रविवार, 23 नवंबर 2014

(लोकार्पण) 'धूप ने कविता लिखी है'

ऋषभदेव शर्मा के सातवें कविता संग्रह 'धूप ने कविता लिखी है' (२०१४) का
लोकार्पण करते हुए पद्मश्री जगदीश मित्तल (दाएँ से तीसरे).
साथ में दाएँ से - विवेक नाबाम, प्रो. एन. गोपि, प्रो. एम. वेंकटेश्वर,
डॉ. जोराम यालाम नाबाम, प्रो. ऋषभदेव शर्मा, लिपि भारद्वाज,
कुमार लव, डॉ. पूर्णिमा शर्मा और डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा.


हैदराबाद १५ नवंबर २०१४. 

यहाँ 'साहित्य मंथन' द्वारा दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सम्मलेन कक्ष में प्रो. एम. वेंकटेश्वर की अध्यक्षता में आयोजित एक समारोह में कवि ऋषभदेव शर्मा के सातवें कविता संग्रह 'धूप ने कविता लिखी है' को लोकार्पित किया गया. लोकार्पण विश्व विख्यात कला संग्राहक और समीक्षक पद्मश्री जगदीश मित्तल ने किया. इस अवसर पर पुस्तक के भूमिका लेखक प्रो. देवराज के अतिरिक्त अरुणाचल प्रदेश से आए हुए विवेक नाबाम और डॉ. जोराम यालाम नाबाम ने शुभकामनाएँ व्यक्त कीं.प्रसिद्ध तेलुगु साहित्यकार प्रो. एन. गोपि ने आशीर्वचन दिए. पुस्तक की लोकार्पित प्रति युवा कवि कुमार लव और फोटोपत्रकार लिपि भारद्वाज ने स्वीकार की. 
 
उल्लेखनीय है कि 'धूप ने कविता लिखी है' में ऋषभदेव शर्मा की १२६ तेवरियाँ संकलित हैं. स्मरणीय है कि उन्होंने तेवरी काव्यांदोलन का प्रवर्तन १९८१ में किया था और १९८२ में प्रो. देवराज ने इसका घोषणापत्र तैयार किया था. तदुपरांत प्रथम तेवरी संकलन (तेवरी) की भूमिका के अंतर्गत इन दोनों तेवारीकारों (डॉ. देवराज और ऋषभदेव शर्मा) ने तेवरी काव्यांदोलन की आधिकारिक घोषणा की थी. 'धूप ने कविता लिखी है' में इन दोनों दस्तावेजों (घोषणापत्र और आधिकारिक घोषणा) का भी समावेश किया गया है. साथ ही तेवरी काव्यांदोलन के उद्भव और विकास पर भी एक शोधपरक आलेख सम्मिलित है. 

'धूप ने कविता लिखी है' (२०१४) की भूमिका तेवरी काव्यांदोलन के घोषणापत्र के लेखक डॉ. देवराज ने लिखी है और उसे शीर्षक दिया है - 'कल धमाके में मरा जो, कौन था.......' इस भूमिका को यहाँ अविकल रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है - 



कल धमाके में मरा जो, कौन था.........
प्रो. देवराज 
धूप ने कविता लिखी है / ऋषभदेव शर्मा/ २०१४/ श्रीसाहिती प्रकाशन, हैदराबाद
पृष्ठ - १६८/ मूल्य - रु. २००/ ISBN - 978-93-5174-509-9 
तेवरी आंदोलन को प्रारंभ हुए तीन दशक से अधिक बीत चुके हैं। इस अवधि में हिंदी का यह काव्यांदोलन इतिहास की पुस्तकों में तो अपनी जगह नहीं बना पाया, लेकिन इससे जुड़े रचनाकारों ने अपनी आवाज़ को किसी प्रकार के समझौते नहीं करने दिए। उन्होंने प्रारंभ में जिस तरह नगरों, गाँवों, सड़कों और खेतों से जुड़ाव घोषित किया था, वह कम नहीं हुआ। इस समय वे जहाँ-जहाँ हैं, अपने चारों ओर फैली विषाक्त हवाओं के विरुद्ध अवसर निकाल-निकाल कर आवाज उठा रहे हैं। कई बार इनकी आवाज़ें दूर तक अपनी गूँज का विस्तार करती महसूस की जाती हैं और कई बार उन्हें अनसुना कर दिया जाता है। यह तरह-तरह की सत्ताओं का प्रतिरोध की कविता के साथ किया जाने वाला व्यवहार है, जो हमेशा से होता आया है। तेवरी आंदोलन से जुड़े रचनाकार इस तथ्य को जानते हैं, इसीलिए वे सत्ता को निरंतर नकारते हैं और जनता की सही आवाज़ बनने के रास्ते तलाशते रहते हैं। उनकी संख्या कम है, और कम होती चली जाए, उनके साथ आने से सुविधाजीवी रचनाकार कतराते रहें या और जो भी हो, उनकी बला से। 

ऋषभदेव शर्मा के लिए भी सत्ता नाराज़ हो जाए, उनकी बला से, वे जनाक्रोश का पसीना पोंछ-पोंछ कर उसे उकसाते रहेंगे और मौक़ा मिलते ही जनांदोलन में बदल जाने को प्रेरित करते रहेंगे। उनके लिए सत्ता ख़ूबसूरत से ख़ूबसूरत रूप धारण करने की कोशिश करके लगातार भ्रमबिंबों का एक जाल रचती रहती है। इस जाल में असंख्य सूर्य, चंद्रमा, तारे, धरा-गोलार्ध, आपस में गड्ड-मड्ड हुए उल्टे-सीधे चक्कर काटते रहते हैं, ज्वालामुखियों से लावे की जगह बर्फ फूट-फूट कर पहाड़ों-जंगलों से उनकी असली पहचान छीनने की साजिश रचती रहती है और स्थानीयता से वैश्विकता के बीच का शोर विमर्शों की दलदल में बदलता रहता है। भ्रमबिंबों के इस जाल का शिकार भी जनता होती है और उत्तर भी वही बनती है। यहाँ से सत्ता, जनता और रचनाकार के रिश्तों का अग्नि-मार्ग निर्मित होता है, जिस पर चलना सत्ता के लिए कभी संभव नहीं होता, जबकि शेष दोनों सहयात्री बन कर आगे बढ़ते रहते हैं। 

‘धूप ने कविता लिखी है’ की तेवरियाँ मुझे इस अहसास के सामने लाकर खड़ा करती हैं। इनकी आँच को सहना मेरे लिए कठिन है। ये कभी भी, कहीं भी जला सकती हैं। किसी भी बिंदु पर असहज कर देने वाले सवालों के दायरे निर्मित करके मुझे उनके भीतर खींच सकती हैं। मुझे लगता है कि अगर आपने इन्हें एक से अधिक बार पढ़ने की हिम्मत दिखाई, तो आप भी इनके आसान शिकार बन सकते हैं, सो इन तेवरियों को अधलेटे होकर या बिस्तर पर चादर ओढ़ कर या मन समझाने के लिए न पढ़ें। इन्हें वे लोग भी न पढ़ें, जिनकी रीढ़ की हड्डी सीधी न हो और जो सत्ता की दलाली को जीवन-ध्येय बना चुके हों। जनता की पक्षधरता का हलफ उठाने वाले इन तेवरियों को पढ़ते हुए सहजता अनुभव करेंगे। उन्हें इनके संगसाथ में संघर्ष के नए रास्ते भी आवाज़ लगाते दिख जाएँगे। 

ऋषभदेव शर्मा के इस नए संग्रह की अधिकांश तेवरियाँ बरसों पहले रची गई हैं और शहरी गोष्ठियों से लेकर गंगधाडी के आसपास खलिहानों में किसानों की प्रशंसा बटोर चुकी हैं। किताब में इन्हें देर से जगह मिल रही है, इसके पीछे तेवरीकार का संकोच है या कुछ और, यह केवल रचनाकार को ही पता है। मेरे लिए यह संग्रह संतोष का बड़ा कारण इसलिए है कि इसके प्रकाशन से तेवरी काव्यांदोलन को पुनर्वार नवीन ऊर्जा प्राप्त होगी। 

शुभकामनाएँ................ 
विजयादशमी, 2014                                                                                                                   देवराज 

                                                                                         महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय 
                                                                                                         गांधी हिल्स, वर्धा-442 005 (महाराष्ट्र)


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