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बुधवार, 13 जुलाई 2022

प्रो. ऋषभदेव शर्मा की तपस्या का फल है 'धूप के अक्षर'






हैदराबाद।

प्रो. ऋषभदेव शर्मा की तपस्या का फल है 'धूप के अक्षर'

हैदराबाद।


भारत के पूर्व शिक्षा मंत्री और प्रसिद्ध लेखक डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, खैरताबाद, हैदराबाद के सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में 'धूप के अक्षर' का लोकार्पण करते हुए कहा कि यह ग्रंथ प्रो. ऋषभदेव शर्मा की जीवन भर की तपस्या का फल है। उनकी इस तपस्या को दक्षिण भारत ने हृदय से स्वीकार किया है जिसके दर्शन उनके अभिनंदन समारोह में हो रहे हैं। वे डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा के प्रधान संपादकत्व में दो खंडों में प्रकाशित प्रो. ऋषभदेव शर्मा के सम्मान में लोकार्पित किए जाने वाले आयोजन में बोल रहे थे।

डॉ. निशंक ने इस बात पर विशेष बल दिया कि भारतवर्ष को विश्वगुरु के पथ पर पुनः प्रतिष्ठित करने के लिए तेलुगु, तमिल, कन्नड, मलयालम, बंगला, मराठी, पंजाबी, असमी आदि सभी भाषाओं को सम्मिलित भूमिका निभानी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि प्रो. ऋषभदेव शर्मा हिंदी के माध्यम से सारी भारतीय भाषाओं के लिए कार्य कर रहे हैं। यह कार्य हैदराबाद में हो रहा है जिस पर हम गर्व कर सकते हैं।


अभिनंदन समारोह का उद्घाटन शीर्षस्थ भारतीय लेखक प्रो. एन. गोपि ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि प्रो. शर्मा एक आदर्श अध्यापक और प्रख्यात लेखक ही नहीं है, बल्कि वे एक उत्तम मनुष्य भी हैं। दक्षिण में उनका आना भाषा और साहित्य के लिए एक वरदान जैसा है।


प्रो. ऋषभदेव शर्मा के अभिनंदन समारोह की अध्यक्षता करते हुए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व अधिष्ठाता प्रो.देवराज ने कहा हर एक को चारों दिशाओं की संस्कृति को आत्मसात करना होगा। साहित्य और संस्कृति में ही देश को जोड़ने की शक्ति निहित है। संस्कृति और साहित्य केवल पाखंड नहीं हैं। ये सबसे पहले व्यक्ति के भीतर जिज्ञासा जगाते हैं। सवाल करना असिखाते हैं और फिर उनका समाधान ढूँढ़ने की जज्बा पैदा करते हैं। हर तरह से व्यक्ति को प्रशिक्षित करते हैं।

अतिविशिष्ट अतिथि रूप में डॉ. पुष्पा खंडूरी (देहारदून) के साथ प्रो. गोपाल शर्मा, जसवीर राणा, डॉ. अहिल्या मिश्र, डॉ. वर्षा सोलंकी, डॉ. राकेश कुमार शर्मा, पी. ओबय्या, जी. सेल्वराजन, एस. श्रीधर, प्रो. संजय एल मादार आदि मौजूद थे।

सभी वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त करते हुए इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया कि प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने हैदराबाद, चेन्नै और एरणाकुलम आदि में रहते हुए जो कार्य किया उसका भाषायी और साहित्यिक महत्व ही नहीं है बल्कि सांस्कृतिक महत्व भी है। उनका कार्य दक्षिणापथ और उत्तरापथ के मध्य संस्कृति सेतु का कार्य है।

आयोजन का संचालन 'धूप के अक्षर' ग्रंथ की प्रधान संपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने किया। समारोह के प्रारंभ में कलापूर्ण सस्वर सरस्वती वंदना शुभ्रा मोहंता ने प्रस्तुत की। 'धूप के अक्षर' ग्रंथ के सहयोगी लेखकों को यह ग्रंथ भेंट भी किया गया।

इस समारोह में हैदराबाद के साहित्य प्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। पद्मश्री एडलप्पली वेंकटेश्वर राव, विनीता शर्मा, वेणुगोपाल भट्टड, अजित गुप्ता, लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, पवित्रा अग्रवाल, रामदास कृष्ण कामत, सुरेश गुगालिया, जी. परमेश्वर, डॉ. श्रीपूनम जोधपुरी, डॉ. जयप्रकाश नागला, डॉ. रियाजुल अंसारी, डॉ. बी. एल. मीणा, मुकुल जोशी, डॉ. शिवकुमार राजौरिया, रवि वैद, डॉ. एस. राधा, सरिता सुराणा, वर्षा कुमारी, हुडगे नीरज, रूपा प्रभु, उत्तम प्रसाद, नीलम सिंह, नेक परवीन, संदीप कुमार, मुकुल जोशी, डॉ. कोकिला, एफ. एम. सलीम, डॉ. के. श्रीवल्ली, डॉ. बी. बालाजी, डॉ. करन सिंह ऊटवाल, वुल्ली कृष्णा राव, ए. जानकी, किशोर बाबु, रमाकांत, राधाकृष्ण मिरियाला, शीला बालाजी, समीक्षा शर्मा, डॉ. सुषमा देवी, सुनीता लुल्ला, प्रवीण प्रणव,, डॉ. गंगाधर वानोडे, डॉ. सी. एन. मुगुटकर, डॉ. रामा द्विवेदी, डॉ. संगीता शर्मा, प्रो. दुर्गेशनंदिनी, डॉ. रेखा शर्मा, चवाकुल रामकृष्णा राव, एम. सूर्यनरायन, नागराज, प्रवीण, केशवलु, जे. रामकृष्ण, मुरली, एम. शिवकुमार, नृपुतंगा सी. के., डॉ. के. चारुलता, जी, एकांबरेश्वरुडु, शैलेषा नंदूरकर, जाकिया परवीन, शेक जुबर अहमद, डॉ. गौसिया सुलताना, विकास कुमार आजाद, पल्लवी कुमारी, निशा देवी, डॉ. पठान रहीम खान, के. राजन्ना, डॉ. एस. तुलसीदेवी, डॉ. रजनी धारी, गीतिका कुम्मूरी, डॉ. गोरखनाथ तिवारी, डॉ. साहिरा बानू बी. बोरगल, डॉ. बिष्णु कुमार राय, डॉ. शक्ति कुमार द्विवेदी, डॉ. ए. जी. श्रीराम, हरदा राजेश कुमार, डॉ. संतोष विजय मुनेश्वर, काज़िम अहमद, अनिल लोखंडे और अनेक लोग अंडमान, दिल्ली, वर्धा, खतौली, नांदेड, कर्नाटक, चेन्नै, अहमदाबाद, बनारस से भी पधारे थे।






शुक्रवार, 24 जून 2022

प्रो. ऋषभदेव शर्मा अभिनंदन ग्रंथ का विमोचन 4 जुलाई को




हैदराबाद, 24 जून, 2022 (मीडिया विज्ञप्ति)।


दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा (उच्च शिक्षा और शोध संस्थान) तथा 'साहित्य मंथन' के संयुक्त तत्वावधान में आगामी 4 जुलाई (सोमवार) को दोपहर साढ़े 3 बजे से सभा के खैरताबाद स्थित परिसर में एकदिवसीय राष्ट्रीय साहित्यिक समारोह आयोजित किया जा रहा है। इस अवसर पर प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रो. ऋषभदेव शर्मा के सम्मान में प्रकाशित अभिनंदन ग्रंथ 'धूप के अक्षर' का लोकार्पण किया जाएगा।


