दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी उद्घाटित
हैदराबाद, 9 मार्च 2013.
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा द्वारा संचालित उच्च शिक्षा और शोध संस्थान में आज यहाँ 'भवानी प्रसाद मिश्र एवं विष्णु प्रभाकर जन्मशती समारोह' के तहत द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन सुप्रसिद्ध कला संग्राहक और समीक्षक पद्मश्री जगदीश मित्तल ने सरस्वती दीप प्रज्वलित करके किया. मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए उन्होंने दोनों साहित्यकारों से अपने निकट संबंधों का स्मरण किया और बताया कि उन्होंने ही भवानी प्रसाद मिश्र के पहले कविता संग्रह 'गीत फरोश' का आवरण चित्र बनाया था.
बीज भाषणकर्ता प्रो.दिलीप सिंह ने कहा कि भवानी प्रसाद मिश्र और विष्णु प्रभाकर दोनों ही 'अपनी तरह से' लिखने वाले रचनाकार थे जिनकी रचनाओं में देश दुनिया की हर समस्या और चिंता झलकती है. उन्होंने कहा कि ये दोनों साहित्यकार संत परंपरा के रचनाकार हैं क्योंकि इन्हें कभी 'सीकरी' से कोई काम नहीं रहा. प्रो.सिंह ने भवानी भाई और विष्णु जी के साहित्य में निहित भारतीयता, मानवीय संवेदना और पारदर्शिता की चर्चा करते हुए उन्हें अपनी अपनी विधा के गांधी, शब्द बंधु, अन्लेबल्ड लेखक और पोर पोर साहित्यकार के रूप में प्रतिपादित किया.
उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष प्रख्यात साहित्यकार प्रो.गंगा प्रसाद विमल ने अपने संबोधन में कहा कि इन दो गांधीवादी साहित्यकारों की जन्मशती का यह आयोजन वस्तुतः ऐतिहासिक पर्व है क्योंकि इस बहाने आज की पीढी भारतीय लोक के अकूत अनुभव में रचे पगे साहित्य की मामूली आदमी तक पहुँचने की जद्दोजहद से परिचित हो सकेगी.
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से पधारे प्रसिद्ध समाजविज्ञानी प्रो.राम शरण जोशी ने अपने विशिष्ट वक्तव्य में दोनों स्मरणीय साहित्यकारों को गांधी जीवन दृष्टि के प्रतीक कहा और याद दिलाया कि वे अपने लेखन और निजी जीवन दोनों में तनिक भी रूढ़िवादी और यथास्थितिवादी नहीं थे. इसीलिए उनका साहित्य प्रगति, भारतीय मूल्य और समग्र मानवता का साहित्य है.
केंद्रीय हिंदी निदेशालय के क्षेत्रीय अधिकारी डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा ने भवानी प्रसाद मिश्र को गीत का अलबेला हस्ताक्षर और विष्णु प्रभाकर को साहित्य का गांधी कहा तो आंध्र सभा की अध्यक्ष श्रीमती एम.सीतालक्ष्मी ने समसामयिक जीवन और साहित्य में उपस्थित मूल्यों के संकट की चर्चा करते हुए यह आशा जताई कि आज की दिग्भ्रमित दुनिया को गांधी चिंतन और भारतीयता से अनुप्राणित साहित्यकार ही सही मार्ग दिखा सकते हैं.
आरंभ में कुमारी स्वप्ना कल्याणकर ने सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की तथा सभा के सचिव सी.एस.होसगौडर ने अतिथि साहित्यकारों का हार्दिक स्वागत किया. इस अवसर पर एक पोस्टर प्रदर्शनी भी लगाई गई जिसका उदघाटन प्रो.राम शरण जोशी ने किया. प्रदर्शनी में दोनों साहित्यकारों की रचानाओं के उद्धरण योग्य अंशों के पोस्टर प्रदर्शित किए गए हैं.
उद्घाटन सत्र में ही प्रो.दिलीप सिंह ने वरिष्ठ कवयित्री विनीता शर्मा के ताजा कविता संग्रह 'स्वान्तः सुखाय' को लोकार्पित भी किया.
समारोह के पहले दिन तीन स्वतंत्र विचार सत्रों में भवानी प्रसाद मिश्र के जीवन और प्रदेय, साहित्यिक विविध आयाम तथा मूल्यांकन पर केंद्रित चर्चा-परिचर्चा संपन्न हुई. इन सत्रों की अध्यक्षता क्रमशः टी.वी.कट्टीमनी, डॉ.आर एस शुक्ला और प्रो. राम जन्म शर्मा ने की.चर्चा-परिचर्चा में प्रो.हीरालाल बाछोतिया, डॉ.साहिरा बानू बी. बोरागल, प्रो.अमर ज्योति, डॉ.प्रदीप कुमार सिंह, डॉ.मृत्युंजय सिंह, डॉ.बलविंदर कौर, प्रो.एम.वेंकटेश्वर, डॉ.गोरखनाथ तिवारी, डॉ.गुर्रमकोंडा नीरजा, डॉ.ऋषभ देव शर्मा, शशिनारायण स्वाधीन और डॉ. पी. श्रीनिवास राव ने विचारोत्तेजक आलेख और वक्तव्य प्रस्तुत किए.
शताब्दी समारोह में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के अतिरिक्त विभिन्न विश्वविद्यालयों और संस्थानों से जुड़े विद्वानों, पत्रकारों, शोधार्थियों, राजभाषा अधिकारियों और छात्र-छात्राओं ने बड़ी संख्या में उत्साहपूर्वक भागीदारी निभाई.
संगोष्ठी संयोजक प्रो.ऋषभ देव शर्मा ने जानकारी दी हैं कि समारोह के दुसरे दिन रविवार 10 मार्च को प्रातः 9.30 बजे से विष्णु प्रभाकर पर केंद्रित विचार सत्र आयोजित किए जाएँगे तथा सायंकाल समाकलन सत्र की अध्यक्षता केंद्रीय हिंदी निदेशालय के निदेशक प्रो.केशरी लाल वर्मा करेंगे. इस अवसर पर प्रसिद्ध भाषाविद प्रो.वी.रा.जगन्नाथन मुख्य अतिथि होंगे. समाकलन सत्र में प्रो.दिलीप सिंह की सद्यः प्रकाशित कृति 'भाषा,लोक और संस्कृति' का लोकार्पण भी किया जाएगा.
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