शनिवार, 14 सितंबर 2024

वैश्विक स्तर पर हिंदी भाषा का योगदान विषयक त्रि-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलन संपन्न

त्रिनिदाद यात्रा से डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की रिपोर्ट



वैश्विक स्तर पर हिंदी भाषा का योगदान विषयक त्रि-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलन संपन्न

हिंदी है हृदय की भाषा : रेणुका संग्रामसिंह सुखलाल

व्यावहारिक स्तर पर हिंदी अपनाएँ, सांस्कृतिक धरोहर को अंतरित करें : डॉ. प्रदीप राजपुरोहित

सम्मेलन का उद्घाटन 


पोर्ट ऑफ स्पेन, त्रिनिदाद और टोबैगो। 

“त्रिनिदाद की जनता के लिए हिंदी हृदय की भाषा है। ऐसी हिंदी भाषा को तथा उसकी संस्कृति को सुनिश्चित रखना अनिवार्य है। भले ही यह कार्य कठिन है लेकिन असाध्य नहीं। त्रिनिदाद में बसा हुआ हर भारतीय मूल का परिवार अपनी संस्कृति और सभ्यता, विशेष रूप से अपनी भाषा हिंदी को सुरक्षित रखने के लिए संघर्ष कर रहा है।”
रेणुका संग्रामसिंह सुखलाल 


माउंट होप, त्रिनिदाद में स्थित महात्मा गांधी सांस्कृतिक सहयोग संस्था के सभागार में 6 से 8 सितंबर, 2024 तक भारतीय उच्चायोग, पोर्ट ऑफ स्पेन द्वारा आयोजित “त्रि-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलन” का उद्घाटन करते हुए अटॉर्नी जनरल कार्यालय और कानूनी मामलों के मंत्रालय की मंत्री रेणुका संग्रामसिंह सुखलाल ने उक्त विचार व्यक्त किए। उन्होंने यह भी चिंता व्यक्त की कि कैरेबियन देशों में भारतवंशी पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति, सभ्यता और हिंदी भाषा को अंतरित करने में असमर्थ हो रहे हैं।

डॉ प्रदीप राजपुरोहित 
भारतीय उच्चायोग, पोर्ट ऑफ स्पेन के उच्चायुक्त डॉ. प्रदीप राजपुरोहित ने सबका स्वागत करते हुए कहा कि सबको व्यावहारिक स्तर पर हिंदी को अपना चाहिए। पंडिताऊ भाषा के स्थान पर सामान्य बोलचाल की हिंदी का प्रयोग करना चाहिए। ऐसा करने से हिंदी भाषा में निहित सांस्कृतिक एवं लोक धरोहर को पीढ़ी-दर-पीढ़ी अंतरित किया जा सकता है। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की कि त्रिनिदाद में बसे भारतीय मूल के लोग अपनी भाषा को अक्षुण्ण रख पाने में असमर्थ अनुभव करने लगे हैं। हिंदी भाषा, विशेष रूप से बोलचाल की भाषा, पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि दूतावास स्कूली स्तर पर हिंदी कक्षाएँ चलाने का प्रयास कर रहा है। हिंदी सीखने के लिए प्रोत्साहन के रूप में छात्रवृत्ति देने के लिए भी तैयार है। उन्होंने त्रिनिदाद वासियों से अपील की कि हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझकर हिंदी के प्रचार-प्रसार में आगे बढ़े। उन्होंने यह प्रश्न किया कि क्या स्थानीय शिक्षण संस्थाएँ इस कार्य को अंजाम देने में उच्चायोग का सहयोग करने के लिए तैयार हैं?

