े थे और कई नाटकों में उन्होंने अभिनय भी किया था. हिंदी को राजभाषा के रूप में अखिल भारतीय स्वीकृति मिलने के लिए वे संवैधानिक व्यवस्था को नाकाफी मानते थे. साथ ही, वे चाहते थे कि सारे देश में त्रिभाषा सूत्र ‘ईमानदारी’ और सख्ती से लागू किया जाए. इसके अलावा, वे अनुवाद के साथ ही हिंदीतर भाषियों के सृजनात्मक लेखन को भी हिंदी साहित्य में सही (हाशिए पर नहीं) स्थान दिए जाने की माँग के समर्थक थे. 

अंततः इतना ही कि गंगाशरण सिंह और रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के संस्मरण सुनाते समय शर्मा जी की गद्गद हो उठते थे; आज शर्मा जी का स्मरण करते हुए मैं उसी भाव की अनुभूति कर रहा हूँ. 



- डॉ. ऋषभदेव शर्मा, 
पूर्व प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, 
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद – 500 004.

सोमवार, 14 दिसंबर 2015

सातवाँ साहित्य गरिमा पुरस्कार तिरुवनंतपुरम की लेखिका डॉ. सी. जे. प्रसन्नकुमारी को प्रदत्त


हैदराबाद। 11  और 12  दिसंबर, 2015 को यहाँ संपन्न ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इण्डिया के सम्मलेन के तुरंत बाद नरेंद्र भवन के उसी मंच पर साहित्य गरिमा पुरस्कार -2014 समर्पण समारोह आयोजित किया गया।   मुख्यतः दक्षिण भारत में हिंदी में सृजनात्मक लेखन के लिए चयनित  महिला-रचनाकार को दिया जाने वाला यह पुरस्कार इस वर्ष तिरुवनंतपुरम-वासी  लेखिका डॉ. सी. जे. प्रसन्नकुमारी को कथेतर विधा वर्ग के अंतर्गत उनके यात्रावृत्त "भारतीय अभियंताओं का  स्वप्नलोक" के लिए मुख्य अतिथि  श्री मुनींद्र  के हाथों प्रदान किया गया।  इस अवसर पर लिए गए इस चित्र में डॉ. ऋषभदेव शर्मा लेखिका को मान-पत्र समर्पित कर रहे हैं। साथ में (बाएं से) श्री मुनींद्र , डॉ. शिव शंकर अवस्थी, डॉ. अहिल्या मिश्र, मानवेंद्र मिश्र एवं अन्य। 

शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2015

ऋषभदेव शर्मा को श्री वेमूरि आंजनेय शर्मा स्मारक हिंदी साहित्य पुरस्कार – 2015 : अभिनंदन पत्र

श्री वेमूरि आंजनेय शर्मा स्मारक ट्रस्ट, हैदराबाद
हिंदी साहित्य पुरस्कार – 2015 


ऋषभदेव शर्मा को समर्पित 

अभिनंदन पत्र



समकालीन हिंदी साहित्य के क्षेत्र में तेवरी काव्य-आंदोलन के प्रवर्तक के रूप में सुपरिचित डॉ. ऋषभदेव शर्मा एक संवेदनशील कवि, तत्वाभिनिवेशी समीक्षक, प्रांजल गद्यकार और सृजनशील मीडियालेखक होने के साथ-साथ राष्ट्रभाषा-संपर्कभाषा-राजभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित सक्रिय कार्यकर्ता, आदर्श अध्यापक और निष्ठावान शोध निर्देशक हैं. 


डॉ. ऋषभदेव शर्मा का जन्म 4 जुलाई, 1957 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाँव गंगधाड़ी, जिला मुजफ्फरनगर, में हुआ. आपकी माताजी श्रीमती लाडो देवी लोक-संस्कृति में रची-पगी घरेलू महिला थीं और पिताजी श्री चतुर्देव शर्मा शास्त्री संस्कृत साहित्य, व्याकरण और ज्योतिष के प्रकांड पंडित थे. आपने इन दोनों से विरासत में लोक-संस्कृति और साहित्य की चेतना प्राप्त की तथा प्राथमिक शिक्षा के दौरान ही कविता और निबंध लेखन आरंभ कर दिया. 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों ने आपके भावुक बाल-मन को अत्यंत विचलित किया जिससे आप राष्ट्रीय चेतना प्रधान लेखन की ओर उन्मुख हुए. यों तो आपकी प्रवृत्ति बचपन से ही अंतर्मुखी रही लेकिन आपके संवेदनशील मानस पर देश के विषमतापूर्ण सामाजिक-आर्थिक यथार्थ ने गहरा प्रभाव डाला जिसके कारण अपनी किशोरावस्था से ही आप गरीबों, पिछड़ों, वंचितों और स्त्रियों के मानवाधिकारों के प्रति विशेष सजग रहे. परिणामस्वरूप आपके लेखन में आक्रोश और व्यंग्य प्रमुख स्थान पाते गए जिसकी परिणति 1981 में तेवरी काव्य-आंदोलन के प्रवर्तन के रूप में सामने आई.



डॉ. ऋषभदेव शर्मा का जीवन सरलरेखीय रहा है – बस दो तीन स्वाभाविक से मोड़ अवश्य आए. आपने स्नातकोत्तर स्तर तक भौतिक विज्ञान का अध्ययन करने के बाद अपनी मूल प्रवृत्ति को पहचानकर हिंदी में एम.ए. और पीएच.डी. किया. आपका विवाह 1984 में डॉ. पूर्णिमा शर्मा से हुआ जो स्वयं साहित्यिक विदुषी हैं. आपकी दो संतानें हैं – पुत्र कुमार लव नई पीढ़ी के सशक्त कवि हैं और पुत्री लिपि भारद्वाज एक सफल फोटो-जर्नलिस्ट हैं. इस प्रकार आपका पारिवारिक परिवेश सही अर्थों में सृजनात्मक परिवेश है. आजीविका के लिए आपने सात वर्ष तक जम्मू और कश्मीर राज्य में भारत सरकार के गुप्तचर विभाग के अधिकारी के रूप में कार्य किया और उसे अपनी मूल प्रवृत्ति के अनुरूप न पाकर 1990 में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में प्राध्यापक के रूप में चले आए. सभा में 25 वर्ष से अधिक तक कार्य करने के दौरान आपने दक्षिण भारत ही नहीं, समस्त हिंदी जगत में एक निष्ठावान अध्यापक, प्रखर वक्ता, सुधी समालोचक, आदर्श शोधनिर्देशक एवं निःस्वार्थ हिंदी-सेवी का प्रभूत यश अर्जित किया. 


!! अभिनंदन पत्र का वाचन वेमूरि ज्योत्स्ना कुमारी ने किया !!

डॉ. ऋषभदेव शर्मा का कृतित्व अत्यंत हृदयग्राही और प्रेरक है. आपकी रचनाओं में आपका मानवतावादी व्यक्तित्व और सुसंस्कृत सौंदर्यबोध साफ झलकता है. जीवन और लेखन दोनों में ही आप हर प्रकार की कृत्रिमता और पाखंड के विरोधी हैं. इसीलिए जो भी कहते या लिखते हैं, सीधे-सीधे दो-टूक कहते और लिखते हैं. आपकी अब तक प्रकाशित 15 मौलिक पुस्तकों में 7 कविता संग्रह और 8 आलोचना ग्रंथ सम्मिलित हैं. आपकी ‘तेलुगु साहित्य का हिंदी पाठ’ और ‘तेलुगु साहित्य का हिंदी अनुवाद : परंपरा और प्रदेय’ शीर्षक पुस्तकें तेलुगु साहित्य और संस्कृति के प्रति आपके प्रेम का प्रतीक हैं. विशेष बात यह है कि आपके एक कविता संग्रह ‘प्रेम बना रहे’ के एक साथ दो तेलुगु अनुवाद प्रकाशित हुए हैं. आपकी कुछ रचनाओं का तमिल, पंजाबी, मैथिली, मणिपुरी और जर्मन भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है. 



