हैदराबाद, 31 दिसंबर, 2012.
यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार
सभा के सभागार में प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल के 88 वें जन्मदिन पर ‘हिंदी
उपन्यास साहित्य को श्रीलाल शुक्ल की देन’ विषयक एकदिवसीय राष्ट्रीय
संगोष्ठी आयोजित की गई. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ‘भास्वर
भारत’ पत्रिका के संपादक डॉ.राधेश्याम शुक्ल ने कहा कि श्रीलाल
शुक्ल ने अपने साहित्य द्वारा पाठकों को सामाजिक और राजनैतिक भ्रष्टाचार और
विसंगतियों के विरुद्ध आंदोलित किया. उन्होंने आगे कहा कि साहित्य में व्यक्त
होनेवाले विचारों को आंदोलन का रूप दिए जाने की आवश्यकता है ताकि समाज में उच्च
मानवीय मूल्यों की स्थापना हो सके.
मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के निदेशक कुमार विश्वजीत सपन ने साहित्य की सामाजिक
भूमिका की ओर ध्यान दिलाया और कहा कि लगभग 40-50 साल पहले लिखे गए ‘राग
दरबारी’ में श्रीलाल शुक्ल ने गाँव का जैसा चित्र खींचा था, आज के भारतीय गाँवों का चेहरा उसकी तुलना में बहुत अधिक विकृत हो
चुका है; ऐसे यथार्थवादी लेखन ने ही उन्हें कालजयी
कीर्ति प्रदान की है. विश्वजीत सपन ने स्वरचित गज़ल का
सस्वर वाचन भी किया.
बीज व्याख्यान उसमानिया
विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम बोर्ड की अध्यक्ष प्रो.शुभदा वांजपे ने दिया.
प्रो.शुभदा वांजपे ने अपने विद्वत्तापूर्ण भाषण में यह प्रतिपादित किया कि श्रीलाल
शुक्ल ग्रामकथा की दृष्टि से प्रेमचंद और रेणु की परंपरा में होते हुए भी
ग्राम जीवन की विद्रूपता की व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति के कारण हिंदी उपन्यास
साहित्य में अपना अलग विशिष्ट स्थान रखते हैं.
इस अवसर पर इफ्लू के पूर्व हिंदी
विभागाध्यक्ष प्रो.एम.वेंकटेश्वर ने राही मासूम रज़ा और विभूति नारायण राय के
उपन्यासों के साथ श्रीलाल शुक्ल के उपन्यासों की तुलना करते हुए उन्हें हिंदी में
राजनैतिक व्यंग्यप्रधान उपन्यासकार के रूप में उच्च स्थान का अधिकारी बताया.
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के
अध्यक्ष प्रो.ऋषभ देव शर्मा ने श्रीलाल शुक्ल की व्यंग्य शैली की मौलिकता की ओर
ध्यान दिलाया और कहा कि पूर्णाकार व्यंग्यात्मक उपन्यास के क्षेत्र में
श्रीलाल शुक्ल ने अभिव्यक्ति की नई पद्धति की खोज
की और हिंदी उपन्यास साहित्य को व्यापकता प्रदान
की.
आरंभ में आकाश तिवारी ने शंखनाद
करके सरस्वती वंदना की तथा कार्यक्रम की संयोजक डॉ.सीमा मिश्रा ने विषय
प्रवर्तन करते हुए कहा कि श्रीलाल शुक्ल ने अपने प्रशासकीय जीवन में जो विशिष्ट
अनुभव प्राप्त किए, उन्हें उन्होंने अभिधा में व्यक्त न करके
व्यंग्य के माध्यम से इस प्रकार व्यक्त किया कि उसकी चोट करने की शक्ति बढ़ गई.
उल्लेखनीय है कि सीमा मिश्रा ने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा से श्रीलाल शुक्ल के
साहित्य पर एम.फिल. और पीएच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त की हैं तथा श्रीलाल शुक्ल पर
उनकी एक पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है. इस उपलक्ष्य में सीमा मिश्रा ने अपनी शोध
निर्देशक डॉ.गुर्रमकोंडा नीरजा का सारस्वत सम्मान करते हुए उन्हें स्मृति
चिह्न भेंट किया.
इस अवसर पर पंसरिया से पधारे
वयोवृद्ध कवि पं.सूर्य प्रसाद तिवारी के अतिरिक्त वरिष्ठ कवयित्री डॉ.अहिल्या
मिश्र और ठाकुर शंकर सिंह ने भी श्रीलाल शुक्ल के कथासाहित्य के अलग अलग पक्षों पर
अपने विचार व्यक्त किए.
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में
पर्यावरणवादी वयोवृद्ध कवि डॉ.किशोरीलाल व्यास ‘नीलकंठ’ की ‘यहाँ मच्छर नहीं है’ और ‘धरती सागर पर्यावरण’ शीर्षक दो पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गया.
कार्यक्रम में विनीता शर्मा, डॉ. देवेंद्र शर्मा, संगीता जी, नागेश्वर राव, राधाकृष्ण मिरियाला, प्रमोद परीट, ज्योति नारायण, डॉ.एम. रंगय्या, डॉ. रमा द्विवेदी, आशा देवी सोमानी, मंजू शर्मा, डॉ.रामुलु,
रामकृष्ण, शिवकुमार, अजय कुमार मौर्य सहित नगरद्वय के अनेक
साहित्य प्रेमी और शोध छात्र उपस्थित रहे. संचालन श्रीमिलिंद प्रकाशन की
प्रबंधक विभा भारती ने किया.
[प्रस्तुति- डॉ. सीमा मिश्र]
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