गुरुवार, 2 जनवरी 2025
"चुनावी लोकतंत्र और श्रीलाल शुक्ल का साहित्य" : अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
रविवार, 17 जुलाई 2022
"नई शिक्षा नीति 2020 और भारतीय भाषाएँ" विषयक द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
"नई शिक्षा नीति 2020 और भारतीय भाषाएँ" विषयक द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा (उच्चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) एवं अहमदनगर जिला मराठा विद्या प्रसारक समाज के न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस महाविद्यालय, शेवगांव, अहमदनगर (महाराष्ट्र) के हिंदी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में "नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और भारतीय भाषाएँ" विषय पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन दिनांक 15 तथा 16 जुलाई, 2022 को शेवगाँव स्थित महाविद्यालय के सभागार में किया गया।
इस संगोष्ठी को कुल 5 सत्रों में विभाजित किया गया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में प्रमुख उद्घाटक के रूप में प्रोफेसर कुलदीप चंद अग्निहोत्री (पूर्व कुलपति, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला) उपस्थित रहे। प्रो. अग्निहोत्री ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का स्वागत करते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था को बदलने का कार्य इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से हो रहा है।
प्रमुख अतिथि के रूप में उपस्थित केंद्रीय हिंदी संस्थान (आगरा) की निदेशक प्रो. बीना शर्मा ने अपने मंतव्य में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का महत्व प्रतिपादित किया। बीज-भाषक के रूप में उपस्थितं प्रो. सदानंद भोसले (पुणे) ने भारतीय भाषाओं में शिक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए भारतीय भाषाओं की गौरवशाली परंपरा का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि इस नीति के केंद्र में स्वराज्य की संकल्पना निहित है तथा इसका लक्ष्य छात्रों को विश्व मानव बनाना है।
एडवोकेट वसंतराव कापरे (सदस्य, गवर्निंग काउंसिल, अहमदनगर जिला मराठा विद्या प्रसारक समाज, अहमदनगर) उद्घाटन समारोह के अध्यक्ष के रूप में उपस्थित रहे एवं नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के महत्व पर अपने अभिभाषण के माध्यम से प्रकाश डाला।
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. पुरुषोत्तम कुंदे द्वारा लिखित पुस्तक "काल से होड़ लेते कवि शमशेर और ग्रेस" का विमोचन उपस्थित अतिथियों के कर कमलों से हुआ।
संगोष्ठी के प्रथम सत्र "नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का स्वरूप" में प्रमुख वक्ता के रूप में प्रो. सुनील डहाले, (वैजपुर महाराष्ट्र) उपस्थित रहे तथा उन्होंने नई शिक्षा नीति का स्वरूप विस्तार से स्पष्ट किया। इस सत्र के अध्यक्ष के रूप में डॉ. सजीत शशि (वरकला, केरल) उपस्थित रहे। संगोष्ठी के द्वितीय सत्र "भारतीय भाषाओं में रोजगार के अवसर" में प्रमुख वक्ता के रूप में डॉ. मोहनन (कन्नूर, केरल) उपस्थित रहे, जिन्होंने अपने भाषण के माध्यम से भारतीय भाषाओं में रोजगार के अवसर विषय पर विशेष मार्गदर्शन किया। तृतीय सत्र "जनसंचार माध्यम और भारतीय भाषाएँ" के प्रमुख वक्ता डॉ ज्योतिमय बाग (चितरंजन, पश्चिम बंगाल) ने अनुवाद, डॉक्यूमेंट्री एवं भारतीय भाषाएँ विषय पर मार्गदर्शन किया। सत्र के अध्यक्ष डॉ शैलेश कदम (वर्धा, महाराष्ट्र) ने जनसंचार माध्यम और भारतीय भाषाएँ विषय पर मार्गदर्शन किया। चतुर्थ सत्र "नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारतीय लोक भाषाएँ एवं बोलियाँ" के प्रमुख वक्ता डॉ. राकेश कुमार सिंह (दिल्ली) ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारतीय लोक भाषाएँ एवं बोलियाँ विषय पर विस्तृत मार्गदर्शन किया। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. कृष्ण कुमार कौशिक (दिल्ली) ने की। पंचम सत्र "नई शिक्षा नीति और भारतीय भाषाओं का भविष्य" के प्रमुख वक्ता डॉ. बालासाहेब सोनवने (पुणे, महाराष्ट्र) रहे तथा सत्र के अध्यक्ष के रूप में प्रो. जे. एस. मोरे (कोपरगांव, महाराष्ट्र) ने नई शिक्षा नीति और भारतीय भाषाओं का भविष्य विषय पर मार्गदर्शन किया।
संगोष्ठी के समापन सत्र में प्रमुख अतिथि के रूप में डॉ गंगाधर वानोडे (क्षेत्रीय निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र) ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का स्वागत करते हुए भारतीय भाषाओं का महत्व प्रतिपादित किया। उन्होंने केंद्रीय हिंदी संस्थान की सभी योजनाओं से रू-ब-रू कराया।
विशिष्ट अतिथि प्रो. ऋषभदेव शर्मा (पूर्व आचार्य, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद) ने मानव मूल्यों के लिहाज से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की विवेचना की। उन्होंने अपने मंतव्य में भारतीय संस्कृति की जड़ें मजबूत करने के लिए नई शिक्षा नीति कितनी उपयुक्त है, इसे भी स्पष्ट किया। प्रो. शर्मा ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनेक सकारात्मक पहलुओं को उजागर करते हुए यह भी कहा कि इसके कार्यान्वयन की जिम्मेदारी अध्यापकों की है। उन्होंने कहा कि भाषा विभिन्न व्यक्तियों और समुदायों के बीच प्रेम और सौहार्द को बढ़ाती है तथा हमारी कोशिश भी यही होनी चाहिए।
