गुरुवार, 24 अगस्त 2017

'समकालीन सरोकार और साहित्य' लोकार्पित



हैदराबाद, 20 अगस्त,2017. 

कादंबिनी क्लब-हैदराबाद एवं साहित्य मंथन के संयुक्त तत्वावधान में रविवार, 20 अगस्त को हिंदी प्रचार सभा, नामपल्ली परिसर में क्लब की 301वीं गोष्ठी एवं पुस्तक लोकार्पण समारोह अरबामिंच विश्वविद्यालय, इथियोपिया के आचार्य डा० गोपाल शर्मा की अध्यक्षता में संपन्न हुआ .क्लब की अध्यक्ष डा० अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी संयोजक मीना मुथा ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि इस अवसर पर मुख्य अतिथि कानपुर से पधारे वरिष्ठ गीतकार बृजनाथ श्रीवास्तव और अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य डा० एम० वेंकटेश्वर के साथ डा० अहिल्या मिश्र और डा० ऋषभदेव शर्मा मंचासीन हुए. संचालन प्रवीण प्रणव और मीना मुथा ने किया.

समारोह के पहले सत्र में मंचासीन अतिथियों ने तालियों की गूँज के बीच ‘पुष्पक’ के पैंतीसवें अंक को लोकार्पित किया. विमोचित पत्रिका का परिचय देते हुए कार्यकारी संपादक अवधेश कुमार सिन्हा ने कहा कि हर बढ़ते अंक से साथ ‘पुष्पक’ अधिक से अधिक पाठकों तक अपनी पहुँच बना रहा है तथा स्थानीय रचनाकारों के साथ-साथ भारत भर से सशक्त रचनाएँ प्राप्त हो रही हैं. संपादकीय को ‘पुष्पक’ की विशेषता बताते हुए उन्होंने कहा कि कहानी, गीत, कविता, ग़ज़ल, संस्मरण, समीक्षा, लघु कथा, आलेख, पुस्तक परिचय आदि विधाओं में बेहतरीन रचनाओं का चुनाव संपादक मंडल की दूरदृष्टि का परिचायक है.

दूसरे सत्र में डा० ऋषभदेव शर्मा एवं डा० जी० नीरजा द्वारा संपादित पुस्तक ‘समकालीन सरोकार और साहित्य’ को मुख्य अतिथि प्रो० एम० वेंकटेश्वर ने लोकार्पित किया. लोकार्पण वक्तव्य में डा० एम० वेंकटेश्वर ने कहा कि साहित्य जटिल अनुशासन है तो शोधपरक लेखन जटिलतर है. उन्होंने अध्यापकों और शोधार्थियों से लेकर सामान्य जनता तक में स्वाध्याय की प्रवृत्ति के अकाल पर चिंता जताते हुए कहा कि साहित्य कभी चलकर मनुष्य के पास नहीं जाएगा, हमें मनुष्य को साहित्य के पास जाने को प्रेरित करते रहना पड़ेगा. उन्होंने विमोचित पुस्तक से कई लेखों का उद्धरण देते हुए उनकी गुणवत्ता की चर्चा की और उसे न सिर्फ शोधार्थियों के लिए बल्कि सभी साहित्य प्रेमियों के किए पठनीय और संग्रहणीय बताया. साथ ही उन्होंने संपादकों की अति उदारता की आलोचना करते हुए उन्हें चयन में निर्मम होने की सलाह भी दी. 
लोकार्पित पुस्तक की प्रथम प्रति डा० अहिल्या मिश्र को उनकी सप्ततिपूर्ति की पूर्ववेला के उपलक्ष्य में समर्पित की गई. हिंदी साहित्य सेवा में तन-मन-धन से समर्पित वरिष्ठ स्त्रीविमर्शकार लेखिका, नाटककार, कहानीकार, कवयित्री, निबंधकार और संपादक डा० अहिल्या मिश्र को जीवन के 70वें वर्ष के पायदान पर शुभकामनाएँ देते हुए ‘साहित्य मंथन’ की ओर से सारस्वत सम्मान से अलंकृत किया गया. इसके अंतर्गत अभिनंदन पत्र, शाल, माला, श्रीफल, लेखनी और पुस्तक समर्पित की गई. अभिनंदन पत्र एवं समर्पण वाक्य का वाचन डा० ऋषभदेव शर्मा ने किया.
डा० अहिल्या मिश्र ने सम्मान-स्वीकृति-वक्तव्य में कहा कि कादंबिनी क्लब की यह 301वीं गोष्ठी अविस्मरणीय रहेगी. उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि ‘साहित्य मंथन’ के बहाने समशील साहित्यिक बिरादरी ने आज जो सम्मान दिया है, इसमें निहित प्रेम में सारे कलुष और ताप को हरने की शक्ति है अतः मैं इस आत्मीय अभिनंदन को शिरोधार्य करती हूँ. बृजनाथ श्रीवास्तव एवं अन्य वक्ताओं ने डा० अहिल्या मिश्र को बधाई देते हुए कहा कि वे सही अर्थ में साहित्य और सारस्वत वातावरण की सूत्रधार हैं.
डा० गोपाल शर्मा ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि अंग्रेजी और विश्व की अन्य भाषाओं में शोधलेखन में संदर्भ देने की शैलियों पर अनेक पुस्तकें हैं लेकिन हिंदी में इस तरह की कोई प्रामाणिक पुस्तक नहीं है अतः लोकार्पित पुस्तक में इस अभाव की पूर्ति का भी एक विनम्र प्रयास शामिल है. उन्होंने याद दिलाया कि इस पुस्तक में स्थानीय व राष्ट्रीय लेखकों के 30 शोधपरक आलेख शामिल हैं. उन्होंने शोधार्थियों से कहा कि शोधपत्र लिखने से पहले विषय की विस्तृत समझ के लिए ज्यादा से ज्यादा साहित्यकारों को पढ़ें. इसके बाद सहयोगी लेखकों को पुस्तक की लेखकीय प्रतियाँ भेंट की गईं.