पोर्ट ऑफ स्पेन स्थित राष्ट्रीय भारतीय संस्कृति परिषद (एनसीआईसी) के अध्यक्ष देवरूप तीमल ने कहा कि भाषा
देवरूप तीमल 

जीवन के साथ एकीकृत है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वैश्विक स्तर पर हिंदी को बढ़ावा देने के लिए नेटवर्किंग आवश्यक है। आगे उन्होंने कहा कि त्रिनिदाद और टोबैगो में स्थित भारतीय मूल के वासियों में भारतीय संस्कृति ‘रामचरित मानस’ के रूप में विद्यमान है। भले ही यहाँ के लोग अर्थ न जानते हों, लेकिन मानस के पद कंठस्थ करते हैं। यह इसलिए क्योंकि भारतीयता उनके डीएनए में विद्यमान है।

रवींद्र प्रसाद जायसवाल 




भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव रवींद्र प्रसाद जायसवाल ने कहा कि भारतीयता को समझने की कुंजी है हिंदी भाषा। यदि हम सांस्कृतिक अस्मिता को अक्षुण्ण रखना चाहते हैं तो क्षेत्रीय रंगों को भी अपनाना होगा। उन्होंने भी यही चिंता व्यक्त की कि इस यात्रा में हिंदी भाषा कहीं पीछे छूट रही है।


नील पर्सनलाल 

राष्ट्रीय पुस्तकालय और सूचना प्रणाली प्राधिकरण (नालिस) के चेयरमैन नील पर्सनलाल ने हिंदी भाषा, भारतीय सभ्यता और संस्कृति के संबंध में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज की पीढ़ी में हिंदी भाषा के प्रति रुचि जगाने के लिए पुरजोर कोशिश किए जाने की ज़रूरत है।






त्रिनिदाद में स्थित हिंदी निधि के अध्यक्ष चंका सीताराम ने हिंदी भाषा को त्रिनिदाद और टोबैगो के भाषाई समाज में पुनः स्थापित करने के लिए युवा पीढ़ी से अपील की।
चंका सीताराम 


कार्यक्रम के आरंभ में वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय को श्रद्धांजलि दी गई। इस अवसर पर महात्मा गांधी सांस्कृतिक सहयोग संस्था के छात्र और अध्यापकों ने गायन तथा भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुत किया। ‘हिंदी, शिक्षा और संस्कृति’, पोर्ट ऑफ स्पेन के द्वितीय सचिव शिवकुमार निगम ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन आशा महाराज और ऋषा मोहम्मद ने किया।

उद्घाटन के बाद विचार सत्रों में त्रिनिदाद और टोबैगो के साहित्यकारों, समाजशास्त्रियों और अर्थशास्त्रियों के साथ-साथ भारत, सूरीनाम, गयाना, अमेरिका से पधारे विद्वानों ने इस संबंध में अपने-अपने विचार व्यक्त किए। प्रथम विचार सत्र में देवरूप तीमल की अध्यक्षता में कमला रामलखन (त्रिनिदाद), सत्यानंद हेरोल्ड परमसुख (सूरीनाम), विकास रामकिसुन (सांसद, गयाना) ने कैरेबियाई क्षेत्र में बोली जाने वाली हिंदी के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डाला। इस विचार सत्र से यह तथ्य सामने आया कि कैरेबियाई क्षेत्रों में हिंदी भाषा को सुरक्षित रखने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह भी कि सूरीनाम में आज भी ‘सूरीनामी हिंदी’ बोली जाती है जो भोजपुरी और हिंदी का मिश्रित रूप है। विद्वानों ने यह कहा कि हिंदी और भारतीय संस्कृति उनकी अस्मिता है। इन कैरेबियाई क्षेत्रों में ‘रामचरित मानस’ ने हिंदू समाज को जोड़कर रखा है। यदि यहाँ के समाज में आज भी हिंदी जीवित है तो उसका श्रेय ‘मानस’ को ही जाता है। यहाँ के लोग ‘रामायण’ और ‘वेद’ को भी अंग्रेजी में ही पढ़ते हैं। गायन और संगीत के कारण यहाँ के लोग अपनी मूल संस्कृति के निकट हैं।

डॉ. हितेन्द्र कुमार मिश्र (शिलांग) की अध्यक्षता में संपन्न द्वितीय विचार सत्र में हिंदी भाषा को सीखने के लिए उपलब्ध संसाधनों के बारे में चर्चा करते हुए हिमांचल प्रसाद (गयाना), डॉ. नवलकिशोर भाबड़ा (अजमेर), डॉ. प्रदीप के. शर्मा (सिक्किम) ने यह बताया कि गीत-संगीत, सिनेमा, लोकसंगीत, लोक नाटक आदि के माध्यम से भाषा सीखी और सिखाई जा सकती है। आज के समय में सोशल मीडिया के कारण तथा तकनीकी विकास के कारण इतने सारे मोबाइल एप्लीकेशन्स हैं कि भाषा सीखने में कोई कठिनाई नहीं होगी।

डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा (चेन्नै) की अध्यक्षता में संपन्न तृतीय विचार सत्र में डॉ. निवेदिता मिश्र (त्रिनिदाद), रफ़ी हुसैन (त्रिनिदाद), इंदिरा (त्रिनिदाद) और डॉ. मिलन रानी जमातिया (त्रिपुरा) ने हिंदी के विकास में विदेशी विद्वानों के योगदान पर प्रकाश डाला और यह सिद्ध किया कि यदि उचित वातावरण उपलब्ध हो तो भाषा सीखने में समस्या नहीं होगी। भाषा सीखने के लिए पहली शर्त है जिज्ञासा और ज़रूरत।

चतुर्थ विचार सत्र में सूरजदेव मंगरू (त्रिनिदाद और टोबैगो), डॉ. शिवानंद महाराज (यूडब्ल्यूआई), राणा मोहिप (त्रिनिदाद और टोबैगो), कृष रामखलावन (सूरीनाम) ने ‘बैठक गाना’, ‘चटनी संगीत’ और ‘शास्त्रीय संगीत’ के बारे में बताते हुए व्यावहारिक तौर पर दर्शाया कि इनके माध्यम से कैरेबियाई क्षेत्रों में हिंदी भाषा आज तक कैसे जीवित है।

हर विचार सत्र के बाद पैनल चर्चा हुई। रामप्रसाद परशुराम (त्रिनिदाद) की अध्यक्षता में संपन्न पैनल चर्चा में आशा मोर (त्रिनिदाद), नितिन जगबंधन (सूरीनाम), डॉ. नवलकिशोर भाबड़ा (अजमेर), सुनैना परीक्षा रागिनीदेवी (सूरीनाम) और स्वामी ब्रह्मस्वरूप नंदा (त्रिनिदाद और टोबैगो) ने यह प्रतिपादित किया कि रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्य कैरेबियाई क्षेत्र के लोगों की आत्मा में बसते हैं। आज की पीढ़ी अपनी जड़ों की ओर लौटने के लिए पुरज़ोर कोशिश कर रही हैं। अपनी भाषा हिंदी को सीखने की कोशिश कर रही है। डॉ. विद्याधर शाह की अध्यक्षता में संपन्न चर्चा में डॉ. हितेंद्र मिश्र, ईशा दीक्षित (त्रिनिदाद), कादंबरी आदेश (फ्लोरिडा) ने भाषा के विकास में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका पर प्रकाश डाला। नील पर्सनलाल की अध्यक्षता में संपन्न विचार सत्र में डॉ. प्रदीप के शर्मा, डॉ. शशिधरन (केरल), डॉ. मिलन रानी जमातिया, विकास रामकिसुन ने हिंदी भाषा सीखने में फिल्मों की भूमिका पर प्रकाश डाला।

चर्चा-परिचर्चा के उपरांत उच्चायुक्त और सांसदों ने यह घोषणा की कि कैरेबियाई क्षेत्रों में हिंदी विकास के लिए अनिवार्य कदम उठाए जाएँगे। यह भी निर्णय लिया गया कि हिंदी सीखने के लिए जो छात्र आगे आएँगे उन्हें छात्रवृत्ति देकर प्रोत्साहित किया जाएगा। इतना ही नहीं, प्राथमिक स्तर पर हिंदी भाषा को अनिवार्य रूप से पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव भी सरकार के समक्ष रखा जाएगा।

त्रि-दिवसीय सम्मेलन के दौरान चर्चा-परिचर्चाओं के अलावा, कैरेबियाई क्षेत्रों में प्रसिद्ध बैठक गाना, चटनी संगीत, लोक नृत्य, शास्त्रीय नृत्य आदि का प्रदर्शन किया गया जिससे संपूर्ण वातावरण जीवंत हो उठा। 000


