डॉ. निशंक के साहित्य का समग्र विवेचन
तत्त्वदर्शी निशंक'
समीक्षक : डॉ सुषमा देवी
जब एक साहित्यकार मनुष्य की संवेदना को जीवन के थपेड़ों में भी संजोए रखने का साहस करे तो समझ जाना चाहिए कि वह हर विपरीत दिशा को मोड़ने में सक्षम है | जीवन तत्वों को अपनी रचनाधर्मिता में विन्यस्त करते हुए ‘तत्वदर्शी निशंक’ जब विविध विद्वानों की लेखनी की धार से पार होकर प्रकट होते हैं, तो वे राष्ट्रवादी, विश्व मानवतावादी डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ बनकर कालजयी साहित्यकार बन जाते हैं| भारत देश के वर्तमान शिक्षामंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ का राजनीतिक क्षेत्र में आना, वह भी शिक्षामंत्री के रूप में कार्यरत होना, सोने पर सुहागा हो गया है| क्योंकि भारत के स्वर्णिम वर्तमान एवं भविष्य के लिए ऐसे ही तत्वदर्शी की आवश्यकता है, जो ‘सार सार को गहि रहे, थोथा देइ उड़ाय’ की राह पर चलने का आकांक्षी हो| वे राजनीति के क्षेत्र में एक ऐसे अभिमन्यु हैं , जो चक्रव्यूह के घेरे को तोड़ने में सतत सन्नद्ध हैं| उन्हीं के शब्दों में- ‘दुष्प्रचार की आंधी में भी, निशंक अकेले खड़ा हुआ हूँ| राजनीति के चक्रव्यूह में, अभिमन्यु-सा घिरा हुआ हूँ | (संघर्ष जारी है - पृष्ठ 74)।
‘तत्वदर्शी निशंक’ ग्रंथ को आकार देने में भारत के कई राज्यों के विद्वज्जनों ने सार्थक प्रयत्न किए हैं| इस पुस्तक को छह खंडों में कुछ इस प्रकार विभाजित किया गया है कि साहित्यकार के समस्त गुणों से पाठकों एवं जिज्ञासुओं को परिचित कराया जा सके| खंड - एक में विषय प्रवेश के अंतर्गत गोपाल शर्मा ‘भूमिका दर भूमिका’' में जर्मन दार्शनिक हेगेल का उद्धरण देते हुए कहते हैं, ‘भूमिका किसी परियोजना की घोषणा मात्र है और कोई परियोजना संपूर्ण होने तक कुछ भी तो नहीं है|' (पृष्ठ 23)। इस अंश में रचनाकार निशंक के रचनात्मक वैविध्य को बताते हुए प्रोफेसर गोपाल शर्मा ने निशंक के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत भूमिका बांधी है तथा उन्हें भारतीय एवं विश्व साहित्य में रचनात्मक उद्देश्य के साथ स्थापित किया है| सक्रिय राजनीति के साथ-साथ साहित्यिक क्षेत्र के संघर्षों के बहुविध संतुलन का नाम निशंक है| ’संभावनाओं की तलाश अर्थात लेखक का जीवन मर्म’ शोधपत्र में ग्रंथ की सह-संपादक शीला बालाजी ने रचनाकार निशंक के पारिवारिक, राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक जीवन की गंभीरता से पड़ताल करते हुए इस सन्दर्भ में भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के इस वाक्य को उद्धृत किया है- ‘हिमालय से निकली निशंक की गंगामयी काव्यधारा राष्ट्र निर्माण में नींव का पत्थर बनेगी।’ (पृष्ठ 46 )।
रचनाकार की संवेदनशीलता मात्र समस्याओं के विश्लेषण तक ही सीमित नहीं है, अपितु उसके समाधान की राहों के अन्वेषण में भी तत्पर है। इसलिए ‘जड़ में चेतन तलाशने निकले निशंक की पुस्तक ‘प्रलय के बीच’ असल में निशंकजी की संवेदनाओं का प्रतीक है|’ (पृष्ठ 47)।
खंड दो ‘काव्य जगत’ नाम से अभिहित है, जिसमें चार विद्वानों के शोधपत्र संकलित हैं| प्रो. निर्मला एस. मौर्य द्वारा ‘उद्देश्य की महानता में सौंदर्य का रहस्य’ आलेख में लेखिका ने रचनाकार निशंक की काव्यपंक्तियों के उद्धरण देते हुए उनके काव्य सौंदर्य के हर कोण से पाठक को परिचित कराने का सफल प्रयत्न किया है| काव्य के उदात्त पक्ष को 'प्रतीक्षा' खंडकाव्य की इन पंक्तियों में देखा जा सकता है- ‘खुली हुई हैं आंखें उसकी/ अभी किसी प्रतीक्षा में,/ प्राण पखेरू उड़ा छोड़ जग/ एक नई अन्वीक्षा में|' (पृष्ठ 56)। लेखिका ने रचनाकार की सौंदर्य दृष्टि, निर्वेद भावना, कठोर पहाड़ी जीवन से पलायन करने की पीड़ा को अभिव्यक्ति दी है| कवि निशंक समाज के ढोंग, पाखंड , अनाचार को मानव कल्याण का सबसे बड़ा रोड़ा मानते हैं। लेखक के विश्व मानवतावाद को रचनाधर्मिता का प्राण कहा जाए तो अन्यथा न होगा| लेखिका ने कवि निशंक की कविताओं में प्रयुक्त काव्य के अन्तर्वाह्य सौंदर्य पक्ष को सोदाहरण निरूपित किया है| रस, छंद, अलंकार, रहस्यवादिता से मंडित कवि की कविताओं का सम्यक चित्रण लेखिका ने किया है| लेखिका के शब्दों में- ‘इनकी कविताओं में हमें जिस सौंदर्य के दर्शन होते हैं, वह यथार्थ, समकालीन और समसामयिकता से परिपूर्ण है|' (पृष्ठ66)। डॉ. सुपर्णा मुखर्जी कृत ‘देशप्रेम की चेतना’ आलेख के अंतर्गत कवि निशंक की देशप्रेमयुक्त काव्य रचनाओं की सुरुचिपूर्ण अभिव्यक्ति का विवेचन किया गया है| वीरप्रसू भारतभूमि की माताएँ अपनी संतान को देशसेवा के लिए समर्पित करके कैसे ईश्वर से प्रार्थना करती हैं, इसका उदाहरण कवि की इन पंक्तियों में मिल जाता है- ‘हे ईश्वर मेरे दीपू को/ परम शक्तिशाली कर दो/ रह देश-सेवा में तत्पर/ ममता भी मन में भर दो। (‘प्रतीक्षा’ खंडकाव्य, पृष्ठ 24)। साहित्यकार के त्रिकालदर्शी रूप, स्त्री चेतना के उन्नायक रूप के द्वारा समरसता भाव को लेखिका ने सुदर्शन अभिव्यक्ति दी है- ‘ऐसा क्या कार्य जगत में,/नारी जिसे न कर सकती?/दूजे पर क्यों निर्भर हो वह,/ कष्ट स्वयं निज हर सकती|' (पृष्ठ 71)।
कवि का स्वार्थहीन जीवन देशप्रेम में राष्ट्र के हित हेतु सदैव समर्पित र है| ‘किसी भी देश, समाज, परिवार और संपूर्ण विश्व को नया मार्ग युवा ही दिखा सकता है- ‘मेरे निखिल ‘समर्पण’ से अंकुर/बने हैं तो लो यह ऋतुपर्ण।/मैंने अर्पण में कभी न देखा,/जात - पात क्या कोई वर्ण./ था मेरा यह विश्व समर्पण,/ जिसको सबने ही अपनाया।' (पृष्ठ - 73)। लेखिका ने कवि के राष्ट्रप्रेम को विश्व कल्याणोन्मुखी बताया है।