समारोह के स्वागाताध्यक्ष प्रो. संजय लक्ष्मण मादार ने बताया कि कार्यक्रम का उद्घाटन राष्ट्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कृत वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. एन. गोपि करेंगे। अध्यक्ष महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व अधिष्ठाता प्रो. देवराज होंगे। देहरादून से पधारीं प्रो. पुष्पा खंडूरी अतिविशिष्ट अतिथि का आसन ग्रहण करेंगी। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. गोपाल शर्मा, डॉ. अहिल्या मिश्र, डॉ. राकेश कुमार शर्मा, डॉ. वर्षा सोलंकी एवं सभा के प्रधान सचिव जी. सेल्वराजन उपस्थित रहेंगे।



अभिनंदन ग्रंथ की प्रधान संपादक एवं समारोह की समन्वयक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने बताया कि 'धूप के अक्षर' शीर्षक अभिनंदन ग्रंथ दो ज़िल्दों में प्रकाशित है। लगभग 700 पृष्ठ के इस ग्रंथ में 60 लेखकों के कुल 82 आलेख सम्मिलित हैं। इनमें देश भर के विद्वानों और समीक्षकों के साथ-साथ प्रो. ऋषभदेव शर्मा के अंतरंग मित्रों, सहकर्मियों और शोध छात्रों के संस्मरण और समीक्षाएँ शामिल हैं। उन्होंने यह जानकारी भी दी कि विमोचन के उपरांत अभिनंदन ग्रंथ की प्रतियाँ संपादन मंडल और सहयोगी लेखकों को समर्पित की जाएँगी।


समारोह के संयोजक एवं सभा के सचिव एस. श्रीधर ने सभी साहित्य प्रेमियों से कार्यक्रम में उपस्थित होने की अपील की है।


मंगलवार, 14 दिसंबर 2021

डॉ. नीरजा की पुस्तक ‘समकालीन साहित्य विमर्श’ का विमोचन 18 को

हैदराबाद, 14 दिसंबर, 2021।


साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘साहित्य मंथन’ और दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के संयुक्त तत्वाधान में आगामी शनिवार, 18 दिसंबर, 2021 को दोपहर 2:30 बजे सभा के खैरताबाद स्थित परिसर में डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की नवीनतम आलोचना कृति ‘समकालीन साहित्य विमर्श’ का विमोचन समारोह आयोजित किया जा रहा है। समारोह की अध्यक्षता अरबा मींच विश्वविद्यालय, इथियोपिया के पूर्व प्रोफेसर डॉ. गोपाल शर्मा करेंगे। उस्मानिया विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर डॉ. शुभदा वांजपे मुख्य अतिथि का आसन ग्रहण करेंगी। मुख्य वक्ता के रूप में युवा कवि प्रवीण प्रणव पुस्तक की समीक्षा करेंगे। मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. करन सिंह ऊटवाल तथा सभा के सचिव एस. श्रीधर विशेष अतिथि होंगे।

‘समकालीन साहित्य विमर्श’ तेलुगुभाषी हिंदी लेखिका डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की छठी मौलिक पुस्तक है। साथ ही वे अब तक 9 ग्रंथों का संपादन तथा हिंदी से एक कहानी संग्रह का तेलुगु में अनुवाद प्रस्तुत कर चुकी हैं। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के ‘हिंदीतर भाषी हिंदी लेखक सम्मान’ से पुरस्कृत डॉ. नीरजा ने बताया कि ‘समकालीन साहित्य विमर्श’ के प्रकाशन पर वे विशेष प्रसन्न हैं, क्योंकि इसकी शुभाशंसा और भूमिका प्रो. रमेश चंद्र शाह और प्रो. दिविक रमेश जैसे आज के शीर्षस्थ साहित्यकारों ने लिखी है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में हरित विमर्श, किन्नर विमर्श, स्त्री विमर्श, लघुकथा विमर्श, लोक विमर्श, दलित विमर्श, विस्थापन विमर्श, आदिवासी विमर्श, वृद्धावस्था विमर्श और उत्तर आधुनिक विमर्श पर केंद्रित 24 शोधपूर्ण आलेख शामिल हैं।

लेखिका ने बताया कि विमोचित पुस्तक की पहली प्रति प्रतिष्ठित कवि-समीक्षक प्रो. ऋषभदेव शर्मा स्वीकार करेंगे। समारोह का संचालन मिश्र धातु निगम के राजभाषा अधिकारी डॉ. बी. बालाजी करेंगे।




रविवार, 14 अक्टूबर 2018

"ईश्वर करुण अभिनंदन ग्रंथ" : रचनाएँ 15 नवंबर तक आमंत्रित

चेन्नई निवासी वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार ईश्वर करुण (ईश्वर चंद्र झा) के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित हैदराबाद की साहित्य सेवी संस्था ‘साहित्य मंथन’ द्वारा शीघ्र प्रकाशनाधीन अभिनंदन ग्रंथ के लिए उनके शुभचिंतकों, मित्रों और प्रशंसकों से रचनाएँ आमंत्रित हैं। 

अभिनंदन ग्रंथ के प्रधान संपादक प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने बताया हैं कि देश भर के बहुत से लेखक इस ग्रंथ के लिए अपनी रचनाएँ उपलब्ध कराने वाले हैं। इसलिए त्यौहारों के मौसम की व्यस्थता को देखते हुए रचनाएँ भेजने की तिथि एक महीना आगे बढ़ा दी गई है। अब इस ग्रंथ के लिए रचनाएँ 15 नवंबर, 2018 तक भेजी जा सकती हैं। 

ये रचनाएँ rishabhadeosharma@yahoo.com, neerajagkonda@gmail.com, ishwarkarunchennai@gmail.com पते पर ईमेल द्वारा भेजी जा सकती है। 

- डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा 

शनिवार, 22 सितंबर 2018

"ईश्वर करुण अभिनंदन ग्रंथ" हेतु रचनाएँ आमंत्रित

ईश्वर करुण 
साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था 'साहित्य मंथन' के तत्वावधान में चेन्नै के सुप्रतिष्ठित साहित्यकार और हिंदीसेवी ईश्वर करुण (ईश्वर चंद्र झा) के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित अभिनंदन ग्रंथ के प्रकाशन की योजना निश्चित हुई है। इस ग्रंथ का संपादन प्रो. ऋषभ देव शर्मा और डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा संयुक्त रूप से करेंगे। संपादकों ने ईश्वर करुण और उनके साहित्य से परिचित लेखकों से अनुरोध किया है कि लगभग 1000 शब्दों में ईश्वर करुण से संबंधित अपना संस्मरण या समीक्षात्मक आलेख अभिनंदन ग्रंथ के लिए उपलब्ध कराएँ। ग्रंथ की प्रकृति के अनुसार आलेख - ईश्वर करुण : जैसा मैंने देखा (अंतरंग संस्मरण), कवि सम्मेलनों का लाड़ला रचनाकार ईश्वर करुण, ईश्वर करुण और उनके गीत, हिंदी ग़ज़ल को ईश्वर करुण की देन, पत्रकार और संपादक ईश्वर करुण, राजभाषा अधिकारी के रूप में ईश्वर करुण की उपलब्धियाँ, ईश्वर करुण की कहानियों में समकालीन समाज, नई कविता और ईश्वर करुण की रचनाधर्मिता, ईश्वर करुण के साहित्य में मैथिल लोक, ईश्वर करुण के साहित्य में चेन्नई की धड़कन, इलेक्ट्रानिक जनसंचार : ईश्वर करुण की उपलब्धियाँ, ईश्वर करुण के काव्य में लालित्य आदि विषयों पर केंद्रित हो सकते हैं। 

यह सामग्री rishabhadeosharma@yahoo.com , neerajagkonda@gmail.com, ishwar_karun@yahoo.co.in पते पर ईमेल द्वारा भेजी जा सकती है। 

गुरुवार, 24 अगस्त 2017

'समकालीन सरोकार और साहित्य' लोकार्पित



हैदराबाद, 20 अगस्त,2017. 

