शनिवार, 25 जनवरी 2025

‘क से कविता’ में अतिथि कवि डॉ. विनय कुमार से संवाद संपन्न




हैदराबाद, 24 जनवरी, 2025।  
मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद के दूरस्थ शिक्षा केंद्र की लाइब्रेरी में ‘क से कविता’ के  तत्वावधान में ‘साहित्यकार से परिचय’ कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पटना (बिहार) से पधारे प्रतिष्ठित मनोचिकित्सक एवं कवि डॉ. विनय कुमार का स्वागत-सत्कार किया गया।

कवि का परिचय प्रवीण प्रणव ने दिया। दूरस्थ शिक्षा विभाग के निदेशक प्रो. रज़ा उल्लाह ख़ान और आईआईआईटी से पधारे वरिष्ठ कवि प्रो. लाल्टू ने शॉल ओढ़ाकर उनका अभिनंदन किया। इसी क्रम में डॉ. शेषु बाबू, प्रो. गोपाल शर्मा, प्रो. नसीमुद्दीन फरीस एवं डॉ. आफताब आलम बेग ने भी शॉल एवं माला समर्पित कर मुख्य अतिथि के प्रति सम्मान प्रकट किया। आरंभ में सहायक कुलसचिव डॉ. आफ़ताब आलम बेग ने सबका स्वागत किया।

मुख्य अतिथि डॉ. विनय कुमार ने अपनी जीवनयात्रा और रचनायात्रा के संबंध में खुलकर चर्चा की तथा अपने चर्चित कविता संग्रह ‘यक्षिणी’ से कई कविताओं का वाचन किया। साथ ही, यथाशीघ्र प्रकाशित होने वाले नए कविता संग्रह ‘सरस्वती’ में सम्मिलित रचनाएँ भी सुनाईं। उपस्थित साहित्यप्रेमी मित्रों के आग्रह पर उन्होंने अपनी कई गजलें भी प्रस्तुत कीं। प्रो.  लाल्टू ने भी उनके आग्रह का मान रखते हुए अपनी रचनाओं का वाचन किया। 

गोष्ठी में पढ़ी गई रचनाओं पर प्रो. गोपाल शर्मा,  प्रो. नसीमुद्दीन फरीस, डॉ. इरशाद नैयर, डॉ. अनिल लोखंडे, डॉ. मंजु शर्मा और डॉ. आफ़ताब आलम बेग ने सारगर्भित समीक्षात्मक टिप्पणियाँ कीं।  

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो.  रज़ा उल्लाह ख़ान ने डॉ विनय कुमार की कविताओं की भाव प्रवणता, वैचारिकता, सौंदर्य बोध तथा काव्य भाषा की विशेष प्रशंसा की। संचालन का सूत्र प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने सँभाला। 000


















रविवार, 12 जनवरी 2025

‘भारत-ऑस्ट्रेलिया साहित्य सेतु’ ने ऑनलाइन मनाया ‘विश्व हिंदी दिवस समारोह’



विश्वभर के ज्ञान की खिड़की बनने की ओर अग्रसर  हिंदी

10 जनवरी, 2025, 
एनसीआर दिल्ली/ लंदन (मीडिया विज्ञप्ति)।

विश्व हिंदी दिवस (10 जनवरी, 2025) को “भारत-ऑस्ट्रेलिया साहित्य सेतु” के तत्वावधान में “विश्व में हिंदी, हिंदी में विश्व’ विषय पर साहित्य-विमर्श का आयोजन आभासी-माध्यम ज़ूम पर आयोजित किया गया। 

आयोजन की शुरूआत में संस्था के संस्थापक अध्यक्ष अनिल कुमार शर्मा ने ‘साहित्य सेतु’ के मुख्य उद्देश्य के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि  हिंदी भाषा के समग्र प्रसार हेतु यह संस्था 2018 से काम कर रही है । संस्था द्वारा भारत  के साहित्यकारों व प्रवासी  लेखकों को एक मंच पर लाकर हिंदी भाषा एवं साहित्य के विमर्श व गोष्ठियों का आयोजन करना देश व विदेश में अनवरत जारी है।

अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध हिंदी भाषाविज्ञानविद् डॉ. भगवान सिंह ने विषय पर व्यापक चर्चा करते हुए बताया कि बोलियों का भी  संस्कृत भाषा के सुदृढ़ आधार में योगदान है ।भारत सांस्कृतिक एवं भाषाविज्ञान की विरासत का देश है।  हिंदी, बोलियों एवं अन्य भाषाओं से समृद्ध हुई और यही भाव देश को जोड़े रखता है। हिंदी भाषा संस्कृति,समाज एवं संस्कारों की भाषा है।”

नागरी लिपि परिषद प्रमुख डॉ. हरिसिंह पाल ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा, “वैश्विक स्तर पर हिंदी की पैठ बनने लगी है और इसे प्रवासी भारतीय और विदेशी उत्साह के साथ सीखने लगे हैं।”

हैदराबाद के प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कहा "विश्वभर में प्रसार की दृष्टि से हिंदी प्रथम स्थान प्राप्त कर चुकी है। उसकी विविध बोलियों और शैलियों को काटकर अलग करना उचित नहीं है। आशा की जानी चाहिए कि इस अपार संख्याबल का सम्मान करते हुए संयुक्त राष्ट्र भी देर-सबेर हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्ज़ा देगा ही। रही बात हिंदी में विश्व की, तो कहना ग़लत न होगा कि आज इंटरनेट पर लगातार बढ़ती अपनी उपस्थिति के बल पर हिंदी विश्व के समस्त ज्ञान-विज्ञान और साहित्य को ग्रहण करके स्वयं को समृद्ध कर रही है। इसमें अनुवाद की बड़ी भूमिका है। मेरा सपना है कि हमारी हिंदी सही अर्थों में विश्वभर के ज्ञान की खिड़की बन सके।”

इस अवसर पर चंद्रकांत  पाराशर (हिंदीसेवी व एडिटर आईसीएन-हिंदी) ने हिंदी भाषा के व्यावहारिक पक्ष को सामने रखते हुए कहा कि हिंदी के प्रति अंग्रेज़ी मानसिकता के साथियों को अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। हिंदी की बात’ से अधिक हिंदी में बात’ पर बल देने से हमारी वर्तमान व भावी पीढ़ियों के मन में भी हिंदी भाषा के प्रति गौरव, स्वाभिमान, सम्मान व श्रद्धा जागृत होगी, जो कि हम सभी अपने सहज व्यवहार, मन व वाणी के माध्यम से कर सकते हैं।”

