रविवार, 12 जनवरी 2025

‘भारत-ऑस्ट्रेलिया साहित्य सेतु’ ने ऑनलाइन मनाया ‘विश्व हिंदी दिवस समारोह’



विश्वभर के ज्ञान की खिड़की बनने की ओर अग्रसर  हिंदी

10 जनवरी, 2025, 
एनसीआर दिल्ली/ लंदन (मीडिया विज्ञप्ति)।

विश्व हिंदी दिवस (10 जनवरी, 2025) को “भारत-ऑस्ट्रेलिया साहित्य सेतु” के तत्वावधान में “विश्व में हिंदी, हिंदी में विश्व’ विषय पर साहित्य-विमर्श का आयोजन आभासी-माध्यम ज़ूम पर आयोजित किया गया। 

आयोजन की शुरूआत में संस्था के संस्थापक अध्यक्ष अनिल कुमार शर्मा ने ‘साहित्य सेतु’ के मुख्य उद्देश्य के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि  हिंदी भाषा के समग्र प्रसार हेतु यह संस्था 2018 से काम कर रही है । संस्था द्वारा भारत  के साहित्यकारों व प्रवासी  लेखकों को एक मंच पर लाकर हिंदी भाषा एवं साहित्य के विमर्श व गोष्ठियों का आयोजन करना देश व विदेश में अनवरत जारी है।

अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध हिंदी भाषाविज्ञानविद् डॉ. भगवान सिंह ने विषय पर व्यापक चर्चा करते हुए बताया कि बोलियों का भी  संस्कृत भाषा के सुदृढ़ आधार में योगदान है ।भारत सांस्कृतिक एवं भाषाविज्ञान की विरासत का देश है।  हिंदी, बोलियों एवं अन्य भाषाओं से समृद्ध हुई और यही भाव देश को जोड़े रखता है। हिंदी भाषा संस्कृति,समाज एवं संस्कारों की भाषा है।”

नागरी लिपि परिषद प्रमुख डॉ. हरिसिंह पाल ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा, “वैश्विक स्तर पर हिंदी की पैठ बनने लगी है और इसे प्रवासी भारतीय और विदेशी उत्साह के साथ सीखने लगे हैं।”

हैदराबाद के प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कहा "विश्वभर में प्रसार की दृष्टि से हिंदी प्रथम स्थान प्राप्त कर चुकी है। उसकी विविध बोलियों और शैलियों को काटकर अलग करना उचित नहीं है। आशा की जानी चाहिए कि इस अपार संख्याबल का सम्मान करते हुए संयुक्त राष्ट्र भी देर-सबेर हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्ज़ा देगा ही। रही बात हिंदी में विश्व की, तो कहना ग़लत न होगा कि आज इंटरनेट पर लगातार बढ़ती अपनी उपस्थिति के बल पर हिंदी विश्व के समस्त ज्ञान-विज्ञान और साहित्य को ग्रहण करके स्वयं को समृद्ध कर रही है। इसमें अनुवाद की बड़ी भूमिका है। मेरा सपना है कि हमारी हिंदी सही अर्थों में विश्वभर के ज्ञान की खिड़की बन सके।”

इस अवसर पर चंद्रकांत  पाराशर (हिंदीसेवी व एडिटर आईसीएन-हिंदी) ने हिंदी भाषा के व्यावहारिक पक्ष को सामने रखते हुए कहा कि हिंदी के प्रति अंग्रेज़ी मानसिकता के साथियों को अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। हिंदी की बात’ से अधिक हिंदी में बात’ पर बल देने से हमारी वर्तमान व भावी पीढ़ियों के मन में भी हिंदी भाषा के प्रति गौरव, स्वाभिमान, सम्मान व श्रद्धा जागृत होगी, जो कि हम सभी अपने सहज व्यवहार, मन व वाणी के माध्यम से कर सकते हैं।”

मुख्य अतिथि श्रीमती जया वर्मा (लंदन) ने विदेशों में हिन्दी भाषा की दशा एवं दिशा पर विस्तृत विचार व्यक्त किए एवं ‘जहॉं मैं चली, वहाँ हिंदी चली’ कविता प्रस्तुत करते हुए कहा कि लगता है कि हिंदी में विश्व समाविष्ट हो गया है।

डॉ. आर. रमेश आर्य  (भूतपूर्व निदेशक, राजभाषा विभाग) ने कहा कि “आदिवासी समूहों एवं जनजातियों की बोलियों को भी हिंदी में  स्थान देना होगा। भारत का लोक साहित्य इन बोलियों से प्रभावित है। बोलियों की स्वीकृति  से हमें हिंदी को समृद्ध करने में मदद मिलेगी।”

प्रांजल धर (दिल्ली) ने अपने व्याख्यान में कहा कि “हर साल विश्व हिंदी दिवस पर एक थीम यानी विषय निर्धारित किया जाता है, जो इसके महत्व को दर्शाते हुए इसके प्रचार-प्रसार को सुगम और तेज बनाए। इस बार विश्व हिन्दी दिवस का विषय 'एकता और सांस्कृतिक गौरव की वैश्विक आवाज' रखा गया है, जिसका उद्देश्य भाषाई और अंतरराष्ट्रीय आदान-प्रदान के लिए हिंदी भाषा के उपयोग को बढ़ावा देना है। दरअसल हिंदी को दो-तरफा प्रतिस्पर्धा झेलनी पड़ रही है। वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा तो है ही, हिंदी को देश में भी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।” उन्होंने आगे कहा कि “रोजनामचा, जमा, तलाशी, फौजदारी, दरियाफ्त, मौजा, हुकम, हिकमत, अमली, मुखबिर, मजमून, फिकरा, तहरीर, शहादतआदि अनेक ऐसे शब्द हैं जिन्हें हिंदुस्तान का ज्यादातर आम आदमी जानता है, और जीवन में कभी न कभी पुलिस थाना और कचहरी में उसका पाला भी इनसे पड़ता है। हर रोज हजारों लाखों बार ये शब्द काम में आते हैं। जरूरी नहीं है कि इन शब्दों को हटा दिया जाए या खत्म कर दिया जाए। हिंदी भाषा के समक्ष आने वाली इन चुनौतियों से हमें निपटना होगा। इसे रोजगार से जोड़ना होगा। हिंदी यूनेस्को की सात भाषाओं में शामिल है, दुनिया में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी बड़ी भाषा है जो लगभग दो सौ देशों में बोली या समझी जाती है और ग्लोब के करीब एक अरब लोग हिंदी बोल या समझ लेते हैं।” 

डा.कीर्ति बंसल दिल्ली ने कहा आज 10 जनवरी 2025 का यह दिन 1975 में नागपुर, भारत में आयोजित पहले विश्व हिंदी सम्मेलन की ऐतिहासिक घटना की याद दिलाता है, जिसने हिंदी को एक वैश्विक भाषा के रूप में पहचान दिलाने की शुरूआत की। आज हिंदी केवल भारत में नहीं, बल्कि दुनिया भर के कई देशों में बोली, लिखी और समझी जाती है। इंटरनेट, ई-कॉमर्स और तकनीकी क्षेत्र में भी हिंदी का महत्व तेजी से बढ़ रहा है। आज, इस विशेष अवसर पर, हमें यह स्मरण करना चाहिए कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, पहचान और आपसी संवाद का एक सशक्त माध्यम है और हमें हिंदी के प्रसार और उसकी वैश्विक भूमिका को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।”

आशुतोष (लंदन) ने कविता पाठ किया और कहा कि “परदेस में रहकर जब हम, जड़ से कटने लगते हैं,/ पूरब और पश्चिम में जब, रस्ते बँटने लगते हैं,/ हिंदी मिट्टी से जुड़कर, रहने का हुनर देती है,/ अनजाने देशों में भी, अपना सा वो घर देती है।”

गीतकार विजय कुमार सिंह सुनाया, “क्या गाऊँ क्या गाऊँ क्या गाऊँ क्या गाऊँ,/ रुद्ध कंठ है खंडित है स्वर मन ही मन घबराऊँ।/ सुर नर मुनि सब महिमा गाते, गाते सब किन्नर किन्नरियाँ,/ राग नए दिन रात सजाते, आह्लादित करती हैं ध्वनियाँ,/  मन के टूटे इन तारों पर कौन सा राग सजाऊँ,/ क्या गाऊँ क्या गाऊँ क्या गाऊँ क्या गाऊँ!”

डॉ. भावना कुँअर (सिडनी) का ग़ज़ल पाठ कुछ इस तरह रहा, “कुछ असर ऐसा हुआ, उनसे हुई बातों के बाद/ 
बन गए अपने वो हमदम, दो मुलाक़ातों के बाद।”

कवि प्रगीत कुँअर (आस्ट्रेलिया) ने सुनाया, “थक चुका है अब नहीं तू काम कर,/ मैं दवा देता हूँ तू आराम कर।”

वरिष्ठ साहित्यकार गोपाल बघेल ‘मधु’ (कनाडा) ने बताया कि “विश्व की मूल भाषा संस्कृत थी और उसी से देशकाल- पात्रों की आवश्यकता, शरीर तंत्र की अवस्थिति और भौगोलिक व सांस्कृतिक स्थिति के अनुसार हिंदी व अन्य सभी विश्व की भाषाओं का आविर्भाव हुआ। आज हिंदी वैज्ञानिक, कंप्यूटर तकनीक, व्यावहारिक, व्यावसायिक, साहित्यिक और बड़ी जनसंख्या में उपयोग में आने वाली उत्कृष्ट विश्वभाषा बन गई है। आज हिंदी भाषा और साहित्य का पूरा विश्व प्रयोग कर आनन्द ले रहा है। हिंदी भाषी लोग अब विश्व भर में हैं। अनेक हिंदी बोलने, समझने, लिखने वाले और साहित्य पढ़ने वाले जन समुदाय, होने वाले कार्यक्रमों, विभिन्न पटलों, व्यवहार, आदि को देखकर लगता है कि हिंदी में विश्व समाविष्ट हो गया है।”  
 
भूतपूर्व पीसीएस अधिकारी कवि प्रभात कुमार शर्मा ने अपनी गीत गंगा के माध्यम से हिंदी भाषा को प्रतिष्ठित किया, “ हिंद से हिंदी बनी, साक्षी है संस्कृति की। /देव-लिपि है, जो लिखें कहती वही है।/ गागरों के मन से बहती,/ सागरों को पार करती,/ चीरती बहु बिघ्न-बाधा,/ तोड़ती बंधन निराले,/ मन में फैलाती उजाले,/ दंभियों से जूझकर भी, विश्व में छाई हुई है।/  वर्तनी के भेद से परिशुद्ध है,/ भावनाओं से भरी औ प्रबुद्ध है,/ गीत गाती, गुनगुनाती,/ देश के अंचलों, बहुरंगियों के शौर्य के/, व्योम-भू के बीच के सौंदर्य को,/  सहज कह जाती छिपे अति गूढ़ को।/ ग्राह्य है सबको सहज ही,/ भावना के भाव लेकर,/ हृदय अंतर में उतरती,/  और प्रस्फुट कर ही देती सरलता से,/ अनकही सी बात जो मन कह न पाए,/ घुमड़ कर अस्पष्ट सा कहीं अटक जाए,/ ढूँढ़ता जब अनकहे से शब्द प्रतिपल,/ भाव की बन सहज भाषा,/  भाषिनी सी सार बन,/  जब तरलता से लुढ़क जाए,/ मन मुकुर को स्वच्छ कर,/ वह शर्करा सी कर्ण-प्रिय बन/  हृदय-मरु में, / तरलता मृदु पेय की ज्यों शांति लाए।/ यह सुरभि मृदुला सहज पय-वारि की./ विश्व की भाषा विविध में हो सुशोभित,/  शीर्ष भाषा विश्व की बन शौर्य पाए,/  प्रभु! कृपा कर,  गीत फिर से गुनगुनाए।”

सुशील कश्यप (चेन्नई)  ने कहा कि “हिंदी विश्व की भाषा नहीं, बल्कि विश्व की आत्मा है। आज भारत और हिंदी विश्व को एकजुट करने के लिए कृत-संकल्प है। हिंदी 21वीं सदी की और संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनकर विश्व मे उभरेगी।”

संस्था के सचिव अंतरराष्ट्रीय कवि राजीव खंडेलवाल ने कहा विश्व में हिंदी को स्थापित करने के लिये हमें दूसरी भाषाओं को भी साथ लेकर चलना होगा।

रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के भूतपूर्व कुलपति डॉ. विमल कुमार शर्मा ने कहा कि हिंदी  दुनिया में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषाओं में से एक है। यह लगभग 60 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा मातृभाषा के रूप में बोली जाती है, और 90 करोड़ से ज्यादा लोग इसे दूसरी भाषा के रूप में उपयोग करते हैं। हिंदी को अंतरराष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिलने से इसे संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं (जैसे अंग्रेजी, फ्रेंच, चीनी, अरबी, स्पेनिश और रूसी) में शामिल करने की संभावना बढ़ सकती है। यह भारत के वैश्विक प्रभाव को और मजबूत करेगा।”

सभी वक्ताओं के व्याख्यान पर संस्था के प्रवक्ता डॉ. आर. एस. तिवारी ‘शिखरेश’ ने प्रभावी समीक्षा प्रस्तुत करते हुऐ कहा कि हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है और हमें सकारात्मक एवं भाषाई व्यावहारिक दर्शन की अवधारणा से आगे बढ़ना चाहिए।  सतत प्रयास ही हमारी मंज़िल की गारंटी है।”

संस्था के उपाध्यक्ष डॉ. बलराम गुमास्ता ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुऐ हिंदी को विश्व मंच पर सार्थक स्थान दिलाने के ‘भारत-आस्ट्रेलिया साहित्य सेतु’ संस्था की हृदय से सराहना की।

आयोजन की सफलता इस बात से समझी जा सकती है कि समय सीमा की समाप्ति के बाद भी देश-विदेश के श्रोताओं की सहभागिता बनी रही और अनिल कुमार शर्मा (आगरा) के कुशल संचालन में आयोजन काफी देर तक चलता रहा। 000

(प्रेषक: अनिल कुमार शर्मा, आगरा। 
मो. +91 94125 88226। 
ईमेल: omanilsharma@gmail.com )

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