डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा को परिलेख हिंदी साधक सम्मान
और
ग़ज़लकार सुधीर ‘तन्हा’ को आचार्य पं. हरिसिंह शास्त्री सृजन सम्मान
बाएँ से : प्रो. ऋषभ देव शर्मा, डॉ. पूर्णिमा शर्मा, डॉ. ओम राज, सुधीर तन्हा, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, डॉ. योगेंद्रनाथ शर्मा 'अरुण', विनोद भगत और अरविंद सिंह |
परिलेख कला एवं संस्कृति समिति, नजीबाबाद के तत्वावधान में साहित्य कुंभ-2014 का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम 12 जून 2014 को सायं 04 बजे नजीबाबाद के ‘कान्हा रॉयल सैल्यूट होटल’ के सभागार में सम्पन्न हुआ जिसमें 7 पुस्तकों का विमोचन, 2 साहित्यकारों को सम्मान एवं विशिष्ट विद्वानों का संबोधन सम्मिलित रहा। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. ओम राज ने की एवं संचालन ताहिर महमूद ने किया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ संस्था की अध्यक्षा डॉ. रजनी शर्मा एवं सचिव डॉ. सुशील कुमार ‘अमित’ ने मुख्य अतिथि प्रो. ऋषभ देव शर्मा, विशिष्ट अतिथि डॉ. योगेंद्रनाथ शर्मा ‘अरुण’ एवं अरविंद सिंह से सरस्वती दीप प्रज्वलित कराकर किया। मयंक प्रताप सिंह एवं गौरी शर्मा ने नृत्य करते हुए सरस्वती की वंदना प्रस्तुत की। जिन पुस्तकों का विमोचन किया गया उनमें ‘भारतीय संस्कृति के पुरोधा: आचार्य पं. हरिसिंह त्यागी’- (सं. डॉ. सुशील कुमार त्यागी ‘अमित’), ‘मेरी अनुभूति’ (सं.रश्मि अभय), ‘सूरज के छिपने तक’ (कवयित्री रश्मि अभय), ‘कविता पुष्प-2014’ (सं. ताहिर महमूद, डॉ. सुशील कुमार त्यागी ‘अमित’), ‘सर्द मौसम की रात’ (शायर सुधीर ‘तन्हा’), ‘के.एस.तूफ़ान का दलित विमर्श: टूटते संवाद का विशेष संदर्भ’(संतोष विजय मुनेश्वर) एवं ‘परिलेख सम्मान परिचय पुस्तिका’ का विमोचन किया गया।
हिंदीतर भाषी हिंदी लेखिका डॉ. जी. नीरजा को हिंदी में प्रकाशित पुस्तक ‘तेलुगु साहित्य : एक अवलोकन’ के लिए द्वितीय ‘‘परिलेख हिंदी साधक सम्मान’’ एवं उदीयमान शायर सुधीर ‘तन्हा’ को उनके ग़ज़ल संग्रह ‘सर्द मौसम की रात’ के लिए द्वितीय ‘‘आचार्य पं. हरिसिंह शास्त्री सृजन सम्मान’’ से सरस्वती प्रतीक चिह्न, अंगवस्त्र, सम्मान-पत्र एवं चैक देकर फूल-मालाओं से सम्मानित किया गया। परिलेख हिंदी साधक सम्मान के लिए डॉ. जी नीरजा को मनमीत के संपादक अरविंद सिंह ने 5100 रुपए एवं सुधीर ‘तन्हा’ को महर्षि कणाद विद्यापीठ, सिसौना के प्रबंधक डॉ. संजय कुमार त्यागी ने 2100 रुपए का चैक देकर सम्मानित किया।
इस अवसर पर परिलेख कला एवं संस्कृति समिति के संस्थापक अमन कुमार ने कहा कि हिंदी ने जिस तरह अंग्रेजी और उर्दू के शब्दों को अपनाया है, उसी तरह भारत की अन्य भाषाओं के शब्दों को भी अपनाया जाना चाहिए जिससे हिंदी का प्रचार-प्रसार करने और इसे सर्वस्वीकार्य बनाने में आसानी होगी। उन्होंने कहा कि जिन लेखों, कहानियों और कविताओं में हिंदी के साथ-साथ भारत की अन्य भाषाओं का प्रयोग किया जाएगा, परिलेख प्रकाशन ऐसी रचनाओं को प्रोत्साहित करते हुए प्राथमिकता के साथ प्रकाशित करेंगे। इस घोषणा का डॉ. ऋषभदेव शर्मा और डॉ. जी. नीरजा सहित सभी उपस्थित विद्वानों ने समर्थन करते हुए सहयोग का वादा किया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि एवं उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद के आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि हिंदी आसानी से समझे जाने वाली सर्वसमावेशी भाषा है। हिंदी को व्यावहारिक रूप में भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार करने की चुनौतियों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हिंदी भारतीय भाषाओं में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, हमें भारत की अन्य भाषाओं का सम्मान करते हुए उनके शब्दों को भी खुले मन से अपनाना चाहिए ताकि हिंदी को यथोचित सम्मान प्राप्त हो सके।
