संगोष्ठी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
संगोष्ठी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 2 जनवरी 2025

"चुनावी लोकतंत्र और श्रीलाल शुक्ल का साहित्य" : अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

"चुनावी लोकतंत्र और श्रीलाल शुक्ल का साहित्य" : अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न







जनता सजग, लोकतंत्र सफल                  - - श्रीराम तिवारी आईपीएस

हैदराबाद, 1 जनवरी, 2025। 
श्रीलाल शुक्ल स्मारक राष्ट्रीय संगोष्ठी समिति  तथा हिंदी प्रचार सभा  के संयुक्त तत्वावधान में 31 दिसंबर को "चुनावी लोकतंत्र और श्रीलाल शुक्ल का साहित्य" विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी डॉ. सीमा मिश्रा के संयोजन में सफलतापूर्वक संपन्न हुई।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्रीराम तिवारी (आईपीएस (से.नि.), आंध्र प्रदेश सरकार) ने अपने वक्तव्य में कहा कि यदि जनता सजग है तो लोकतंत्र सफल होगा। अपने वक्तव्य को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि ज्ञान और मोक्ष भारत भूमि में ही मिलता है और कहीं नहीं। उन्होंने कहा श्रीलाल शुक्ल द्वारा रचित उपन्यास उस समय के समाज का दर्पण है। आज व्यक्ति दुखी नहीं है, वह पड़ोसी के सुख से दुखी है। उन्होंने चुनावी प्रक्रिया पर कहा कि जैसी सरकार चुनोगे तो उसके परिणाम भी आप वैसे ही भोगोगे। अपने विवेक का प्रयोग कर अच्छे लोगों को चुनें और भारत का भविष्य उज्ज्वल बनाएँ।

समारोह के अध्यक्ष  प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि भारत को लोकतंत्र की जननी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में सुधार तभी होगा जब जनता जागरूक होगी और जनता तभी जागरूक होगी जब सत्य को जानेगी। आपने आगे कहा कि समाज और लोकतंत्र में सुधार करना साहित्यकारों का काम है और हमने यह काम नेताओं के हाथ में दे दिया। परिणामस्वरूप जो विसंगतियाँ श्रीलाल शुक्ल के समय थीं, वही विसंगतियाँ आज भी अंगद की तरह पैर धँसाए बैठी हैं।

मुख्य वक्ता प्रो. गोपाल शर्मा (पूर्व प्रो. एवं अध्यक्ष, अंग्रेज़ी विभाग, अरबा मींच विश्वविद्यालय, इथियोपिया, अफ्रीका) ने अपने बीज भाषण में अपने व्यंग्य लेखन  और श्रीलाल शुक्ल से  भेंटवार्ता के दौरान हुए कई खट्टे-मीठे अनुभव साझा किए। उन्होंने व्यंग्य की चर्चा करते हुए कहा कि लेक्चर का मजा तो तब है, जब सामने वाला समझ जाए कि ये बकवास कर रहा है!

विशिष्ट अतिथि प्रो. गंगाधर वानोडे (क्षेत्रीय निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र) ने ‘राग दरबारी’ एवं अन्य पुस्तकों पर चर्चा कर अपने विचार साझा किए।

अफगानिस्तान से पधारे मो. फ़हीम ज़लांद ने अपने वक्तव्य में श्रीलाल शुक्ल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की चर्चा करते हुए उनकी रचनाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। 

अर्मीनिया से सुश्री अलीना ने अपने ऑनलाइन संदेश में संगोष्ठी के विषय पर चर्चा करते हुए संयोजकों को बधाई दी।

'पुष्पक'-संपादक डॉ. आशा मिश्रा ने अपने वक्तव्य में कहा कि श्रीलाल शुक्ल ने प्रजातंत्र की पीड़ा को भोगा है। उन्होंने आगे कहा कि राजनीति को समझने के लिए ‘राग दरबारी’ से बेहतर पुस्तक नहीं है। उन्होंने श्रीलाल शुक्ल के कई उपन्यासों की चर्चा करते हुए कहा कि भारत भले ही इंडिया बन जाए पर रहेगा वह गाँवों का ही देश।

साहित्य गरिमा पुरस्कार समिति, हैदराबाद की संस्थापक,-अध्यक्ष डॉ. अहिल्या मिश्रा ने  संयोजक दंपति डॉ. सीमा मिश्रा व अधिवक्ता पं. अशोक तिवारी एवं उनके सुपुत्र अभियंता चि. आकाश तिवारी को ऑनलाइन माध्यम से आशीर्वाद दिया। 

सम्माननीय अतिथि अनिल कुमार वाजपेयी (से. नि. पुलिस अधीक्षक, गुप्तचर विभाग, तेलंगाना) ने विगत 17 वर्षों से होती आ रही संगोष्ठियों एवं इस बार अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में गणमान्य अतिथियों को एक मंच पर एकत्रित करने के लिए  विशेष बधाई दी।

आत्मीय अतिथि नौमीन् सूरपराज कर्लापालेम् ने अपने वक्तव्य में आज की नई पीढ़ी पर व्यंग्य करते हुए कहा कि युवक पढाई पर कम और फ़ोन पर ज़्यादा ध्यान देती है। साथ ही उन्होंने चुनावी लोकतंत्र एवं 'राग दरबारी' पर संक्षेप में प्रकाश डाला।

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस वामन राव ने अपने वक्तव्य में कहा कि चुनाव तंत्र भावनाओं से खेलना/भावनाओं का दुरुपयोग करना है। अपने सुझाव देते हुए कहा कि गलत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए, लेकिन खेद की बात है कि कोई आवाज़ उठाता नहीं है। साथ ही उन्होंने इस अभूतपूर्व कार्य की सराहना करते हुए इस निरंतर की जाने वाली संगोष्ठी शृंखला के लिया साधुवाद एवं बधाई दी।

मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के डॉ. इरशाद अहमद ने अपने वक्तव्य में चुनावी लोकतंत्र एवं श्रीलाल शुक्ल के साहित्य पर प्रकाश डाला। 

कार्यक्रम का शुभारंभ अभियंता चि. आकाश तिवारी के शंखनाद एवं सरस्वती वंदना से हुआ। 

कवि एवं उपन्यासकार रवि वैद ने अपने संचालन के माध्यम से मंच व सभागार को बाँधे रखा/मंत्रमुग्ध कर दिया एवं संचालन के दौरान श्रीलाल शुक्ल की रचनाओं के प्रासंगिक उद्धरणों के माध्यम से सभी का ज्ञानवर्धन भी किया।

संयोजक डॉ सीमा मिश्रा ने आरंभ में  अपने आलेख ‘चुनावी लोकतंत्र और श्रीलाल शुक्ल’ की प्रस्तुति द्वारा संगोष्ठी विषय प्रवर्तन किया तथा अंत में  संगोष्ठी में उपस्थित सभी शोधार्थियों, अध्यापकों एवं देश के सभी गणमान्य साहित्यकारों एवं पत्रकारों का आभार प्रकट किया।

दक्षिण भारत कान्यकुब्ज ब्राह्मण महासभा, कान्यकुब्ज ब्राह्मण समिति, हैदराबाद एवं अखिल भारतीय कान्यकुब्ज ब्राह्मण महासभा के सदस्यगण एवं 'कहानीवाला' ग्रुप के संस्थापक सुहास भटनागर, सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) से पधारे मिश्रा दंपति पं. राजेंद्र जोशी ज्योतिर्विद, नदीम हसन, राजशेखर रेड्डी, श्रीमती संगीता अमरेन्द्र पांडे, गिरजा शंकर पांडे, शफीक, शिल्की मुनमुन शर्मा, अनीता महेश टाठी आदि ने उपस्थिति दर्ज कराई। 

(प्रतिवेदन :  डॉ. सीमा मिश्रा, संगोष्ठी संयोजक)



रविवार, 17 जुलाई 2022

"नई शिक्षा नीति 2020 और भारतीय भाषाएँ" विषयक द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

"नई शिक्षा नीति 2020 और भारतीय भाषाएँ" विषयक द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न


केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा (उच्चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) एवं अहमदनगर जिला मराठा विद्या प्रसारक समाज के न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस महाविद्यालय, शेवगांव, अहमदनगर (महाराष्ट्र) के हिंदी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में "नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और भारतीय भाषाएँ" विषय पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन दिनांक 15 तथा 16 जुलाई, 2022 को शेवगाँव स्थित महाविद्यालय के सभागार में किया गया।


