कभी हलधर से पूछो
किस तरह सरसों उगी है!
समीक्षक : रवि वैद
राम नारायण ‘हलधर‘ (1970) का नाम पहली बार सुनकर सबसे पहले मेरे हृदय में जनता पार्टी के चुनाव चिह्न ‘हलधर किसान’ की याद ताज़ा हो गई। उसी दिन उन्हें हैदराबाद में ‘सिया सहचरी काव्य सम्मान-2024’ ग्रहीता के रूप में देखने और सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। हलधर जी एक प्रभावशाली व्यक्तित्व के कवि और गज़लकार हैं। अपनी बुलंद आवाज़ और मंच पर बोलने की कला द्वारा वे अपने श्रोताओं पर एक अमिट छाप छोड़ देते हैं।
जब मुझे उनका ग़ज़ल संग्रह “धूप और चाँदनी” पढ़ने के लिए मिला तो मैं उसे पढ़ने के लिए उतावला हो उठा। उनके जीवन और उपलब्धियों के बारे में जानकर मैं बहुत अधिक प्रभावित हुआ। क्योंकि मैं स्वयं ग़ज़ल कहता हूँ तो मेरा हृदय इस ग़ज़ल संग्रह को बारीकी से पढ़ने और ग़ज़ल के शिल्प को परखने का हुआ। मैंने कुछ गजलों की तख़्तीअ कर बहरें निकालीं। मात्रा गिराने की विधा भी देखी। सभी ग़ज़लें, ग़ज़ल लेखन के शिल्प पर खरी उतरीं। अधिकांश ग़ज़लें ग़ैर-मुसलसल हैं तो कुछ मुसलसल भी हैं। अधिकांश ग़ज़लें छोटी बहरों में लिखी गई हैं, जो अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। लंबे-लंबे मिसरों में अपनी बात कहना आसान होता है, परंतु छोटे मिसरों में बहुत कुछ कह देना एक मँजे हुए ग़ज़ल-गो का परिचायक है।
राम नारायण ‘हलधर‘ ग्रामीण परिवेश से आते हैं और आज भी अपनी मिट्टी से जुड़े हुए हैं। इनकी ग़ज़लों में ग्रामीण परिवेश व ग्रामीण जीवन की समस्याओं को साफ़ देखा जा सकता है। इनकी ग़ज़ल का एक शेर देखिए :
हमारी फस्ल का, इस क़र्ज़ का कुछ कीजिये साहिब ,
हमें हर साल का घाटा किसी दिन मर डालेगा।
दूसरे मिसरे में ‘मार डालेगा’ के स्थान पर ‘मर डालेगा’ का प्रयोग हुआ है। बहर बरक़रार रखने के चलते नया प्रयोग ही कर डाला! इसी प्रकार नए शब्द चलन में आकर रूढ़ हो जाते हैं। असंभव नहीं कि यह विचलन सहेतुक न होकर मुद्राराक्षस भर हो!
आज भी बुनियादी सुविधाओं को तरसता गाँव ‘हलधर’ के लेखन का अभिन्न अंग है। जैसे-
कहीं मंदिर बनाते हैं, कहीं मस्जिद बनाते हैं,
दवाख़ाना अभी भी गाँव में एक खंडहर सा है।
एक और शेर देखिए-
मेरे खेतों में एक ऋण का कुआँ है,
उसे हर साल गहरा देखता हूँ।
एक दो जगह देशज शब्दों का भी प्रयोग किया गया है, जो ग़ज़ल में आत्मीयता भर देते हैं। जैसे-
इक लड़की मिलते ही हमसे झगड़े है,
उससे मिलकर जी नहीं भरता दिन भर में।
एक शेर ने तो फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की मशहूर नज़्म ‘मुझसे पहली सी मुहब्बत…’ के मिसरे ‘और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा, राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा’ की याद ताज़ा करवा दी; देखिए-
ये माना प्यार है ज़रूरी,
मगर ये भूख इससे भी बड़ी है।
राम नारायण ‘हलधर‘ की अधिकांश गजलों में छह अशआर हैं। यह दर्शाता है कि इन्हें काफ़िया तलाशने में कोई खास मेहनत-मशक्कत नहीं करनी पड़ती। लफ्ज़ इनके ज़हन में इस्तेमाल होने के लिए तैयार रहते हैं। रील बनाने वाली नई पीढ़ी पर तंज़ कसते हुए लिखते हैं :
बहुत आसान है खेतों में यूँ फ़ोटो खिंचाना,
कभी ‘हलधर’ से पूछो किस तरह सरसों उगी है।
और अंत में वह मार्मिक शेर जो मेरे हृदय को वेध गया। नारी जीवन की त्रासदी की झलक देखिए-
गुल-ए-उम्मीद थक कर सो गए सब,
अभी तितली रसोई में खड़ी है।
राम नारायण ‘हलधर‘ का ग़ज़ल संग्रह ‘धूप और चाँदनी’ केवल ख्याति प्राप्त करने के उद्देश्य से नहीं लिखा गया है। इसमें किसानों की पीड़ा, आम आदमी की जिजीविषा और भारतीय लोकतंत्र की सियासी विफलता को प्रकाश में लाकर ‘हलधर’ द्वारा हल तलाशने पर बल दिया गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस ग़ज़ल संग्रह में लोक-कल्याण की भावना साफ़ दिखाई देती है।
राम नारायण ‘हलधर‘ से यह उम्मीद की जाती है कि वे अपनी लेखनी से इसी तरह समाज में चल रही बुराइयों को सामने लाकर उनके निवारण का हल खोजने का प्रयास करेंगे। राम नारायण ‘हलधर‘ को ‘धूप और चाँदनी के लिए हार्दिक बधाई। ◆◆◆
समीक्षित पुस्तक: धूप और चाँदनी
विधा: ग़ज़ल
कवि: राम नारायण ‘हलधर’
प्रकाशन वर्ष: 2023
प्रकाशक: इंडिया नेट बुक्स प्राइवेट लिमिटेड
कुल पृष्ठ: 112
मूल्य: ₹ 225/-
रवि वैद, हैदराबाद
मोबाइल: 9866015572
ईमेल: thewriterravi@gmail.com
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