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शुक्रवार, 13 मार्च 2015

शांता सुंदरी को साहित्य अकादेमी का अनुवाद पुरस्कार

हैदराबाद, 13 मार्च 2015.

शिवरानी देवी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई  प्रेमचंद की जीवनी  ' घर में प्रेमचंद ' के  हैदराबाद वासी शांता सुंदरी द्वारा किए गए तेलुगु अनुवाद को 2014 के लिए साहित्य अकादेमी के अनुवाद - पुरस्कार हेतु चुना गया है।पुरस्कार यथासंभव अगस्त 2015 में दिया जाएगा।  यह समारोह कहाँ आयोजित होगा, यह बाद में बताया जाएगा।  

शांता सुंदरी जी! भूरिशः बधाइयाँ और अभिनंदन!!!
 

शनिवार, 22 नवंबर 2014

(लोकार्पण) 'तेलुगु साहित्य का हिंदी अनुवाद : परंपरा और प्रदेय'

15 नवंबर 2014 को हैदराबाद में 'साहित्य मंथन' के तत्वावधान में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सम्मलेन कक्ष में 
आयोजित एक समारोह में 
तेलुगु के प्रमुख कवि प्रो. एन. गोपि ने 
डॉ. ऋषभदेव शर्मा और डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा द्वारा लिखित पुस्तक 
'तेलुगु साहित्य का हिंदी अनुवाद : परंपरा और प्रदेय' 
का लोकार्पण किया.
 इस अवसर पर प्रो. एम. वेंकटेश्वर (अध्यक्ष), 
पद्मश्री जगदीश मित्तल (उद्घाटनकर्ता), प्रो. देवराज (मुख्य अतिथि),
 डॉ. जोराम यालाम नाबाम और विवेक नाबाम के साथ लेखकद्वय .



परिचय वक्तव्य : डॉ. बी. बालाजी 

तेलुगु साहित्य का हिंदी अनुवाद : परंपरा और प्रदेय

‘तेलुगु साहित्य का हिंदी अनुवाद : परंपरा और प्रदेय’ प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी और डॉ. जी नीरजा जी द्वारा रचित पुस्तक तेलुगु और हिंदी साहित्य के अध्येताओं, शोधार्थियों और प्रेमियों के लिए एक अभिनव भेंट है। 

भेंट इसलिए कह रहा हूँ कि एक पॉकेट डिक्शनरी की तरह मात्र 64 पृष्ठों की यह पुस्तक तेलुगु साहित्य के हिंदी अनुवाद के इतिहास को प्रस्तुत करती है। साथ ही अनुवाद के माध्यम से हिंदी साहित्य के पाठकों के समक्ष तेलुगु भाषी लोक की संस्कृति, लोकाचार और प्रथाएँ, तेलुगु प्रदेश की जीवन शैली, लोक विश्वास और लोकोक्तियाँ, नामकरण की शब्दावली का हिंदी में प्रवेश भी उद्घाटित करती है। यह समय कॉम्पैक्ट -डिजिटल का है। हमें सारी चीजें कॉम्पैक्ट में चाहिए ‘देखने में छोटे लगें, मगर प्रकट करें सारा संसार’। जी हाँ, यह पुस्तक इसी वाक्य को चरितार्थ करती है। प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी और डॉ. जी नीरजा जी ने बहुत परिश्रम किया होगा इसे कॉम्पैक्ट बनाने के लिए। 

इस पुस्तक की एक और विशेषता की ओर आप सब का ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा। लेकिन इससे पहले यह बताना मैं अपना दायित्व समझता हूँ कि प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी चाहे कोई साधारण लेख लिख रहे हों, किसी पुस्तक की भूमिका या समीक्षा लिख रहे हों या किसी विषय पर शोध करा रहे हों, एक वैज्ञानिक की तरह काम करते हैं। हर रचना की प्रक्रिया के समय वे वैज्ञानिक दृष्टि अपनाते हैं। विषय की सैद्धांतिकी को व्यावहारिक रूप देते हैं। और डॉ. जी नीरजा जी भी इसी राह पर चल पड़ी हैं। यह पुस्तक इस बात का प्रमाण है। 

अब मैं, विशेषता की बात करूंगा। इस पुस्तक का प्रत्येक लेख अपने आप में एक स्वतंत्र लेख है। पाठक इसे कहीं से भी पढ़ना आरंभ कर सकता है। यदि मान लीजिए पाठक पुस्तक का अंतिम लेख – ‘नामकरण’ पढ़ना चाहता है तो उसे ‘ तेलुगु साहित्य के अनुवाद की परंपरा’ जो पहला लेख है, पढ़ने की मजबूरी महसूस नहीं करनी पड़ेगी। यही बात सभी लेखों पर लागू होती है। जैसे दूसरा लेख - अनुवाद की विकास यात्रा, तीसरा लेख - स्रोत भाषा की शब्दावली का प्रसार, चौथा लेख- सांस्कृतिक संदर्भ, पाँचवां लेख- लोकाचार और प्रथाएँ, छठा लेख- स्रोत भाषासमाज की जीवन शैली, सातवाँ लेख - उपपाठों की पहचान, आठवाँ लेख- सूचना संप्रेषण, नौवां लेख - लोकोक्तियाँ। इस तरह हम देखते हैं कि इस अनुपम पुस्तक में कुल मिलाकर ग्यारह संक्षिप्त लेख सम्मिलित हैं।

अंत में संदर्भ भी दिए गए हैं। यह तेलुगु से हिंदी अनुवाद पर तथा तुलनात्मक शोध की इच्छा रखने वाले शोधार्थी के लिए बहुत उपयोगी सामग्री है। यह पुस्तक अपने-आप में एक मार्ग दर्शिका है। 