डॉ. भागवतुल हेमलता कृत ‘है अंधेरा यदि कहीं तो सूर्य से तुम तेज लो’ आलेख में लेखिका ने कवि निशंक की कविता में देश की रक्षा , प्रगति तथा उन्नति हेतु कलम को कृपाण बनाकर पाषाण को भी कर्तव्योन्मुखी बनाने की क्षमता को ढूंढ निकाला है| कवि के काव्य की पावन धार में धरती को स्वर्ग बनाने की क्षमता को दिखाया गया है| ‘संघर्ष जारी है’, ‘समर्पण’, ‘मातृभूमि के लिए’ आदि कविताओं के विवेचन के साथ ही लेखिका ने तेलुगु कवि श्रीश्री द्वारा वर्णित काव्य गुणों को कवि निशंक की कविताओं में पाया है – ‘कदिलेदी कदिलिंचेदी – मारेदी मर्पिंचेदी/ पाडेदी पादिंचेदी – पेनु निद्दुरा वदिलिंचेदी /मुनुमुन्दुकु सांगिंचेदी – परिपूर्णपु ब्रतुकिच्चेदी'। (तेलुगु साहित्य चरित्र, पृष्ठ- 423)। सारांशतः लेखिका ने कवि निशंक की कविता को हिलने-हिलाने , बदलने – बदलवाने, गाने–नींद भगाने, आगे बढ़ाने के साथ ही जीवन की पूर्णता का मर्म कवि कर्म में पाया है|
‘आंधियों में जलता एक शब्द-दीप’ आलेख में डॉ. एन. लक्ष्मीप्रिया ने कवि निशंक का परिचय देते हुए उनकी रचनाओं के उद्देश्य पर प्रकाश डाला है| निशंक की काव्य रचनाओं में शब्द प्रयोग के सौंदर्य को ढूंढते हुए लेखिका ने विविध तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी, अरबी - फारसी, संख्यासूचक, पूर्ण पुनरुक्ति, अपूर्ण पुनरुक्ति शब्द तथा क्रिया रूप आदि की उदाहरण सहित विवेचना की है| लेखिका कविता में संवाद एयर एकालाप के विविध उदाहरण भी प्रस्तुत किए हैं| कवि निशंक ने संवाद शैली में अनेक कविताएँ सृजित की हैं| लेखिका ने रचनाकार के भाषिक बोध को हर कोण से विश्लेषित करते हुए उनकी बहुआयामी रचनाधर्मिता को प्रस्तुत किया है।
खंड –तीन ‘कहानियों का संसार’ में पांच लेखकों ने डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के कहानीकार रूप का विस्तृत विवेचन किया है| लेखिका डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने ‘आदर्श और यथार्थ’ आलेख के अंतर्गत बताया है कि किस प्रकार कहानीकार निशंक विविध कहानियों के माध्यम से भ्रष्टाचार और अमानवीयता की कलई खोलने का कार्य करते हैं| उनकी ‘केदारनाथ आपदा की सच्ची कहानियां’ तथा ‘प्रलय के बीच’ यात्रावृत्त में केदारनाथ में घटित विभीषिका का जीवंत चित्रण हुआ है| ‘उनकी कथनी और करनी में कहीं भी अंतर दिखाई नहीं देता| आपदा पीड़ितों की सहायता करने के लिए निशंक ही नहीं, बल्कि उनकी कहानियों के पात्र भी हमेशा तैयार रहते हैं | (पृष्ठ- 106)। लेखिका ने देवभूमि के प्रति समर्पित कहानीकार डॉ. निशंक की कहानियों में सत्तालोलुपता, महानगरीय समस्या, स्त्री पर होने वाले अत्याचार, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था आदि से जुड़े यथार्थ का विस्तृत विवेचन किया है|
‘समकालीन परिवेश’ से संबद्ध कहानियों में तीव्रतम परिवर्तित युगीन परिप्रेक्ष्य को कहानीकार निशंक के दो कहानी संग्रहों को केंद्र में रखकर डॉ. डॉली ने आद्योपांत विवेचित किया है। वे कहती हैं– चाहे आम आदमी का वर्णन हो या मध्यवर्गीय समस्या, हाशिए का समाज वर्णन हो या बाजारवाद, नई सदी का समाज हो या नैतिक मान्यताओं का विघटन, व्यवस्थाओं के प्रति घोर असंतोष की भावना हो या पारिवारिक विघटन, आम आदमी के जीने की विषम आर्थिक स्थितियां हों, चाहे निराशा और कुंठा हो अथवा राजनीति- अर्थ, धर्म व संस्कृति के बदलते स्वरूप को कहानीकार ने जीवंत अभिव्यक्ति दी है| (पृष्ठ 139)।
कहानीकार निशंक के ‘समाजदर्शन और राष्ट्रवाद’ को ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने उनके ‘एक और कहानी’ , ‘अंतहीन’ और ‘क्या नहीं हो सकता’ कहानी संग्रहों के माध्यम से व्यक्त किया है| लेखक उन्हें प्रेमचंद की परंपरा में खड़े करते हुए मानवीय मूल्यों के प्रबल पक्षधर के रूप में चित्रित करते हैं |
प्रो. श्रीलता विष्णु ने ‘मानवीयता का चतुर चित्रांकन’ आलेख में कहानीकार निशंक के ‘टूटते दायरे’ कहानी संग्रह की विस्तृत व्याख्या की है| बात टूटते दायरे की हो तो वे पहाड़ी जीवन के सौंदर्य एवं विद्रूपता की विसंगति के साथ-साथ भूमंडलीकरण तक टूटते हैं| लेखिका ने रचनाकार के द्रवित मन को टटोलने का प्रयत्न उनकी विविध कहानियों में किया है|
‘टूटता बिखरता समाज बनाम आशावादी स्वर’ आलेख में डॉ. सुषमा देवी ने ‘अंतहीन’, ‘क्या नहीं हो सकता’ तथा ‘एक कहानी और’ कहानी संग्रह की विविध कहानियों को क्रमवार रूप में विश्लेषित किया है| लेखिका ने कहानीकार निशंक के इन तीनों संग्रहों की समस्त कहानियों को आद्योपांत विवेचित करते हुए दुर्दम्य परिस्थितियों में भी रचनाकार के अखंड व्यक्तित्व को विश्व मानवतावाद के सर्वथा योग्य सिद्ध किया है|
खंड - चार ‘उपन्यास सृष्टि’ में डॉ. निशंक के उपन्यासकार रूप का विवेचन किया गया है| डॉ. बी. बालाजी ने ‘पहाड़ी जीवन का ज्वलंत दस्तावेज’ शोधपत्र के अंतर्गत डॉ. निशंक के ‘मेजर निराला’, ‘बीरा’, ‘निशांत’, ‘छूट गया पड़ाव’, ‘प्रतिज्ञा’, ’कृतघ्न’ आदि उपन्यासों को विविध कोणों से विवेचित किया है | इन उपन्यासों में पहाड़ी जीवन की दुर्दमनीयता में भी राष्ट्रभक्ति, समाजसेवा तथा उत्तरदायित्वपूर्ण भावना का सुन्दर विकास दिखाया है| उपन्यासकार ‘निशंक’ द्वारा अपने पात्रों में समाज के प्रति प्रतिबद्धता का भरपूर प्रयोग किया गया है| वे भावी पीढ़ी से सामाजिक विद्रूपताओं से समाज की मुक्ति की पूर्ण अपेक्षा करते हैं| लेखक ने उपन्यासकार निशंक की उपन्यास दृष्टि में समाजसुधार एवं पर्यावरणिक शुद्धीकरण पर अधिक जोर दिया है और दर्शाया है कि पहाड़ी जीवन की कठिनाइयों के कारण नई पीढ़ी के पलायन, शिक्षा के अभाव, स्त्री शोषण तथा शराब तस्करी में वहां की सुंदर संस्कृति विलीन होती जा रही है, जिसे बचाने का प्रयास लेखक ने अपने विविध उपन्यासों में किया है|
