दिल्ली, 14 सितम्बर 2014.
हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में नांगलोई क्षेत्र में साहित्य नभ संस्था की ओर से काव्य गोष्ठी का कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न हुआ.
पेश है कार्यक्रम की कुछ झलकिया--
कार्यक्रम की अध्यक्षता सेवानिवृत प्रवक्ता यस्शवी कवि .कहानीकार पंडित हरनाम शर्मा जी ने की. मुख्य अतिथि श्री किशोर श्रीवास्तव जी थे.
मेरे साथी मित्र लघु कथाकार अनिल शूर आजाद जी के किसी कारणवश न आ पाने के कारण मंच सञ्चालन का कार्यभार श्री ललित कुमार मिश्र जी को सौपा गया.
मकेश जी ने अपनी कविता "सिसकता गॉव बिलखती गलियां " से लोगो का मन मोह लिया और खूब तालिय बटोरी.वहीँ राजीव जी ने छोड़ हरकत शैतानो की, बन तू इंसान रे" के माध्यम से युआ पीड़ी को दलदल से बहार रहने का सन्देश दिया.
आलोचना और समीक्षा में महरत रखने वाले संदीप तोमर (मैं) ने सामाजिक विसंगति को आधार बना कुछ क्षणिकाएं प्रस्तुत की, लधु कथा में महारथ रखने वाले संदीप तोमर ने व्यंग्य शैली कविता पाठ करके पुराने साथियों को आश्चर्य चकित किया -
इस बस्ती का जनाब
अजीब मटियामेट है
छत टपकती कमरों की
क्या आलिशान गेट है
मुखी मरती जनता यहाँ
मुखिया धन्नासेठ है .........
साथ ही गजल में भी उन्होंने हाथ आजमाए------
रिश्तों के बोझ से कब दबती है जिन्दगी
मुट्ठी के रेत सी यूँ निकलती है जिन्दगी I ........
कहीं आँखों से आंसूं ही ना छलक जाये "उमंग"
बहाना ही बना दो के कुछ खटकती है जिन्दगी I
मनोज मैथिल की कविता ---- "मेरे पास शब्द नहीं हैं .... क्या तुम मुझे दोगे उधार शब्द "
धारदार हथियार कि तरह पैनापन लिए थी.
अखिलेश द्विवेदी अकेला ने "हे नाथ शक्ति दीजिये" के माध्यम से परमेश्वर का आव्हान किया जिसने अध्यक्ष महोदय का मन मोह लिया.
ललित कुमार मिश्र जी की ने सुनाया---- " गुजर जाता हूँ मैं आज भी उन गलियों से ..... जहा तेरा आना जाना था" उनकी दूसरी कविता "आ जाओ प्रिये" में वो अन्यास ही अपनी प्रेयसी का आह्वान करते हैं .जो निश्चित ही रचना कर्म का एक अभिन्न हिस्सा है.
शशि श्रीवास्तव ने "मेरे दो मन है" काश मेरे घर में होती एक अदद बेटी " नमक रचनाये सुनाई. पहली बार उसके मुख से कविता सुनकर अच्छा लगा.
एक और कवयित्री भावना ने " आज मैं बहुत उदास हूँ " कविता के माध्यम से लोगो कि रही सही उदासी को भी दूर किया.
संजय कुमार कश्यप ने जिस प्रकार मंच संचालक के बिना आग्रह के मंच पर " माँ "और "पिता " विषय पर काव्य पाठ किया वो बेहद प्रशंशनीय था. असल में पता चला कि कवि में अगर उर्जा अहि तो बस मंच काफी है. कविता के उद्गारों के लिए समय का क्यों इंतज़ार किया जाये. उनकी कविता "चाँद कि चांदनी गर मुझे मिल जाये" भी काफी अच्छी रचना रही.
किशोर श्रीवास्तव ने दो गीत सुनाये ----
"उसकी पल पल की ख़बरों से
रूबरू हो जाती है सारी दुनिया "
और
"नहीं अलगाव की हम बात किया करते है
हम तो हर सख्स से खुल के मिला करते है"
गीत बेहद लाजबाब थे.
अध्यक्ष महोदय ने भी आधुनिक उग की कविता सुनाकर सभी कनिष्ठ साथियों को कविता लिखने के राज़ बताये. और उनके अध्यक्षीय भाषण से सभी को प्रेरणा मिली. और उन्होंने सभी साहित्य नभ परिवार के सदस्यों को आगामी कार्यक्रमों कि रुपरेखा के लिए भी प्रेरित किया.
प्रस्तुति -संदीप तोमर , दिल्ली
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