इस संगोष्ठी को कुल 5 सत्रों में विभाजित किया गया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में प्रमुख उद्घाटक के रूप में प्रोफेसर कुलदीप चंद अग्निहोत्री (पूर्व कुलपति, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला) उपस्थित रहे। प्रो. अग्निहोत्री ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का स्वागत करते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था को बदलने का कार्य इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से हो रहा है।


प्रमुख अतिथि के रूप में उपस्थित केंद्रीय हिंदी संस्थान (आगरा) की निदेशक प्रो. बीना शर्मा ने अपने मंतव्य में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का महत्व प्रतिपादित किया। बीज-भाषक के रूप में उपस्थितं प्रो. सदानंद भोसले (पुणे) ने भारतीय भाषाओं में शिक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए भारतीय भाषाओं की गौरवशाली परंपरा का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि इस नीति के केंद्र में स्वराज्य की संकल्पना निहित है तथा इसका लक्ष्य छात्रों को विश्व मानव बनाना है।


एडवोकेट वसंतराव कापरे (सदस्य, गवर्निंग काउंसिल, अहमदनगर जिला मराठा विद्या प्रसारक समाज, अहमदनगर) उद्घाटन समारोह के अध्यक्ष के रूप में उपस्थित रहे एवं नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के महत्व पर अपने अभिभाषण के माध्यम से प्रकाश डाला। 


संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. पुरुषोत्तम कुंदे द्वारा लिखित पुस्तक "काल से होड़ लेते कवि शमशेर और ग्रेस" का विमोचन उपस्थित अतिथियों के कर कमलों से हुआ।


संगोष्ठी के प्रथम सत्र "नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का स्वरूप" में प्रमुख वक्ता के रूप में प्रो. सुनील डहाले, (वैजपुर महाराष्ट्र) उपस्थित रहे तथा उन्होंने नई शिक्षा नीति का स्वरूप विस्तार से स्पष्ट किया। इस सत्र के अध्यक्ष के रूप में डॉ. सजीत शशि (वरकला, केरल) उपस्थित रहे। संगोष्ठी के द्वितीय सत्र "भारतीय भाषाओं में रोजगार के अवसर" में प्रमुख वक्ता के रूप में डॉ. मोहनन (कन्नूर, केरल) उपस्थित रहे, जिन्होंने अपने भाषण के माध्यम से भारतीय भाषाओं में रोजगार के अवसर विषय पर विशेष मार्गदर्शन किया।   तृतीय सत्र "जनसंचार माध्यम और भारतीय भाषाएँ" के प्रमुख वक्ता डॉ ज्योतिमय बाग (चितरंजन, पश्चिम बंगाल) ने अनुवाद, डॉक्यूमेंट्री एवं भारतीय भाषाएँ विषय पर मार्गदर्शन किया। सत्र के अध्यक्ष डॉ शैलेश कदम (वर्धा, महाराष्ट्र) ने जनसंचार माध्यम और भारतीय भाषाएँ विषय पर मार्गदर्शन किया। चतुर्थ सत्र "नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारतीय लोक भाषाएँ एवं बोलियाँ" के प्रमुख वक्ता डॉ. राकेश कुमार सिंह (दिल्ली) ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारतीय लोक भाषाएँ एवं बोलियाँ विषय पर विस्तृत मार्गदर्शन किया। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. कृष्ण कुमार कौशिक (दिल्ली) ने की। पंचम सत्र "नई शिक्षा नीति और भारतीय भाषाओं का भविष्य" के ‌प्रमुख वक्ता  डॉ. बालासाहेब सोनवने (पुणे, महाराष्ट्र) रहे तथा सत्र के अध्यक्ष के रूप में प्रो. जे. एस. मोरे (कोपरगांव, महाराष्ट्र) ने नई शिक्षा नीति और भारतीय भाषाओं का भविष्य विषय पर मार्गदर्शन किया।


संगोष्ठी के समापन सत्र में प्रमुख अतिथि के रूप में डॉ  गंगाधर वानोडे (क्षेत्रीय निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र) ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का स्वागत करते हुए भारतीय भाषाओं का महत्व प्रतिपादित किया। उन्होंने केंद्रीय हिंदी संस्थान की सभी योजनाओं से रू-ब-रू कराया‌। 


