सोमवार, 1 दिसंबर 2014

[संगोष्ठी] मध्यकालीन भारतीय साहित्य की मुक्तक रचनाएँ






हैदराबाद, 1 दिसंबर, 2014.
आज यहाँ सेंट पायस क्रास स्नातक एवं स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय, नाचाराम और केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के संयुक्त तत्वावधान में ''मध्यकालीन भारतीय साहित्य की मुक्तक रचनाएँ'' विषयक दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी महाविद्यालय के प्रेक्षागृह में आरंभ हुई. संयोजक डॉ. राज्य लक्ष्मी ने सबका भावभीना स्वागत किया.

उद्घाटन समारोह ढाई बजे शुरू हुआ जिसमें डॉ. राधेश्याम शुक्ल और प्रो. शुभदा वांजपे ने अपने विचार रखे तथा डॉ. श्रीराम परिहार ने बीज वक्तव्य दिया. 

पहले विचार सत्र में डॉ. ऋषभ देव शर्मा ने मध्यकालीन मुक्तक साहित्य की प्रेरणा के रूप में विशेष रूप से संस्कृत के कवि ''भर्तृहरि'' के शतकों पर चर्चा की. डॉ. अश्वत्थ नारायण ने ''बिहारी''  के मुक्तक काव्य की विवेचना की. अध्यक्षता करते  हुए प्रो. वाई. वेंकट रमण राव ने कहा कि भारतीय कविता के आकर ग्रंथों के अंतर्गत रामायण और महाभारत के आख्यानों की ही भाँति भर्तृहरि की शतकत्रयी को भी गिना जाना चाहिए क्योंकि नीति, शृंगार और वैराग्य विषयक उनकी उक्तियों ने शताब्दियों से रचनाकारों को प्रभावित किया है.

कल तीन विचार सत्र और होंगे तथा समापन सत्र पौने तीन बजे होगा.

प्रो. एम. वेंकटेश्वर जी ने प्रथम विचार सत्र के फोटो मुहैया कराए हैं जो धन्यवाद सहित यहाँ दर्शित हैं.


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें