रविवार, 30 नवंबर 2014
गुरुवार, 27 नवंबर 2014
अखिल भारतीय हिन्दी अधिकारी सम्मेलन
रामोजी फिल्मसिटी , हैदराबाद |
दिनांक 14 एवं 15 नवम्बर , 2014 को हैदराबाद स्थित रामोजी फिल्मसिटी के सितारा होटल के सम्मेलन कक्ष में दि "न्यू इंडिया एश्योरंस कंपनी लिमिटेड " अखिल भारतीय हिन्दी अधिकारी सम्मेलन का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया | यह सम्मेलन प्रधान कार्यालय द्वारा प्रायोजित था जिसका आयोजन हैदराबाद क्षेत्रीय कार्यालय ने किया |
सम्मेलन की अध्यक्षता श्री पी नायक , महा प्रबन्धक प्रधान कार्यालय ने किया | श्री संजीव सिंह , उप महा प्रबन्धक प्रधान कार्यालय ने सम्मेलन की हिन्दी कार्यान्वयन में भूमिका पर प्रकाश डाला |
श्री के वी कृष्णा , उप महा प्रबन्धक हैदराबाद क्षेत्रीय कार्यालय ने स्वागत भाषण दिया |
सम्मेलन के मुख्य अतिथि प्रो. ऋषभदेव शर्मा , प्रोफेसर एवं अध्यक्ष ,उच्च शिक्षा और शोध संस्थान ,दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा , खैरताबाद , थे | श्री शर्मा ने संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी के औचित्य पर प्रकाश डाला और हिन्दी के प्रचार -प्रसार में हिन्दीतर भाषियों के योगदान की चर्चा की |
सम्मेलन में भारत के विभिन्न प्रांतों से हिन्दी अधिकारियों और प्रतिनिधियों ने भाग लिया |
सम्मेलन की शुरूआत में हैदराबाद क्षेत्रीय कार्यालय के राजभाषा अधिकरी , कुमार अनिल मलदहियार ने सभी प्रतिभागियों का अभिनंदन किया और पदाधिकारियों एवं मुख्य अतिथि को मंचासीन होने का निमंत्रण दिया | उसके बाद दीप प्रज्ज्वल्न ,सरस्वती वंदना और इतनी शक्ति हमें देना दाता गान की प्रस्तुति प्रधान कार्यालय की टीम द्वारा किया गया और सम्मेलन की कार्रवाई शुरू हो गई |
अध्यक्षीय भाषण के पश्चात मुख्य अतिथि को स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया |
चायपान के बाद (क ) और (ख) क्षेत्र का पॉवर पाइंट प्रजेंटेशन हुआ |
दिनांक 15 नवम्बर को (ग ) क्षेत्र का पॉवर पाइंट प्रजेंटेशन हुआ | उसके बाद खुला सत्र हुआ |
तत्पश्चात पुरस्कार वितरण हुआ और राष्ट्रीय गान के साथ समेलन एक खुशनुमा वातावरण में सम्पन्न हुआ |
- कुमार अनिल मलदहियार
राजभाषा अधिकारी , हैदराबाद क्षेत्रीय कार्यालय
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रविवार, 23 नवंबर 2014
(लोकार्पण) 'धूप ने कविता लिखी है'
तेवरी आंदोलन को प्रारंभ हुए तीन दशक से अधिक बीत चुके हैं। इस अवधि में हिंदी का यह काव्यांदोलन इतिहास की पुस्तकों में तो अपनी जगह नहीं बना पाया, लेकिन इससे जुड़े रचनाकारों ने अपनी आवाज़ को किसी प्रकार के समझौते नहीं करने दिए। उन्होंने प्रारंभ में जिस तरह नगरों, गाँवों, सड़कों और खेतों से जुड़ाव घोषित किया था, वह कम नहीं हुआ। इस समय वे जहाँ-जहाँ हैं, अपने चारों ओर फैली विषाक्त हवाओं के विरुद्ध अवसर निकाल-निकाल कर आवाज उठा रहे हैं। कई बार इनकी आवाज़ें दूर तक अपनी गूँज का विस्तार करती महसूस की जाती हैं और कई बार उन्हें अनसुना कर दिया जाता है। यह तरह-तरह की सत्ताओं का प्रतिरोध की कविता के साथ किया जाने वाला व्यवहार है, जो हमेशा से होता आया है। तेवरी आंदोलन से जुड़े रचनाकार इस तथ्य को जानते हैं, इसीलिए वे सत्ता को निरंतर नकारते हैं और जनता की सही आवाज़ बनने के रास्ते तलाशते रहते हैं। उनकी संख्या कम है, और कम होती चली जाए, उनके साथ आने से सुविधाजीवी रचनाकार कतराते रहें या और जो भी हो, उनकी बला से।
ऋषभदेव शर्मा के लिए भी सत्ता नाराज़ हो जाए, उनकी बला से, वे जनाक्रोश का पसीना पोंछ-पोंछ कर उसे उकसाते रहेंगे और मौक़ा मिलते ही जनांदोलन में बदल जाने को प्रेरित करते रहेंगे। उनके लिए सत्ता ख़ूबसूरत से ख़ूबसूरत रूप धारण करने की कोशिश करके लगातार भ्रमबिंबों का एक जाल रचती रहती है। इस जाल में असंख्य सूर्य, चंद्रमा, तारे, धरा-गोलार्ध, आपस में गड्ड-मड्ड हुए उल्टे-सीधे चक्कर काटते रहते हैं, ज्वालामुखियों से लावे की जगह बर्फ फूट-फूट कर पहाड़ों-जंगलों से उनकी असली पहचान छीनने की साजिश रचती रहती है और स्थानीयता से वैश्विकता के बीच का शोर विमर्शों की दलदल में बदलता रहता है। भ्रमबिंबों के इस जाल का शिकार भी जनता होती है और उत्तर भी वही बनती है। यहाँ से सत्ता, जनता और रचनाकार के रिश्तों का अग्नि-मार्ग निर्मित होता है, जिस पर चलना सत्ता के लिए कभी संभव नहीं होता, जबकि शेष दोनों सहयात्री बन कर आगे बढ़ते रहते हैं।
‘धूप ने कविता लिखी है’ की तेवरियाँ मुझे इस अहसास के सामने लाकर खड़ा करती हैं। इनकी आँच को सहना मेरे लिए कठिन है। ये कभी भी, कहीं भी जला सकती हैं। किसी भी बिंदु पर असहज कर देने वाले सवालों के दायरे निर्मित करके मुझे उनके भीतर खींच सकती हैं। मुझे लगता है कि अगर आपने इन्हें एक से अधिक बार पढ़ने की हिम्मत दिखाई, तो आप भी इनके आसान शिकार बन सकते हैं, सो इन तेवरियों को अधलेटे होकर या बिस्तर पर चादर ओढ़ कर या मन समझाने के लिए न पढ़ें। इन्हें वे लोग भी न पढ़ें, जिनकी रीढ़ की हड्डी सीधी न हो और जो सत्ता की दलाली को जीवन-ध्येय बना चुके हों। जनता की पक्षधरता का हलफ उठाने वाले इन तेवरियों को पढ़ते हुए सहजता अनुभव करेंगे। उन्हें इनके संगसाथ में संघर्ष के नए रास्ते भी आवाज़ लगाते दिख जाएँगे।
ऋषभदेव शर्मा के इस नए संग्रह की अधिकांश तेवरियाँ बरसों पहले रची गई हैं और शहरी गोष्ठियों से लेकर गंगधाडी के आसपास खलिहानों में किसानों की प्रशंसा बटोर चुकी हैं। किताब में इन्हें देर से जगह मिल रही है, इसके पीछे तेवरीकार का संकोच है या कुछ और, यह केवल रचनाकार को ही पता है। मेरे लिए यह संग्रह संतोष का बड़ा कारण इसलिए है कि इसके प्रकाशन से तेवरी काव्यांदोलन को पुनर्वार नवीन ऊर्जा प्राप्त होगी।
शुभकामनाएँ................
विजयादशमी, 2014 देवराज
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
गांधी हिल्स, वर्धा-442 005 (महाराष्ट्र)
शनिवार, 22 नवंबर 2014
(लोकार्पण) 'तेलुगु साहित्य का हिंदी अनुवाद : परंपरा और प्रदेय'
बुधवार, 19 नवंबर 2014
डॉ. जोराम यालाम नाबाम को प्रथम साहित्य मंथन सृजन पुरस्कार प्रदत्त
प्रथम ‘साहित्य मंथन सृजन पुरस्कार’ ग्रहण करते हुए अरुणाचल प्रदेश की हिंदी लेखिका डॉ. जोराम यालाम नाबाम. साथ में – प्रो. एन. गोपि, पद्मश्री जगदीश मित्तल, प्रो. एम. वेंकटेश्वर और विवेक नाबाम. |
विशिष्ट अतिथि प्रो. देवराज के संबोधन को सुनते हुए तल्लीन श्रोता. |
हैदराबाद, 15 नवंबर 2014..
‘मेरी माँ कहती थी कि चमत्कार पर विश्वास मत करो बल्कि चमत्कार को देखना सीखो. आज मेरी माँ मुझे याद आ रही है क्योंकि हैदराबाद के इस सभागार में मेरे लिए चमत्कार हो रहा है. मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि प्रेम के इस शहर में मुझे इतने महत्वपूर्ण पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है. मेरे पास शब्द नहीं है कि इस खुशी को अभिव्यक्त कर सकूँ. बस महसूस कर रही हूँ. मुझे लग रहा है कि ‘साहित्य मंथन’ ने मुझ पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी डाल दी है कि मैं लगातार अधिक से अधिक लिखती रहूँ.’
ये उद्गार अरुणाचल प्रदेश की पहली हिंदी कथाकार डॉ. जोराम यालाम नाबाम ने ‘साहित्य मंथन’ के तत्वावधान में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के खैरताबाद स्थित सम्मेलन कक्ष में संपन्न सम्मान समारोह में प्रथम ‘साहित्य मंथन सृजन पुरस्कार’ ग्रहण करते हुए प्रकट किए. यह पुरस्कार उन्हें वर्ष 2013 में प्रकाशित उनकी कथाकृति ‘साक्षी है पीपल’ पर प्रदान किया गया.
समारोह में उपस्थित सभी साहित्यप्रेमी उस समय अभिभूत हो उठे जब डॉ. यालाम ने अपने वक्तव्य का समापन करते हुए कहा कि ‘मैं अपने हृदय की पूरी श्रद्धा के साथ यह पुरस्कार शिरोधार्य करते हुए पूर्ण पवित्रता का अनुभव कर रही हूँ.’ आज जब साहित्यिक पुरस्कारों को लेकर पुरस्कारदाता संस्था और पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं के मन में केवल लेन-देन की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है वहाँ जोराम यालाम नाबाम द्वारा पुरस्कार की स्वीकृति का यह भाव एक नई आश्वस्ति को जन्म देता है.
उल्लेखनीय है कि ‘साहित्य मंथन सृजन पुरस्कार’ का प्रवर्तन पं. चतुर्देव शास्त्री की स्मृति में इसी वर्ष किया गया है. संस्था की अध्यक्ष डॉ. पूर्णिमा शर्मा ने बताया कि यह पुरस्कार प्रति वर्ष साहित्य, समाजविज्ञान और संस्कृति संबंधी प्रकाशित कृति पर एक-एक वर्ष के क्रम में प्रदान किया जाएगा. पुरस्कार के अंतर्गत 11,000 रुपए की सम्मान राशि, प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिह्न, शाल, श्रीफल और लेखन सामग्री सम्मिलित हैं.
डॉ. यालाम को पुरस्कार प्रदान करते हुए ‘नानीलु’ के प्रवर्तक और साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत प्रतिष्ठित तेलुगु कवि प्रो. एन. गोपि ने कहा कि यह मात्र डॉ. यालाम का ही सम्मान नहीं बल्कि पूर्वोत्तर की हिंदी रचनाशीलता का सम्मान है. उन्होंने ध्यान दिलाया कि हिंदी ही भारत को अखंड बनाने वाली भाषा है. यालाम की कहानियों में मुखरित स्त्री वेदना को उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के जनजातीय परिवेश का सच बताया.
विश्वप्रसिद्ध कला संग्राहक पद्मश्री जगदीश मित्तल ने दीप प्रज्वलन करके कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन करते हुए कहा कि डॉ. यालाम को सम्मानित कर ‘साहित्य मंथन’ ने एक अनूठी पहल की है. यह सिलसिला बना रहना चाहिए.
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय से पधारे प्रो. देवराज ने अपने वक्तव्य में अरुणाचल सहित समस्त पूर्वोत्तर भारत की सांस्कृतिक विरासत और पौराणिक कथाओं का उल्लेख करते हुए आह्वान किया कि उस समस्त अलिखित संपदा को हिंदी के माध्यम से देश और दुनिया के सामने लाया जाना चाहिए. इस दिशा में पुरस्कृत लेखिका के प्रयासों की उन्होंने मुक्त कंठ से सराहना की.
समारोह की अध्यक्षता करते हुए अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. एम. वेकटेश्वर ने कहा कि अरुणाचल में जीवन को रोज एक नई चुनौती का सामना करना पड़ता है. ऐसे में वहाँ की स्त्रियाँ अपने अदम्य साहस के बल पर विषम परिस्थितियों से दो-दो हाथ करती हैं तथा डॉ. यालाम के कहानी सग्रह ‘साक्षी है पीपल’ में अरुणाचल की जनजातियों की इसी स्त्री का दर्द अभिव्यक्त हुआ है.
इस अवसर पर अरुणाचल प्रदेश के पौराणिक आख्यानों पर आधारित डॉ. जोराम यालाम नाबाम की हिंदी पुस्तक ‘तानी मोमेन’ (पुरखों की लीलास्थली) के विवेक नाबाम द्वारा किए गए अंग्रेजी अनुवाद को भी डॉ. एम. वेंकटेश्वर ने लोकार्पित किया.
समारोह का संचालन डॉ. जी. नीरजा ने किया तथा ‘साहित्य मंथन’ के संस्थापक डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने आभार प्रकट किया.
प्रस्तुति : डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
सोमवार, 10 नवंबर 2014
साहित्य मंथन सृजन पुरस्कार समारोह 15 नवंबर को
साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था ‘साहित्य मंथन’ द्वारा स्थापित ‘साहित्य मंथन सृजन पुरस्कार’ प्रदान किए जाने के संदर्भ में आगामी 15 नवंबर (शनिवार) को अपराह्न 4 बजे दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के खैरताबाद स्थित परिसर में एक सम्मान समारोह का आयोजन किया जा रहा है. इस समारोह में अरुणाचल प्रदेश की युवा कथाकार डॉ. जोराम यालाम नाबाम को उनके 2013 में प्रकाशित कहानी संग्रह ‘साक्षी है पीपल’ के लिए प्रथम ‘साहित्य मंथन सृजन पुरस्कार’ प्रदान किया जाएगा.
पुरस्कार के संस्थापक डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने बताया कि पुरस्कृत लेखिका डॉ. जोराम यालाम नाबाम ने अपनी कहानियों के माध्यम से अरुणाचल प्रदेश की बहु-जनजातीय संस्कृति के अंकन के साथ साथ वहाँ के स्त्री समाज की दशा का जो प्रामाणिक चित्रण किया है वह हिंदी साहित्य में अपने प्रकार की पहली घटना है. उन्होंने यह भी बताया कि पुरस्कृत लेखिका स्वयं जनजातीय समुदाय से संबद्ध हैं और उन्होंने विभिन्न जनजातियों की भाषा और संस्कृति का गहन अध्ययन किया है.
पुरस्कार समारोह की अध्यक्षता अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. एम. वेंकटेश्वर करेंगे. बतौर मुख्य अतिथि वरिष्ठ तेलुगु साहित्यकार प्रो. एन. गोपि लेखिका को पुरस्कार स्वरूप ग्यारह हजार रुपए की सम्मान राशि, प्रशस्ति पत्र, शाल और स्मृति चिह्न समर्पित करेंगे. समारोह का उद्घाटन विख्यात कला समीक्षक पद्मश्री जगदीश मित्तल करेंगे तथा महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के अधिष्ठाता प्रो. देवराज विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे.
समारोह की व्यवस्था समिति की आज संपन्न बैठक में यह भी तय किया गया कि इस अवसर पर पुरस्कृत लेखिका का हैदराबाद की विभिन्न हिंदी संस्थाओं की ओर से सारस्वत सम्मान भी किया जाएगा. समारोह की व्यवस्था समिति में गुरुदयाल अग्रवाल, ज्योति नारायण, डॉ. मंजु शर्मा, डॉ. बी. बालाजी, डॉ. पूर्णिमा शर्मा, डॉ. सय्यद मासूम रज़ा एवं वी. कृष्णा राव उपस्थित रहें. समारोह संयोजक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने समस्त साहित्य प्रेमियों से इस कार्यक्रम में पधारने की अपील की है.
शनिवार, 1 नवंबर 2014
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