बुधवार, 4 जनवरी 2017

युगीन चुनौतियों के संदर्भ में 'राग दरबारी' आज बहुत प्रासंगिक : राजीव त्रिवेदी

डॉ. ऋषभदेव शर्मा और डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा द्वारा संपादित 37 शोधपत्रों के संकलन 'अन्वेषी' (2016) का लोकार्पण 31 दिसंबर 2016 को  तिलक रोड, हैदराबाद स्थित तेलंगाना सारस्वत परिषद के सभागार में आयोजित श्रीलाल शुक्ल स्मारक राष्ट्रीय संगोष्ठी के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पधारे गृह विभाग, तेलंगाना सरकार के प्रधान सचिव राजीव त्रिवेदी आईपीएस के हाथों संपन्न हुआ.
समारोह की अध्यक्षता डॉ. अहिल्या मिश्र ने की तथा संयोजन डॉ. सीमा मिश्रा ने किया.
साथ में,  विशिष्ट अतिथि डॉ. गोपाल शर्मा तथा सम्माननीय अतिथि राजकुमार शुक्ल 'हंस' और अलका जैन, डॉ. बी. बालाजी,
डॉ. सुपर्णा बंद्योपाध्याय, डॉ. मंजु शर्मा , रूबी मिश्रा , अधिवक्ता अशोक तिवारी एवं अन्य.

श्रीलाल शुक्ल स्मारक राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं 
'अन्वेषी' का लोकार्पण समारोह संपन्न 


हैदराबाद, 1 जनवरी 2017. (मीडिया विज्ञप्ति).
      ‘’हिंदी एक ऐसी लचीली और उदार भाषा है जिसमें साहित्य और संस्कृति से लेकर मीडिया और बाज़ार तक को बाँध लेने की अद्भुत ताकत है. उसे यह ताकत व्यापक जनता और निष्ठावान साहित्यकारों से प्राप्त हुई है. हिंदी भाषा की इसी ताकत को पहचानकर श्रीलाल शुक्ल ने ‘राग दरबारी’ जैसा पूर्णतः व्यंग्यात्मक उपन्यास लिखा जो अपनी यथार्थपरकता के कारण आज भी युगीन चुनौतियों के संदर्भ में प्रासंगिक बना हुआ है. इसीलिए राजनीति और प्रशासन में कार्यरत हर व्यक्ति को ‘राग दरबारी’ अवश्य पढना चाहिए.’’ 

ये विचार यहाँ तिलक रोड स्थित तेलंगाना सारस्वत परिषद के सभागार में श्रीलाल शुक्ल स्मारक राष्ट्रीय संगोष्ठी समिति के तत्वावधान में संपन्न एक साहित्यिक समारोह का उद्घाटन करते हुए तेलंगाना सरकार गृह विभाग के प्रधान सचिव राजीव त्रिवेदी ने व्यक्त किए. इस अवसर पर उन्होंने डॉ. ऋषभदेव शर्मा और डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा द्वारा संपादित 37 शोधपत्रों के संकलन ‘अन्वेषी’ को भी लोकार्पित किया तथा युवा हिंदीसेवी डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा को ‘प्रथम श्रीलाल शुक्ल स्मारक सारस्वत सम्मान’ से अलंकृत किया. 

विगत 10 वर्षों से मूर्धन्य साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल के जन्मदिन पर आयोजित किए जाने वाले इस आयोजन की अध्यक्षता वरिष्ठ लेखिका डॉ. अहिल्या मिश्र ने की. इंदौर से आए राजकुमार शुक्ल ‘हंस’ और अलका जैन ने बतौर सम्माननीय अतिथि शिरकत की. आरभ में आकाश तिवारी ने शंखनाद और अर्चना पांडे ने मंगलाचरण किया. ‘अन्वेषी’ की प्रथम प्रति डॉ. देवेंद्र शर्मा और कवयित्री विनीता शर्मा ने स्वीकार की. 

डॉ. सीमा मिश्रा ने विषय प्रवर्तन किया और कहा कि श्रीलाल शुक्ल कथा और व्यंग्य के बड़े रचनाकार हैं तथा अपने गहरे सामाजिक सरोकार के नाते पाठक को गुदगुदाते हुए समय और समाज की करुण त्रासदी से इस तरह परिचित कराते हैं कि न रोते बनता है ,न हँसते. 