विशिष्ट अतिथि प्रो. ऋषभदेव शर्मा (पूर्व आचार्य, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद) ने मानव मूल्यों के लिहाज से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की विवेचना की। उन्होंने अपने मंतव्य में भारतीय संस्कृति की जड़ें मजबूत करने के लिए नई शिक्षा नीति कितनी उपयुक्त है, इसे भी स्पष्ट किया। प्रो. शर्मा ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनेक सकारात्मक पहलुओं को उजागर करते हुए यह भी कहा कि इसके कार्यान्वयन की जिम्मेदारी अध्यापकों की है। उन्होंने कहा कि भाषा विभिन्न व्यक्तियों और समुदायों के बीच प्रेम और सौहार्द को बढ़ाती है तथा हमारी कोशिश भी यही होनी चाहिए। 


समापन सत्र की अध्यक्षता डॉ. पुरुषोत्तम कुंदे ने की। संगोष्ठी का मंच संचालन सुश्री आशा वडणे ने किया।


संगोष्ठी के विभिन्न स्तरों में चर्चा-परिचर्चा में विभिन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों से पधारे अध्यापक, आलेख वाचक तथा शोधार्थी छात्र-छात्राओं ने सक्रिय भागीदारी निभाई। 000


प्रेषक-

डॉ. गोकुल क्षीरसागर

हिंदी विभागाध्यक्ष

न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस महाविद्यालय, शेवगांव, अहमदनगर (महाराष्ट्र)




मंगलवार, 14 दिसंबर 2021

'श्रीरामकथा का विश्वसंदर्भ महाकोश' के पहले खंड का लोकार्पण संपन्न




30 नवंबर 2021 को नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन के प्लेनरी हॉल में संपन्न "रामकथा में सुशासन" विषयक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के अवसर पर 56 खंडों के 'श्रीरामकथा विश्वसंदर्भ महाकोश' के पहले खंड 'लोकगीत और लोक कथाओं में श्रीरामकथा का संदर्भ' का लोकार्पण मुख्य अतिथि जी. किशन रेड्डी (संस्कृति, पर्यटन व डोनर मंत्री, भारत सरकार) ने अतिविशिष्ट अतिथि अश्विनी कुमार चौबे (पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्यमंत्री,भारत सरकार) तथा विशिष्ट अतिथिगण साध्वी प्रज्ञा ठाकुर (सांसद,लोकसभा), स्वामी परिपूर्णानंद, विजय गोयल, श्याम जाजू, प्रोफेसर दिलीप सिंह, प्रोफेसर विनय कुमार, प्रोफेसर प्रदीप कुमार सिंह, डॉ. अमित जैन एवं समारोह अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण भाला की गरिमामय उपस्थिति में संपन्न किया।
इस अवसर पर बोलते हुए मुख्य अतिथि जी. किशन रेड्डी ने राम संस्कृति के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार के लिए साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था के कार्यों की प्रशंसा की तथा विश्वास प्रकट किया कि 56 खंडों के महाकोश के प्रकाशन की यह विराट योजना आगे और भी तीव्र गति से विकसित होगी। महाकोश के लोकार्पित प्रथम खंड के बारे में बताते हुए जी. किशन रेड्डी ने कहा की राम भारतवर्ष के आम जन के रोम-रोम में बसे हुए हैं, इसका जीता जागता प्रमाण हमारे सभी प्रान्तों, भाषाओं और समुदायों के लोकगीतों और लोककथाओं में राम कथा के प्रसंगों के गुँथे होने से मिलता है।


समारोह के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय से पधारे भाषाचिंतक प्रो. दिलीप सिंह ने की और संचालन दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के पूर्व प्रोफेसर डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने किया। "रामकथा में सुशासन" विषय पर न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय की प्रोफेसर बिंदेश्वरी अग्रवाल, 'उपमा' केलिफोर्निया की प्रतिनिधि डॉक्टर अलका भटनागर और डॉक्टर हेमप्रभा एवं साठये महाविद्यालय, मुंबई से पधारे प्रोफेसर लोखंडे और डॉ. सतीश कनौजिया सहित विभिन्न विद्वानों ने सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए और प्रोफेसर प्रदीप कुमार सिंह के द्वारा चलाए जा रहे चलाई जा रही 56 खंडों के महाकोश की प्रकाशन योजना का हार्दिक स्वागत किया। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री डॉ. श्याम सिंह शशि ने विस्तार से देश विदेश की रामकथाओं में उपलब्ध रामराज्य के विवेचन के आधार पर प्रजा के राज्य को सुशासन का श्रेष्ठ रूप सिद्ध किया। आरंभ में अंतरराष्ट्रीय पाक्षिक पत्रिका 'चाणक्य वार्ता' के संपादक डॉ. अमित जैन ने अतिथियों का स्वागत सत्कार किया।