कादंबिनी क्लब-हैदराबाद एवं साहित्य मंथन के संयुक्त तत्वावधान में रविवार, 20 अगस्त को हिंदी प्रचार सभा, नामपल्ली परिसर में क्लब की 301वीं गोष्ठी एवं पुस्तक लोकार्पण समारोह अरबामिंच विश्वविद्यालय, इथियोपिया के आचार्य डा० गोपाल शर्मा की अध्यक्षता में संपन्न हुआ .क्लब की अध्यक्ष डा० अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी संयोजक मीना मुथा ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि इस अवसर पर मुख्य अतिथि कानपुर से पधारे वरिष्ठ गीतकार बृजनाथ श्रीवास्तव और अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य डा० एम० वेंकटेश्वर के साथ डा० अहिल्या मिश्र और डा० ऋषभदेव शर्मा मंचासीन हुए. संचालन प्रवीण प्रणव और मीना मुथा ने किया.

समारोह के पहले सत्र में मंचासीन अतिथियों ने तालियों की गूँज के बीच ‘पुष्पक’ के पैंतीसवें अंक को लोकार्पित किया. विमोचित पत्रिका का परिचय देते हुए कार्यकारी संपादक अवधेश कुमार सिन्हा ने कहा कि हर बढ़ते अंक से साथ ‘पुष्पक’ अधिक से अधिक पाठकों तक अपनी पहुँच बना रहा है तथा स्थानीय रचनाकारों के साथ-साथ भारत भर से सशक्त रचनाएँ प्राप्त हो रही हैं. संपादकीय को ‘पुष्पक’ की विशेषता बताते हुए उन्होंने कहा कि कहानी, गीत, कविता, ग़ज़ल, संस्मरण, समीक्षा, लघु कथा, आलेख, पुस्तक परिचय आदि विधाओं में बेहतरीन रचनाओं का चुनाव संपादक मंडल की दूरदृष्टि का परिचायक है.

दूसरे सत्र में डा० ऋषभदेव शर्मा एवं डा० जी० नीरजा द्वारा संपादित पुस्तक ‘समकालीन सरोकार और साहित्य’ को मुख्य अतिथि प्रो० एम० वेंकटेश्वर ने लोकार्पित किया. लोकार्पण वक्तव्य में डा० एम० वेंकटेश्वर ने कहा कि साहित्य जटिल अनुशासन है तो शोधपरक लेखन जटिलतर है. उन्होंने अध्यापकों और शोधार्थियों से लेकर सामान्य जनता तक में स्वाध्याय की प्रवृत्ति के अकाल पर चिंता जताते हुए कहा कि साहित्य कभी चलकर मनुष्य के पास नहीं जाएगा, हमें मनुष्य को साहित्य के पास जाने को प्रेरित करते रहना पड़ेगा. उन्होंने विमोचित पुस्तक से कई लेखों का उद्धरण देते हुए उनकी गुणवत्ता की चर्चा की और उसे न सिर्फ शोधार्थियों के लिए बल्कि सभी साहित्य प्रेमियों के किए पठनीय और संग्रहणीय बताया. साथ ही उन्होंने संपादकों की अति उदारता की आलोचना करते हुए उन्हें चयन में निर्मम होने की सलाह भी दी. 
लोकार्पित पुस्तक की प्रथम प्रति डा० अहिल्या मिश्र को उनकी सप्ततिपूर्ति की पूर्ववेला के उपलक्ष्य में समर्पित की गई. हिंदी साहित्य सेवा में तन-मन-धन से समर्पित वरिष्ठ स्त्रीविमर्शकार लेखिका, नाटककार, कहानीकार, कवयित्री, निबंधकार और संपादक डा० अहिल्या मिश्र को जीवन के 70वें वर्ष के पायदान पर शुभकामनाएँ देते हुए ‘साहित्य मंथन’ की ओर से सारस्वत सम्मान से अलंकृत किया गया. इसके अंतर्गत अभिनंदन पत्र, शाल, माला, श्रीफल, लेखनी और पुस्तक समर्पित की गई. अभिनंदन पत्र एवं समर्पण वाक्य का वाचन डा० ऋषभदेव शर्मा ने किया.
डा० अहिल्या मिश्र ने सम्मान-स्वीकृति-वक्तव्य में कहा कि कादंबिनी क्लब की यह 301वीं गोष्ठी अविस्मरणीय रहेगी. उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि ‘साहित्य मंथन’ के बहाने समशील साहित्यिक बिरादरी ने आज जो सम्मान दिया है, इसमें निहित प्रेम में सारे कलुष और ताप को हरने की शक्ति है अतः मैं इस आत्मीय अभिनंदन को शिरोधार्य करती हूँ. बृजनाथ श्रीवास्तव एवं अन्य वक्ताओं ने डा० अहिल्या मिश्र को बधाई देते हुए कहा कि वे सही अर्थ में साहित्य और सारस्वत वातावरण की सूत्रधार हैं.
डा० गोपाल शर्मा ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि अंग्रेजी और विश्व की अन्य भाषाओं में शोधलेखन में संदर्भ देने की शैलियों पर अनेक पुस्तकें हैं लेकिन हिंदी में इस तरह की कोई प्रामाणिक पुस्तक नहीं है अतः लोकार्पित पुस्तक में इस अभाव की पूर्ति का भी एक विनम्र प्रयास शामिल है. उन्होंने याद दिलाया कि इस पुस्तक में स्थानीय व राष्ट्रीय लेखकों के 30 शोधपरक आलेख शामिल हैं. उन्होंने शोधार्थियों से कहा कि शोधपत्र लिखने से पहले विषय की विस्तृत समझ के लिए ज्यादा से ज्यादा साहित्यकारों को पढ़ें. इसके बाद सहयोगी लेखकों को पुस्तक की लेखकीय प्रतियाँ भेंट की गईं.

आरंभ में शहर के वरिष्ठ पत्रकार, कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता, हिंदी साहित्यसेवी डा० हरिश्चंद्र विद्यार्थी के दुखद निधन पर मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई. शुभ्रा मोहंतो द्वारा सस्वर प्रस्तुत निराला रचित सरस्वती वंदना के पश्चात अतिथियों का स्वागत करते हुए डा० अहिल्या मिश्र ने कहा कि गोष्ठी की निरंतरता सदस्यों की नियमित उपस्थिति से ही संभव हुई है तथा संस्था हिंदी साहित्य की सेवा, प्रचार-प्रसार में पूर्ण समर्पण से कार्य कर रही है.

अंतिम सत्र में भँवरलाल उपाध्याय के संचालन में कवि गोष्ठी संपन्न हुई. बृजनाथ श्रीवास्तव, प्रो० गोपाल शर्मा, डा० ऋषभदेव शर्मा और डा० अहिल्या मिश्र मंचासीन हुए. देवाप्रसाद मायला, शशि राय, ज्योति नारायण, डा० बी० बालाजी, दीपक दीक्षित, मिलन बिश्नोई, संतोष कुमार रज़ा, डा० ऋषभदेव शर्मा, डा० अहिल्या मिश्र, एल० रंजना, दर्शन सिंह, सरिता सुराणा जैन, डा० गीता जांगिड़, प्रवीण प्रणव, चिराग राजा, अवधेश कुमार सिन्हा, श्रीमन्नारायण विराट चारी, मीना मुथा, भँवरलाल उपाध्याय और डा० रियाजुल अंसारी ने काव्य पाठ किया. बृजनाथ श्रीवास्तव ने अध्यक्षीय काव्यपाठ किया. डा० मदनदेवी पोकरणा, डा० सीता मिश्र, कुंजबिहारी गुप्ता, दयालचंद अग्रवाल, लक्ष्मी निवास शर्मा, ज्योतिष कुमार यादव, आशा मिश्र, श्रीसेन कुमार भारती, चेन्नकेशव रेड्डी, शिवकुमार तिवारी कोहिर, राघवेंद्र, शोभा महाबल, डा० सिरिपुरपु तुलसी देवी, श्रुतिकांत भारती, लीला बजाज, वर्षा कुमारी, डा० श्रद्धा तिवारी, डा० सुपर्णा मुखर्जी, टी० निरंजन, बनवारीलाल मीणा, भूपेंद्र मिश्र आदि की उपस्थिति रही.  मीना मुथा के आभार के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ.

