नवोदित सांस्कृतिक-साहित्यिक पत्रिका ''भास्वर भारत'' के तत्वावधान में यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के खैरताबाद स्थित सम्मलेन कक्ष में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पधारे साहित्यकार डॉ. अशोक भाटिया का सारस्वत सम्मान किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता अंग्रेज़ी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. एम. वेंकटेश्वर ने की तथा संचालन 'स्रवंति' की सहसंपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने किया.
आयोजन का विशेष आकर्षण था 'कथाकथन', जिसके अंतर्गत अतिथि रचनाकार अशोक भाटिया ने अपनी 'भीतर का सच', 'तीसरा चित्र ', 'रिश्ते', 'रंग', 'पीढ़ी दर पीढ़ी' और 'श्राद्ध' जैसी लघुकथाओं का भावपूर्ण वाचन किया. साथ ही उन्होंने अपनी कुछ कविताएँ भी प्रस्तुत कीं.चर्चा में उनकी रचना 'ज़िंदगी की कविता' के इस अंश को खूब सराहा गया - ''कविता/ घरैतिन के हाथों से होकर/ तवे पर पहुंचती है/ तो बनती है रोटी/ xxx / जहाँ कहीं भी कविता है/ वहाँ जीवन का/ जिंदा इतिहास रचा जा रहा है.'' पठित लघुकथाओं पर डॉ. एम. वेंकटेश्वर, डॉ. राधेश्याम शुक्ल, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, आशीष नैथानी, पवित्रा अग्रवाल, वेत्सा पांडुरंगा राव, संपत देवी मुरारका, ऋतेश सिंह, अशोक तिवारी, डॉ. सीमा मिश्र, वी. कृष्णा राव और नागेश्वर राव ने समीक्षात्मक टिप्पणियाँ कीं.
आरंभ में आर.राजाराव ने मंगलाचरण किया तथा आगंतुकों के परस्पर परिचय और स्वागत-सत्कार की जिम्मेदारी समारोह के संयोजक प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने निभाई.
चित्र परिचय :
'भास्वर भारत' द्वारा आयोजित 'कथाकथन' कार्यक्रम के अवसर पर लिया गया समूह चित्र. बाएँ से - डॉ. सीमा मिश्र, अशोक तिवारी, वेत्सा पांडुरंगा राव, आर.राजाराव, प्रो. ऋषभ देव शर्मा, आशीष नैथानी, डॉ. राधे श्याम शुक्ल, डॉ. अशोक भाटिया, डॉ. एम. वेंकटेश्वर, के. नागेश्वर, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, संपत देवी मुरारका, पवित्रा अग्रवाल, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल एवं वी. कृष्णा राव.
[इस आयोजन के अन्य चित्र यहाँ देखे जा सकते हैं.]
इस सारस्वत आयोजन के लिए 'भास्वर भारत' के सभी सभी मित्रों को साधुवाद। हिन्दी और देवनागरी का भविष्य वस्तुत: ऐसे ही कर्मठ कार्यकर्ताओं के हाथों सुरक्षित है जो प्रचारात्मकता से दूर चुपचाप अपना कार्य किए जा रहे हैं। सभी को दीपपर्व पर मंगलमय शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएं"कथा-कथन" सुनने का यह मेरे जीवन का पहला अनुभव था और निःसंदेह यह मेरे जीवन का एक यादगार दिन रहा । डॉ अशोक भाटिया जी को अनेकानेक बधाइयाँ कि उन्होंने आम जीवन से चुनकर शब्दों को इस तरह पिरोया है कि हर कहानी लगता है कहीं न कहीं हमसे जुडी है । दक्षिण भारतीय हिंदी प्रचार सभा परिवार को प्रणाम इस सफल आयोजन के लिये ।।
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