सोमवार, 1 सितंबर 2014

ज्योति नारायण की काव्यकृति 'शब्द ज्योति' लोकार्पित




ज्योति नारायण की काव्यकृति 'शब्द ज्योति' लोकार्पित 

हैदराबाद, २ सितंबर २०१४ [मीडिया विज्ञप्ति].

यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा  के खैरताबाद स्थित सभागार में आथर्स गिल्ड आफ इण्डिया की  स्थानीय इकाई, कादम्बिनी क्लब, सांझ के साथी और साहित्य मंथन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक समारोह में दिल्ली से पधारे कवि-समीक्षक उपेन्द्र कुमार ने प्रतिष्ठित कवयित्री ज्योति नारायण के पांचवें काव्यसंग्रह ''शब्द ज्योति'' को लोकार्पित किया. उन्होंने मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि इस संग्रह की कविताओं में मुख्य अर्थ के स्थान पर विस्थापित अर्थ के अधिक महत्वपूर्ण होने के कारण  ये रचनाएँ विशेष रूप से ध्यान खींचती हैं. उन्होंने आगे कहा कि ज्योति नारायण की ये कविताएँ उनकी रचनायात्रा की प्रगति की सूचक हैं. 


विमोचित कृति की समीक्षा करते हुए प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने कहा कि इस पुस्तक में मुख्य रूप से प्रकृति के माध्यम से स्त्री विमर्श को उभारा गया है तथा समकालीन सामाजिक-राजनैतिक सरोकारों पर भी मार्मिक व्यंग्य किया गया है जो कवयित्री की गीति-रचनाओं से नितांत भिन्न प्रतीत होता है. साथ ही डॉ. अहिल्या मिश्र और प्रो. टी. मोहन सिंह ने रचनाकार को शुभकामनाएं दीं तथा भविष्य में श्रेष्ठतर रचनाधर्मिता की अपेक्षा जताई.

समारोह की अध्यक्षता कर रहे प्रो. एम.वेंकटेश्वर ने विस्तार से कवयित्री के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए अपने संबोधन में यह बताया कि 'शब्द ज्योति' में संग्रहीत कविताएँ संवेदना और शिल्प दोनों के स्तर पर प्रौढ़ तथा परिपक्व रचनाएँ हैं. उन्होंने मातृत्व, कन्या भ्रूण ह्त्या और साम्प्रदायिक संबंधों पर केंद्रित कविताओं का विवेचन करते हुए कहा कि कवयित्री का रचना-संसार उनकी पिछली कृतियों की तुलना में प्रशस्त और विस्तृत हुआ है.

आरम्भ में प्रो. बाल कृष्ण शर्मा रोहिताश्व ने मुख्य अतिथि का परिचय दिया और आयोजकों ने आगंतुकों का स्वागत-सत्कार किया. नगरद्वय के साहित्यिकों की ओर से कवयित्री ज्योति नारायण का सारस्वत सम्मान भी किया गया. इस अवसर पर कवयित्री ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया और प्रेम शंकर नारायण तथा डॉ. गोरख नाथ तिवारी ने धन्यवाद प्रकट किया.

रिपोर्ट - डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, सहसंपादक 'स्रवन्ति', दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद-५००००४.



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