रविवार, 11 दिसंबर 2016

[पुस्तक समीक्षा] एक अध्यापक को छात्रों का तोहफा


-    डॉ.बी.बालाजी
सहायक प्रबंधक (राजभाषा)
मिश्र धातु निगम लिमिटेड, हैदराबाद-500058
मो.: 08500920391
ई-मेल:balajib18@gmail.com, balajib18@yahoo.com


जिन व्यक्तियों के शुभकार्यों का समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता है, उनमें अध्यापक का स्थान सर्वोपरि है. समाज का यह कर्तव्य है कि ऐसी विभूतियों के कार्यों का सम्मान करे ताकि आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा प्राप्त हो सके. पश्चिमी उत्तरप्रदेश के एक विशाल भौगौलिक क्षेत्र के लोगों के बीच ‘गुरुजी’ के रूप में विख्यात, अपभ्रंश भाषा, जैन आगम और मध्यकालीन साहित्य के विशेषज्ञ आचार्य प्रेमचंद्र जैन एक ऐसी ही विभूति हैं जिन्होंने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व द्वारा केवल छात्रों ही नहीं बल्कि समाज पर भी व्यापक प्रभाव डाला है. लगभग अस्सी वसंत देख चुके डॉ.प्रेमचंद्र जैन को उनके प्रिय शिष्य प्रो.देवराज (अधिष्ठाता, अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा) के नेतृत्व में तैयार किया गया 448 पृष्ठों का ग्रंथ “निरभै होइ निसंक कहि के प्रतीक” गत दिनों, 3 दिसंबर 2016 को, गलगोटिया विश्वविद्यालय, नोएडा में संपन्न एक कार्यक्रम में समर्पित किया गया. इस ग्रंथ का संपादन डॉ.गुर्रमकोंडा नीरजा एवं अन्य ने किया है तथा प्रधान संपादक डॉ.ऋषभ देव शर्मा हैं.           
“निरभै होइ निसंक कहि के प्रतीक” की सामग्री पाँच खंडों में सुनियोजित रूप में प्रस्तुत की गई है. पहले खंड में ‘प्रेम का अंत नहीं’ में सम्मानित विभूति के अंतरंग मित्रों एवं शिष्यों के अत्यंत रोचक संस्मरण हैं, जबकि खंड-2 में स्वयं डॉ. प्रेमचंद्र जैन की सृजनयात्रा के विविध पक्षों की बानगी प्रस्तुत की गई है. ‘कविता में कहा बहुत कुछ’ में उनकी 44 कविताएँ संकलित हैं. ‘विमर्श से विमर्श तक’ में 8 शोधपत्र हैं. ‘अंतरिक्ष में भेजे हुए शब्द’ में 7 रेडियो वार्ताएं हैं. ‘मैं यहाँ से बोल रहा हूँ’ में 2 व्याख्यान हैं. ‘निर्वचन के सीमांत’ में 15 पुस्तकों की भूमिकाएं हैं  तथा ‘कहानी’ में ‘बरगद ढह गया’ शीर्षक एक कहानी दी गई है. यह सारी सामग्री ‘सृजनयात्रा’ खंड में शामिल है. पुस्तक के तीसरे खंड का शीर्षक है ‘संवाद के सशक्त हस्ताक्षर’. इसमें प्रेमचंद्र जैन को मुख्य रूप से डॉ. शिवप्रसाद सिंह और डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखे गए पत्रों के साथ स्वयं डॉ. जैन द्वारा समय-समय पर लिखे गए पत्र संगृहीत किए गए हैं. चौथे खंड ‘मेरा काबा मेरी काशी’ में डॉ. प्रेमचंद्र जैन की आत्मकथा का अंश प्रकाशित किया गया है जो एक अध्यापक के सृजन और संघर्ष का जीवंत दस्तावेज है. पाँचवें खंड में एक अभिनंदन पत्र उद्धृत किया गया है.
कुल मिलाकर, यह एक ऐसा संदर्भ ग्रंथ बन गया है जो एक ओर तो डॉ.प्रेमचंद्र जैन के जीवन और रचना कर्म को पाठकों के सामने लाता है तथा दूसरी ओर अपभ्रंश भाषा और मध्यकालीन साहित्य पर अत्यंत शोधपूर्ण एवं अन्यत्र दुर्लभ सामग्री को प्रस्तुत करता है. किसी अध्यापक को अपने छात्रों की ओर से दिया जा सकने वाला यह उपहार निश्चय ही अत्यंत श्लाघनीय है जिससे अनेक अध्यापकों और उनके शिष्यों को ईर्ष्या होनी चाहिए!

समीक्षित कृति : “निरभै होइ निसंक कहि के प्रतीक”,
संपादक : गुर्रमकोंडा नीरजा एवं अन्य, संपर्क :09849986346.
प्रकाशक : परिलेख प्रकाशन, वालिया मार्केट, निकट साहू जैन कॉलेज, कोतवाली मार्ग, नजीबाबाद-246763,
पृष्ठ : 448 (सजिल्द),
मूल्य : 200/- रुपए.

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2016

रामेश्वर सिंह के हैदराबाद आगमन पर स्नेह मिलन समारोह संपन्न


एम. वेंकटेश्वर और गुर्रमकोंडा नीरजा सहित 7 लेखकों को 
अंतरराष्ट्रीय हिंदी भास्कर, 2 को हिंदी रत्नाकर तथा
 रामेश्वर सिंह को संस्कृति-सेतु सम्मान प्रदत्त


आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी के गगन विहार, हैदराबाद स्थित सभाकक्ष में संपन्न सम्मान समारोह में मास्को स्थित रूसी-भारतीय मैत्री संघ ‘दिशा’ के संस्थापक डॉ. रामेश्वर सिंह को ‘साहित्य मंथन संस्कृति-सेतु सम्मान’ प्रदान करते हुए
 तेलुगु विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. एन. गोपि.
 साथ में (बाएँ से) डॉ. अनिल कुमार सिंह, डॉ. एम. वेंकटेश्वर, डॉ. ऋषभदेव शर्मा, डॉ. पूर्णिमा शर्मा, डॉ. आर. जयचंद्रन,
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा  डॉ. बाबू जोसफ एवं डॉ. प्रदीप कुमार सिंह.


हैदराबाद, 20 अक्टूबर, 2016 (मीडिया विज्ञप्ति).

‘’हिंदी केवल भारत की ही नहीं विश्व की बेहद शक्तिशाली भाषा है जो बहुत बड़े जन-समुदाय को तरह-तरह की भिन्नताओं के बावजूद जोड़ने का काम करती है. मैंने देश-विदेश की अपनी साहित्यिक यात्राओं में कभी भी अकेलापन अनुभव नहीं किया है क्योंकि हिंदी मेरे साथ हमेशा रहती है. आज जब विश्व-पटल पर भारत और रूस के मैत्री संबंध नई दिशा की ओर बढ़ रहे हैं, ऐसे समय भारतीय-रूसी मैत्री संघ ‘दिशा’ के संस्थापक डॉ. रामेश्वर सिंह का हैदराबाद में सम्मान तथा उनकी संस्था की ओर से भारत के कुछ हिंदी सेवियों का सम्मान हिंदी के माध्यम से परस्पर मैत्री को मजबूत बनाने की खातिर एक सराहनीय कदम है.’’