विशिष्ट अतिथि एवं बी.एस.एम. पी.जी.कॉलेज, रुड़की के पूर्व प्राचार्य डॉ. योगेंद्रनाथ शर्मा ‘अरुण’ ने कहा कि हिंदी सर्वजनों की भाषा है लेकिन खेद का विषय है कि अभी तक इसे उसका अधिकार नहीं मिल पाया है। देश के विकास तथा संपूर्ण राष्ट्र की एकता के लिए हिंदी को बढ़ावा तथा व्यावहारिक रूप से राजभाषा का दर्जा देने की जरूरत है।
हैदराबाद से आईं डॉ. पूर्णिमा शर्मा ने कहा हिंदीतर भाषी हिंदी लेखकों को सम्मान देने से परिलेख कला एवं संस्कृति समिति का सम्मान तो है ही, नगर और समाज का भी सम्मान ऐसे कार्यों से बढ़ता है।
आजमगढ़ से प्रकाशित पत्रिका शार्प रिपोर्टर एवं मनमीत के संपादक अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि हिंदीतर भाषी को हिंदी भाषा के लिए योगदान पर सम्मानित किया जा रहा है। यह हिंदी साधकों के लिए अच्छी बात है और इस तरह के आयोजन संपूर्ण देश में होते रहने चाहिए। उन्होंने कहा कि हम प्रयास करेंगे कि वर्ष में कम से कम ‘मनमीत’ का एक अंक भारतीय भाषाओं को समर्पित होगा।
परिलेख हिंदी साधक सम्मान प्राप्त करने के बाद डॉ. जी. नीरजा ने परिलेख कला एवं संस्कृति समिति का आभार व्यक्त करने के बाद कहा कि हिंदी और तेलुगु भाषा साहित्य में काफी समानता है। दोनों की भाषिक संस्कृति कहीं भी अलग नजर नहीं आती हैं। इसी प्रकार आचार्य पं. हरिसिंह शास्त्री सृजन सम्मान प्राप्त ग़ज़लकार सुधीर ‘तन्हा’ ने कहा कि साहित्यकारों को दिये जाने वाले सम्मान साहित्यकारों में नई चेतना को जन्म देते हैं।
अध्यक्षीय भाषण में वरिष्ठ हिंदी गज़लकार एवं शिक्षाविद डॉ. ओमराज ने राष्ट्रभाषा हिंदी को मजबूत बनाने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं को भी अपनाने पर बल देते हुए कार्यक्रम आयोजकों एवं सम्मानित हिंदी सेवियों और अतिथिगणों का आभार व्यक्त किया। दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र सिंह एवं काशीपुर, उत्तराखंड के पत्रकार एवं कवि विनोद भगत आदि वक्ताओं ने भी विचार व्यक्त किए।
अंत में संस्था के संरक्षक वरिष्ठ शायर महेंद्र ‘अश्क’ और मुख्य सलाहकार अशोक शर्मा की उपस्थिति में संस्था के संस्थापक अमन कुमार ने सभी का आभार व्यक्त किया।
परिलेख कला एवं संस्कृति समिति, नजीबाबाद के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र पुष्पक एवं लोक समन्वय समिति, नजीबाबाद के अध्यक्ष यशोधर डबराल, सचिव सुबेन्द्र सिंह, कोषाध्यक्ष प्रमोद सिंह, सदस्य भूपेन्द्र सिंह के अतिरिक्त के.एस. तूफ़ान, फारेहा इरम, डॉ. संजय त्यागी, प्रकाशवीर त्यागी, दीपक वालिया, डॉ. विजय कुमार त्यागी, महेन्द्र सिंह राजपूत, पुनीत गोयल, सौरभ भारद्वाज, बलराज त्यागी, रविकान्त अविनाश, धनिराम सिंह, मौ. इमरान, गोविन्द सिंह, शहजाद राज़, वरूण आत्रेय, सन्दीप चैहान, तन्मय त्यागी आदि ने सहयोग किया। शार्प रिपोर्टर(राजनीतिक मासिक पत्रिका), मनमीत(युवाओं की मासिक पत्रिका) एवं परिलेख प्रकाशन ने विशेष सहयोग प्रदान किया।
इस अवसर पर नगर एवं आसपास के गणमान्य व्यक्ति एवं साहित्यकार डॉ. अशोक स्नेही, प्रदीप डेजी, राजेन्द्र त्यागी, अशोक सविता, बलवीर सिंह वीर, राज कुमार राज, निशा अग्रवाल, मंजु जौहरी, रश्मि, अक्षि, दीपशिखा, अनीता, प्राची, मंजु, सुनील कुमार टॉक, राजेश मिश्रा ‘राजू’ नन्दीनी शर्मा, शारिक कफील, वक़ा जलालाबादी, जीतेंद्र कक्कड़, ज्ञानेंद्र, संजीव त्यागी, विपिन त्यागी, आकाशवाणी नजीबाबाद से अनिल भारती, राजन गुप्ता, आदि उपस्थित रहे।
प्रस्तुति :
डॉ. सुशील कुमार त्यागी
प्राध्यापक, गुरुकुल महाविद्यालय,
ज्वालापुर, पो. गुरुकुल कांगड़ी – 249404
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