हैदराबाद : 31 जुलाई, 2020
जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं में आत्मनिर्भर होना आवश्यक है। आत्मनिर्भरता और स्वायत्त समुदाय के संबंध में महात्मा गांधी ने कहा था कि प्रत्येक गाँव आत्मनिर्भर होगा तो अपनी समस्याओं को स्वयं सुलझाने तथा अपनी सुरक्षा भी करने में सक्षम होगा। इसका यह अर्थ नहीं कि पड़ोसियों द्वारा स्वेच्छा से की गई सहायता को अस्वीकार करें। गांधी जी चाहते थे कि भारत आत्मनिर्भर बनें और स्वस्थ राम राज्य की स्थापना करें।
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डॉ अलका धनपत |
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प्रो. रमेश भारद्वाज |
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए भारद्वाज जी ने कहा कि हमें अपनी हीनभावना को त्यागकर अपनी मातृभाषा को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाना चाहिए। गांधी जी द्वारा प्रतिपादित शिक्षा नीति को पूरी तरह से व्यावहारिक बताते हुए उन्होंने सभी से यह अपील की कि स्वदेशी ज्ञान एवं नवाचार युक्त दृष्टि को विकसित करें। और इस प्रयास में मातृभाषा ही कारगर सिद्ध होगी। भारत की भाषाई विविधता उसकी कमजोरी नहीं बल्कि यह उसकी शक्ति है।
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प्रो. जी. गोपीनाथन |
नॉर्वे के डॉ. सुरेश चंद्र शुक्ल ने कहा कि कौशल विकास जरूरी है। हिंदी और भारतीय भाषाओं के बीच आदान प्रदान की आवश्यकता है। आत्मनिर्भरता के लिए अपनी भाषा और संस्कृति को सम्मान देना जरूरी है।
दक्षिण भारत प्रचार सभा, मद्रास के विशेष अधिकारी श्री राघवेंद्र औरादकर ने इस कार्यक्रम के उद्देश्य को स्पष्ट किया तथा कुलपति डॉ. षोडशीमोहन दां ने शुभकामना दी। कुलसचिव प्रो. प्रदीप के. शर्मा ने सभी का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास की विभागाध्यक्ष प्रो. अमर ज्योति ने किया तथा शिक्षा महाविद्यालय, बैंगलोर के प्राचार्य डॉ. इसपाक अली ने धन्यवाद ज्ञापित किया।