हैदराबाद, 21 फ़रवरी 2013.
बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में देश भर में भाषा आंदोलन चल रहा था जिसमें भाषा और साहित्य के अग्रणी मनीषियों ने साहित्य की भाषा और जनता की भाषा के बीच की दूरी को समाप्त करने बीड़ा उठाया और जनभाषा को प्रतिष्ठा दिलाई. तेलुगु के लिए यह कार्य गिडुगु वेंकट राममूर्ति ने ग्रांथिक भाषा के स्थान पर व्यावहारिक भाषा को लाकर तथा उसे शिक्षा का माध्यम बनवाकर किया तो हिंदी के लिए आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने खड़ी बोली का मानकी कारण करके उसे काव्य के साथ गद्य की भी भाषा बनवाकर किया.इस प्रकार इन दोनों परस्पर समकालीन भाषा-चिंतकों ने भाषा को जड़ रूढ़ियों से मुक्त करते हुए लोकतांत्रिक स्वरूप प्रदान किया.
ये विचार यहाँ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी द्वारा विश्व मातृभाषा दिवस पर आयोजित व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए प्रो. ऋषभ देव शर्मा [हैदराबाद] ने व्यक्त किए.
"गिडुगु वेंकट राममूर्ति और महावीर प्रसाद द्विवेदी : भाषा आंदोलन" विषय पर मुख्य व्याख्यान देते हुए डॉ. पेरिसेट्टि श्रीनिवास राव [एरणाकुलम] ने दोनों विद्वानों के योगदान की विस्तृत चर्चा करते हुए तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया. इस अवसर पर प्रो. वी कृष्णा [हैदराबाद] मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे. उन्होंने अपने संबोधन में भारतीय भाषा समाजों की कथनी और करनी के अंतर पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारी अंग्रेज़ीपरस्ती के कारण हमारी मातृभाषाएं उपेक्षा भोग रही हैं.
विशेष अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रो. वशिनी शर्मा [आगरा] ने भाषा आंदोलन के विविध पक्षों पर प्रकाश डालते हुए प्रतिपादित किया कि जनभाषा की प्रतिष्ठा का आंदोलन वस्तुतः प्रयोजनमूलक भाषा की खोज का आंदोलन था जिसे आगे चलकर मोटूरि सत्यनारायण ने सहेजा-संवारा. उन्होंने देश-विदेश में हिंदी की वर्तमान स्थिति की तुलना करते हुए कहा कि सिनेमा और मीडिया द्वारा भाषा को नए रूपों में ढालना भी भाषा आंदोलन का एक आयाम है जिसके कारण हिंदी में रोज़गार के अनेक अवसर सामने आ रहे हैं; साथ ही आप्रवासी भारतीयों द्वारा रचे जा रहे साहित्य को भी उन्होंने हिंदी को वैश्विक स्वरूप प्रदान करने वाले आंदोलन का प्रभावशाली और अनिवार्य हिस्सा बताया.
प्रो. बी. सत्य नारायण ने संचालन, डॉ. बी उज्ज्वला वाणी ने स्वागत-सत्कार और एप्पल नायुडु ने धन्यवाद देने का दायित्व निभाया.
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पुनश्च -
व्याख्यानमाला के बीच में अचानक अधिकतर उपस्थितों के मोबाइल बजने लगे और दिलसुखनगर मे दो विस्फोटों का समाचार सबको बेचैन करने लगा.सभी आशंकित/आतंकित थे और अपने-अपने घर पहुँचने को उतावले भी. दुर्घटना की गंभीरता का पता तो बाद में चला - मीडिया से. विश्व मातृभाषा दिवस जैसे आयोजन अपनी जगह और हमारा आतंकग्रस्त यथार्थ अपनी जगह् !
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