समापन सत्र की अध्यक्षता डॉ. पुरुषोत्तम कुंदे ने की। संगोष्ठी का मंच संचालन सुश्री आशा वडणे ने किया।
संगोष्ठी के विभिन्न स्तरों में चर्चा-परिचर्चा में विभिन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों से पधारे अध्यापक, आलेख वाचक तथा शोधार्थी छात्र-छात्राओं ने सक्रिय भागीदारी निभाई। 000
प्रेषक-
डॉ. गोकुल क्षीरसागर
हिंदी विभागाध्यक्ष
न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस महाविद्यालय, शेवगांव, अहमदनगर (महाराष्ट्र)
मंगलवार, 14 दिसंबर 2021
'श्रीरामकथा का विश्वसंदर्भ महाकोश' के पहले खंड का लोकार्पण संपन्न
समापन सत्र में मुख्य अतिथि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और अति विशिष्ट अतिथि अश्विनी कुमार चौबे के हाथों देश- विदेश के हिंदी सेवियों और राम संस्कृति के पोषक सहयोगियों का सम्मान किया गया तथा प्रो. ऋषभदेव शर्मा सहित कई विशिष्ट विद्वानों को "विश्व राम संस्कृति सम्मान" से अलंकृत किया गया। अवसर पर छत्तीसगढ़ से रामकथा की मंचीय प्रस्तुति के लिए पधारे लोक कलाकारों का भी 'चाणक्य वार्ता' और साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था की ओर से अभिनंदन किया गया। सम्मान सत्र का संचालन प्रो. माला मिश्रा ने किया।
शनिवार, 20 नवंबर 2021
'रामकथा का विश्वसंदर्भ महाकोश' का लोकार्पण और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 30 को
सोमवार, 15 मार्च 2021
'राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आलोक में हिंदी की विकास यात्रा' पर एकदिवसीय व्याख्यानमाला का आयोजन

हैदराबाद, 14 मार्च, 2021 (प्रेस विज्ञप्ति).
रविवार, 9 अगस्त 2020
'तुलसी साहित्य की वर्तमान अर्थवत्ता' पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार संपन्न
'तुलसी साहित्य की वर्तमान अर्थवत्ता' पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार संपन्न
कोलकाता, 6 अगस्त ( मीडिया विज्ञप्ति)। पश्चिम बंगाल की प्रमुख साहित्यिक संस्था 'बंगीय हिंदी परिषद, कोलकाता' द्वारा आयोजित तुलसी जयंती समारोहों के अंतर्गत 'तुलसी साहित्य की वर्तमान अर्थवत्ता' विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। समारोह की अध्यक्षता विख्यात कवि-समीक्षक तथा उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, हैदराबाद के प्राक्तन प्रोफेसर और अध्यक्ष डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने की। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने अनेक उदाहरण देकर वर्तमान में तुलसी साहित्य की राजनैतिक, सामाजिक और विमर्शपरक अर्थवत्ता का प्रतिपादन किया। उन्होंने कहा कि तुलसीदास ने राजकाज और सामाजिक कार्यों में स्त्री की सम्मति को आवश्यक बताया है। डॉ. शर्मा ने आगे कहा कि तुलसी को शंबूक वध और सीता परित्याग दोनों स्वीकार नहीं हैं, क्योंकि वे दलित और स्त्री के प्रति अन्याय का समर्थन नहीं कर सकते।
संगोष्ठी के प्रधान वक्ता, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के पूर्व प्रोफेसर और देश के सुप्रसिद्ध विद्वान डॉ. देवव्रत चौबे ने कहा कि तुलसी का आज भी कोई विकल्प नहीं है। रामचरितमानस लोकमंगल की व्यापक अवधारणा का दुनिया के पास इकलौता महाकाव्य है।
मुख्य अतिथि अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त स्त्री-चिंतक एवं डीएवीएसएस, ह्यूस्टन, अमेरिका की निदेशक डॉ. कविता वाचक्नवी ने कहा कि तुलसी साहित्य की मुख्य चिंता व्यक्ति-निर्माण, परिवार-निर्माण और समाज-निर्माण की है। राम को समाज ने उनके गुणों के कारण नायक बनाया। राम और कृष्ण दो ऐसे चरित्र हैं जो पूरे विश्व को अन्याय से लड़ने की प्रेरणा देते रहेंगे।
तुलसी साहित्य के चिंतक और वरिष्ठ पत्रकार डॉ. प्रेमनाथ चौबे ने अपने बीज वक्तव्य में तुलसी साहित्य के उन पक्षों पर सविस्तार प्रकाश डाला जो जनसामान्य के लिए आज सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं।उन्होंने माया, मनुष्य और हरि-तत्व के आपसी संबंधों पर भी प्रकाश डाला।
समारोह की शुरूआत परिषद के मंत्री डॉ. राजेंद्रनाथ त्रिपाठी के स्वागत वक्तव्य से हुई। वक्ता आचार्य कौशल्यायन शास्त्री ने कहा कि तुलसी के रामराज्य में स्त्री और दलितों के अधिकारों पर चर्चा की। विश्व भारती के हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ. जगदीश भगत ने कहा कि कथा संरचना को औदात्य रूप देने के लिए तुलसी ने अतिरिक्त विवेक सजगता अपनाई है। कार्यक्रम का सफल संचालन परिषद के साहित्य मंत्री डॉ. सत्य प्रकाश तिवारी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन परिषद की कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. राजश्री शुक्ला ने किया। लगभग तीन सौ श्रोताओं ने इस आयोजन से लाइव जुड़कर इसे सफल बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रस्तुति: डॉ. सत्य प्रकाश तिवारी, साहित्य मंत्री, बंगीय हिंदी परिषद, कोलकाता।