कार्यक्रम के दूसरे चरण में डॉ. विनोद बब्बर, डॉ रंजय कुमार सिंह, डॉ. नारायण, डॉ. शीरीन कुरेशी तथा डॉ.आशा ओझा तिवारी ने रामराज्य और सुशासन के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला। इस सत्र की अध्यक्षता हंसराज कॉलेज, नई दिल्ली की प्रधानाचार्य प्रोफेसर रमा ने की और संचालन डॉ. भावना शुक्ल ने किया।


समापन सत्र में मुख्य अतिथि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और अति विशिष्ट अतिथि अश्विनी कुमार चौबे के हाथों देश- विदेश के हिंदी सेवियों और राम संस्कृति के पोषक सहयोगियों का सम्मान किया गया तथा प्रो. ऋषभदेव शर्मा सहित कई विशिष्ट विद्वानों को "विश्व राम संस्कृति सम्मान" से अलंकृत किया गया। अवसर पर छत्तीसगढ़ से रामकथा की मंचीय प्रस्तुति के लिए पधारे लोक कलाकारों का भी 'चाणक्य वार्ता' और साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था की ओर से अभिनंदन किया गया। सम्मान सत्र का संचालन प्रो. माला मिश्रा ने किया।

शनिवार, 20 नवंबर 2021

'रामकथा का विश्वसंदर्भ महाकोश' का लोकार्पण और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 30 को


 



मीडिया विज्ञप्ति

 'रामकथा का विश्वसंदर्भ महाकोश' का लोकार्पण और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 30 को 


साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था (मुंबई) के तत्वावधान में "रामकथा का विश्वसंदर्भ महाकोश" के प्रथम खंड 'लोकगीत तथा लोककथाओं में श्रीराम का संदर्भ' का लोकार्पण दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में 30 नवंबर, 2021 (मंगलवार) को केंद्रीय राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे एवं राम साहित्य के विशिष्ट विद्वानों द्वारा किया जाएगा। 

संस्था के सचिव और महाकोश के प्रधान संपादक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने जानकारी दी है कि इस अवसर पर  "रामकथा में सुशासन" विषय पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी भी संपन्न होगी। कार्यक्रम सुबह साढ़े आठ बजे से शाम साढ़े छह बजे तक चलेगा। रामनामी संप्रदाय तथा ललित सिंह ठाकुर द्वारा "छत्तीसगढ़ के वनवासी राम" पर विशेष प्रस्तुति दी जाएगी। प्रतिभागिता के लिए पंजीकरण https://www.shodhsanstha.com/ लिंक पर कराया जा सकता है।

सोमवार, 15 मार्च 2021

'राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आलोक में हिंदी की विकास यात्रा' पर एकदिवसीय व्याख्यानमाला का आयोजन


हैदराबाद, 14 मार्च, 2021 (प्रेस विज्ञप्ति).

डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा 'अरुण'
प्रो. रमेश कुमार पाण्डेय 

                    यहाँ जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा-आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना के सचिव श्री जी. सेल्वराजन ने यह स्पष्ट किया कि 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आलोक में हिंदी की विकास यात्रा' विषयक एकदिवसीय व्याख्यानमाला का आयोजन केंद्रीय हिंदी निदेशालय, शिक्षा मंत्रालय, नई दिल्ली और दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के संयुक्त तत्वावधान में आगामी 16 मार्च, 2021 को खैरताबाद स्थित सभा परिसर में संपन्न होगा।  इस कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय हिंदी निदेशालय के निदेशक एवं श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रमेश कुमार पांडेय जी करेंगे और मुख्य अतिथि हैं रुड़की के प्रख्यात साहित्यकार और भारतविद्या के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले प्रो. योगेंद्र नाथ शर्मा 'अरुण'  जी। विशिष्ट अतिथि के रूप में उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, हैदराबाद के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो. ऋषभदेव शर्मा, नई दिल्ली के प्रख्यात हिंदी विद्वान डॉ. बेचैन कंडियाल, प्रो. गोपाल शर्मा और केंद्रीय हिंदी निदेशालय के उपनिदेशक तथा 'भाषा' पत्रिका के संपादक डॉ. राकेश कुमार शर्मा उपस्थित रहेंगे। संयोजक ने नगरद्वय के हिंदी प्रेमियों को इस सारस्वत आयोजन में भाग लेने का आग्रह किया है.

डॉ. बेचैन कंडियाल 
डॉ. राकेश कुमार शर्मा 
 



- कार्यक्रम संयोजक
जी. सेल्वराजन
सचिव एवं संपर्क अधिकारी
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा - आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना
खैरताबाद, हैदराबाद - 500004

रविवार, 9 अगस्त 2020

'तुलसी साहित्य की वर्तमान अर्थवत्ता' पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार संपन्न


'तुलसी साहित्य की वर्तमान अर्थवत्ता' पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार संपन्न

 

कोलकाता, 6 अगस्त ( मीडिया विज्ञप्ति) पश्चिम बंगाल की प्रमुख साहित्यिक संस्था  'बंगीय हिंदी परिषद, कोलकाता' द्वारा आयोजित तुलसी जयंती समारोहों  के अंतर्गत 'तुलसी साहित्य की वर्तमान अर्थवत्ता' विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। समारोह की अध्यक्षता विख्यात कवि-समीक्षक तथा उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, हैदराबाद के प्राक्तन प्रोफेसर और अध्यक्ष डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने की। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने अनेक उदाहरण देकर वर्तमान में तुलसी  साहित्य की राजनैतिक, सामाजिक और विमर्शपरक अर्थवत्ता का प्रतिपादन किया। उन्होंने कहा कि तुलसीदास ने राजकाज और सामाजिक कार्यों में स्त्री की सम्मति को आवश्यक बताया है। डॉ. शर्मा ने आगे कहा कि तुलसी को शंबूक वध और सीता परित्याग दोनों स्वीकार नहीं हैं, क्योंकि  वे दलित और स्त्री के प्रति अन्याय का समर्थन नहीं कर सकते।

 

संगोष्ठी के प्रधान वक्ता, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के पूर्व प्रोफेसर और देश के सुप्रसिद्ध विद्वान डॉ. देवव्रत चौबे ने कहा कि तुलसी का आज भी कोई विकल्प नहीं है। रामचरितमानस लोकमंगल की व्यापक अवधारणा का दुनिया के पास  इकलौता महाकाव्य है।

 

मुख्य अतिथि अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त स्त्री-चिंतक एवं डीएवीएसएस, ह्यूस्टन, अमेरिका की निदेशक डॉ. कविता वाचक्नवी ने कहा कि तुलसी साहित्य की मुख्य चिंता व्यक्ति-निर्माण, परिवार-निर्माण और समाज-निर्माण की है। राम को समाज ने उनके गुणों के कारण नायक बनाया। राम और कृष्ण दो ऐसे चरित्र हैं जो पूरे विश्व को अन्याय से लड़ने की प्रेरणा देते रहेंगे।

 

तुलसी साहित्य के चिंतक और  वरिष्ठ पत्रकार डॉ. प्रेमनाथ चौबे ने अपने बीज वक्तव्य में तुलसी साहित्य के उन पक्षों पर सविस्तार प्रकाश डाला जो जनसामान्य के लिए आज सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं।उन्होंने माया, मनुष्य और हरि-तत्व के आपसी संबंधों पर भी प्रकाश डाला।

 

समारोह की शुरूआत परिषद के मंत्री डॉ. राजेंद्रनाथ त्रिपाठी के स्वागत वक्तव्य से हुई। वक्ता आचार्य कौशल्यायन शास्त्री ने कहा कि तुलसी के रामराज्य में स्त्री और दलितों के अधिकारों पर चर्चा की। विश्व भारती के हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ. जगदीश भगत ने कहा कि  कथा संरचना को औदात्य रूप देने के लिए तुलसी ने अतिरिक्त विवेक सजगता अपनाई है। कार्यक्रम का सफल संचालन परिषद के साहित्य मंत्री डॉ. सत्य प्रकाश तिवारी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन परिषद की कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. राजश्री शुक्ला ने किया। लगभग तीन सौ श्रोताओं ने  इस आयोजन से लाइव जुड़कर इसे सफल बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। 

 

प्रस्तुतिडॉ. सत्य प्रकाश तिवारीसाहित्य मंत्री, बंगीय हिंदी परिषद, कोलकाता।