मंगलवार, 21 दिसंबर 2021
गुर्रमकोंडा नीरजा की पुस्तक ‘समकालीन साहित्य विमर्श’ लोकार्पित
लोकार्पित कृति को स्वीकार करते हुए प्रो.ऋषभदेव शर्मा |
मंगलवार, 14 दिसंबर 2021
डॉ. नीरजा की पुस्तक ‘समकालीन साहित्य विमर्श’ का विमोचन 18 को
अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति का 15 वां राष्ट्रीय अधिवेशन एवं कर्नाटक साहित्य महोत्सव 26 को बेंगलुरु में
अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति (नई दिल्ली) का तीन-दिवसीय पंद्रहवां राष्ट्रीय अधिवेशन एवं कर्नाटक साहित्य महोत्सव आगामी 26 से 28 दिसंबर को बेंगलुरु में आयोजित किया जा रहा है। उद्घाटन 26 दिसंबर, रविवार, को शाम 4 बजे द वर्ल्ड कल्चर सेंटर, बसवनगुडी, बेंगलुरु में संपन्न होगा। इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अधिवेशन की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं पत्रकार प्रज्ञान पुरुष पंडित सुरेश नीरव (दिल्ली) करेंगे तथा इस राष्ट्रीय अधिवेशन के संयोजक बेंगलुरु के प्रतिष्ठित साहित्यकार ज्ञान चंद मर्मज्ञ हैं, जिनके कुशल मार्गदर्शन में अधिवेशन की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
'श्रीरामकथा का विश्वसंदर्भ महाकोश' के पहले खंड का लोकार्पण संपन्न
समापन सत्र में मुख्य अतिथि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और अति विशिष्ट अतिथि अश्विनी कुमार चौबे के हाथों देश- विदेश के हिंदी सेवियों और राम संस्कृति के पोषक सहयोगियों का सम्मान किया गया तथा प्रो. ऋषभदेव शर्मा सहित कई विशिष्ट विद्वानों को "विश्व राम संस्कृति सम्मान" से अलंकृत किया गया। अवसर पर छत्तीसगढ़ से रामकथा की मंचीय प्रस्तुति के लिए पधारे लोक कलाकारों का भी 'चाणक्य वार्ता' और साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था की ओर से अभिनंदन किया गया। सम्मान सत्र का संचालन प्रो. माला मिश्रा ने किया।
शनिवार, 20 नवंबर 2021
'रामकथा का विश्वसंदर्भ महाकोश' का लोकार्पण और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 30 को
शुक्रवार, 10 सितंबर 2021
रविवार, 5 सितंबर 2021
साहित्यिक पत्रिका 'स्रवंति' का पावस विशेषांक लोकार्पित
हैदराबाद, 5 सितंबर, 2021।
यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा (आंध्र एवं तेलंगाना) के खैरताबाद स्थित परिसर में पधारे केंद्रीय हिंदी निदेशालय के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. राकेश कुमार शर्मा ने सभा द्वारा प्रकाशित साहित्यिक मासिक पत्रिका 'स्रवंति' के 'पावस विशेषांक-2' का लोकार्पण किया। उन्होंने लोकार्पित पत्रिका की शोधपरक दृष्टि की प्रशंसा करते हुए संस्कृत और हिंदी सहित्य में पावस ऋतु के वर्णन की परंपरा पर भी प्रकाश डाला।
समारोह के अध्यक्ष एवं सभा के सचिव एस. श्रीधर ने कहा कि पावस ऋतु पर केंद्रित अपने दो विशेषांकों के माध्यम से पत्रिका ने साहित्य और मीडिया में वर्षा के विबिध रूपों पर शोधपरक सामग्री प्रकाशित की है।
अवसर पर ए. जानकी, प्रो. संजय ल मादार, डॉ. बिष्णु राय और डॉ. गोरखनाथ तिवारी भी उपस्थित रहे। पत्रिका की सहसंपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने विशेषांक का परिचय देने के अलावा सबका धन्यवाद व्यक्त किया।
गुरुवार, 12 अगस्त 2021
"तत्त्वदर्शी निशंक" लोकार्पित
"तत्त्वदर्शी निशंक" लोकार्पित
वर्धा, 12 अगस्त, 2021 (मीडिया विज्ञप्ति)।
'आज़ादी का अमृत महोत्सव' कार्यक्रम के तहत महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में आयोजित लोकार्पण समारोह में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर रजनीश कुमार शुक्ल ने पूर्व शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' पर एकाग्र समीक्षा ग्रंथ "तत्त्वदर्शी निशंक" सहित चार पुस्तकों का विमोचन किया। अध्यक्ष के रूप में बोलते हुए प्रोफेसर शुक्ल ने कहा कि निशंक राष्ट्रीय और सांस्कृतिक धारा के अग्रगण्य समकालीन साहित्यकार हैं तथा उन्हें समर्पित ग्रंथ के लोकार्पण से बिश्वविद्यालय गौरवान्वित हुआ है।
मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित महाकवि प्रोफेसर योगेंद्र नाथ शर्मा 'अरुण' ने कहा कि "तत्त्वदर्शी निशंक" दक्षिण भारत के हिंदी विद्वानों की ओर से हिमालय-पुत्र निशंक का भावपूर्ण अभिनंदन है, जिसमें उनके जीवन संघर्ष और साहित्य सृजन से लेकर उनकी विश्वदृष्टि तक का पहली बार इतना विशद मूल्यांकन किया गया है।
कोरोना के कारण लंबे समय तक चिकित्साधीन और एकांतवास में रहने के बाद पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने पहली बार इस कार्यक्रम में आभासी माध्यम से जुड़कर अपनी उपस्थिति दर्ज की। उन्होंने कहा कि यदि कभी उन्हें राजनीति और साहित्य में से किसी एक को चुनना पड़े तो वे निश्चित रूप से साहित्य को चुनेंगे। डॉ. निशंक ने अपने समीक्षकों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की और ज़ोर देकर कहा कि हिंदी विश्व की एक सर्वसमर्थ भाषा है तथा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषाओं पर बल देने के मूल में भारतीयता का संस्कार निहित है।
लोकार्पित
ग्रंथ के प्रधान संपादक प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा ने ऑनलाइन उपस्थित होकर पुस्तक का परिचय
देते हुए कहा कि प्रो. गोपाल शर्मा, प्रो. निर्मला मौर्य, प्रवीण प्रणव,
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा और डॉ. बी. बालाजी सहित इस ग्रंथ में 19 लेखकों के 21 शोधपत्र शामिल हैं तथा शीला बालाजी इसकी
सह-संपादक हैं। उन्होंने कहा कि इसमें डॉ. निशंक के काव्य और कथा साहित्य के अलावा पहली बार उनके अकाल्पनिक गद्य का भी
विस्तृत विवेचन किया गया है।
समारोह में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति-द्वय प्रोफेसर हनुमान प्रसाद शुक्ल, प्रोफेसर चंद्रकांत तथा प्रोफेसर कृपा शंकर चौबे सहित विविध संकायों के अध्यक्ष, आचार्यगण, शोधार्थी तथा छात्र उपस्थित थे। प्रोफेसर रमा पांडेय और डॉ. बेचैन कंडियाल ने भी ऑनलाइन सहभागिता निभाई।
समारोह के दूसरे सत्र में प्रोफेसर योगेंद्र नाथ शर्मा 'अरुण' के सम्मान में काव्य संध्या संपन्न हुई। 000
गुरुवार, 29 जुलाई 2021
प्रेमचंद की कहानियों में मनोविज्ञान : ईदगाह ( डॉ. सुपर्णा मुखर्जी)
प्रेमचंद की कहानियों में मनोविज्ञान : ईदगाह
- डॉ. सुपर्णा मुखर्जी
मनोविज्ञान, यह शब्द ही अपने आप में रहस्यमय है क्योंकि हरेक व्यक्ति अपनी सोच, अपनी विचरधारा के द्वारा अपने जीवन को चलाता है और उस जीवनशैली के द्वारा सामाजिक जीवन भी प्रभावित होता है। चूँकि, मनोविज्ञान और सामाजिक जीवन के बीच इस प्रकार से एक सहसंबंध स्थापित होता है और साहित्य समाज का दर्पण है इसी कारण से दर्पणरूपी साहित्य के साथ मनोविज्ञान का सम्बन्ध जुड़ जाना स्वाभाविक तथ्य ही है। साहित्यकार अनादिकाल से अपने साहित्य में कभी प्रत्यक्ष तो कभी अप्रत्यक्ष रूप में मनोविज्ञान को स्थान देते आएँ हैं। 'कथा सम्राट प्रेमचंद' इससे अछूते कैसे रह सकते थे? 'कथा सम्राट प्रेमचंद' ने वैसे तो सभी वर्गों के मनुष्यों के मनोविज्ञान को लेकर साहित्य रचना का काम किया है पर उनकी कहानियों में वर्णित बाल मनोविज्ञान की अपनी एक अलग जगह है। बच्चों के प्रति अपने विचार को व्यक्त करते हुए सन् 1930 में 'हंस' पत्रिका के सम्पादकीय में उन्होंने लिखा, 'बालक को प्रधानतः ऐसी शिक्षा देनी चाहिए कि वह जीवन में अपनी रक्षा आप कर सके। बालकों में इतना विवेक होना चाहिए कि वे हर एक काम के गुण-दोष को भीतर से देखें'। मुख्यतः प्रेमचंद बच्चों को अनुशासित और संयमित देखना चाहते थे।
मध्यकाल में सूर और तुलसी ने बाल साहित्य को व्यापक रूप प्रदान किया। इन दोनों कवियों ने अपनी रचनाओं के द्वारा यह प्रकट किया था कि बालकों के लिए न कोई राजा होता है न प्रजा। बालक तो प्रेम के भूखे होते हैं और उनके प्रेम के सामने बड़े-बड़े राजाओं का सिर भी झुक जाता है। प्रेमचंद ने इन दोनों कवियों की इसी चिंतनशैली को अपनी कहानी रचना का आधारस्तम्भ बनाया था।
ईदगाह, गुल्ली डंडा, कजाकी, कुत्ते की कहानी, सच्चाई का उपहार आदि प्रेमचंद द्वारा लिखित प्रमुख बाल कहानियाँ है। इनमें से 'ईदगाह' कहानी का हामिद अपने भोलेपन के साथ-साथ अपनी परिपक्वता के कारण पाठकों का वर्षों से लोकप्रिय बालक रहा है। जब भी आप दुखी हों एक बार 'ईदगाह' कहानी के हामिद के निराशाओं के बीच घिरे आशाओं के संसार को देखें, 'वह भोली सूरत का चार-पाँच साल का दुबला-पतला लड़का। उसके पिता गत वर्ष हैज़े की भेंट हो गए थे और माँ न जाने क्यों पीली होती-होती एक दिन मर गई। किसी को पता न चला कि क्या बीमारी थी। अब हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोद में सोता है और उतना ही प्रसन्न रहता है। उसके अब्बाजान रुपये कमाने गए हैं। अम्मीजान अल्लाह मियाँ के घर से उसके लिए बहुत-सी अच्छी चीज़ें लाने गई हैं, इसलिए हामिद प्रसन्न है। आशा तो बड़ी चीज़ है। हामिद के पाँव में जूते नहीं है, सिर पर एक पुरानी टोपी है, जिसका गोटा काला पड़ गया है, फिर भी वह प्रसन्न है'।
मानव मनोविज्ञान का महत्वपूर्ण अंग है 'आशा'। कथाकार ने एक चार-पाँच साल के बालक के माध्यम से आशावान बने रहने का कैसे देखिए मूलमंत्र दे दिया है। पर है तो वह बच्चाही, तभी तो 'हामिद खिलौनों को ललचाई आँखों से देखता है'। पर जहाँ निराशा को आशा ने पराजित कर दिया है वहाँ लालच कैसे टिक सकता है? तभी तो 'हामिद को ख्याल आता है, दादी के पास चिमटा नहीं है। तवे से रोटियाँ उतारती है तो हाथ जल जाता है, अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे, तो वे कितनी प्रसन्न होंगी! फिर उनकी उँगलियाँ कभी न जलेंगी'।
ऐसी परिपक्वता तो बहुत बार सयानों में भी नहीं मिलती। उपभोक्तावादी संस्कृति के जाल में जहाँ व्यक्ति केंद्रकता ही सब कुछ है। स्वार्थी समाज में जहाँ सब लाभ कमाने में लगे हुए हैं वहाँ हामिद वर्षों से 'ईदगाह' से बंदूक की तरह चिमटा पकड़कर मानव को मानवता का सही अर्थ समझाता हुआ आता दिखाई पड़ता है।
हम बात करते हैं त्याग, सद्भाव की, विवेक की। बड़े-बड़े ज्ञानियों ने तो बाकयदा त्याग, सद्भाव, विवेक सिखाने के पाठशालाएँ भी खोल ली हैं, लेकिन प्रेमचंद के हामिद ने तो अपने अनमोल 'तीन पैसे' खर्च करके समाज को यह ज्ञान दे दिया है। ●
डॉ. सुपर्णा मुखर्जी
हिंदी प्राध्यापिका
सेंट ऐन्स डिग्री कॉलेज फॉर विमेन
मलकाजगिरी
हैदराबाद- 500047
सोमवार, 7 जून 2021
केवल शिक्षामंत्री नहीं हैं रमेश पोखरियाल 'निशंक'
पुस्तक समीक्षा
केवल शिक्षामंत्री नहीं हैं रमेश पोखरियाल 'निशंक'
- समीक्षक: डॉ. सुपर्णा मुखर्जी
समीक्षित पुस्तक- "तत्त्वदर्शी निशंक"
संपादक- प्रो. ऋषभदेव शर्मा
प्रकाशक- प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली
संस्करण- प्रथम, 2021
मूल्य- सात सौ रुपए
पृष्ठ- 352 (सजिल्द)। "
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समीक्षक-
डॉ. सुपर्णा मुख़र्जी,
हिंदी प्राध्यापक,
सेंट ऐंस जूनियर एंड डिग्री कॉलेज फॉर गर्ल्स एंड वीमेन,
मल्काजगिरी,
हैदराबाद - 500047.
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