मुख्य अतिथि श्रीमती जया वर्मा (लंदन) ने विदेशों में हिन्दी भाषा की दशा एवं दिशा पर विस्तृत विचार व्यक्त किए एवं ‘जहॉं मैं चली, वहाँ हिंदी चली’ कविता प्रस्तुत करते हुए कहा कि लगता है कि हिंदी में विश्व समाविष्ट हो गया है।

डॉ. आर. रमेश आर्य  (भूतपूर्व निदेशक, राजभाषा विभाग) ने कहा कि “आदिवासी समूहों एवं जनजातियों की बोलियों को भी हिंदी में  स्थान देना होगा। भारत का लोक साहित्य इन बोलियों से प्रभावित है। बोलियों की स्वीकृति  से हमें हिंदी को समृद्ध करने में मदद मिलेगी।”

प्रांजल धर (दिल्ली) ने अपने व्याख्यान में कहा कि “हर साल विश्व हिंदी दिवस पर एक थीम यानी विषय निर्धारित किया जाता है, जो इसके महत्व को दर्शाते हुए इसके प्रचार-प्रसार को सुगम और तेज बनाए। इस बार विश्व हिन्दी दिवस का विषय 'एकता और सांस्कृतिक गौरव की वैश्विक आवाज' रखा गया है, जिसका उद्देश्य भाषाई और अंतरराष्ट्रीय आदान-प्रदान के लिए हिंदी भाषा के उपयोग को बढ़ावा देना है। दरअसल हिंदी को दो-तरफा प्रतिस्पर्धा झेलनी पड़ रही है। वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा तो है ही, हिंदी को देश में भी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।” उन्होंने आगे कहा कि “रोजनामचा, जमा, तलाशी, फौजदारी, दरियाफ्त, मौजा, हुकम, हिकमत, अमली, मुखबिर, मजमून, फिकरा, तहरीर, शहादतआदि अनेक ऐसे शब्द हैं जिन्हें हिंदुस्तान का ज्यादातर आम आदमी जानता है, और जीवन में कभी न कभी पुलिस थाना और कचहरी में उसका पाला भी इनसे पड़ता है। हर रोज हजारों लाखों बार ये शब्द काम में आते हैं। जरूरी नहीं है कि इन शब्दों को हटा दिया जाए या खत्म कर दिया जाए। हिंदी भाषा के समक्ष आने वाली इन चुनौतियों से हमें निपटना होगा। इसे रोजगार से जोड़ना होगा। हिंदी यूनेस्को की सात भाषाओं में शामिल है, दुनिया में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी बड़ी भाषा है जो लगभग दो सौ देशों में बोली या समझी जाती है और ग्लोब के करीब एक अरब लोग हिंदी बोल या समझ लेते हैं।” 

डा.कीर्ति बंसल दिल्ली ने कहा आज 10 जनवरी 2025 का यह दिन 1975 में नागपुर, भारत में आयोजित पहले विश्व हिंदी सम्मेलन की ऐतिहासिक घटना की याद दिलाता है, जिसने हिंदी को एक वैश्विक भाषा के रूप में पहचान दिलाने की शुरूआत की। आज हिंदी केवल भारत में नहीं, बल्कि दुनिया भर के कई देशों में बोली, लिखी और समझी जाती है। इंटरनेट, ई-कॉमर्स और तकनीकी क्षेत्र में भी हिंदी का महत्व तेजी से बढ़ रहा है। आज, इस विशेष अवसर पर, हमें यह स्मरण करना चाहिए कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, पहचान और आपसी संवाद का एक सशक्त माध्यम है और हमें हिंदी के प्रसार और उसकी वैश्विक भूमिका को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।”

आशुतोष (लंदन) ने कविता पाठ किया और कहा कि “परदेस में रहकर जब हम, जड़ से कटने लगते हैं,/ पूरब और पश्चिम में जब, रस्ते बँटने लगते हैं,/ हिंदी मिट्टी से जुड़कर, रहने का हुनर देती है,/ अनजाने देशों में भी, अपना सा वो घर देती है।”

गीतकार विजय कुमार सिंह सुनाया, “क्या गाऊँ क्या गाऊँ क्या गाऊँ क्या गाऊँ,/ रुद्ध कंठ है खंडित है स्वर मन ही मन घबराऊँ।/ सुर नर मुनि सब महिमा गाते, गाते सब किन्नर किन्नरियाँ,/ राग नए दिन रात सजाते, आह्लादित करती हैं ध्वनियाँ,/  मन के टूटे इन तारों पर कौन सा राग सजाऊँ,/ क्या गाऊँ क्या गाऊँ क्या गाऊँ क्या गाऊँ!”

डॉ. भावना कुँअर (सिडनी) का ग़ज़ल पाठ कुछ इस तरह रहा, “कुछ असर ऐसा हुआ, उनसे हुई बातों के बाद/ 
बन गए अपने वो हमदम, दो मुलाक़ातों के बाद।”

कवि प्रगीत कुँअर (आस्ट्रेलिया) ने सुनाया, “थक चुका है अब नहीं तू काम कर,/ मैं दवा देता हूँ तू आराम कर।”

वरिष्ठ साहित्यकार गोपाल बघेल ‘मधु’ (कनाडा) ने बताया कि “विश्व की मूल भाषा संस्कृत थी और उसी से देशकाल- पात्रों की आवश्यकता, शरीर तंत्र की अवस्थिति और भौगोलिक व सांस्कृतिक स्थिति के अनुसार हिंदी व अन्य सभी विश्व की भाषाओं का आविर्भाव हुआ। आज हिंदी वैज्ञानिक, कंप्यूटर तकनीक, व्यावहारिक, व्यावसायिक, साहित्यिक और बड़ी जनसंख्या में उपयोग में आने वाली उत्कृष्ट विश्वभाषा बन गई है। आज हिंदी भाषा और साहित्य का पूरा विश्व प्रयोग कर आनन्द ले रहा है। हिंदी भाषी लोग अब विश्व भर में हैं। अनेक हिंदी बोलने, समझने, लिखने वाले और साहित्य पढ़ने वाले जन समुदाय, होने वाले कार्यक्रमों, विभिन्न पटलों, व्यवहार, आदि को देखकर लगता है कि हिंदी में विश्व समाविष्ट हो गया है।”  
 
