‘संकल्पना’ का लोकार्पण करते हुए डॉ. अहिल्या मिश्र. साथ में, डॉ. मंजु शर्मा, डॉ. एम. वेंकटेश्वर, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, राजेश प्रसाद, प्रो. आनंद राज वर्मा, प्रो. ऋषभदेव शर्मा एवं आलोक राज सक्सेना. |
सुधी श्रोता-समुदाय : विनीता शर्मा, डॉ. रमा द्विवेदी, मीना मुथा, नरेंद्र राय, डॉ. बी. सत्यनारायण एवं अन्य |
हैदराबाद, 18 जून 2016 (प्रेस विज्ञप्ति).
साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘साहित्य मंथन’ के तत्वावधान में आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी के नामपल्ली स्थित सभाकक्ष में स्व. चंद्रमौलेश्वर प्रसाद कृत ‘वृद्धावस्था विमर्श’ तथा ऋषभदेव शर्मा और गुर्रमकोंडा नीरजा द्वारा संपादित ‘संकल्पना’ शीर्षक दो पुस्तकों का लोकार्पण समारोह भव्यतापूर्वक संपन्न हुआ जिसमें उपस्थित विद्वानों ने हिंदी साहित्य और विमोचित पुस्तकों पर विचार व्यक्त किए.
अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के भारत अध्ययन विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. एम. वेंकटेश्वर ने समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए निरंतर बढ़ती जा रही वृद्धों की आबादी के पुनर्वास को इक्कीसवीं शताब्दी की एक प्रमुख चुनौती बताया और विमोचित कृति ‘वृद्धावस्था विमर्श’ को सामयिक तथा प्रासंगिक पुस्तक माना. उन्होंने अनुसंधान के स्तर की गिरावट पर चिंता जताते हुए इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि ‘संकल्पना’ में प्रकाशित ज़्यादातर शोधपत्र अभिनव, मौलिक और उच्च कोटि के हैं.
स्त्रीविमर्श की पैरोकार और आथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया के हैदराबाद अध्याय की संयोजक डॉ. अहिल्या मिश्र ने अध्यक्षीय भाषण में प्राचीन भारतीय समाज में वृद्धों की सम्मानजनक स्थिति की तुलना उनकी वर्तमान हीन दशा से करते हुए विश्वास प्रकट किया कि चंद्रमौलेश्वर प्रसाद की पुस्तक समाज को इस दिशा में नए चिंतन और वृद्धावस्था-नीति के निर्माण की प्रेरणा दे सकती है. दूसरी लोकार्पित पुस्तक ‘संकल्पना’ को उन्होंने शोधार्थियों और शोध निर्देशकों के लिए उपयोगी प्रतिमान की संज्ञा दी.
‘वृद्धावस्था विमर्श’ की प्रथम प्रति स्व. चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के पुत्र राजेश प्रसाद तथा वरिष्ठ शिक्षाविद प्रो. आनंद राज वर्मा ने स्वीकार की. इस अवसर पर डॉ. वर्मा ने चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के व्यक्तिगत गुणों और साहित्यिक देन की चर्चा करते हुए बताया कि उन्होंने उर्दू साहित्यकारों पर केंद्रित समीक्षात्मक लेखन के अलावा विश्व साहित्य की अनेक अमर कहानियों का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया था.
समारोह की समन्वयक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने अतिथियों और विमोच्य कृतियों का परिचय देते हुए बताया कि ‘वृद्धावस्था विमर्श’ विश्वविख्यात अस्तित्ववादी स्त्रीविमर्शकार सिमोन द बुवा के ग्रंथ ‘द ओल्ड एज’ का हिंदी सारानुवाद है तथा ‘संकल्पना’ में दक्षिण भारत के 39 शोधार्थियों के शोधपरक आलेख सम्मिलित हैं जिनका सबंध विविध समकालीन विमर्शों से है. डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने यह जानकारी भी दी कि यथाशीघ्र चंद्रमौलेश्वर प्रसाद द्वारा अनूदित कहानियों को भी पुस्तकाकार प्रकाशित किया जाएगा और ‘संकल्पना’ की अगली कड़ी के रूप में शोधपत्रों का दूसरा संकलन ‘अन्वेषी’ शीर्षक से प्रस्तुत किया जाएगा.
आरंभ में टी. सुभाषिणी ने सरस्वती-वंदना की और डॉ. पूर्णिमा शर्मा, वर्षा कुमारी, मोनिका शर्मा एवं वी. कृष्णा राव ने उत्तरीय प्रदान कर अतिथियों का स्वागत किया. संतोष विजय मुनेश्वर ने स्वागत-गीत और अर्चना पांडेय ने वर्षा-गीत सुनाकर समां बाँध दिया. संचालन डॉ. मंजु शर्मा ने किया.
समारोह में नाट्यकर्मी विनय वर्मा, वैज्ञानिक डॉ. बुधप्रकाश सागर, राजभाषा अधिकारी लक्ष्मण शिवहरे, सामाजिक कार्यकर्ता द्वारका प्रसाद मायछ, रोहित जायसवाल, राजेंद्र परशाद, गुरु दयाल अग्रवाल, विनीता शर्मा, नरेंद्र राय, कुमार लव, संपत देवी मुरारका, डॉ. करन सिंह ऊटवाल, डॉ. सीमा मिश्र, डॉ. बनवारी लाल मीणा, डॉ. जी. प्रवीणा, डॉ. रमा द्विवेदी, डॉ. वेमूरि हरि नारायण शर्मा, डॉ. बी. सत्य नारायण, डॉ. मिथलेश सागर, डॉ. रियाज़ अंसारी, डॉ. सुमन सिंह, डॉ. श्री ज्ञानमोटे, डॉ. महादेव एम. बासुतकर, डॉ. अर्पणा दीप्ति, डॉ. बी. बालाजी, वी. देवीधर, मोहम्मद आबिद अली, पी. पावनी, अशोक कुमार तिवारी, पूनम जोधपुरी, भंवर लाल उपाध्याय, जी. परमेश्वर, सरिता सुराणा, सुस्मिता घोष और गौसिया सुल्ताना सहित विविध विश्वविद्यालयों और साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े शताधिक विद्वान, लेखक, शोधार्थी और हिंदीसेवी सम्मिलित हुए.
अंत में प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने ‘प्रेम बना रहे!’ कहते हुए आयोजन में सहयोग के लिए सबका आभार व्यक्त किया।
प्रस्तुति : डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, सह संपादक : ‘स्रवंति’,
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद -500 004 (तेलंगाना)
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