विवेच्य पुस्तक ‘तेलुगु साहित्य का हिंदी अनुवाद : परंपरा और प्रदेय’ के लेखन के पीछे (लिखने का कारण) हिंदी भाषा और साहित्य के लिए काम करते हुए दोनों लेखकों की कर्म भूमि - ‘तेलुगु प्रदेश और उसके साहित्य’ के प्रति दायित्व का निर्वाह है। इस दायित्व को दोनों लेखकों ने पूरी ईमानदारी से निभाया है। यह बात इस लेखकीय टिप्पणी से पुष्ट हो जाएगी – “तेलुगु से भी हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में अनेक रचनाओं का अनुवाद हुआ है। परंतु खेद का विषय है कि तेलुगु या अन्य दक्षिण भारतीय भाषाओं से हिंदी में अनूदित साहित्य को गंभीरता से नहीं लिया गया। प्राय: यह कहकर इन अनुवादों की उपेक्षा की जाती रही है कि अनुवाद ठीक नहीं हो रहे हैं या अनुवाद में प्रयुक्त भाषा कहीं-कहीं त्रुटिपूर्ण होती है या व्याकरण सम्मत होते हुए भी अनुवाद की भाषा पाठकों को उबाऊ लगती है। ये तमाम आलोचनाएँ अपनी जगह हैं और अनुवादकों की निरंतर साधना अपनी जगह है। इसलिए तेलुगु से हिंदी में अब तक अनेक रचनाओं का अनुवाद हो चुका है तथा अब भी हो रहा है।“

तेलुगु साहित्य के हिंदी अनुवाद के प्रदेय को पुस्तक में उद्धृत उद्दरण से बताने का प्रयास करूंगा - 

इस पुस्तक के माध्यम से लेखकद्वय ने उद्घाटित किया है कि तेलुगु साहित्य का हिंदी में अनुवाद होने से भारत की अन्य भाषाओं के साहित्य को लाभ हुआ है। इस संदर्भ में लेखक द्वारा उद्धृत प्रो. देवराज के कथन का उल्लेख करना चाहूँगा – “तेलुगु के कालजयी रचनाकार सी. नारायण रेड्डी ने काव्य में पंचपदी शैली के कुछ अद्भुत प्रयोग किए थे। उनकी पंचपदियों का हिंदी में अनुवाद प्रो. भीमसेन निर्मल ने किया था। कोई बीस साल पहले मैंने ये अनुवाद मणिपुरी भाषा के कवियों की एक सभा में पढे थे। मूल पाठ हिंदी में और व्याख्या मणिपुरी में। आयोजन स्थल से बाहर आते समय निर्मल जी के अनुवादों की वह पुस्तक मुझसे कवि लनचेनबा मीतै ने मांग ली। लगभग एक साल के बाद एक दिन लनचेनबा वह पुस्तक लौटाने आए। उनके हाथ में कागजों का एक पुलिंदा भी था। बोले, ‘सर, मेरी कुछ कविताएं सुनिए’। उन्होंने काफी देर तक जिन कविताओं का पाठ किया, वे सब पंचपदी शैली में थीं। इनमें जीवन के असंख्य अनुभव प्रभावशाली बिंबों में आकार ग्रहण करते प्रतीत हो रहे थे। मणिपुरी कविता में यह एक नवीन रचना शैली थी, जिसे तेलुगु के सी. नारायण रेड्डी की पंचपदियों से ग्रहण किया गया था। कवि लनचेनबा को इस बात का गर्व भी था कि उन्होंने अपनी मातृभाषा की काव्य परंपरा में एक नवीन वैशिष्ट्य जोड़ा। स्मरणीय है कि ‘येंङ्लु येंङ्लुबदा’ नाम से इन कविताओं का एक संग्रह छपा, जिसने मणिपुरी युवा कविता आंदोलन की महत्वपूर्ण कृति होने का गौरव प्राप्त किया और इसका हिंदी में अनुवाद सिद्धनाथ प्रसाद द्वारा किया गया, जो ‘जित देखूँ’ नाम से 1998 में प्रकाश में आया। इस घटना से तेलुगु, मणिपुरी और हिंदी के संबंध भी सामने आते हैं तथा भारतीय साहित्य के निर्माण की प्रक्रिया पर भी प्रकाश पड़ता है।“ 

तेलुगु साहित्यकारों की रचनाधर्मिता और सामाजिक यथार्थ के प्रति जागरूकता भी इस पुस्तक के माध्यम से हिंदी पाठकों के समक्ष प्रकट होती है। इस संदर्भ में पुस्तक में ‘ऋषभ उवाच’ से उद्धृत कथन दृष्टव्य है – “निखिलेश्वर का मत है कि तेलुगु साहित्यकार सामाजिक यथार्थ के प्रति अत्यंत सजग रहे हैं तथा पश्चिमी साहित्य में जो परिवर्तन 300 वर्षों में हुए, तेलुगु में वे 100 वर्ष में संपन्न हो गए।“ 

कहने का अभिप्राय यह है कि तेलुगु साहित्यकारों ने जिन विधाओं और विषयों पर अपनी लेखनी चलाई है, उन विधाओं और विषयों का अनुवाद के माध्यम से हिंदी में तथा भारत की अन्य भाषाओं में आदान-प्रदान होता है तो उन भाषाओं के साहित्य को समृद्ध होने के अवसर मिलने लगते हैं। इस कार्य में आलोचनाओं की परवाह न करते हुए साधना कर रहे सारे अनुवादक बधाई के पात्र हैं और इस महत्तर कार्य की जानकारी हिंदी पाठक तक पहुंचाने में यह कृति सफल हुई है। 

लेखकद्वय ने तेलुगु साहित्य के हिंदी अनुवाद संबंधी अनेक आलेखों तथा कतिपय अन्य स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर तेलुगु से हिंदी में अनूदित साहित्य को विधावार सूची बद्ध किया है। और 1954 से अबतक काव्य के 100, उपन्यास के 49, कहानी संग्रहों के 49 तथा विविध विधाओं जिनके अंतर्गत निबंध, एकांकी, नाटक, जीवनी, इतिहास, भाषाविज्ञान, काव्यशास्त्र, व्याख्या-टीका, दर्शनशास्त्र, आत्मकथा, समीक्षा, अनुवादशास्त्र आदि शामिल हैं के 65 अनुवादों की सूची उपलब्ध कराई गई है। 

भारत की बहुभाषिकता अनुवाद के माध्यम से ही सम भाषिकता के रूप में हमारे सामने उपस्थित होती है। भारत का हर नागरिक कम से कम तीन भाषाओं का ज्ञाता होता है और बहुभाषिकता को ग्रहण कर सम भाषिक होने के प्रमाण देता रहता है। अनुवाद के माध्यम से राष्ट्रीय एकता प्रकट होती है। इसे बहुत ही सटीक रूप में रेखांकित करती है यह पुस्तक ‘तेलुगु साहित्य का हिंदी अनुवाद : परंपरा और प्रदेय’। 

अंत में मैं इतना अवश्य कहना चाहूँगा कि यह पुस्तक हिंदी पाठक के समक्ष तेलुगु साहित्य के हिंदी अनुवाद और उसके प्रदेय को बड़ी शालीनता से, बिना किसी शोर और आडंबर के उद्घाटित करती है। लेखकद्वय ने बड़े परिश्रम से विवेच्य कृति की रचना की है। दोनों को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। साथ ही, प्रकाशक परिलेख प्रकाशन, नजीबाबाद को भी धन्यवाद.

  • तेलुगु साहित्य का हिंदी अनुवाद : परंपरा और प्रदेय, ऋषभदेव शर्मा और गुर्रमकोंडा नीरजा, 2015, परिलेख प्रकाशन, नजीबाबाद, 50 रु., 64 पृष्ठ, ISBN - 978-93-84068-11-0 

शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2014

गोइन्का हिंदी तेलुगु अनुवाद पुरस्कार 2015 के लिए प्रविष्टियाँ आमंत्रित


हैदराबाद, 31 अक्तूबर, 2014. कमला गोइन्का फाउण्डेशन के प्रबंध न्यासी श्यामसुन्दर गोइन्का ने एक विज्ञप्ति जारी कर सूचित किया है कि तेलुगु भाषी साहित्यकारों के लिए वर्ष 2015 के लिए "गीतादेवी गोइन्का हिंदी तेलुगु अनुवाद पुरस्कार" की प्रविष्टियाँ आमंत्रित की जा रही हैं।

तेलुगु भाषी हिंदी साहित्यकार जिनकी पिछले 10 वर्षों में तेलुगु से हिंदी में तथा हिंदी से तेलुगु में अनुवादित कृति प्रकाशित हुई है, वे उपरोक्त पुरस्कार में भाग ले सकते हैं। इस पुरस्कार के अंतर्गत 31000/- (इकतीस हजार रुपये) नगद के साथ एक विशेष समारोह में शाल, स्मृतिचिन्ह व पुष्पगुच्छ प्रदान कर सम्मानित किया जायेगा।

उन्होंने यह भी बताया है कि नवोदित तेलुगु-भाषी हिंदी साहित्यकारों के लिए (जिनकी उम्र 35 वर्ष से कम है) हिंदी में लिखी गयी पुस्तक प्रकाशन के लिए 15000/- रुपये तक के सहयोग/पुरस्कार के लिए "डॉ. विजयराघव रेड्डी युवा साहित्यकार पुरस्कार" देकर प्रोत्साहित किया जायेगा। युवा साहित्यकार जिनकी उम्र 35 वर्ष तक है तथा जिनकी कोई पुस्तक प्रकाशित नहीं हुई है, वे इस पुरस्कार में भाग ले सकते हैं। उन्हें अपनी अप्रकाशित पुस्तक की चार पांडुलिपियां, आयु प्रमाण-पत्र व फोटो के साथ प्रस्ताव-पत्र भरकर भेजना होगा।

दोनों तरह की प्रविष्टियां मिलने की अंतिम तिथि 15 जनवरी 2015 है।

नियमावली एवं प्रस्ताव-पत्र या अधिक जानकारी के लिए कमला गोइन्का फाउण्डेशन, नंबर-6, के.एच.बी. इंडस्ट्रियल एरिया, दूसरा क्रॉस यलहंका न्यू टाउन, बैंगलोर-560064. दूरभाष : 080-28567755, 32005502 or Email : kgf@gogoindia.com पर संपर्क किया जा सकता है।

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

[चित्रावली] ''साहित्य-सेतु'' का प्रवेशांक लोकार्पित

आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद की बहुप्रतीक्षित त्रैमासिक पत्रिका
 ''साहित्य-सेतु'' का प्रवेशांक (जनवरी-मार्च, 2014) 
26  फरवरी 2014 को 
लोकार्पित किया गया.

प्रधान संपादक - डॉ. के. दिवाकराचारी

परामर्शदाता मंडल -
प्रो. टी. मोहन सिंह 
प्रो. एम. वेंकटेश्वर 
प्रो. पी. माणिक्यांबा
प्रो. ऋषभ देव शर्मा 
प्रो. वी. कृष्णा 

संपादक - डॉ. बी. सत्यनारायण 
प्रबंध संपादक - पी. उज्ज्वला वाणी 
सहयोगी संपादक - एन. अप्पल नायुडु

[चित्र सौजन्य - संपत देवी मुरारका]

शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

महान तेलुगु कवि कालोजी की जन्म-शताब्दी पर विनम्रतापूर्वक



'MERI AWAZ'
 - AN ANTHOLOGY OF 100 POEMS OF KALOJI 
TRANSLATED FRON TELUGU TO HINDI 
WAS RELEASED ON 25.1.2014 AT SUNDARAYYA HALL, HYDERABAD 
BY FAMOUS FILM DIRECTOR B. NARSING RAO
IN PRESENCE OF VIPLAVA POET VARAVARA RAO
RISHABHA DEO SHARMA SPOKE ON THE BOOK AT LENGTH. 
MANNAR VENKATESHWAR COORDINATED THE FUNCTION 
ORGANISED BY 
ANDHRA PRADESH HINDI ACADEMY.

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

'तेलुगु साहित्य का हिंदी पाठ' प्रो. एन. गोपि को समर्पित



प्रो. ऋषभ देव शर्मा की सद्यःप्रकाशित समीक्षा पुस्तक 'तेलुगु साहित्य का हिंदी पाठ' का समर्पण वाक्य तेलुगु के शीर्षस्थ समकालीन साहित्यकार प्रो. एन. गोपि को लक्ष्य करके लिखा गया है, जो इस प्रकार है - "समकालीन भारतीय कविता के उन्नायक 'नानीलु' के प्रवर्तक परम आत्मीय अग्रज कवि प्रो. एन. गोपि को सादर"

20 नवंबर 2013 को इस पुसतक की पहली प्रति समर्पित करने जब डॉ. ऋषभ देव शर्मा रात्रि 8 बजे डॉ. एन. गोपि के घर पहुँचे तो पुस्तक का समर्पण वाक्य पढ़कर प्रो. एन. गोपि रोमांचित और गद्गद हो उठे. उल्लासपूर्वक उन्होंने अपनी अर्धांगिनी प्रतिष्ठित तेलुगु कवयित्री एन. अरुणा जी को आवाज लगाई और अभ्यागत लेखक को अंगवस्त्र द्वारा सम्मानित करने के लिए कहा. 

भावविभोर होकर बार बार प्रो. एन. गोपि कहते रहे - पुस्तक समर्पण और स्वीकार मेरे लिए कोई नई बात नहीं है लेकिन आपने यह पुस्तक मुझे समर्पित करके हिंदी की ओर से तेलुगु का जो सम्मान किया है उसे मैं आजीवन एक सुखद अनुभव की तरह याद रखूँगा. 

ऐसे अवसर पर प्रो. ऋषभ देव शर्मा का अवाक् रह जाना सहज ही था! 




शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

‘प्रेम बना रहे’ का तेलुगु अनुवाद ‘प्रिये चारुशीले’ लोकार्पित


‘प्रेम बना रहे’ के तेलुगु अनुवाद ‘प्रिये चारुशीले’ के लोकार्पण के अवसर पर (बाएँ से) डॉ.नंडूरि राजगोपाल, अनुवादक डॉ.बी.हेमलता, लोकार्पणकर्ता डॉ.राधेश्याम शुकल, अध्यक्ष डॉ.एम.वेंकटेश्वर, मूल रचनाकार डॉ.ऋषभदेव शर्मा, विशेष अतिथिगण डॉ.वेन्ना वल्लभराव एव. डी.देवानंद रेड्डी. 

विजयवाडा, 5 अक्टूबर, 2013. 
यहाँ होटल ऐलापुरम के सम्मलेन कक्ष में आयोजित एक साहित्यिक समारोह में डॉ.बी.हेमलता द्वारा अनुसृजित काव्यकृति ‘प्रिये चारुशीले’ का लोकार्पण ‘भास्वर भारत’ के संपादक डॉ.राधेश्याम शुक्ल के हाथों संपन्न हुआ. समारोह की अध्यक्षता अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.एम.वेंकटेश्वर ने की. 

पुस्तक का परिचय देते हुए ‘चिनुकु’ पत्रिका के संपादक नंडूरी राजगोपाल ने बताया कि ‘प्रिये चारुशीले’ हिंदी कवि ऋषभदेव शर्मा की चर्चित काव्यकृति ‘प्रेम बना रहे’ का तेलुगु काव्यानुवाद है. उन्होंने कहा कि इस काव्य में प्रेम के अनेक धरातल और आयाम उद्घाटित हुए हैं जो सौंदर्य और औदात्य की गरिमा के कारण विशेष रूप से आकर्षित करते हैं. 

लायोला कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.वेन्ना वल्लभराव ने मूल रचना और अनुवाद की तुलना करते हुए कहा कि सांस्कृतिक और मिथकीय प्रसंगों से युक्त होने का कारण ऋषभदेव शर्मा की कविता का अनुवाद करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण है परंतु अनुवादिका डॉ.बी.हेमलता ने अत्यंत सावधानीपूर्वक इन कविताओं का तेलुगु में सफल संप्रेषणीय अनुवाद किया है. 

इस अवसर पर डॉ.ऋषभदेव शर्मा ने ‘प्रेम बना रहे’ की पांच प्रतिनिधि कविताओं का वाचन किया तथा भागवतुल हेमलता ने उनका अनुवाद पढ़कर सुनाया जिसे उपस्थित साहित्यिक समुदाय ने खूब सराहा. विशेष अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए जिला शिक्षा अधिकारी डी.देवानंद रेड्डी ने कहा कि मनुष्य और मनुष्य को निकट लाने के लिए कविता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है तथा बहुभाषी समाज में अनुवाद इसी मानवीयकार्य को संपन्न करता है अतः डॉ.हेमलता का अनुवादकार्य अभिनंदनीय है. 

आरंभ में अध्यक्ष और अतिथियों ने सरस्वती पूजन और द्वीप प्रज्वलन किया. अतिथियों का स्वागत सत्कार डॉ.गुर्रमकोंडा नीरजा, सीता, पद्मा, मूर्ति, प्रसाद ने किया. साथ ही कवि और अनुवादक का सारस्वत सम्मान भी किया गया. 

रविवार, 29 सितंबर 2013

कार्यक्रम : ' प्रिये चारुशीले ' काव्यसंग्रह लोकार्पण समारोह :1/10/2013

  ' ప్రియే చారు శీలే ' గ్రంథావిష్కరణ  : కార్యక్రమం
1       వేదిక మీద అతిథుల ఆహ్వానం    :        డా  భాగవతుల హేమలత 
2       ప్రార్ధనా  గీతం                        :        సుశ్రీ  శ్రీ లలిత                       
3       దీప ప్రజ్వలన                         :        అతిథులు                      
4      స్వాగతోపన్యాసం                      :        డా భాగవతుల హేమలత     
5       అతిథుల పరిచయం                  :        ప్రొ ఎం వెంకటేశ్వర్           
                                                        డా బీ హేమలత               
6       'ప్రియే చారుశీలే' -  పరిచయం      :        శ్రీ నండూరి రాజగోపాల్       
7       'ప్రియే చారు శీలే ' ఆవిష్కరణ       :        డా రాధేశ్యామ్ శుక్ల         
8       పుస్తకావిష్కర్త భావాలు              :        డా రాధేశ్యామ్ శుక్ల
9       కవితా పఠనం                         :        ప్రొ ఋషభ్ దేవ్ శర్మ
                                                        డా భాగవతుల హేమలత
10      కవి సన్మానం                                 :        డా భాగవతుల హేమలత
                                                        ప్రొ ఎం వెంకటేశ్వర్  
11      అనుసృజనకర్త సన్మానం            :        డా రాధేశ్యామ్ శుక్ల, 
                                                        ప్రొ ఋషభ్ దేవ్ శర్మ
                                                        ప్రొ ఎం వెంకటేశ్వర్
12     అతిథుల సన్మానం                    :        డా హేమలత కుటుంబ సభ్యులు
13      ప్రియే చారు శీలే - సమీక్ష           :        డా వెన్నా వల్లభ రావు
14      శుభాశీషులు                                 :        శ్రీ డీ దేవానంద రెడ్డి
15      కవి స్పందన                          :        ప్రొ ఋషభ్ దేవ్ శర్మ
16      అనుసృజనకర్త స్పందన             :        డా భాగవతుల హేమలత   
17      అధ్యక్షోపన్యాసం                      :        ప్రొ ఎం వెంకటేశ్వర్
18      వందన సమర్పణ                    :        డా నండూరి రాజగోపాల్
                                         : శుభం : 

' प्रिये चारुशीले ' काव्यसंग्रह लोकार्पण समारोह :
 दिनांक 1 अक्तूबर 2013
सायं 6 बजे, होटल ईलापुरम, विजयवाड़ा ।
                                     
                                                कार्यक्रम
1       अतिथियों का मंच पर आह्वान       :         डॉ बी हेमलता
2       सरस्वती वंदना                            :         सुश्री श्रीललिता
3       दीप प्रज्वलन                               :         मंचासीन अतिथि गण
4       अतिथियों का पुष्प गुच्छ से स्वागत :         आयोजन समिति के सदस्य
5       स्वागत भाषण                             :         डॉ बी  हेमलता
6       मंचासीन अतिथियों का  परिचय     :         प्रो एम वेंकटेश्वर
                                                                   डॉ बी हेमलता                  
7       प्रिये चारु शीले - संग्रह का परिचय   :         श्री एन राजगोपाल
8       प्रिये चारु शीले का लोकार्पण          :         डॉ राधेश्याम शुक्ला
9       लोकार्पणकर्ता के उद्गार                 :         डॉ राधेश्याम शुक्ला
10     कविता पाठ                                :         प्रो ऋषभदेव शर्मा
                                                                   डॉ बी हेमलता
11     कवि सम्मान                               :         प्रो एम वेंकटेश्वर
                                                                   डॉ बी हेमलता
12     अनुवादिका सम्मान                      :         डॉ ऋषभदेव शर्मा
                                                                   प्रो एम वेंकटेश्वर
13     मंचासीन अतिथियों का सम्मान      :         डॉ बी हेमलता ( परिजन )
14     प्रिये चारु शीले - समीक्षा               :         डॉ वी वल्लभ राव
15     शुभाशीष                                   :         श्री देवानंद रेड्डी       
16     शुभाशंसा                                   :         डॉ जी नीरजा
17     कवि का प्रतिस्पन्दन                     :         प्रो ऋषभदेव शर्मा
18     अनुवादिका का प्रतिस्पन्दन            :         डॉ बी हेमलता
19     अध्यक्षीय वक्तव्य                          :         प्रो एम वेंकटेश्वर

20     धन्यवाद ज्ञापन                            :         श्री एन राजगोपाल 

शनिवार, 28 सितंबर 2013

निमंत्रण : 'प्रेम बना रहे' के एक और तेलुगु अनुवाद 'प्रिये चारुशीले' का लोकार्पण 1/10/2013 को

निमंत्रण
डॉ.भागवतुल हेमलता द्वारा अनूदित काव्य ‘प्रिये चारुशीले’ का लोकार्पण समारोह
समारोह स्थल : होटल इलापुरम कॉन्फ्रेंस हाल, गांधीनगर, विजयवाडा
दिनांक : 1.10.2013, मंगलवार
समय : सायं 6 बजे

अध्यक्ष :                 प्रो.एम.वेंकटेश्वर,
पूर्व अध्यक्ष, हिंदी विभाग, अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय,हैदराबाद

लोकार्पणकर्ता :                   डॉ.राधेश्याम शुक्ल,
संपादक, ‘भास्वर भारत’, हैदराबाद

मुख्य अतिथि/ मूल रचनाकार : प्रो.ऋषभदेव शर्मा,
अध्यक्ष, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदरबाद

विशिष्ट अतिथि :           श्री डी.देवानंद रेड्डी,
जिला शिक्षा अधिकारी, कृष्णा जिला