गुरुवार, 8 अगस्त 2024

प्रवीण प्रणव की पुस्तक ‘लिए लुकाठी हाथ’ पर चर्चा संपन्न



साहित्यिक समाचार:

प्रवीण प्रणव की पुस्तक ‘लिए लुकाठी हाथ’ पर चर्चा संपन्न


हैदराबाद, 8 अगस्त, 2024। 

“समीक्षा अपने आप में बेहद जटिल और ज़िम्मेदारी भरा काम है। कोई भी समीक्षा कभी पूर्ण और अंतिम नहीं होती। सच तो यह है कि किसी कृति की सबसे ईमानदार समीक्षा स्वयं रचनाकार ही कर सकता है। कोई समीक्षक किसी रचनाकार की संवेदना को जितनी निकटता से पकड़ता है, उसकी समीक्षा उतनी ही विश्वसनीय होती है।” 


ये विचार वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर (उत्तर प्रदेश) की पूर्व कुलपति प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने आखर ई-जर्नल और फटकन यूट्यूब चैनल की ऑनलाइन परिचर्चा में प्रवीण प्रणव (हैदराबाद) की सद्यःप्रकाशित समीक्षा-कृति ‘लिए लुकाठी हाथ’ की विशद विवेचना करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में लेखक ने ऋषभदेव शर्मा के व्यक्तित्व और कृतित्व के विविध आयामों को गहन अध्ययन के आधार पर उजागर किया है। 


प्रो. मौर्य ने जोर देकर कहा कि ‘लिए लुकाठी हाथ’ में विवेच्य रचनाकार के साहित्य के ज्वलंत प्रश्नों से साक्षात्कार किया गया है और यह दर्शाया गया है कि मनुष्य, समाज, राजनीति, लोकतंत्र और संस्कृति पर गहन विमर्श इस साहित्य को दूरगामी प्रासंगिकता प्रदान करता है। 


कार्यक्रम की अध्यक्ष प्रो. प्रतिभा मुदलियार (मैसूरु) ने कहा कि प्रवीण प्रणव ने अपनी पुस्तक ‘लिए लुकाठी हाथ’ के माध्यम से पाठकों को विशेष रूप से दक्षिण भारत के हिंदी साहित्य फलक पर कवि, आलोचक और प्रखर वक्ता के रूप में प्रतिष्ठित ऋषभदेव शर्मा के साहित्य की जनवादी चेतना, स्त्री पक्षीयता, प्रेम प्रवणता और सौंदर्य दृष्टि का सहज दिग्दर्शन कराया है।


‘लिए लुकाठी हाथ’ के लेखक प्रवीण प्रणव ने अपने बेहद सधे हुए वक्तव्य में यह स्पष्ट किया कि आलोचनात्मक लेखन करते हुए लेखक स्वयं को भी समृद्ध करता चलता है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक को लिखते हुए उन्होंने सटीक समीक्षा के लिए ज़रूरी वाक्-संयम सीखा और इससे वे  अपने लेखन को अतिवाद तथा अतिरंजना से बचा सके। अपनी रचना प्रक्रिया समझाते हुए प्रवीण प्रणव ने यह सुझाव भी दिया कि जिस दिन आप उतना लिखना सीख जाएँगे जितना वास्तव में ज़रूरी है, उस दिन आप सचमुच लेखक बन जाएँगे। उन्होंने विवेच्य पुस्तक के लिए मार्गदर्शन हेतु श्री अवधेश कुमार सिन्हा, प्रो. गोपाल शर्मा, प्रो. निर्मला एस. मौर्य और प्रो. देवराज का विशेष उल्लेख किया। 


चर्चा का समाहार करते हुए ऋषभदेव शर्मा ने यह जानकारी दी कि ‘लिए लुकाठी हाथ’ के लेखक की निजी शैली को प्रो. देवराज ने ‘आत्मीय आलोचना’ तथा प्रो. अरुण कमल ने ‘जीवनचरितात्मक आलोचना’ कहा है। 


कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी संगीता देवी ने किया तथा संयोजिका डॉ. रेनू यादव ने आभार ज्ञापित किया। 000