ये विचार अग्रणी तेलुगु साहित्यकार प्रो. एन. गोपि ने रूसी-भारतीय मैत्री संघ 'दिशा' (मास्को), साहित्यिक-सांस्कृतिक शोध संस्था (मुंबई) तथा 'साहित्य मंथन' (हैदराबाद) के संयुक्त तत्वावधान में आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी के सभाकक्ष में संपन्न 'स्नेह मिलन एवं सम्मान समारोह' की अध्यक्षता करते हुए प्रकट किए.

इस अवसर पर मास्को से आए डॉ. रामेश्वर सिंह को श्रीमती लाड़ो देवी शास्त्री की पावन स्मृति में प्रवर्तित ''साहित्य मंथन संस्कृति-सेतु सम्मान : 2016'' प्रदान किया गया. अपने कृतज्ञता भाषण में डॉ. रामेश्वर सिंह ने कहा कि कोई भी भाषा अपने बोलने वालों के दम पर विकसित होती है और विश्व भर में हिंदी अपने प्रयोक्ताओं की बड़ी संख्या तथा अपनी सर्व-समावेशी प्रकृति के कारण निरंतर विकसित हो रही है, अतः आने वाले समय में सांस्कृतिक से लेकर कूटनैतिक संबंधों तक के लिए हिंदी को बड़ी भूमिका अदा करनी है.

‘दिशा’ और ‘शोध संस्था’ की ओर से डॉ. आर. जयचंद्रन (कोचिन) और डॉ.मुकेश डी. पटेल (गुजरात) को ''हिंदी रत्नाकर अंतरराष्ट्रीय सम्मान'' से तथा डॉ. बाबू जोसेफ (कोट्टायम), डॉ. एम. वेंकटेश्वर (हैदराबाद), डॉ. अनिल सिंह (मुंबई), डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा (हैदराबाद), डॉ. वंदना पी. पावसकर (मुंबई), डॉ. सुरेंद्र नारायण यादव (कटिहार) और डॉ. कांतिलाल चोटलिया (गुजरात) को ''हिंदी भास्कर अंतरराष्ट्रीय सम्मान'' से अलंकृत किया गया. पुरस्कृत साहित्यकारों ने हिंदी भाषा के प्रति अपने पूर्ण समर्पण का संकल्प जताया.

कार्यक्रम के प्रथम चरण में आगंतुक और स्थानीय साहित्यकारों के परस्पर परिचय के साथ ‘चाय पर चर्चा’ का अनौपचारिक दौर चला तथा दूसरे चरण में सम्मान समारोह संपन्न हुआ. आरंभ में स्वस्ति-दीप प्रज्वलित किया गया तथा कवयित्री ज्योति नारायण ने वंदना प्रस्तुत की. साहित्यिक-सांस्कृतिक शोध संस्था के सचिव डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया और विश्व-मैत्री के लिए हिंदी की संभावित भूमिका पर विचार प्रकट किए. 

अपनी सक्रिय भागीदारी और उपस्थिति से चर्चा-परिचर्चा को जीवंत बनाने में डॉ. बी. सत्यनारायण, डॉ. अहिल्या मिश्र, डॉ. रोहिताश्व, डॉ. करण सिंह ऊटवाल, वुल्ली कृष्णा राव, डॉ. बी, बालाजी, डॉ. मंजु शर्मा, डॉ. बनवारी लाल मीणा, प्रभा कुमारी, मो. आसिफ अली, प्रवीण प्रणव, शशि राय, भंवर लाल उपाध्याय, जी. परमेश्वर, पवित्रा अग्रवाल, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, डॉ. राजेश कुमार, संपत देवी मुरारका, डॉ. मोनिका शर्मा, वर्षा, डॉ. सुनीला सूद, डॉ. राजकुमारी सिंह, टी. सुभाषिणी, संतोष विजय, अशोक तिवारी, आलोक राज, शरद राज, श्रीधर सक्सेना, श्रीनिवास सावरीकर, डॉ. रियाज़ अंसारी, मदन सिंह चारण और डॉ. पूर्णिमा शर्मा आदि ने महत्वपूर्ण योगदान किया.

मंगलवार, 21 जून 2016

‘वृद्धावस्था विमर्श’ तथा ‘संकल्पना’ लोकार्पित

‘वृद्धावस्था विमर्श’ का लोकार्पण प्रो. एम. वेंकटेश्वर ने किया.
पुस्तक की प्रथम प्रति स्वीकार करते हुए प्रो. आनंद राज वर्मा.
साथ में, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, डॉ. अहिल्या मिश्र, राजेश प्रसाद, प्रो. ऋषभ देव शर्मा  एवं अन्य.

‘संकल्पना’ का लोकार्पण करते हुए डॉ. अहिल्या मिश्र.
साथ में, डॉ. मंजु शर्मा, डॉ. एम. वेंकटेश्वर, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा,
 राजेश प्रसाद, प्रो. आनंद राज वर्मा, प्रो. ऋषभदेव शर्मा एवं आलोक राज सक्सेना.

सुधी श्रोता-समुदाय :
विनीता शर्मा, डॉ. रमा द्विवेदी, मीना मुथा, नरेंद्र राय, डॉ. बी. सत्यनारायण एवं अन्य



हैदराबाद, 18 जून 2016 (प्रेस विज्ञप्ति). 

साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘साहित्य मंथन’ के तत्वावधान में आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी के नामपल्ली स्थित सभाकक्ष में स्व. चंद्रमौलेश्वर प्रसाद कृत ‘वृद्धावस्था विमर्श’ तथा ऋषभदेव शर्मा और गुर्रमकोंडा नीरजा द्वारा संपादित ‘संकल्पना’ शीर्षक दो पुस्तकों का लोकार्पण समारोह भव्यतापूर्वक संपन्न हुआ जिसमें उपस्थित विद्वानों ने हिंदी साहित्य और विमोचित पुस्तकों पर विचार व्यक्त किए. 

अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के भारत अध्ययन विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. एम. वेंकटेश्वर ने समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए निरंतर बढ़ती जा रही वृद्धों की आबादी के पुनर्वास को इक्कीसवीं शताब्दी की एक प्रमुख चुनौती बताया और विमोचित कृति ‘वृद्धावस्था विमर्श’ को सामयिक तथा प्रासंगिक पुस्तक माना. उन्होंने अनुसंधान के स्तर की गिरावट पर चिंता जताते हुए इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि ‘संकल्पना’ में प्रकाशित ज़्यादातर शोधपत्र अभिनव, मौलिक और उच्च कोटि के हैं. 

स्त्रीविमर्श की पैरोकार और आथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया के हैदराबाद अध्याय की संयोजक डॉ. अहिल्या मिश्र ने अध्यक्षीय भाषण में प्राचीन भारतीय समाज में वृद्धों की सम्मानजनक स्थिति की तुलना उनकी वर्तमान हीन दशा से करते हुए विश्वास प्रकट किया कि चंद्रमौलेश्वर प्रसाद की पुस्तक समाज को इस दिशा में नए चिंतन और वृद्धावस्था-नीति के निर्माण की प्रेरणा दे सकती है. दूसरी लोकार्पित पुस्तक ‘संकल्पना’ को उन्होंने शोधार्थियों और शोध निर्देशकों के लिए उपयोगी प्रतिमान की संज्ञा दी. 

‘वृद्धावस्था विमर्श’ की प्रथम प्रति स्व. चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के पुत्र राजेश प्रसाद तथा वरिष्ठ शिक्षाविद प्रो. आनंद राज वर्मा ने स्वीकार की. इस अवसर पर डॉ. वर्मा ने चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के व्यक्तिगत गुणों और साहित्यिक देन की चर्चा करते हुए बताया कि उन्होंने उर्दू साहित्यकारों पर केंद्रित समीक्षात्मक लेखन के अलावा विश्व साहित्य की अनेक अमर कहानियों का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया था. 

समारोह की समन्वयक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने अतिथियों और विमोच्य कृतियों का परिचय देते हुए बताया कि ‘वृद्धावस्था विमर्श’ विश्वविख्यात अस्तित्ववादी स्त्रीविमर्शकार सिमोन द बुवा के ग्रंथ ‘द ओल्ड एज’ का हिंदी सारानुवाद है तथा ‘संकल्पना’ में दक्षिण भारत के 39 शोधार्थियों के शोधपरक आलेख सम्मिलित हैं जिनका सबंध विविध समकालीन विमर्शों से है. डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने यह जानकारी भी दी कि यथाशीघ्र चंद्रमौलेश्वर प्रसाद द्वारा अनूदित कहानियों को भी पुस्तकाकार प्रकाशित किया जाएगा और ‘संकल्पना’ की अगली कड़ी के रूप में शोधपत्रों का दूसरा संकलन ‘अन्वेषी’ शीर्षक से प्रस्तुत किया जाएगा. 

आरंभ में टी. सुभाषिणी ने सरस्वती-वंदना की और डॉ. पूर्णिमा शर्मा, वर्षा कुमारी, मोनिका शर्मा एवं वी. कृष्णा राव ने उत्तरीय प्रदान कर अतिथियों का स्वागत किया. संतोष विजय मुनेश्वर ने स्वागत-गीत और अर्चना पांडेय ने वर्षा-गीत सुनाकर समां बाँध दिया. संचालन डॉ. मंजु शर्मा ने किया. 

समारोह में नाट्यकर्मी विनय वर्मा, वैज्ञानिक डॉ. बुधप्रकाश सागर, राजभाषा अधिकारी लक्ष्मण शिवहरे, सामाजिक कार्यकर्ता द्वारका प्रसाद मायछ, रोहित जायसवाल, राजेंद्र परशाद, गुरु दयाल अग्रवाल, विनीता शर्मा, नरेंद्र राय, कुमार लव, संपत देवी मुरारका, डॉ. करन सिंह ऊटवाल, डॉ. सीमा मिश्र, डॉ. बनवारी लाल मीणा, डॉ. जी. प्रवीणा, डॉ. रमा द्विवेदी, डॉ. वेमूरि हरि नारायण शर्मा, डॉ. बी. सत्य नारायण, डॉ. मिथलेश सागर, डॉ. रियाज़ अंसारी, डॉ. सुमन सिंह, डॉ. श्री ज्ञानमोटे, डॉ. महादेव एम. बासुतकर, डॉ. अर्पणा दीप्ति, डॉ. बी. बालाजी, वी. देवीधर, मोहम्मद आबिद अली, पी. पावनी, अशोक कुमार तिवारी, पूनम जोधपुरी, भंवर लाल उपाध्याय, जी. परमेश्वर, सरिता सुराणा, सुस्मिता घोष और गौसिया सुल्ताना सहित विविध विश्वविद्यालयों और साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े शताधिक विद्वान, लेखक, शोधार्थी और हिंदीसेवी सम्मिलित हुए. 

अंत में प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने ‘प्रेम बना रहे!’ कहते हुए आयोजन में सहयोग के लिए सबका आभार व्यक्त किया। 

प्रस्तुति : डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, सह संपादक : ‘स्रवंति’, 
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद -500 004 (तेलंगाना) 


बुधवार, 15 जून 2016

शोधपत्र प्रस्तुति को समर्पित ग्रंथ "संकल्पना" प्रकाशित


"संकल्पना"
(विभिन्न विद्वानों एवं शोधकर्ताओं के 39 शोधपत्रों से सुसज्जित आलोचना-ग्रंथ).
संपादक- डॉ.गुर्रमकोंडा नीरजा और डॉ. ऋषभदेव शर्मा.

ISBN - 978-9384068-21-9.

प्रकाशक - परिलेख प्रकाशन, नजीबाबाद.
वितरक - श्रीसाहिती प्रकाशन, हैदराबाद.


पहला खंड : भाषा विमर्श  : सम्मिलित लेखक :
डॉ शिव कुमार राजौरिया, संतोष विजय मुनेश्वर, जी संगीता, डॉ मंजु शर्मा, डॉ सुरैया परवीन, अर्चना पांडेय

दूसरा खंड : स्त्रीविमर्श  : सम्मिलित लेखक :
डॉ अर्पणा दीप्ति,अंजूपांडेय, गौसिया, नीलोफर, मोनिकादेवी.

तीसरा खंड : दलित विमर्श  : सम्मिलित लेखक :
सरला सिंह, सुभाषिणी टी.

चौथा खंड : जनजाति विमर्श  : सम्मिलित लेखक :
डॉ. अनुपमा तिवारी, अनु कुमारी, विजय लक्ष्मी, विजया चांदावत.

पांचवाँ खंड : संस्कृति विमर्श  : सम्मिलित लेखक :
डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह, आलोक राज.सक्सेना, बृजवासी गुप्ता, मीनाक्षी प्र आर के, अर्चना.

छठा खंड : पर्यावरण विमर्श  : सम्मिलित लेखक :
हेमंता बिष्ट.

सातवाँ खंड : मीडिया विमर्श  : सम्मिलित लेखक :
अमन कुमार.त्यागी, अरविंद कुमारसिंह, विनोद चौरसिया.

आठवाँ खंड : बालसाहित्य विमर्श  : सम्मिलित लेखक :
सुनीताआचार, बी. नवीन, वी. ममता..

नौवाँ खंड : अनुवाद विमर्श  : सम्मिलित लेखक :
पी. पावनी..

दसवाँ खंड :विविधा  : सम्मिलित लेखक :
पेरिके झांसी लक्ष्मीबाई, माधुरी तिवारी, प्रभा कुमारी, राम बदन सिंह यादव, नर्मदा आकारपु, 
वैजीनाथ, अंजुषा चौहान, यू. सुनीता, अजय कुमार मौर्य.

पुस्तक लोकार्पण समारोह 
18 जून 2016 (शनिवार) को
समय : सायं 5.00 बजे 
समारोह स्थल : आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, नामपल्ली, हैदराबाद.
आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थित है!!!!!

बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान पर गुर्रमकोंडा नीरजा की पुस्तक लोकार्पित

चित्र परिचय :
साहित्य मंथन के तत्वावधान में 19 फरवरी 2016 को दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभाहैदराबाद में आयोजित समारोह में 'स्रवंतिकी सह-संपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की पुस्तक
 ‘अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख’ का लोकार्पण करते हुए 
अरबामिंच विश्वविद्यालयइथियोपिया के भाषाविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. गोपाल शर्मा.
 साथ मेंप्रो. ऋषभदेव शर्माप्रो. मन्नार वेंकटेश्वर
डॉ. जी. नीरजा एवं ज्योति नारायण. 

अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परखका लोकार्पण संपन्न


हैदराबाद, 19 फरवरी 2016.

‘’अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की चर्चा पश्चिम में 1920 ई. के आसपास तब शुरू हुई जब एक देश के सैनिकों को शत्रु देश के सैनिकों की भाषा सीखने की आवश्यकता पड़ी. उस कार्य में ब्लूमफील्ड का विशेष योगदान रहा. 1964 में हैलिडे, मैकिंटोश और स्ट्रीवेंस ने लिंग्विस्टिक साइंस एंड लैंग्वेज टीचिंगशीर्षक पुस्तक का सृजन किया. 1999 में विड्डोसन  ने अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञानऔर भाषाविज्ञान का अनुप्रयोगके बीच निहित भेद को स्पष्ट किया. संप्रेषणपरक भाषाशिक्षणके आगमन के साथ-साथ अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान को भाषा शिक्षणके अर्थ में रूढ़ माना जाने लगा. हिंदी की बात करें तो रवींद्रनाथ श्रीवास्तव  हिंदी अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञानके जनक हैं. उन्होंने अपने समकालीनों के साथ मिलकर इसके अनुवाद विज्ञान, शैलीविज्ञान, पाठ विश्लेषण, समाजभाषाविज्ञान, मनोभाषाविज्ञान और कम्प्यूटेशनल भाषाविज्ञान जैसे अन्य विविध पक्षों को भी हिंदी में उद्घाटित किया. डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की वाणी प्रकाशन से आई पुस्तक अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परखको इस परंपरा की तीसरी पीढ़ी में रखा जा सकता है.

ये विचार यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के खैरताबाद स्थित सम्मलेन-कक्ष में साहित्य मंथनद्वारा आयोजित समारोह में अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परखनामक पुस्तक को लोकार्पित करते हुए अरबामिंच विश्वविद्यालय, इथियोपिया के भाषाविज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. गोपाल शर्मा ने व्यक्त किए. उन्होंने लोकार्पित पुस्तक की लेखिका गुर्रमकोंडा नीरजा को साधुवाद देते हुए कहा कि यह पुस्तक इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि  इसमें भाषिक अनुप्रयोग की पड़ताल के अनेक व्यावहारिक मॉडल उपलब्ध हैं. उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि इस पुस्तक में विभिन्न विमर्शों की भाषा के विवेचन द्वारा उत्तरआधुनिक अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञानको भी पुष्ट किया गया है. उन्होंने अपील की कि आम आदमी के दैनंदिन जीवन से जुड़ी समस्याओं को लेकर भी अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की दृष्टि से काम होना चाहिए.     

अपने अध्यक्षीय भाषण में इफ्लू के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. एम. वेंकटेश्वर ने आर्येंद्र शर्मा, कृष्णमूर्ति और श्रीराम शर्मा जैसे भाषावैज्ञनिकों को याद करते हुए कहा कि समय और स्थान के ग्राफ के साथ भाषा के परिवर्तनों को देखना-परखना आज की आवश्यकता है तथा लोकार्पित पुस्तक इस दिशा में उठाया गया एक सही कदम है. उन्होंने कहा कि यह पुस्तक भाषा के अध्येता छात्रों, अध्यापकों, शोधार्थियों और समीक्षकों के लिए समान रूप से उपयोगी है क्योंकि इसमें सैद्धांतिक पिष्टपेषण से बचते हुए लेखिका ने हिंदी भाषा-व्यवहार विषयक प्रयोगात्मक कार्य के परिणामों को प्रस्तुत किया है.  

आरंभ में वुल्ली कृष्णा राव ने अतिथियों का सत्कार किया तथा लेखिका गुर्रमकोंडा नीरजा ने विमोच्य पुस्तक की रचना प्रक्रिया के बारे में चर्चा की. वाणी प्रकाशन के निदेशक अरुण माहेश्वरी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए उन्होंने यह भी बताया कि यह पुस्तक प्रसिद्ध हिंदी-भाषावैज्ञानिक प्रो. दिलीप सिंह को समर्पित है जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से इस पुस्तक के प्रणयन की प्रेरणा दी है. इस अवसर पर प्रो. दिलीप सिंह ने भी दूरभाष के माध्यम से सभा को संबोधित किया और लेखिका को शुभकामनाएं दीं. भास्वर भारतके संपादक डॉ. राधेश्याम शुक्ल, ‘साहित्य मंथनकी परामर्शक ज्योति नारायण, ‘विश्व वात्सल्य मंचकी संयोजक संपत देवी मुरारका और शोधार्थी प्रेक्के पावनी ने लेखिका का सारस्वत सम्मान किया.

कार्यक्रम के संयोजक प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि लोकार्पित पुस्तक अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के अनेक आयामों की व्यावहारिकता को उद्घाटित करने के साथ-साथ उनका परीक्षण एवं मूल्यांकन भी करती है जिसमें लेखिका का गहरा स्वाध्याय और शोधपरक रुझान झलकता है.

इस समारोह में डॉ. बी. सत्यनारायण,डॉ. एम. रंगय्या, डॉ. राजकुमारी सिंह, डॉ. सुनीला सूद, डॉ. बालकृष्ण शर्मा रोहिताश्व’, डॉ. के. श्याम सुंदर, डॉ. मंजुनाथ एन. अंबिग, डॉ. बलबिंदर कौर,  डॉ. मिथिलेश सागरडॉ. गोरखनाथ तिवारी, डॉ. करन सिंह ऊटवाल, डॉ. बी. एल. मीणाडॉ. ए. श्रीरामगुरुदयाल अग्रवाल, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, वेमूरि ज्योत्स्ना कुमारी, मटमरि उपेंद्र, जी. परमेश्वर, भंवरलाल उपाध्याय, वुल्ली कृष्णा राव,  मनोज शर्मा, संतोष विजय मुनेश्वर, टी. सुभाषिणी, संतोष काम्बले, के. नागेश्वर राव, किशोर बाबू, इंद्रजीत कुमार, आनंद, वी. अनुराधा, जूजू गोपीनाथन, गहनीनाथ, झांसी लक्ष्मी बाई, माधुरी तिवारी, सी.एच. रामकृष्णा राव, प्रमोद कुमार तिवारी, रामकृष्ण, दुर्गाश्री, जयपाल, अरुणा, नागराज, जूडे लेसली आदि भाषा-प्रेमियों और शोधार्थियों ने उत्साहपूर्वक भागीदारी निबाही.

बुधवार, 14 अक्टूबर 2015

ऋषभदेव शर्मा की पुस्तकों का लोकार्पण संपन्न




'हिंदी भाषा के बढ़ते कदम' का लोकार्पण करते हुए
डॉ. राधेश्याम शुक्ल 
साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘साहित्य मंथन’ के तत्वावधान में खैरताबाद स्थित दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सम्मलेन कक्ष में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से पधारे प्रो. देवराज की अध्यक्षता में आयोजित एक समारोह में तीन पुस्तकों को लोकार्पित किया गया. तेवरी काव्यांदोलन के प्रवर्तक प्रो. ऋषभदेव शर्मा की समीक्षात्मक कृति ‘हिंदी भाषा के बढ़ते कदम’ का लोकार्पण ‘भास्वर भारत’ के प्रधान संपादक डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने किया. प्रो. ऋषभदेव शर्मा और डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा द्वारा संपादित पुस्तक ‘उत्तर आधुनिकता : साहित्य और मीडिया’ का लोकार्पण महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से पधारे प्रो. देवराज ने किया. एटा, उत्तर प्रदेश के युवा समीक्षक डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह कृत ‘ऋषभदेव शर्मा का कविकर्म’ का लोकार्पण ‘पुष्पक’ की प्रधान संपादक तथा कादंबिनी क्लब और आथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, हैदराबाद की संयोजक डॉ. अहिल्या मिश्र ने किया. 

'उत्तर आधुनिकता : साहित्य और मीडिया' का लोकार्पण करते हुए
प्रो. देवराज 
अध्यक्षीय भाषण में प्रो. देवराज ने लोकार्पित पुस्तकों की प्रासंगिकता के बारे में कहा कि ‘हिंदी भाषा के बढ़ते कदम’ और ‘उत्तर आधुनिकता : साहित्य और मीडिया’ जैसी पुस्तकों के सृजन और संपादन की पृष्ठभूमि में इतिहासबोध के साथ समसामयिक प्रश्नों की गहरी समझ विद्यमान है. उन्होंने जोर देकर कहा कि एक भाषा के रूप में हिंदी भी अन्य भारतीय भाषाओँ के समान विकसित हो रही है तथा हिंदी सत्ता की भाषा नहीं बल्कि जनता की भाषा रही है. भाषायी राजनीति पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने आगे कहा कि यदि राजनैतिक लाभ के लिए हिंदी से मैथिली, भोजपुरी, अवधी आदि को अथवा विद्यापति, तुलसी और जायसी को अलग कर दिया जाएगा तो उसके माध्यम से देश की संस्कृति को समझना संभव नहीं रह जाएगा जिससे हिंदी का ही नहीं हमारी राष्ट्रीय पहचान का भी नुकसान होगा इसलिए आज हिंदी भाषा की साहित्यिक योग्यता को पहचानने और उसमें निहित राष्ट्रीय मिथकों एवं सांस्कृतिक इतिहास को समझने की बड़ी आवश्यकता है. डॉ. देवराज ने याद दिलाया कि ‘’उत्तर आधुनिकता का जन्म निकारागुआ में हुआ था जो तीसरी दुनिया का देश है. 1912 में अमेरिका ने जबरदस्ती वहाँ के राजा को हटाकर सुनोजा नामक गुंडे को शासक बनाया. वहाँ के कवियों ने उसके खिलाफ कविताएँ लिखीं और अपनी कविताओं की उत्तर आधुनिक व्याख्या की थी और पहली बार ‘पोस्ट मोर्डनिज्म’ शब्द का प्रयोग किया था तथा यह शब्द जनहितैषी सरकार की स्थापना करने की परिकल्पना का द्योतक था.’’ उन्होंने संतोष व्यक्त किया कि लोकार्पित पुस्तक ‘उत्तर आधुनिकता : साहित्य और मीडिया’ लीक से हटकर है क्योंकि इस पुस्तक की सामग्री अमेरिका और यूरोप द्वारा थोपी गई उत्तर आधुनिकता की जुगाली के खिलाफ है. 

‘हिंदी भाषा के बढ़ते कदम’ का लोकार्पण करते हुए डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने कहा कि एक ओर यह किताब हिंदी भाषा के विकास के विविध आयामों की गहरी पड़ताल करती है तो दूसरी ओर ठोस राजभाषा तथा विवेकपूर्ण भाषा-नीति की जरूरत की. उन्होंने हिंदी के विकास में दक्खिनी के योगदान को रेखांकित करने और साथ ही दक्षिण भारत में हिंदी के पठन-पाठन और शोधकार्य तक का जायजा लेने के लिए लेखक की प्रशंसा की. 

इसी क्रम में ‘ऋषभदेव शर्मा का कविकर्म’ शीर्षक पुस्तक पर बोलते हुए डॉ. अहिल्या मिश्र ने कहा कि यह पुस्तक ऋषभदेव शर्मा के उस कवि रूप को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करती है जिसे उनके अध्यापक रूप और समीक्षक रूप ने जबरन ढक रखा है. इस पुस्तक में कवि ऋषभदेव शर्मा की सामाजिक चेतना, राजनैतिक चेतना, लोक चेतना, स्त्रीपक्षीय चेतना और जनपक्षीय चेतना का सोदाहरण विवेचन है. उल्लेखनीय है कि यह पुस्तक ऋषभदेव शर्मा के अट्ठावन वर्ष की आयु प्राप्त करने के संदर्भ में तैयार की गई है. इसमें कवि के लंबे साक्षात्कार के साथ साथ उनकी प्रतिनिधि कविताएँ और तेवरी काव्यांदोलन का घोषणा पत्र भी सम्मिलित हैं. 

इस अवसर पर ‘साहित्य मंथन’, ‘श्रीसाहिती प्रकाशन’, ‘परिलेख प्रकाशन’, ‘कादम्बिनी क्लब’, ‘सांझ के
साथी’, ‘विश्व वात्सल्य मंच’, शोधार्थियों और छात्रों द्वारा डॉ. ऋषभदेव शर्मा का सारस्वत सम्मान किया गया तथा प्रो. एम. वेंकटेश्वर ने ऋषभदेव शर्मा के परिचय-पत्रक का लोकार्पण किया. अभिनंदन-भाषण देते हुए प्रो. एम. वेंकटेश्वर ने कहा कि ‘’ऋषभदेव शर्मा के लेखन में विस्तार है, गहराई है. उनके लेखन में विशेष रूप से भाषा, साहित्य और संस्कृति के अनेक आयाम हैं. उनके साहित्य में भारतीय एकता की मौलिकता को देखा जा सकता है. हिंदी से इतर भारतीय भाषाओं के साहित्य के मर्म को उन्होंने स्वाध्याय द्वारा आत्मसात किया है. विशेष रूप से तेलुगु साहित्य के प्रति उनका अनुराग उल्लेखनीय है.’’ 

तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के शताधिक हिंदी प्रेमियों ने उपस्थित होकर इस समारोह को भव्य बनाया. संयोजिका डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा और डॉ. मंजु शर्मा ने लोकार्पित कृतियों का परिचय कराया तथा समारोह का संचालन डॉ. बी. बालाजी ने किया. 






मंगलवार, 6 अक्टूबर 2015

[निमंत्रण] पुस्तक लोकार्पण समारोह : 12 अक्टूबर 2015

निमंत्रण
साहित्य मंथन, हैदराबाद 
के तत्वावधान में आयोजित
 पुस्तक लोकार्पण समारोह
 में 
इष्ट मित्रों सहित आपकी गौरवमयी उपस्थिति सादर प्रार्थित है.
विमोच्य पुस्तकें 
1. हिंदी भाषा के बढ़ते कदम 
[लेखक - डॉ. ऋषभदेव शर्मा] 
 तक्षशिला प्रकाशन, नई दिल्ली 
2. उत्तर आधुनिकता : साहित्य और मीडिया
 [संपादक - डॉ. ऋषभदेव शर्मा और डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा] 
 जगत भारती प्रकाशन, इलाहाबाद 
3. ऋषभदेव शर्मा का कविकर्म 
[लेखक - डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह] 
 परिलेख प्रकाशन, नजीबाबाद 
दिनांक - 12 अक्टूबर, 2015 : सोमवार : ठीक 4 बजे अपराह्न 
स्थान : दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, 
खैरताबाद, हैदराबाद - 500004.
अध्यक्ष :
 प्रो. देवराज (आचार्य, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा)
मुख्य अतिथि : 
प्रो. एम. वेंकटेश्वर (पूर्व प्राचार्य, आर्ट्स कॉलेज, उस्मानिया विवि.,हैदराबाद)
विशिष्ट अतिथि : 
डॉ. राधेश्याम शुक्ल (संपादक, 'भास्वर भारत', हैदराबाद)
 डॉ. अहिल्या मिश्र (संयोजक, कादंबिनी क्लब, हैदराबाद) 
श्री सी. एस. होसगौडर (सचिव, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद)
सूत्रधार :
 डॉ. बी. बालाजी (हिंदी अधिकारी, बीडीएल, भानूर) 
संयोजक : 
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा (प्राध्यापक, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दभाहिप्रस, हैदराबाद)