डॉ. मंजु शर्मा द्वारा ‘चेतना के आयाम’ आलेख में ‘बीरा’, ‘छूट गया पड़ाव’, ‘प्रतिज्ञा’ आदि उपन्यासों में उपन्यासकार निशंक की विविध आयामी चेतना दृष्टि को रूपायित किया गया है| रिश्ते-नातों के आदर्श तथा विकृत स्वरूप, लोकजीवन तथा लोक संस्कृति की दृष्टि, पहाड़ी जीवन से पलायन तथा पुनर्वास को प्रमुखता से बताया गया है| स्त्री जीवन एवं पहाड़ी जीवन की समस्याओं को ही नहीं, समाधान को भी इंगित किया गया है|
खंड-पांच ‘अकाल्पनिक गद्य’ के अंतर्गत लेखक प्रवीण प्रणव द्वारा ‘प्राकृतिक आपदा में संवेदना का मरहम : संस्मरण साहित्य’ आलेख में ‘आपदा के वह भयावह दिन’, ‘प्रलय के बीच’ संस्मरणों की परत दर परत पड़ताल की गई है| डॉ. निशंक के शब्दों में– ‘यदि समय रहते 14 या 15 जून को भी तीर्थयात्रियों को ऋषिकेश, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग और गुप्तकाशी आदि प्रमुख पडावों पर ही रोक दिया जाता तो केदारधाम , गौरीकुंड तथा रामबाड़ा में एक साथ इतने यात्री एकत्रित नहीं होते| इससे जनहानि कई गुना कम हो सकती थी , किंतु प्रबंध तंत्र की निष्क्रियता और असंवेदनशीलता ने हजारों यात्रियों की जान जोखिम में डालने का कार्य किया, जिसकी परिणति इस भयंकर त्रासदी के रूप में सामने आई|’ (पृष्ठ 243)। मौत के तांडव के बीच मानव के लोभ की पराकाष्ठा को बताते हुए , बाजारीकरण और मीडिया की भूमिका को ऐसे समय में संस्मरणकार ने उपयोगी माना है| लेखक प्रवीण प्रणव ने ‘पहाड़ों से स्नेह,संस्कृति का पुल: यात्रावृत्तांत’ शोधपत्र में ‘मॉरीशस की स्वर्णिम स्मृतियां’, ‘केदारनाथ से पशुपतिनाथ तक’, ‘एक दिन नेपाल में’, ‘खुशियों का देश भूटान’, ‘भारतीय संस्कृति का संवाहक इंडोनेशिया’ आदि यात्रावृत्तांतों का व्यापक विश्लेषण किया है| इन यात्रावृत्तांतों में यात्री के सूक्ष्म जीवन की संवेदनाओं को वहां के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक परिवेश के चित्रण में देखा जा सकता है|
डॉ. सुरेश भीमराव गरुड़ ने ‘व्यक्तित्व निर्माण के लिए : प्रेरणास्पद गद्य’ आलेख में रचनाकार के व्यक्तित्व विषयक चिंतन की सूक्ष्मता को अंकित किया है| स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ‘संसार कायरों के लिए नहीं’ रचना में निशंक ने आज की भौतिकतावादी अंधी दौड़ में व्यक्ति को नवचेतना तथा मनुष्यता के गुणों से सराबोर किया है| (पृष्ठ 290)।
‘तत्वदर्शी निशंक’ ग्रंथ के अंतिम भाग अर्थात खंड – छह ‘विश्व दृष्टि’ के अंतर्गत ‘महामानव व्यक्तित्व के धनी निशंक’ का विविध धरातल पर परिचय दिया गया है | डॉ. चंदन कुमारी के ‘तू धरा पर फ़ैल इतना लौ तेरी आकाश ले’ शोधपत्र में रचनाकार के विविध साहित्य रूपों को विवेचित किया गया है | ‘इनके साहित्य में वृद्धावस्था विमर्श, स्त्री विमर्श, हरित (पर्यावरण) विमर्श, संस्कृति विषयक चिंतन, अस्तित्व-रक्षण बनाम प्रगति इत्यादि विषय सहज प्राप्य हैं |’ (पृष्ठ 293)।
डॉ. संगीता शर्मा के ‘समकालीन समाज की धड़कन’ आलेख में रचनाकार निशंक के बहुआयामी व्यक्तित्व को उनकी रचनाओं के माध्यम से दर्शाया गया है| मिलन विश्नोई के ‘संवेदना के धरातल’ पाठ में रचनाकार के राष्ट्रप्रेम, मानव संघर्ष और संवेदना को उकेरा गया है| डॉ. उषारानी राव के आलेख ‘आत्म मंथित तरलता की प्राणवान धारा’ में रचनाकार के विभिन्न रचनात्मक सौंदर्य को दर्शाया गया है| रचनाकार का आत्मसंघर्ष, जीवनानुभूति, परिवर्तन की आस्था के साथ व्यक्त हुआ है|
प्रो. गोपाल शर्मा कृत शोधपत्र ‘तत्वदर्शी निशंक’ में तत्वान्वेषी साहित्यकार की ध्येय दृष्टि का मंथन किया गया है| वे अपनी कृतियों में मैं रूप में प्रकट होते हैं| रचनाकार के संस्कारित व्यक्तित्व पर स्वामी विवेकानंद से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक के व्यक्तित्व का प्रभाव पड़ा है| रचनाकार के भाषिक संस्कार और देशज संस्कार को उनकी रचनाओं में गहरे तक देखा जा सकता है| रचनाकार के निजी अनुभव उनके साहित्यिक विवेक का परिमार्जन करते हैं|
कुल मिलाकर ‘तत्वदर्शी निशंक’ पुस्तक को लगभग 355 पृष्ठों के साथ सजिल्द सजाया गया है, जिसमें पाठकों और शोधार्थियों को रचनाकार के वृहद् व्यक्तित्व एवं लेखन का परिमार्जित स्वरूप सहज में प्राप्त होता है| पुस्तक के संपादक प्रो. ऋषभदेव शर्मा के शब्दों में– ‘तुच्छताओं और हीनताओं के विषम अनुभव भी साहित्यकार निशंक की मनुष्यता में निष्कंप आस्था को विचलित नहीं कर पाते हैं| वे घृणा को करुणा से काटते हैं और साहित्य की उस भूमिका की साधना में जुट जाते हैं, जहाँ जननी और जन्मभूमि की अनन्य भक्ति की उदात्त भावना ही ‘विश्वबंधुत्व’ की भावना को साकार करने का आधार बनती है|’ (पृष्ठ 13)। ★
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समीक्ष्य कृति : तत्वदर्शी निशंक
सम्पादक तथा सह सम्पादक : डॉ ऋषभदेव शर्मा, श्रीमती शीला बालाजी
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन, प्रा.लि., 4/19 आसफ अली रोड, नई दिल्ली -110002
मूल्य : 700/- मात्र
प्रथम संस्करण : 2021
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समीक्षक : डॉ सुषमा देवी असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, हिंदी विभाग, बद्रुका कॉलेज, हैदराबाद -27, तेलंगाना।★