डॉ. ऋषभदेव शर्मा की मान्यता है कि हिंदी को विश्व-भाषा के रूप में प्रतिष्ठा मिलने के मूल में हिंदीतर भाषी हिंदी प्रेमियों का योगदान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. इसीलिए आप हिंदीतर भाषी लेखकों और शोधकर्ताओं को निरंतर प्रेरित करते रहते हैं. आपने अनेक रचनाकारों के लेखन को परिमार्जित तो किया ही, 100 से अधिक पुस्तकों की भूमिका लिखकर प्रकाशन हेतु प्रोत्साहित भी किया है. आपने लगभग 20 पुस्तकों का संपादन किया है और 8 पत्र-पत्रिकाओं के भी संपादन कार्य से जुड़े रहे हैं. आपकी इंटरनेट पर सक्रियता भी देखते ही बनती है. देश भर के अनेक विश्वविद्यालयों और संस्थानों के लिए आपने पाठ-सामग्री का लेखन एवं संपादन किया है जिसमें दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए तैयार की गई 18 पुस्तकें शामिल हैं. आपने डीलिट, पीएच.डी. और एम.फिल. के कुल 135 शोधकार्यों का सफलतापूर्वक निर्देशन किया है और अब भी कई शोधार्थी आपके निर्देशन में शोध कर रहे हैं. आपने अतिथि आचार्य के रूप में भी विभिन्न संस्थाओं को अपनी सेवाएँ प्रदान की हैं तथा वर्तमान में स्वतंत्र लेखन के साथ-साथ आप एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में विदेशी छात्रों को हिंदी पढ़ाने में व्यस्त हैं. 



डॉ. ऋषभदेव शर्मा मृदुभाषी, सरल चित्त, सहज संतोषी, लोकप्रिय और पारदर्शी व्यक्तित्व के धनी हैं. श्री वेमूरि आंजनेय शर्मा स्मारक ट्रस्ट की ओर से हम आज आपको ‘वेमूरि आंजनेय शर्मा स्मारक पुरस्कार – 2015’ से सम्मानित करते हुए गौरव और हर्ष का अनुभव कर रहे हैं.



हैदराबाद-22.10.2015 


   

शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

25 वें आनंदऋषि साहित्य पुरस्कार हेतु डॉ. एम. रंगय्या चयनित

25 वां आनंदऋषि  साहित्य पुरस्कार 78 वर्षीय तेलुगुभाषी कवि डॉ. एम. रंगय्या को हिंदी में उनके मौलिक साहित्य सृजन के लिए प्रदान किए जाने की घोषणा की गई है. 

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

साहित्य गरिमा पुरस्कार-2014 महिला रचनाकार की ''मौलिक सृजनात्मक कथेतर गद्य विधा की रचना '' पर





हैदराबाद, 12 अप्रैल 2015 [रविवार]. 

साहित्य गरिमा पुरस्कार समिति -2014 के संबंध में आयोजित बैठक में तय किया गया कि -
1. हर वर्ष की भाँति इस पुरस्कार के लिए केवल 'महिला रचनाकार' ही पात्र होंगी तथा पुरस्कार उनकी किसी 'एक' प्रकाशित पुस्तक पर प्रदान किया जाएगा.
2. पुरस्कार के लिए केवल हिंदी की  निर्धारित विधा की पुस्तकें ही विचारणीय होंगी.
3. प्रत्याशी रचनाकार को  ''तेलंगाना/ आंध्र प्रदेश/ तमिलनाडु/ कर्नाटक/  केरल/ महाराष्ट्र/ गुजरात/ पांडिचेरी/ गोवा''  का निवासी होना चाहिए.
4. इस वर्ष के पुरस्कार के लिए 2010 से 2014 की अवधि में प्रकाशित पुस्तकें ही विचारार्थ स्वीकार की जाएंगी.
5. इस वर्ष का साहित्य गरिमा पुरस्कार ''मौलिक सृजनात्मक कथेतर गद्य विधा की रचना '' पर दिया जाएगा जिसके अंतर्गत आलोचना/समीक्षा सम्मिलित नहीं हैं.

शुक्रवार, 13 मार्च 2015

शांता सुंदरी को साहित्य अकादेमी का अनुवाद पुरस्कार

हैदराबाद, 13 मार्च 2015.

शिवरानी देवी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई  प्रेमचंद की जीवनी  ' घर में प्रेमचंद ' के  हैदराबाद वासी शांता सुंदरी द्वारा किए गए तेलुगु अनुवाद को 2014 के लिए साहित्य अकादेमी के अनुवाद - पुरस्कार हेतु चुना गया है।पुरस्कार यथासंभव अगस्त 2015 में दिया जाएगा।  यह समारोह कहाँ आयोजित होगा, यह बाद में बताया जाएगा।  

शांता सुंदरी जी! भूरिशः बधाइयाँ और अभिनंदन!!!
 

मंगलवार, 20 जनवरी 2015

वह दिन दूर नहीं जब विश्व के आँगन में हिंदी 'तुलसी चौरा' की तरह अवश्य स्थापित होगी - मृदुला सिन्हा

हैदराबाद, 12 जनवरी 2015.  


तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी, चेन्नै और युनाइटेड इंडिया इंश्यूरेंस कं. लि., चेन्नै के तत्वावधान में विश्व हिंदी दिवस, 10 जनवरी, के अवसर पर तृतीय अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक सम्मेलन तथा सम्मान समारोह का आयोजन नुंगंबाक्कम (चेन्नै) स्थित यूनाइटेड इंडिया लर्निंग सेंटर के परिसर में हुआ. 

इस अवसर पर हिंदी भाषा और साहित्य की सेवा के लिए तेवरी आंदोलन के प्रवर्तक प्रो. ऋषभ देव शर्मा (आचार्य एवं अध्यक्ष, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, हैदराबाद) को श्रीमती शकुंतलारानी चोपड़ा साहित्य शिरोमणि सम्मान (जीवनोपलब्धि सम्मान) से सम्मानित किया गया. उन्हें प्रशस्ति पत्र, शाल, स्मृति चिह्न और धनराशि (21,000 रु.) से सम्मानित किया गया. यह सम्मान मुख्य अतिथि के रूप में पधारीं गोवा की राज्यपाल महामहिम मृदुला सिन्हा ने प्रदान किया. अकादमी की ओर से देश विदेश के कुल 20 हिंदी सेवियों और साहित्यकारों को विभिन्न सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए गए. जीवनोपलब्धि सम्मान प्राप्त करने वाले हिंदी सेवियों में डॉ. ऋषभ देव शर्मा के साथ डॉ. पी. के. बालसुब्रमण्यन और वी. जी. भूमा के नाम सम्मिलित हैं. 

इस अवसर पर डॉ. राज हीरामन (मॉरिशस) और आइरिश रू. यू. लून (चीनी प्राध्यापक) को विश्वजनीन सम्मान, प्रो. निर्मला एस. मौर्य, ईश्वर करुण, महेंद्र कुमार और प्रह्लाद श्रीमाली को मौलिक कृति सम्मान, राजवेल (दक्षिण भारत हिंदी प्रचार प्रकाशन) को सहस्रबाहु प्रकाशन सम्मान, डॉ. एम. गोविंदराजन, डॉ. वत्सला किरण, मोहन बजाज और डॉ. आनंद पाटिल को अनूदित कृति सम्मान, के. वी. रामचंद्रन, के. सुलोचना, पी. आर. सुरेश, रविता भाटिया, के. पद्मेश्वरी और डॉ. अब्दुल मलिक को हिंदी सेवी सम्मान से नवाज़ा गया. 

मुख्य अतिथि गोवा की राज्यपाल महामहिम मृदुला सिन्हा ने अत्यंत गद्गद होकर अपने संबोधन में कहा कि 'अंतरमन जब पूरी तरह से भींगता है तो शब्द नहीं फूटते. आज मैं पूरी तरह से भींग गई हूँ. अम्मा मिले तो खूब बतियाओ, गंगा मिले तो डूब के नहाओ और हिंदी मिले तो खूब दिल खोल के बतियाओ. हर भारतीय के हृदय को स्पंदित करने वाली भाषा है हिंदी. हिंदी जोड़ने वाली भाषा है. संवेदनशीलता की भाषा है. संवेदना हृदय का आभूषण है. इससे समाज को सुसज्जित होना चाहिए. संवेदना के अभाव में साहित्य का सृजन असंभव है. थोड़ी दूर से आई हूँ, विश्वास का तोहफा लाई हूँ, हिंदी बोलते रहिए, अभ्यास कीजिए, अपने घर-परिवार में हिंदी को प्रतिस्थापित करें, वह दिन दूर नहीं जब विश्व के आँगन में हिंदी 'तुलसी चौरा' की तरह अवश्य स्थापित होगी.' 

प्रस्तुति : डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा

रविवार, 21 दिसंबर 2014

रमेशचंद्र शाह और राचपालेम चंद्रशेखर रेड्डी सहित 22 साहित्यकारों को साहित्य अकादमी पुरस्कार


डॉ.रमेशचंद्र शाह 
डॉ.राचपालेम चंद्रशेखर रेड्डी 
देर आयद दुरुस्त आयद ! यह कहावत साहित्य अकादमी के इस वर्ष के पुरस्कारों की घोषणा पढ़ने सुनने पर अपने आप याद आ गई. संदर्भ था डॉ. रमेशचंद्र शाह को साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किए जाने की घोषणा का. डॉ. रमेशचंद्र शाह का साहित्य लंबे समय से इस सम्मान का दावेदार और हकदार था. सूना तो यहाँ तक है कि इससे पहले उनकी औपन्यासिक कृतियाँ, कविता संग्रह और डायरी इस पुरस्कार के लिए छह बार शोर्ट लिस्ट हो चुकी हैं. अब सातवीं बार जाकर यह चिर प्रतीक्षित घोषणा सामने आई है. 

इसके साथ 2014 के साहित्य अकादमी पुरस्कार जिन कुल 22 साहित्यकारों को दिए जाने की घोषणा हुई है उनमें प्रमुख तेलुगु आलोचक राचपालेम चंद्रशेखर रेड्डी और लोकप्रिय उर्दू कवि मुन्नवर राणा के भी नाम शामिल हैं. 

अकादमी द्वारा जारी विज्ञप्ति को यहाँ साभार उद्धृत कर रहे हैं. 

सभी पुरस्कृत साहित्यकारों कि नववर्ष की पूर्व वेला में अनेकानेक बधाई!




गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

ऋषभ देव शर्मा को मिलेगा तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी का जीवनोपलब्धि सम्मान

ऋषभ देव शर्मा को मिलेगा जीवनोपलब्धि सम्मान

तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी, चेन्नै द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद परिसर में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत डॉ. ऋषभ देव शर्मा को हिंदी भाषा एवं साहित्य की उनकी सेवाओं के लिए जीवनोपलब्धि सम्मान (लाइफटाइम एचीवमेंट एवार्ड) से सम्मानित करने की घोषणा की गई है. 

यह सम्मान उन्हें विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी, 2015 को तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी के तृतीय अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन में दिया जाएगा. मृदुला सिन्हा (महामहिम राज्यपाल, गोवा) ने मुख्य अतिथि के रूप में आने की स्वीकृति दी है. विशेष अतिथि ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. साकेत कुशवाहा होंगे. 

इस वर्ष का जीवनोपलब्धि सम्मान डॉ पि. के. बालसुब्रमण्यम (तमिल-हिंदी साहित्यकार, चेन्नै), डॉ. ऋषभ देव शर्मा (साहित्यकार-समालोचक, हैदराबाद) एवं वी. जी. भूमा (शास्त्रीय तमिल अनुवादक, चेन्नै) को प्रदान किया जाएगा। इन्हें 21000 रुपए की राशि, अभिनंदन पत्र, स्मृति चिह्न आदि से सम्मानित किया जाएगा। 

हार्दिक बधाई!

सोमवार, 10 नवंबर 2014

साहित्य मंथन सृजन पुरस्कार समारोह 15 नवंबर को

साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था ‘साहित्य मंथन’ द्वारा स्थापित ‘साहित्य मंथन सृजन पुरस्कार’ प्रदान किए जाने के संदर्भ में आगामी 15 नवंबर (शनिवार) को अपराह्न 4 बजे दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के खैरताबाद स्थित परिसर में एक सम्मान समारोह का आयोजन किया जा रहा है. इस समारोह में अरुणाचल प्रदेश की युवा कथाकार डॉ. जोराम यालाम नाबाम को उनके 2013 में प्रकाशित कहानी संग्रह ‘साक्षी है पीपल’ के लिए प्रथम ‘साहित्य मंथन सृजन पुरस्कार’ प्रदान किया जाएगा.

पुरस्कार के संस्थापक डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने बताया कि पुरस्कृत लेखिका डॉ. जोराम यालाम नाबाम ने अपनी कहानियों के माध्यम से अरुणाचल प्रदेश की बहु-जनजातीय संस्कृति के अंकन के साथ साथ वहाँ के स्त्री समाज की दशा का जो प्रामाणिक चित्रण किया है वह हिंदी साहित्य में अपने प्रकार की पहली घटना है. उन्होंने यह भी बताया कि पुरस्कृत लेखिका स्वयं जनजातीय समुदाय से संबद्ध हैं और उन्होंने विभिन्न जनजातियों की भाषा और संस्कृति का गहन अध्ययन किया है. 