विश्लेषक :                डॉ.वेन्ना वल्लभराव,
अध्यक्ष, हिंदी विभाग, आंध्र लॉयोला कॉलेज

                        श्री नंडूरि राजगोपाल, संपादक, चिनुकु
अनुवादक के उद्गार :        डॉ.भागवतुल हेमलता

संयोजन :                चिनुकु पब्लिकेशन्स, दत्ता’स नया बाजार, राज युवराज थियेटर्स के सामने, गांधीनगर, विजयवाडा. मोबाइल – 9848132208

सोमवार, 26 अगस्त 2013

ప్రొ.ఋషభ్ దేవ్ శర్మ కవితల అనువాదం ‘ప్రేమ ఇలా సాగిపోనీ’ ఆవిష్కరణ

ఎడమ నుండి : లలితా గాయింకా, డా.పూర్ణిమ శర్మ, శ్యాంసుందర్ గాయింక, డా.ఋషబ్ దేవ్ శర్మ, జి. పరమేశ్వర్, డా.జే.ఎల్.రెడ్డీ,
డా.రాదేశ్యం శుకల్, డా.ఎం.వెంకటేశ్వర్, డా.హేమ్రాజ్ మీణా, రవి శ్రీవాస్తవ్ మరియు ఓంప్రక్ష గాయింకా 

భారత దేశం లాంటి బహు భాషా సమాజం లో నేడు అనువాద ప్రక్రియ ఎంతో అవసరమైనదే కాక, ప్రయోజనకరమైనది. నిజానికి అనువాదమనే ఈ ప్రక్రియ విభిన్న భాషల మధ్య సేతు నిర్మాణ కార్యం లాంటిది. అనువాద ప్రక్రియలలో విశేషించి, సాహిత్యానువాదం ప్రత్యేకమైన వైశిష్ట్యాన్నిసంతరించుకోవటానికి కారణం, అది రెండు సాంప్రదాయాలను, సంస్కృతులనూ సామాజిక-సాంస్కృతిక వారసత్వ తర్జుమా అని ఆంగ్లం మరియు విదేశీ భాషా విశ్వవిద్యాలయం, హింది విభాగపు పూర్వ అధ్యక్షులు ప్రొ.యం. వెంకటేశ్వర్ గతం లో హైదరాబాదులో కమలాగోయింకా ఫౌండేషన్ వారు ఏర్పాటు చేసిన ఒక సాహితీ సమావేశానికి అధ్యక్షత వహిస్తూ ప్రొ. ఋషభ్ దేవ్ శర్మ హింది కావ్యకృతి ‘ప్రేమ్ బానా రహే’ తెలుగు అనువాదం ‘ప్రేమ ఇలా సాగిపోనీ’ ఆవిష్కరణ సందర్భంగా అన్నారు. తొలుత అనువదించబడిన కావ్యకృతి గురించి ప్రసంగిస్తూ, ఈ కావ్యకృతిలో కవి ప్రేమ యొక్క విభిన్న దశలనూ, అతి సునిశితమైన సూక్షమైన అనుభూతులనూ మరియు ఉదాత్తమైన పరిణామాలనూ అతి మనోహరంగా చిత్రీకరించారని తన అభిప్రాయాన్ని వ్యక్తం చేశారు. 

జి.పరమేశ్వర్ ద్వారా అనువదించబడిన ఈ కావ్య సంగ్రహాన్ని గీతా దేవి గోయింకా అనువాద పురస్కార గ్రహీత ప్రొ. జె.యల్ రెడ్డి ఆవిష్కరించగా, పుస్తకపు తొలి ప్రతిని డా.పూర్ణిమా శర్మ స్వీకరించారు. కార్యక్రమ ఆరంభం లో ఆవిష్కృత పుస్తకం గురించి పరిచయం చేస్తూ ప్రొ. ఋషభ్ దేవ్ శర్మ మానవుని సామాజీకరణ లక్ష్యం గా ప్రేమ భావం యొక్క ప్రాధాన్యాన్ని ప్రతిపాదించే ఈ కావ్యకృతి ‘ప్రేమ్ బానా రహే’ గత సంవత్సరం ప్రచురింప బడినదనీ దానికి ప్రభావితులైన అనుభవజ్ఞుడైన తెలుగు అనువాదకులు, హింది భాషా సేవకులూ అయిన జి. పరమేశ్వర్ ఆత్మప్రేరణ తో, కవితలను అనువదించారని అన్నారు. తొలుత అనువాదకునికి కృతజ్ఞతలు తెలుపుతూ, పుష్పగుఛం సమర్పించి సన్మానించారు.

అనువాదకులు పరమేశ్వర్ మాట్లాడుతూ, ‘ప్రేమ్ బానా రహే’ కవితలు అతి సహజమైనవి, ప్రభావోత్తేజకమైనవి అనీ, ఐతే వీటిలో పౌరాణిక, శాస్త్రీయ మరియూ ఆధ్యాత్మిక సందర్భాలు లోతుగా ఇమిడివుండటం చేత అనువాదకునికి ఈ కావ్య సంగ్రహపు అనువాద కార్యం సవాలుగా నిలుస్తుంది అని అన్నారు. తదుపరి తన అనువాద అనుభవాలను వెల్లడిస్తూ, జానపద సాంస్కృతిక సందర్భాలనుగూర్చి , జనపద శబ్దాల యొక్క భాషా పరమైన ప్రయోగాలను ఎప్పటికప్పుడు రచయితతో చర్చించి అనువదించానని వివరించారు. 

ఈ సందర్భంగా శ్యాంసుందర్ గోయంకా, లలితా గోయంకా, డా. రాధేశ్యామ్ శుక్ల్, ప్రొ. హేంరాజ్ మీణా, రవి శ్రీవాస్తవ్ మరియూ ఓంప్రకాశ్ గోయాంకా కూడా వేదికనలంకరించారు. సభాగారం లో ఆసీనులైన సాహిత్యకారులు, పాత్రికేయులు మరియూ హింది ప్రియులూ, కవికి, అనువాదకుకునికీ శుభాకాంక్షలు తెలియ చేశారు. 

- భాగవతుల హేమలత
403, శ్రీ రాంప్రసాద్ రెసిడెన్సీ, 
ఓల్డ్ ప్రతిభా నికేతన్ స్ట్రీట్, 
మాచవరం, విజయవాడా – 520 004

हिंदी लिप्यंतरण 

प्रॊ.ऋषभ् देव शर्म कवितल अनुवादं ‘प्रेम इला सागिपोनी’ आविष्करण

भारत देशं लांटि बहु भाषा समाजं लो नेडु अनुवाद प्रक्रिय एंतो अवसरमैनदे काक, प्रयोजनकरमैनदि. निजानिकि अनुवादमने ई प्रक्रिय विभिन्न भाषल मध्य सेतु निर्माण कार्यं लांटिदि. अनुवाद प्रक्रियललो विशेषिंचि, साहित्यानुवादं प्रत्येकमैन वैशिष्ट्यान्नि संतरिंचुकोवटानिकि कारणं, अदि रॆंडु सांप्रदायालनु, संस्कृतुल सामाजिक-सांस्कृतिक वारसत्व तर्जुमा अनि आंग्लं मरियु विदेशी भाषा विश्वविद्यालयं, हिंदि विभागपु पूर्व अध्यक्षुलु प्रॊ.एम. वॆंकटेश्वर् गतं लो हैदराबादुलो कमलागोयिंका फौंडेषन् वारु एर्पाटु चेसिन ऒक साहिती समावेशानिकि अध्यक्षत वहिस्तू प्रॊ. ऋषभ् देव शर्म हिंदि काव्यकृति ‘प्रेम बाना रहे’ तॆलुगु अनुवादं ‘प्रेम इला सागिपोनी’ आविष्करण संदर्भंगा अन्नारु. तॊलुत अनुवदिंचबडिन काव्यकृति गुरिंचि प्रसंगिस्तू, ई काव्यकृतिलो कवि प्रेम यॊक्क विभिन्न दशलनू, अति सुनिशितमैन सूक्षमैन अनुभूतुलनू मरियु उदात्तमैन परिणामालनू अति मनोहरंगा चित्रीकरिंचारनि तन अभिप्रायान्नि व्यक्तं चेशारु. 

जी.परमेश्वर् द्वारा अनुवदिंचबडिन ई काव्य संग्रहान्नि गीता देवि गोयिंका अनुवाद पुरस्कार ग्रहीत प्रॊ. जॆ.यल् रॆड्डि आविष्करिंचगा, पुस्तकपु तॊलि प्रतिनि डा.पूर्णिमा शर्म स्वीकरिंचारु. कार्यक्रम आरंभं लो आविष्कृत पुस्तकं गुरिंचि परिचयं चेस्तू प्रॊ. ऋषभ् देव् शर्म मानवुनि सामाजीकरण लक्ष्यं गा प्रेम भावं यॊक्क प्राधान्यान्नि प्रतिपादिंचे ई काव्यकृति ‘प्रेम् बाना रहे’ गत संवत्सरं प्रचुरिंप बडिनदनी दानिकि प्रभावितुलैन अनुभवज्ञुडॆॖन तॆलुगु अनुवादकुलु, हिंदि भाषा सेवकुलू अयिन जि. परमेश्वर् आत्मप्रेरण तो, कवितलनु अनुवदिंचारनि अन्नारु. तॊलुत अनुवादकुनिकि कृतज्ञतलु तॆलुपुतू, पुष्पगुछं समर्पिंचि सन्मानिंचारु.

अनुवादकुलु परमेश्वर् माट्लाडुतू, ‘प्रेम् बाना रहे’ कवितलु अति सहजमैनवि, प्रभावोत्तेजकमैनवि अनी, ऐते वीटिलो पौराणिक, शास्त्रीय मरियू आध्यात्मिक संदर्भालु लोतुगा इमिडिवुंडटं चेत अनुवादकुनिकि ई काव्य संग्रहपु अनुवाद कार्यं सवालुगा निलुस्तुंदि अनि अन्नारु. तदुपरि तन अनुवाद अनुभवालनु वॆल्लडिस्तू, जानपद सांस्कृतिक संदर्भालनुगूर्चि , जनपद शब्दाल यॊक्क भाषा परमैन प्रयोगालनु ऎप्पटिकप्पुडु रचयिततो चर्चिंचि अनुवदिंचाननि विवरिंचारु. 

ई संदर्भंगा श्यांसुंदर् गोयंका, ललिता गोयंका, डा. राधेश्याम् शुक्ल्, प्रॊ. हेंराज् मीणा, रवि श्रीवास्तव् मरियू ओंप्रकाश् गोयांका कूडा वेदिकनलंकरिंचारु. सभागारं लो आसीनुलैन साहित्यकारुलु, पात्रिकेयुलु मरियू हिंदि प्रियुलू, कविकि, अनुवादकुकुनिकी शुभाकांक्षलु तॆलिय चेशारु. 

- भागवतुल हेमलत
403, श्री रांप्रसाद् रॆसिडॆन्सी, 
ओल्ड् प्रतिभा निकेतन् स्ट्रीट्, 
माचवरं, विजयवाडा – 520 004

शनिवार, 17 अगस्त 2013

ऋषभ देव शर्मा की कविताओं का अनुवाद ‘प्रेमा इला सागिपोनि’ लोकार्पित

बाएँ से – ललिता गोइन्का, डॉ. पूर्णिमा शर्मा, श्याम सुंदर गोइन्का, डॉ. ऋषभ देव शर्मा, जी. परमेश्वर, 
डॉ. जे.एल. रेड्डी, डॉ. राधेश्याम शुक्ल, डॉ. एम. वेंकटेश्वर, डॉ. हेमराज मीणा, रवि श्रीवास्तव और 
ओमप्रकाश गोइन्का.

“भारत जैसे बहुभाषिक समाज में अनुवाद अनेक प्रकार से आवश्यक और उपादेय है. अनुवाद वास्तव में अलग अलग भाषाओं के बीच पुल बनाने के काम जैसा है. उसमें भी साहित्यिक अनुवाद इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है कि वह दो भाषा-समाजों को एक दूसरे की सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत के ताने-बाने से जोड़ता है.” ये विचार अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.एम.वेंकटेश्वर ने गत दिनों यहाँ आयोजित कमला गोइन्का फाउंडेशन के साहित्यिक समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रो.ऋषभदेव शर्मा की हिंदी काव्यकृति ‘प्रेम बना रहे’ के तेलुगु अनुवाद ‘प्रेमा इला सागिपोनि’ के लोकार्पण के अवसर पर व्यक्त किए. प्रो.एम.वेंकटेश्वर ने आगे कहा कि अनूदित काव्यकृति में कवि ने प्रेम की विभिन्न मनोदशाओं, सूक्ष्म अनुभूतियों और उदात्त परिणतियों का हृदयस्पर्शी चित्रण किया है. 

जी.परमेश्वर द्वारा अनूदित इस काव्यकृति का लोकार्पण ‘गीतादेवी गोइन्का अनुवाद पुरस्कार’ ग्रहीता प्रो.जे.एल.रेड्डी ने किया तथा पुस्तक की पहली प्रति डॉ.पूर्णिमा शर्मा ने स्वीकार की. 

आरंभ में विमोच्य पुस्तक का परिचय देते हुए ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि मनुष्य के समाजीकरण के लिए प्रेमभाव की सर्वोपरिता का प्रतिपादन करने वाली उनकी हिंदी काव्यकृति ‘प्रेम बना रहे’ गत वर्ष प्रकाशित हुई थी जिससे प्रभावित होकर वरिष्ठ तेलुगु अनुवादक और हिंदीसेवी जी.परमेश्वर ने आत्मप्रेरणा से उस संग्रह की सारी कविताओं का तेलुगु में अनुवाद करके यह कृति ‘प्रेमा इला सागिपोनि’ प्रकाशित की है. उन्होंने अनुवादक के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए पुष्प स्तवक देकर उनका सम्मान भी किया. 

अनुवादक जी.परमेश्वर ने बताया कि ‘प्रेम बना रहे’ की कविताएँ सहज और प्रभावपूर्ण हैं लेकिन इनमें निहित मिथकीय, पौराणिक, शास्त्रीय और साहित्यिक संदर्भ अपनी गहनता के कारण अनुवादक के लिए चुनौती पेश करते हैं. उन्होंने यह खुलासा भी किया कि मैंने लोकसांस्कृतिक संदर्भों के अलावा बहुतायत में लोक शब्दावली के बोलीगत प्रयोगों का अनुवाद समय-समय पर मूल रचनाकार से चर्चा के आधार पर किया है. 

इस अवसर पर श्यामसुंदर गोइन्का, ललिता गोइन्का, डॉ.राधेश्याम शुक्ल, प्रो.हेमराज मीणा, रवि श्रीवास्तव तथा ओमप्रकश गोइन्का भी मंच पर उपस्थित थे. सभागार में विद्यमान साहित्यकारों, पत्रकारों और हिंदीप्रेमियों ने कवि और अनुवादक को बधाई दी. 

अनुवादक जी.परमेश्वर को पुष्प स्तवक भेंट करते हुए प्रो.ऋषभदेव शर्मा. 



LOKARPAN : 'PREMAA ILAA SAAGIPONI'' :11/8/2013 by Slidely - Slideshow maker

बुधवार, 14 अगस्त 2013

गोइन्का पुरस्कार व सम्मान समारोह हैदराबाद में संपन्न



बाएँ से - डॉ. राधेश्याम शुक्ल, श्यामसुंदर गोइन्का, डॉ. ऋषभदेव शर्मा, डॉ. जे.एल.रेड्डी, रवि श्रीवास्तव, डॉ. एम वेंकटेश्वर, डॉ. हेमराज मीणा और ओमप्रकाश गोइन्का  



शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

आमंत्रण : ''प्रेमा इला सागिपोनी'' का लोकार्पण 11 अगस्त 2013 को

महोदय/ महोदया,
सप्रेम नमन.

आशा है, सानंद होंगे.

वृत्तान्त यह है कि आगामी रविवार ११ अगस्त २०१३ को सायंकाल ५ बजे से पोट्टी श्रीरामुलु तेलुगु विश्वविद्यालय, नामपल्ली, हैदराबाद के सभागार में 'कमला गोइन्का फाउन्डेशन' द्वारा एक साहित्यिक समारोह का आयोजन किया जा रहा है. इस समारोह में आपकी शुभकामनाओं के फलस्वरूप मुझे भी ''रमादेवी गोइन्का हिंदी साहित्य सम्मान (आंध्र प्रदेश के वरिष्ठ हिंदी सेवी व साहित्यकार को दिया जाने वाला सम्मान)'' प्रदान किया जाने वाला है. साथ ही, प्रतिष्ठित अनुवादक श्री जी. परमेश्वर द्वारा मेरी पांचवी काव्यकृति ''प्रेम बना रहे'' के ''प्रेमा इला सागिपोनी'' शीर्षक तेलुगु अनुवाद को लोकार्पित भी किया जाएगा.

इस अवसर पर आपकी उपस्थिति मुझे प्रेरित और प्रोत्साहित करेगी.

प्रेम बना रहे!

स्नेहाधीन
ऋषभ देव शर्मा