उच्च शिक्षा और शोध संस्थान में भवानी प्रसाद मिश्र और विष्णु प्रभाकर शताब्दी समारोह संपन्न
हैदराबाद, 10 मार्च 2013
बेहतर समाज के निर्माण के लिए यह जरूरी है कि साहित्य के द्वारा उत्कृष्ट जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा की जाए और विघटनकारी प्रवृत्तियों को पराजित किया जाए। ऐसा करने के लिए आपसी सद्भाव की स्थापना में राष्ट्रभाषा की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी भावना से दक्षिण भारत में गाँव गाँव तक दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा निष्ठापूर्वक हिन्दी का प्रचार - प्रसार करती आ रही है। सभा ने उच्च शिक्षा और शोध के क्षेत्र में जो श्रेष्ठ उपलब्धियां अर्जित की हैं, 'भवानी प्रसाद मिश्र एवं विष्णु प्रभाकर शताब्दी समारोह' के तहत संपन्न द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ने उसमें एक नया अध्याय जोड़ दिया है, इस संगोष्ठी में प्रतीकात्मक रूप में पूरे देश की उपस्थिति इसकी सफलता का प्रमाण है।
ये विचार आज यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में आयोजित दो दिन के साहित्यिक समारोह के समापन के अवसर पर बोलते हुए केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, नई दिल्ली के निदेशक प्रो.केशरी लाल वर्मा ने व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि भवानी बाबू और विष्णु प्रभाकर हिंदी की अपार संप्रेषण शक्ति के प्रतीक ऐसे साहित्यकार हैं जिनमें साधारण भाषा में असाधारणता उत्पन्न करने की क्षमता है। प्रो केशरी लाल वर्मा ने इस अवसर निदेशालय की विभिन्न योजनाओं का परिचय देते हुए लेखकों और हिंदी सेवियों से सहयोग की अपील भी की।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पधारे वरिष्ठ भाषावैज्ञानिक प्रो. वी. रा. जगन्नाथन ने कहा कि भवानी प्रसाद मिश्र और विष्णु प्रभाकर दोनों ही बयान की सपाटता के साथ उसके चुटीलेपन को साधने वाले विलक्ष्ण साहित्यकार हैं जो हास्य और व्यंग्य का पुट देकर विडंबना का कचोटने वाला चित्रण करते हैं। उन्होंने समीक्षकों और इतिहासकारों द्वारा इनकी उपेक्षा को अक्षम्य मानते हुए इस संगोष्ठी के शोध पत्रों को प्रकाशित करने की भी जरूरत बताई।
समारोह के दौरान प्रो. दिलीप सिंह की सद्यःप्रकाशित कृति 'भाषा, संस्कृति और लोक' का लोकार्पण भी प्रो. केशरी लाल वर्मा और प्रो. वी. रा. जगन्नाथन के हाथों संपन्न हुआ। प्रो ऋषभ देव शर्मा ने पुस्तक का परिचय दिया और प्रो दिलीप सिंह ने पं. विद्यानिवास मिश्र स्मृति ग्रंथमाला के तहत इस कृति के प्रकाशन की पृष्ठभूमि बताते हुए इसे भाषाविज्ञान के व्यावहारिक स्वरूप की व्याख्या करने वाली कृति कहा।
आरंभ में आंध्र सभा की अध्यक्ष एम. सीतालक्ष्मी, सचिव सी. एस. होसगौडर तथा एम. जी. गुत्तल ने तिथियों को उत्तरीय और स्मृति चिह्न द्वारा सम्मानित किया। संयोजक प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने दो दिन की संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया और प्रो. हीरालाल बाछोतिया तथा प्रो. गंगा प्रसाद विमल ने समाकलन करते हुए इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि इस महत्तम संगोष्ठी में भागीदार विद्वानों ने अत्यंत गंभीरतापूर्वक उत्खनन करके दोनों शताब्दी-हस्ताक्षरों के साहित्य की अत्यंत विरल और गुह्य विशेषताओं का दर्शन कराया।
इसके पूर्व शताब्दी समारोह के दूसरे दिन की कार्यक्रमों के अंतर्गत आज भी तीन विचार सत्रों में विष्णु प्रभाकर के जीवन और प्रदेय, साहित्य के विविध आयाम और मूल्यांकन पर केंद्रित विद्वत्तापूर्ण शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। विचार सत्रों की अध्यक्षता क्रमशः प्रो. एन. सुन्दरम, प्रो. एम. वेंकटेश्वर और प्रो. टी. मोहन सिंह ने की तथा प्रो. शुभदा वांजपे, प्रो. राम जन्म शर्मा, प्रो. राम शरण जोशी, प्रो. पी. राधिका, डॉ. पी. श्रीनिवास राव, डॉ. जी. नीरजा, डॉ. मंजुनाथ अम्बिग, डॉ. साहिरा बानू बी बोरगल, डॉ. बलविंदर कौर और डॉ. गोरखनाथ तिवारी ने विमर्श द्वारा संगोष्ठी को जीवंत बनाया।
विभिन्न विश्विद्यालयों और संस्थानों से पधारे विद्वानों, प्राध्यापकों, शोधार्थियों, पत्रकारों और राजभाषा अधिकारियों ने संगोष्ठी और चर्चा-परिचर्चा में सक्रिय भागीदारी निभाई।
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