पुरस्कार समारोह की अध्यक्षता अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. एम. वेंकटेश्वर करेंगे. बतौर मुख्य अतिथि वरिष्ठ तेलुगु साहित्यकार प्रो. एन. गोपि लेखिका को पुरस्कार स्वरूप ग्यारह हजार रुपए की सम्मान राशि, प्रशस्ति पत्र, शाल और स्मृति चिह्न समर्पित करेंगे. समारोह का उद्घाटन विख्यात कला समीक्षक पद्मश्री जगदीश मित्तल करेंगे तथा महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के अधिष्ठाता प्रो. देवराज विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे. 
समारोह की व्यवस्था समिति की आज संपन्न बैठक में यह भी तय किया गया कि इस अवसर पर पुरस्कृत लेखिका का हैदराबाद की विभिन्न हिंदी संस्थाओं की ओर से सारस्वत सम्मान भी किया जाएगा. समारोह की व्यवस्था समिति में गुरुदयाल अग्रवाल, ज्योति नारायण, डॉ. मंजु शर्मा, डॉ. बी. बालाजी, डॉ. पूर्णिमा शर्मा, डॉ. सय्यद मासूम रज़ा एवं वी. कृष्णा राव उपस्थित रहें. समारोह संयोजक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने समस्त साहित्य प्रेमियों से इस कार्यक्रम में पधारने की अपील की है. 


शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2014

गोइन्का हिंदी तेलुगु अनुवाद पुरस्कार 2015 के लिए प्रविष्टियाँ आमंत्रित


हैदराबाद, 31 अक्तूबर, 2014. कमला गोइन्का फाउण्डेशन के प्रबंध न्यासी श्यामसुन्दर गोइन्का ने एक विज्ञप्ति जारी कर सूचित किया है कि तेलुगु भाषी साहित्यकारों के लिए वर्ष 2015 के लिए "गीतादेवी गोइन्का हिंदी तेलुगु अनुवाद पुरस्कार" की प्रविष्टियाँ आमंत्रित की जा रही हैं।

तेलुगु भाषी हिंदी साहित्यकार जिनकी पिछले 10 वर्षों में तेलुगु से हिंदी में तथा हिंदी से तेलुगु में अनुवादित कृति प्रकाशित हुई है, वे उपरोक्त पुरस्कार में भाग ले सकते हैं। इस पुरस्कार के अंतर्गत 31000/- (इकतीस हजार रुपये) नगद के साथ एक विशेष समारोह में शाल, स्मृतिचिन्ह व पुष्पगुच्छ प्रदान कर सम्मानित किया जायेगा।

उन्होंने यह भी बताया है कि नवोदित तेलुगु-भाषी हिंदी साहित्यकारों के लिए (जिनकी उम्र 35 वर्ष से कम है) हिंदी में लिखी गयी पुस्तक प्रकाशन के लिए 15000/- रुपये तक के सहयोग/पुरस्कार के लिए "डॉ. विजयराघव रेड्डी युवा साहित्यकार पुरस्कार" देकर प्रोत्साहित किया जायेगा। युवा साहित्यकार जिनकी उम्र 35 वर्ष तक है तथा जिनकी कोई पुस्तक प्रकाशित नहीं हुई है, वे इस पुरस्कार में भाग ले सकते हैं। उन्हें अपनी अप्रकाशित पुस्तक की चार पांडुलिपियां, आयु प्रमाण-पत्र व फोटो के साथ प्रस्ताव-पत्र भरकर भेजना होगा।

दोनों तरह की प्रविष्टियां मिलने की अंतिम तिथि 15 जनवरी 2015 है।

नियमावली एवं प्रस्ताव-पत्र या अधिक जानकारी के लिए कमला गोइन्का फाउण्डेशन, नंबर-6, के.एच.बी. इंडस्ट्रियल एरिया, दूसरा क्रॉस यलहंका न्यू टाउन, बैंगलोर-560064. दूरभाष : 080-28567755, 32005502 or Email : kgf@gogoindia.com पर संपर्क किया जा सकता है।