भूतपूर्व पीसीएस अधिकारी कवि प्रभात कुमार शर्मा ने अपनी गीत गंगा के माध्यम से हिंदी भाषा को प्रतिष्ठित किया, “ हिंद से हिंदी बनी, साक्षी है संस्कृति की। /देव-लिपि है, जो लिखें कहती वही है।/ गागरों के मन से बहती,/ सागरों को पार करती,/ चीरती बहु बिघ्न-बाधा,/ तोड़ती बंधन निराले,/ मन में फैलाती उजाले,/ दंभियों से जूझकर भी, विश्व में छाई हुई है।/  वर्तनी के भेद से परिशुद्ध है,/ भावनाओं से भरी औ प्रबुद्ध है,/ गीत गाती, गुनगुनाती,/ देश के अंचलों, बहुरंगियों के शौर्य के/, व्योम-भू के बीच के सौंदर्य को,/  सहज कह जाती छिपे अति गूढ़ को।/ ग्राह्य है सबको सहज ही,/ भावना के भाव लेकर,/ हृदय अंतर में उतरती,/  और प्रस्फुट कर ही देती सरलता से,/ अनकही सी बात जो मन कह न पाए,/ घुमड़ कर अस्पष्ट सा कहीं अटक जाए,/ ढूँढ़ता जब अनकहे से शब्द प्रतिपल,/ भाव की बन सहज भाषा,/  भाषिनी सी सार बन,/  जब तरलता से लुढ़क जाए,/ मन मुकुर को स्वच्छ कर,/ वह शर्करा सी कर्ण-प्रिय बन/  हृदय-मरु में, / तरलता मृदु पेय की ज्यों शांति लाए।/ यह सुरभि मृदुला सहज पय-वारि की./ विश्व की भाषा विविध में हो सुशोभित,/  शीर्ष भाषा विश्व की बन शौर्य पाए,/  प्रभु! कृपा कर,  गीत फिर से गुनगुनाए।”

सुशील कश्यप (चेन्नई)  ने कहा कि “हिंदी विश्व की भाषा नहीं, बल्कि विश्व की आत्मा है। आज भारत और हिंदी विश्व को एकजुट करने के लिए कृत-संकल्प है। हिंदी 21वीं सदी की और संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनकर विश्व मे उभरेगी।”

संस्था के सचिव अंतरराष्ट्रीय कवि राजीव खंडेलवाल ने कहा विश्व में हिंदी को स्थापित करने के लिये हमें दूसरी भाषाओं को भी साथ लेकर चलना होगा।

रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के भूतपूर्व कुलपति डॉ. विमल कुमार शर्मा ने कहा कि हिंदी  दुनिया में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषाओं में से एक है। यह लगभग 60 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा मातृभाषा के रूप में बोली जाती है, और 90 करोड़ से ज्यादा लोग इसे दूसरी भाषा के रूप में उपयोग करते हैं। हिंदी को अंतरराष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिलने से इसे संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं (जैसे अंग्रेजी, फ्रेंच, चीनी, अरबी, स्पेनिश और रूसी) में शामिल करने की संभावना बढ़ सकती है। यह भारत के वैश्विक प्रभाव को और मजबूत करेगा।”

सभी वक्ताओं के व्याख्यान पर संस्था के प्रवक्ता डॉ. आर. एस. तिवारी ‘शिखरेश’ ने प्रभावी समीक्षा प्रस्तुत करते हुऐ कहा कि हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है और हमें सकारात्मक एवं भाषाई व्यावहारिक दर्शन की अवधारणा से आगे बढ़ना चाहिए।  सतत प्रयास ही हमारी मंज़िल की गारंटी है।”

संस्था के उपाध्यक्ष डॉ. बलराम गुमास्ता ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुऐ हिंदी को विश्व मंच पर सार्थक स्थान दिलाने के ‘भारत-आस्ट्रेलिया साहित्य सेतु’ संस्था की हृदय से सराहना की।

आयोजन की सफलता इस बात से समझी जा सकती है कि समय सीमा की समाप्ति के बाद भी देश-विदेश के श्रोताओं की सहभागिता बनी रही और अनिल कुमार शर्मा (आगरा) के कुशल संचालन में आयोजन काफी देर तक चलता रहा। 000

(प्रेषक: अनिल कुमार शर्मा, आगरा। 
मो. +91 94125 88226। 
ईमेल: omanilsharma@gmail.com )

गुरुवार, 2 जनवरी 2025

"चुनावी लोकतंत्र और श्रीलाल शुक्ल का साहित्य" : अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

"चुनावी लोकतंत्र और श्रीलाल शुक्ल का साहित्य" : अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न







जनता सजग, लोकतंत्र सफल                  - - श्रीराम तिवारी आईपीएस

हैदराबाद, 1 जनवरी, 2025। 
श्रीलाल शुक्ल स्मारक राष्ट्रीय संगोष्ठी समिति  तथा हिंदी प्रचार सभा  के संयुक्त तत्वावधान में 31 दिसंबर को "चुनावी लोकतंत्र और श्रीलाल शुक्ल का साहित्य" विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी डॉ. सीमा मिश्रा के संयोजन में सफलतापूर्वक संपन्न हुई।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्रीराम तिवारी (आईपीएस (से.नि.), आंध्र प्रदेश सरकार) ने अपने वक्तव्य में कहा कि यदि जनता सजग है तो लोकतंत्र सफल होगा। अपने वक्तव्य को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि ज्ञान और मोक्ष भारत भूमि में ही मिलता है और कहीं नहीं। उन्होंने कहा श्रीलाल शुक्ल द्वारा रचित उपन्यास उस समय के समाज का दर्पण है। आज व्यक्ति दुखी नहीं है, वह पड़ोसी के सुख से दुखी है। उन्होंने चुनावी प्रक्रिया पर कहा कि जैसी सरकार चुनोगे तो उसके परिणाम भी आप वैसे ही भोगोगे। अपने विवेक का प्रयोग कर अच्छे लोगों को चुनें और भारत का भविष्य उज्ज्वल बनाएँ।