विशिष्ट अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए इथियोपिया के अरबामिंच विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के आचार्य डॉ. गोपाल शर्मा ने श्रीलाल शुक्ल की रचनाओं के अंग्रेजी अनुवादों की चर्चा की तथा अरविंद अडिगा के बुकर पुरस्कृत अंग्रेजी उपन्यास ‘ द व्हाइट टाइगर’ से ‘राग दरबारी’ की तुलना करते हुए कहा कि ये कृतियाँ सामाजिक कलुष का चित्रण करने के बहाने हमें हमारे पतन की वास्तविकता से परिचित कराती हैं जो किसी भी व्यंग्यकार का प्रमुख लक्ष्य होता है. 

मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए डॉ. बी. बालाजी ने ‘’युगीन चुनौतियों के संदर्भ में श्रीलाल शुक्ल की रचनाधर्मिता’’ के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला और कहा कि ‘’श्रीलाल शुक्ल अपने ढंग के एक अनोखे रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य के माध्यम से राजनीति की विडंबनाओं को दिखाया। वे कथा की रोचकता के लिए जिन प्रसंगों को गढ़ते हैं, वे एक जैसे दिखते हुए भी अपनी अलग पहचाने बनाते हैं। व्यंग्य की धार उनके आरंभिक लेखन से विराम तक तेज होती गई है। उन्होंने नए कथ्य के लिए नए शिल्प गढ़े। उनकी रचनाप्रक्रिया और रचनाधर्मिता इसी से चरितार्थ हुई है। उनके साहित्य का कैनवस उनके विस्तृत जीवनानुभवों का संकलन है।‘’ 

सेंट एंस कॉलेज से संबद्ध डॉ. सुपर्णा बंद्योपाध्याय ने अपने शोधपत्र में रचनाकार की समकालीन, रचना में वर्णित युग की तथा वर्तमान युगीन सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनैतिक चुनौतियों की त्रि-आयामी कसौटी पर श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास ‘पहला पडाव’ तथा अन्य व्यंग्य रचनाओं की पड़ताल करते हुए बताया कि मूलतः व्यंग्यकार होने के कारण अपने समय की हर विकृति पर श्रीलाल शुक्ल की पैनी निगाह थी जिसके कारण वे अपनी रचनाओं में ऐसा देश-काल रच सके जो अनेक दशक बाद आज की युगीन चुनौतियों को भी संबोधित करने में समर्थ है. 

लोकार्पित पुस्तक ‘अन्वेषी’ की समीक्षा चिरेक इंटरनेशनल से संबद्ध डॉ. मंजु शर्मा ने की. उन्होंने बताया कि अविचारणीय मान लिए गए, हाशिए पर धकेले गए, हाशियों की सीमा में कैद समुदायों के विचारों की अभिव्यक्ति का मुख्य रूप से विश्लेषण करने वाली यह पुस्तक विस्तृत फलक पर साहित्य अध्ययन की दृष्टि से अंतर्विद्यावर्ती शोधकार्यों को प्रोत्साहित करती है जिसके अंतर्गत स्त्री विमर्श, अल्पसंख्यक विमर्श, वृद्धावस्था विमर्श और पर्यावरण विमर्श जैसे ज्वलंत विषयों पर लिखे गए शोधपत्र पाठकों तथा भावी शोधार्थियों के लिए दिशा निर्देशक हैं. 

समारोह का संचालन डॉ. सीमा मिश्रा ने किया. कार्यक्रम को सफल बनाने में अधिवक्ता अशोक तिवारी, वुल्ली कृष्णा राव, प्रवीण प्रणव, डॉ. पूर्णिमा शर्मा, डॉ. यशवंत जाधव, डॉ. सुस्मिता घोष, डॉ. जी. प्रवीणा राज, पवित्रा अग्रवाल, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, इंद्रजीत सिंह, नितिन पाटिल, संतोष विजय मुनेश्वर, विनोद चौरसिया, माधुरी तिवारी, आशा मिश्रा मुक्ता, बनवारी लाल मीना, प्रभा कुमारी, गहनी नाथ, रूबी मिश्रा, अनिल, गीता, भंवरलाल उपाध्याय आदि साहित्यप्रेमियों और हिंदीसेवियों की उपस्थिति का महत्वपूर्ण योगदान रहा. 



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें