मंगलवार, 27 नवंबर 2012

RISHABHA ON STREE BHASHA

1 टिप्पणी:

  1. अच्छा और ज्ञानवर्धक लगा| स्त्री के सम्बन्ध में हम लोग इतने बंधे-बंधे दायरे में सोचने के आदी हैं कि भाषा में उसकी मुक्ति जल्दी समझ में नहीं आती| यह भाषण हमारे इस सोच पर हमला प्रतीत होता है| लेकिन इसमें बुरा क्या है? हमारी जड़ताओं पर लगातार हमलों की ज़रूरत है| निरंतर आक्रमण हों और ताकत के साथ हों, तो हमारे बदलने का रास्ता खुले| बाकी, स्त्री-भाषा की सैद्धांतिकी तो बन ही रही है............ देवराज

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