समारोह के अध्यक्ष  प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि भारत को लोकतंत्र की जननी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में सुधार तभी होगा जब जनता जागरूक होगी और जनता तभी जागरूक होगी जब सत्य को जानेगी। आपने आगे कहा कि समाज और लोकतंत्र में सुधार करना साहित्यकारों का काम है और हमने यह काम नेताओं के हाथ में दे दिया। परिणामस्वरूप जो विसंगतियाँ श्रीलाल शुक्ल के समय थीं, वही विसंगतियाँ आज भी अंगद की तरह पैर धँसाए बैठी हैं।

मुख्य वक्ता प्रो. गोपाल शर्मा (पूर्व प्रो. एवं अध्यक्ष, अंग्रेज़ी विभाग, अरबा मींच विश्वविद्यालय, इथियोपिया, अफ्रीका) ने अपने बीज भाषण में अपने व्यंग्य लेखन  और श्रीलाल शुक्ल से  भेंटवार्ता के दौरान हुए कई खट्टे-मीठे अनुभव साझा किए। उन्होंने व्यंग्य की चर्चा करते हुए कहा कि लेक्चर का मजा तो तब है, जब सामने वाला समझ जाए कि ये बकवास कर रहा है!

विशिष्ट अतिथि प्रो. गंगाधर वानोडे (क्षेत्रीय निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र) ने ‘राग दरबारी’ एवं अन्य पुस्तकों पर चर्चा कर अपने विचार साझा किए।

अफगानिस्तान से पधारे मो. फ़हीम ज़लांद ने अपने वक्तव्य में श्रीलाल शुक्ल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की चर्चा करते हुए उनकी रचनाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। 

अर्मीनिया से सुश्री अलीना ने अपने ऑनलाइन संदेश में संगोष्ठी के विषय पर चर्चा करते हुए संयोजकों को बधाई दी।

'पुष्पक'-संपादक डॉ. आशा मिश्रा ने अपने वक्तव्य में कहा कि श्रीलाल शुक्ल ने प्रजातंत्र की पीड़ा को भोगा है। उन्होंने आगे कहा कि राजनीति को समझने के लिए ‘राग दरबारी’ से बेहतर पुस्तक नहीं है। उन्होंने श्रीलाल शुक्ल के कई उपन्यासों की चर्चा करते हुए कहा कि भारत भले ही इंडिया बन जाए पर रहेगा वह गाँवों का ही देश।

साहित्य गरिमा पुरस्कार समिति, हैदराबाद की संस्थापक,-अध्यक्ष डॉ. अहिल्या मिश्रा ने  संयोजक दंपति डॉ. सीमा मिश्रा व अधिवक्ता पं. अशोक तिवारी एवं उनके सुपुत्र अभियंता चि. आकाश तिवारी को ऑनलाइन माध्यम से आशीर्वाद दिया। 

सम्माननीय अतिथि अनिल कुमार वाजपेयी (से. नि. पुलिस अधीक्षक, गुप्तचर विभाग, तेलंगाना) ने विगत 17 वर्षों से होती आ रही संगोष्ठियों एवं इस बार अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में गणमान्य अतिथियों को एक मंच पर एकत्रित करने के लिए  विशेष बधाई दी।

आत्मीय अतिथि नौमीन् सूरपराज कर्लापालेम् ने अपने वक्तव्य में आज की नई पीढ़ी पर व्यंग्य करते हुए कहा कि युवक पढाई पर कम और फ़ोन पर ज़्यादा ध्यान देती है। साथ ही उन्होंने चुनावी लोकतंत्र एवं 'राग दरबारी' पर संक्षेप में प्रकाश डाला।

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस वामन राव ने अपने वक्तव्य में कहा कि चुनाव तंत्र भावनाओं से खेलना/भावनाओं का दुरुपयोग करना है। अपने सुझाव देते हुए कहा कि गलत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए, लेकिन खेद की बात है कि कोई आवाज़ उठाता नहीं है। साथ ही उन्होंने इस अभूतपूर्व कार्य की सराहना करते हुए इस निरंतर की जाने वाली संगोष्ठी शृंखला के लिया साधुवाद एवं बधाई दी।

मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के डॉ. इरशाद अहमद ने अपने वक्तव्य में चुनावी लोकतंत्र एवं श्रीलाल शुक्ल के साहित्य पर प्रकाश डाला। 

कार्यक्रम का शुभारंभ अभियंता चि. आकाश तिवारी के शंखनाद एवं सरस्वती वंदना से हुआ। 

कवि एवं उपन्यासकार रवि वैद ने अपने संचालन के माध्यम से मंच व सभागार को बाँधे रखा/मंत्रमुग्ध कर दिया एवं संचालन के दौरान श्रीलाल शुक्ल की रचनाओं के प्रासंगिक उद्धरणों के माध्यम से सभी का ज्ञानवर्धन भी किया।

संयोजक डॉ सीमा मिश्रा ने आरंभ में  अपने आलेख ‘चुनावी लोकतंत्र और श्रीलाल शुक्ल’ की प्रस्तुति द्वारा संगोष्ठी विषय प्रवर्तन किया तथा अंत में  संगोष्ठी में उपस्थित सभी शोधार्थियों, अध्यापकों एवं देश के सभी गणमान्य साहित्यकारों एवं पत्रकारों का आभार प्रकट किया।

दक्षिण भारत कान्यकुब्ज ब्राह्मण महासभा, कान्यकुब्ज ब्राह्मण समिति, हैदराबाद एवं अखिल भारतीय कान्यकुब्ज ब्राह्मण महासभा के सदस्यगण एवं 'कहानीवाला' ग्रुप के संस्थापक सुहास भटनागर, सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) से पधारे मिश्रा दंपति पं. राजेंद्र जोशी ज्योतिर्विद, नदीम हसन, राजशेखर रेड्डी, श्रीमती संगीता अमरेन्द्र पांडे, गिरजा शंकर पांडे, शफीक, शिल्की मुनमुन शर्मा, अनीता महेश टाठी आदि ने उपस्थिति दर्ज कराई। 

(प्रतिवेदन :  डॉ. सीमा मिश्रा, संगोष्ठी संयोजक)



शनिवार, 14 सितंबर 2024

वैश्विक स्तर पर हिंदी भाषा का योगदान विषयक त्रि-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलन संपन्न

त्रिनिदाद यात्रा से डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की रिपोर्ट



वैश्विक स्तर पर हिंदी भाषा का योगदान विषयक त्रि-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलन संपन्न

हिंदी है हृदय की भाषा : रेणुका संग्रामसिंह सुखलाल

व्यावहारिक स्तर पर हिंदी अपनाएँ, सांस्कृतिक धरोहर को अंतरित करें : डॉ. प्रदीप राजपुरोहित

सम्मेलन का उद्घाटन 


पोर्ट ऑफ स्पेन, त्रिनिदाद और टोबैगो। 

“त्रिनिदाद की जनता के लिए हिंदी हृदय की भाषा है। ऐसी हिंदी भाषा को तथा उसकी संस्कृति को सुनिश्चित रखना अनिवार्य है। भले ही यह कार्य कठिन है लेकिन असाध्य नहीं। त्रिनिदाद में बसा हुआ हर भारतीय मूल का परिवार अपनी संस्कृति और सभ्यता, विशेष रूप से अपनी भाषा हिंदी को सुरक्षित रखने के लिए संघर्ष कर रहा है।”
रेणुका संग्रामसिंह सुखलाल 


माउंट होप, त्रिनिदाद में स्थित महात्मा गांधी सांस्कृतिक सहयोग संस्था के सभागार में 6 से 8 सितंबर, 2024 तक भारतीय उच्चायोग, पोर्ट ऑफ स्पेन द्वारा आयोजित “त्रि-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलन” का उद्घाटन करते हुए अटॉर्नी जनरल कार्यालय और कानूनी मामलों के मंत्रालय की मंत्री रेणुका संग्रामसिंह सुखलाल ने उक्त विचार व्यक्त किए। उन्होंने यह भी चिंता व्यक्त की कि कैरेबियन देशों में भारतवंशी पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति, सभ्यता और हिंदी भाषा को अंतरित करने में असमर्थ हो रहे हैं।

डॉ प्रदीप राजपुरोहित 
भारतीय उच्चायोग, पोर्ट ऑफ स्पेन के उच्चायुक्त डॉ. प्रदीप राजपुरोहित ने सबका स्वागत करते हुए कहा कि सबको व्यावहारिक स्तर पर हिंदी को अपना चाहिए। पंडिताऊ भाषा के स्थान पर सामान्य बोलचाल की हिंदी का प्रयोग करना चाहिए। ऐसा करने से हिंदी भाषा में निहित सांस्कृतिक एवं लोक धरोहर को पीढ़ी-दर-पीढ़ी अंतरित किया जा सकता है। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की कि त्रिनिदाद में बसे भारतीय मूल के लोग अपनी भाषा को अक्षुण्ण रख पाने में असमर्थ अनुभव करने लगे हैं। हिंदी भाषा, विशेष रूप से बोलचाल की भाषा, पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि दूतावास स्कूली स्तर पर हिंदी कक्षाएँ चलाने का प्रयास कर रहा है। हिंदी सीखने के लिए प्रोत्साहन के रूप में छात्रवृत्ति देने के लिए भी तैयार है। उन्होंने त्रिनिदाद वासियों से अपील की कि हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझकर हिंदी के प्रचार-प्रसार में आगे बढ़े। उन्होंने यह प्रश्न किया कि क्या स्थानीय शिक्षण संस्थाएँ इस कार्य को अंजाम देने में उच्चायोग का सहयोग करने के लिए तैयार हैं?

पोर्ट ऑफ स्पेन स्थित राष्ट्रीय भारतीय संस्कृति परिषद (एनसीआईसी) के अध्यक्ष देवरूप तीमल ने कहा कि भाषा
देवरूप तीमल 

जीवन के साथ एकीकृत है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वैश्विक स्तर पर हिंदी को बढ़ावा देने के लिए नेटवर्किंग आवश्यक है। आगे उन्होंने कहा कि त्रिनिदाद और टोबैगो में स्थित भारतीय मूल के वासियों में भारतीय संस्कृति ‘रामचरित मानस’ के रूप में विद्यमान है। भले ही यहाँ के लोग अर्थ न जानते हों, लेकिन मानस के पद कंठस्थ करते हैं। यह इसलिए क्योंकि भारतीयता उनके डीएनए में विद्यमान है।

रवींद्र प्रसाद जायसवाल 




भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव रवींद्र प्रसाद जायसवाल ने कहा कि भारतीयता को समझने की कुंजी है हिंदी भाषा। यदि हम सांस्कृतिक अस्मिता को अक्षुण्ण रखना चाहते हैं तो क्षेत्रीय रंगों को भी अपनाना होगा। उन्होंने भी यही चिंता व्यक्त की कि इस यात्रा में हिंदी भाषा कहीं पीछे छूट रही है।


नील पर्सनलाल 

राष्ट्रीय पुस्तकालय और सूचना प्रणाली प्राधिकरण (नालिस) के चेयरमैन नील पर्सनलाल ने हिंदी भाषा, भारतीय सभ्यता और संस्कृति के संबंध में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज की पीढ़ी में हिंदी भाषा के प्रति रुचि जगाने के लिए पुरजोर कोशिश किए जाने की ज़रूरत है।






त्रिनिदाद में स्थित हिंदी निधि के अध्यक्ष चंका सीताराम ने हिंदी भाषा को त्रिनिदाद और टोबैगो के भाषाई समाज में पुनः स्थापित करने के लिए युवा पीढ़ी से अपील की।
चंका सीताराम 


कार्यक्रम के आरंभ में वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय को श्रद्धांजलि दी गई। इस अवसर पर महात्मा गांधी सांस्कृतिक सहयोग संस्था के छात्र और अध्यापकों ने गायन तथा भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुत किया। ‘हिंदी, शिक्षा और संस्कृति’, पोर्ट ऑफ स्पेन के द्वितीय सचिव शिवकुमार निगम ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन आशा महाराज और ऋषा मोहम्मद ने किया।

उद्घाटन के बाद विचार सत्रों में त्रिनिदाद और टोबैगो के साहित्यकारों, समाजशास्त्रियों और अर्थशास्त्रियों के साथ-साथ भारत, सूरीनाम, गयाना, अमेरिका से पधारे विद्वानों ने इस संबंध में अपने-अपने विचार व्यक्त किए। प्रथम विचार सत्र में देवरूप तीमल की अध्यक्षता में कमला रामलखन (त्रिनिदाद), सत्यानंद हेरोल्ड परमसुख (सूरीनाम), विकास रामकिसुन (सांसद, गयाना) ने कैरेबियाई क्षेत्र में बोली जाने वाली हिंदी के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डाला। इस विचार सत्र से यह तथ्य सामने आया कि कैरेबियाई क्षेत्रों में हिंदी भाषा को सुरक्षित रखने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह भी कि सूरीनाम में आज भी ‘सूरीनामी हिंदी’ बोली जाती है जो भोजपुरी और हिंदी का मिश्रित रूप है। विद्वानों ने यह कहा कि हिंदी और भारतीय संस्कृति उनकी अस्मिता है। इन कैरेबियाई क्षेत्रों में ‘रामचरित मानस’ ने हिंदू समाज को जोड़कर रखा है। यदि यहाँ के समाज में आज भी हिंदी जीवित है तो उसका श्रेय ‘मानस’ को ही जाता है। यहाँ के लोग ‘रामायण’ और ‘वेद’ को भी अंग्रेजी में ही पढ़ते हैं। गायन और संगीत के कारण यहाँ के लोग अपनी मूल संस्कृति के निकट हैं।

डॉ. हितेन्द्र कुमार मिश्र (शिलांग) की अध्यक्षता में संपन्न द्वितीय विचार सत्र में हिंदी भाषा को सीखने के लिए उपलब्ध संसाधनों के बारे में चर्चा करते हुए हिमांचल प्रसाद (गयाना), डॉ. नवलकिशोर भाबड़ा (अजमेर), डॉ. प्रदीप के. शर्मा (सिक्किम) ने यह बताया कि गीत-संगीत, सिनेमा, लोकसंगीत, लोक नाटक आदि के माध्यम से भाषा सीखी और सिखाई जा सकती है। आज के समय में सोशल मीडिया के कारण तथा तकनीकी विकास के कारण इतने सारे मोबाइल एप्लीकेशन्स हैं कि भाषा सीखने में कोई कठिनाई नहीं होगी।

डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा (चेन्नै) की अध्यक्षता में संपन्न तृतीय विचार सत्र में डॉ. निवेदिता मिश्र (त्रिनिदाद), रफ़ी हुसैन (त्रिनिदाद), इंदिरा (त्रिनिदाद) और डॉ. मिलन रानी जमातिया (त्रिपुरा) ने हिंदी के विकास में विदेशी विद्वानों के योगदान पर प्रकाश डाला और यह सिद्ध किया कि यदि उचित वातावरण उपलब्ध हो तो भाषा सीखने में समस्या नहीं होगी। भाषा सीखने के लिए पहली शर्त है जिज्ञासा और ज़रूरत।

चतुर्थ विचार सत्र में सूरजदेव मंगरू (त्रिनिदाद और टोबैगो), डॉ. शिवानंद महाराज (यूडब्ल्यूआई), राणा मोहिप (त्रिनिदाद और टोबैगो), कृष रामखलावन (सूरीनाम) ने ‘बैठक गाना’, ‘चटनी संगीत’ और ‘शास्त्रीय संगीत’ के बारे में बताते हुए व्यावहारिक तौर पर दर्शाया कि इनके माध्यम से कैरेबियाई क्षेत्रों में हिंदी भाषा आज तक कैसे जीवित है।

हर विचार सत्र के बाद पैनल चर्चा हुई। रामप्रसाद परशुराम (त्रिनिदाद) की अध्यक्षता में संपन्न पैनल चर्चा में आशा मोर (त्रिनिदाद), नितिन जगबंधन (सूरीनाम), डॉ. नवलकिशोर भाबड़ा (अजमेर), सुनैना परीक्षा रागिनीदेवी (सूरीनाम) और स्वामी ब्रह्मस्वरूप नंदा (त्रिनिदाद और टोबैगो) ने यह प्रतिपादित किया कि रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्य कैरेबियाई क्षेत्र के लोगों की आत्मा में बसते हैं। आज की पीढ़ी अपनी जड़ों की ओर लौटने के लिए पुरज़ोर कोशिश कर रही हैं। अपनी भाषा हिंदी को सीखने की कोशिश कर रही है। डॉ. विद्याधर शाह की अध्यक्षता में संपन्न चर्चा में डॉ. हितेंद्र मिश्र, ईशा दीक्षित (त्रिनिदाद), कादंबरी आदेश (फ्लोरिडा) ने भाषा के विकास में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका पर प्रकाश डाला। नील पर्सनलाल की अध्यक्षता में संपन्न विचार सत्र में डॉ. प्रदीप के शर्मा, डॉ. शशिधरन (केरल), डॉ. मिलन रानी जमातिया, विकास रामकिसुन ने हिंदी भाषा सीखने में फिल्मों की भूमिका पर प्रकाश डाला।

चर्चा-परिचर्चा के उपरांत उच्चायुक्त और सांसदों ने यह घोषणा की कि कैरेबियाई क्षेत्रों में हिंदी विकास के लिए अनिवार्य कदम उठाए जाएँगे। यह भी निर्णय लिया गया कि हिंदी सीखने के लिए जो छात्र आगे आएँगे उन्हें छात्रवृत्ति देकर प्रोत्साहित किया जाएगा। इतना ही नहीं, प्राथमिक स्तर पर हिंदी भाषा को अनिवार्य रूप से पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव भी सरकार के समक्ष रखा जाएगा।

त्रि-दिवसीय सम्मेलन के दौरान चर्चा-परिचर्चाओं के अलावा, कैरेबियाई क्षेत्रों में प्रसिद्ध बैठक गाना, चटनी संगीत, लोक नृत्य, शास्त्रीय नृत्य आदि का प्रदर्शन किया गया जिससे संपूर्ण वातावरण जीवंत हो उठा। 000


गुरुवार, 8 अगस्त 2024

प्रवीण प्रणव की पुस्तक ‘लिए लुकाठी हाथ’ पर चर्चा संपन्न



साहित्यिक समाचार:

प्रवीण प्रणव की पुस्तक ‘लिए लुकाठी हाथ’ पर चर्चा संपन्न


हैदराबाद, 8 अगस्त, 2024। 

“समीक्षा अपने आप में बेहद जटिल और ज़िम्मेदारी भरा काम है। कोई भी समीक्षा कभी पूर्ण और अंतिम नहीं होती। सच तो यह है कि किसी कृति की सबसे ईमानदार समीक्षा स्वयं रचनाकार ही कर सकता है। कोई समीक्षक किसी रचनाकार की संवेदना को जितनी निकटता से पकड़ता है, उसकी समीक्षा उतनी ही विश्वसनीय होती है।” 


ये विचार वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर (उत्तर प्रदेश) की पूर्व कुलपति प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने आखर ई-जर्नल और फटकन यूट्यूब चैनल की ऑनलाइन परिचर्चा में प्रवीण प्रणव (हैदराबाद) की सद्यःप्रकाशित समीक्षा-कृति ‘लिए लुकाठी हाथ’ की विशद विवेचना करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में लेखक ने ऋषभदेव शर्मा के व्यक्तित्व और कृतित्व के विविध आयामों को गहन अध्ययन के आधार पर उजागर किया है। 


प्रो. मौर्य ने जोर देकर कहा कि ‘लिए लुकाठी हाथ’ में विवेच्य रचनाकार के साहित्य के ज्वलंत प्रश्नों से साक्षात्कार किया गया है और यह दर्शाया गया है कि मनुष्य, समाज, राजनीति, लोकतंत्र और संस्कृति पर गहन विमर्श इस साहित्य को दूरगामी प्रासंगिकता प्रदान करता है। 


कार्यक्रम की अध्यक्ष प्रो. प्रतिभा मुदलियार (मैसूरु) ने कहा कि प्रवीण प्रणव ने अपनी पुस्तक ‘लिए लुकाठी हाथ’ के माध्यम से पाठकों को विशेष रूप से दक्षिण भारत के हिंदी साहित्य फलक पर कवि, आलोचक और प्रखर वक्ता के रूप में प्रतिष्ठित ऋषभदेव शर्मा के साहित्य की जनवादी चेतना, स्त्री पक्षीयता, प्रेम प्रवणता और सौंदर्य दृष्टि का सहज दिग्दर्शन कराया है।


‘लिए लुकाठी हाथ’ के लेखक प्रवीण प्रणव ने अपने बेहद सधे हुए वक्तव्य में यह स्पष्ट किया कि आलोचनात्मक लेखन करते हुए लेखक स्वयं को भी समृद्ध करता चलता है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक को लिखते हुए उन्होंने सटीक समीक्षा के लिए ज़रूरी वाक्-संयम सीखा और इससे वे  अपने लेखन को अतिवाद तथा अतिरंजना से बचा सके। अपनी रचना प्रक्रिया समझाते हुए प्रवीण प्रणव ने यह सुझाव भी दिया कि जिस दिन आप उतना लिखना सीख जाएँगे जितना वास्तव में ज़रूरी है, उस दिन आप सचमुच लेखक बन जाएँगे। उन्होंने विवेच्य पुस्तक के लिए मार्गदर्शन हेतु श्री अवधेश कुमार सिन्हा, प्रो. गोपाल शर्मा, प्रो. निर्मला एस. मौर्य और प्रो. देवराज का विशेष उल्लेख किया। 


चर्चा का समाहार करते हुए ऋषभदेव शर्मा ने यह जानकारी दी कि ‘लिए लुकाठी हाथ’ के लेखक की निजी शैली को प्रो. देवराज ने ‘आत्मीय आलोचना’ तथा प्रो. अरुण कमल ने ‘जीवनचरितात्मक आलोचना’ कहा है। 


कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी संगीता देवी ने किया तथा संयोजिका डॉ. रेनू यादव ने आभार ज्ञापित किया। 000

शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

एकदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला संपन्न



पाठ लेखन के समय लेखक को स्वयं शिक्षार्थी लर्नर बनना ही होगा - प्रो. गोपाल शर्मा

हैदराबाद, 29 दिसंबर, 2023 (मीडिया विज्ञप्ति)।

“एस एल एम (सेल्फ लर्निंग मेटीरियल) या स्व-अध्ययन सामग्री ऐसी सामग्री है जिसे आदि से लेकर अंत तक छात्रकेंद्रित होना चाहिए। इस सामग्री को तैयार करते समय लेखक से लेकर संपादक, समन्वयक, परामर्शी आदि कई लोग आपस में मिलजुलकर एक इकाई की तरह कार्य करते हैं। स्व-अध्ययन सामग्री की बात करें तो वास्तव में सबसे पहले वही सीखता है जो उस पाठ को लिखता है। इस दृष्टि से सबसे पहला लर्नर पाठलेखक ही होता है। हर इकाई उसके लिए एक चुनौती है और हर पाठ लिखते समय लेखक को स्वयं शिक्षार्थी लर्नर बनना ही होगा। अन्यथा आप अपने लक्ष्य छात्रों के साथ न्याय नहीं कर पाएँगे। लेखक के रूप में केवल पिष्टपेषण न करें। विषय पर ध्यान दें। शिक्षक के साथ-साथ शिक्षार्थी बनकर इकाई लिखने का प्रयास करें। अपने अंदर निहित विद्यार्थी को जगाइए और उसके अनुरूप, उसकी सीखने की क्षमता के अनुरूप शब्द चयन कीजिए ताकि आसानी से विषय प्रेषित और ग्रहण किया जा सके। यह सामग्री पूरी तरह से विद्यार्थियों के लिए ही होनी चाहिए। विद्यार्थी समीक्षक होते हैं, अतः लेखक कभी भी कहीं भी प्रेसक्राइब न करें। विषय को डिस्क्राइब करें। सामग्री-निर्माण के समय विधार्थी और उसकी लर्निंग स्टाइल को भी ध्यान में रखें। लिखने-पढ़ने-सीखने की यह यात्रा कभी समाप्त नहीं होती है। यह आगे भी निरंतर चलती रहेगी।”


ये विचार प्रो. गोपाल शर्मा (पूर्व प्रोफेसर, अंग्रेजी विभाग, अरबा मींच विश्वविद्यालय, इथियोपिया) ने 28 दिसंबर, 2023 को मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय में दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. मोहम्मद रज़ाउल्लाह ख़ान की अध्यक्षता में संपन्न एकदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में बीज भाषण देते हुए प्रकट किए। इस कार्यशाला में दूरस्थ शिक्षा माध्यम के छात्रों के लिए हिंदी की गुणवत्तापूर्ण श्रेष्ठ स्व-अध्ययन सामग्री तैयार करने के सिद्धांत और तकनीक पर गहन विचार-विमर्श किया गया।

अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो. मोहम्मद रज़ाउल्ला खान ने उपस्थित सभी इकाई-लेखकों और संपादन मंडल के सदस्यों को साधुवाद देते हुए हर्ष व्यक्त किए। उन्होंने दूरस्थ शिक्षा के दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए हिंदी की शिक्षण सामग्री की सराहना की और इसे दूरस्थ माध्यम के छात्रों की ज़रूरतों के मुताबिक बताया।

बतौर मुख्य अतिथि भाषा विभाग के पूर्व डीन प्रो. नसीमुद्दीन फरीस ने स्व-अध्ययन सामग्री तैयार करने में जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, उन पर चर्चा की और इकाई-लेखकों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि एस एल एम अर्थात स्व-अध्ययन सामग्री को मुख्य रूप से 'पाँच स्व' को ध्यान में रखकर निर्मित किया जाता है - स्व-व्याख्यात्मक, स्व-निहित, स्व-निर्देशित, स्व-प्रेरक और स्व-मूल्यांकनपरक।

संपादक मंडल के सदस्य प्रो. श्याम राव राठौड़ (अंग्रेज़ी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय) और डॉ. गंगाधर वानोडे (केंद्रीय हिंदी संस्थान) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए यह आश्वासन दिया कि गुणवत्तापूर्ण सामग्री निर्माण में वे आगे भी मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी को अपना योगदान देते रहेंगे।

आमंत्रित वक्ता डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा (दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नै) ने स्व-अध्ययन सामग्री के संपादन के समय उपस्थित चुनौतियों पर व्यावहारिक रूप से प्रकाश डाला। डॉ. मंजु शर्मा (चिरेक इंटरनेशनल) और हिंदी विभाग, मानू के आचार्य डॉ. पठान रहीम खान और डॉ. अबु होरैरा आदि ने इकाई-लेखक के रूप में अपने अनुभवों को साझा किया।

कार्यशाला में डॉ. पूर्णिमा शर्मा, डॉ. शशिबाला, डॉ. वाजदा इशरत, डॉ. अनिल लोखंडे, शीला बालाजी, निलया रेड्डी, डॉ. बी. बालाजी, डॉ. अदनान बिसमिल्लाह, डॉ. इरशाद, डॉ. समीक्षा शर्मा और शेख मस्तान वली आदि ने सक्रिय सहभागिता निबाही।

इस कार्यक्रम में एमए (हिंदी) द्वितीय सत्र की पाठसामग्री के साथ-साथ डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की समीक्षा कृति “परख और पहचान” का भी लोकार्पण निदेशक प्रो. रज़ाउल्लाह ख़ान ने किया। प्रो. ख़ान ने समस्त अतिथियों का पुष्पगुच्छ और शॉल से भावभीना स्वागत-सत्कार किया, तो इकाई-लेखकों की ओर से परामर्शी और संपादक प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने निदेशक प्रो. रज़ाउल्लाह ख़ान तथा कोर्स कोऑर्डिनेटर डॉ. आफ़ताब आलम बेग का अभिनंदन शॉल ओढ़ाकर किया। प्रतिभागी इकाई-लेखकों को हिंदी विषय की प्रकाशित 14 पुस्तकों की लेखकीय प्रतियाँ ससम्मान भेंट की गईं।

पूरे कार्यक्रम का संचालन डॉ. आफताब आलम बेग ने किया तथा डॉ. अनिल लोखंडे ने धन्यवाद ज्ञापित किया। ◆

प्रस्तुति:
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
सह संपादक 'स्रवंति'
एसोसिएट प्रोफेसर
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास
टी. नगर, चेन्नै - 600017



तेलंगाना  समाचार 

शनिवार, 23 दिसंबर 2023

तमिलनाडु की ऐतिहासिक विजय

61वीं राष्ट्रीय रोलर स्केटिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण

वुल्ली श्रीसाहिती, आरुषि चौरसिया 
हंसुजा 


चेन्नै : 23 दिसंबर, 2023।

रोलर स्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा चेंगलपट जिले में स्थित तमिलनाडु फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स युनिवर्सिटी में 18 दिसंबर, 2023 से 22 दिसंबर, 2023 तक आयोजित 61वीं राष्ट्रीय स्केटिंग चैंपियनशिप स्पर्धा में तमिलनाडु की जूनियर वर्ग की खिलाड़ियों ने स्वर्ण पदक जीतकर तमिलनाडु के स्केटिंग के इतिहास में अपना नाम दर्ज किया।

याद रहे कि रोलर डर्बी की शुरूआत भारत में 2018 में आर एस एफ आई की ओर से हुई। इन छह वर्षों में पहली बार तमिलनाडु की खिलाडियों ने असाधारण प्रतिभा दिखाकर स्वर्ण पदक जीता। इस टीम में आरुषि चौरसिया, वुल्ली श्रीसाहिती, मृदुला पी ए, जे मोहित्रा, हंसुजा, कार्तिका एम, परिणीता बी, हरिणी के एम और वी हेमनित्याश्री सम्मिलित हैं। इस टीम की कप्तान है सागिनी और वाइस कप्तान है गान्याश्री विजयकुमार।

टीम कोच श्रीमती किरण चौरसिया, टीम मैनेजर श्रीमती उषा और स्केटिंग किड्स एसोसिएशन के निदेशक श्री विजय ने खिलाडियों को प्रोत्साहित किया और शुभकामनाएँ दीं।