आरंभ में शहर के वरिष्ठ पत्रकार, कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता, हिंदी साहित्यसेवी डा० हरिश्चंद्र विद्यार्थी के दुखद निधन पर मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई. शुभ्रा मोहंतो द्वारा सस्वर प्रस्तुत निराला रचित सरस्वती वंदना के पश्चात अतिथियों का स्वागत करते हुए डा० अहिल्या मिश्र ने कहा कि गोष्ठी की निरंतरता सदस्यों की नियमित उपस्थिति से ही संभव हुई है तथा संस्था हिंदी साहित्य की सेवा, प्रचार-प्रसार में पूर्ण समर्पण से कार्य कर रही है.

अंतिम सत्र में भँवरलाल उपाध्याय के संचालन में कवि गोष्ठी संपन्न हुई. बृजनाथ श्रीवास्तव, प्रो० गोपाल शर्मा, डा० ऋषभदेव शर्मा और डा० अहिल्या मिश्र मंचासीन हुए. देवाप्रसाद मायला, शशि राय, ज्योति नारायण, डा० बी० बालाजी, दीपक दीक्षित, मिलन बिश्नोई, संतोष कुमार रज़ा, डा० ऋषभदेव शर्मा, डा० अहिल्या मिश्र, एल० रंजना, दर्शन सिंह, सरिता सुराणा जैन, डा० गीता जांगिड़, प्रवीण प्रणव, चिराग राजा, अवधेश कुमार सिन्हा, श्रीमन्नारायण विराट चारी, मीना मुथा, भँवरलाल उपाध्याय और डा० रियाजुल अंसारी ने काव्य पाठ किया. बृजनाथ श्रीवास्तव ने अध्यक्षीय काव्यपाठ किया. डा० मदनदेवी पोकरणा, डा० सीता मिश्र, कुंजबिहारी गुप्ता, दयालचंद अग्रवाल, लक्ष्मी निवास शर्मा, ज्योतिष कुमार यादव, आशा मिश्र, श्रीसेन कुमार भारती, चेन्नकेशव रेड्डी, शिवकुमार तिवारी कोहिर, राघवेंद्र, शोभा महाबल, डा० सिरिपुरपु तुलसी देवी, श्रुतिकांत भारती, लीला बजाज, वर्षा कुमारी, डा० श्रद्धा तिवारी, डा० सुपर्णा मुखर्जी, टी० निरंजन, बनवारीलाल मीणा, भूपेंद्र मिश्र आदि की उपस्थिति रही.  मीना मुथा के आभार के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ.