शनिवार, 25 जनवरी 2025

‘क से कविता’ में अतिथि कवि डॉ. विनय कुमार से संवाद संपन्न




हैदराबाद, 24 जनवरी, 2025।  
मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद के दूरस्थ शिक्षा केंद्र की लाइब्रेरी में ‘क से कविता’ के  तत्वावधान में ‘साहित्यकार से परिचय’ कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पटना (बिहार) से पधारे प्रतिष्ठित मनोचिकित्सक एवं कवि डॉ. विनय कुमार का स्वागत-सत्कार किया गया।

कवि का परिचय प्रवीण प्रणव ने दिया। दूरस्थ शिक्षा विभाग के निदेशक प्रो. रज़ा उल्लाह ख़ान और आईआईआईटी से पधारे वरिष्ठ कवि प्रो. लाल्टू ने शॉल ओढ़ाकर उनका अभिनंदन किया। इसी क्रम में डॉ. शेषु बाबू, प्रो. गोपाल शर्मा, प्रो. नसीमुद्दीन फरीस एवं डॉ. आफताब आलम बेग ने भी शॉल एवं माला समर्पित कर मुख्य अतिथि के प्रति सम्मान प्रकट किया। आरंभ में सहायक कुलसचिव डॉ. आफ़ताब आलम बेग ने सबका स्वागत किया।

मुख्य अतिथि डॉ. विनय कुमार ने अपनी जीवनयात्रा और रचनायात्रा के संबंध में खुलकर चर्चा की तथा अपने चर्चित कविता संग्रह ‘यक्षिणी’ से कई कविताओं का वाचन किया। साथ ही, यथाशीघ्र प्रकाशित होने वाले नए कविता संग्रह ‘सरस्वती’ में सम्मिलित रचनाएँ भी सुनाईं। उपस्थित साहित्यप्रेमी मित्रों के आग्रह पर उन्होंने अपनी कई गजलें भी प्रस्तुत कीं। प्रो.  लाल्टू ने भी उनके आग्रह का मान रखते हुए अपनी रचनाओं का वाचन किया। 

गोष्ठी में पढ़ी गई रचनाओं पर प्रो. गोपाल शर्मा,  प्रो. नसीमुद्दीन फरीस, डॉ. इरशाद नैयर, डॉ. अनिल लोखंडे, डॉ. मंजु शर्मा और डॉ. आफ़ताब आलम बेग ने सारगर्भित समीक्षात्मक टिप्पणियाँ कीं।  

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो.  रज़ा उल्लाह ख़ान ने डॉ विनय कुमार की कविताओं की भाव प्रवणता, वैचारिकता, सौंदर्य बोध तथा काव्य भाषा की विशेष प्रशंसा की। संचालन का सूत्र प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने सँभाला। 000


















रविवार, 12 जनवरी 2025

‘भारत-ऑस्ट्रेलिया साहित्य सेतु’ ने ऑनलाइन मनाया ‘विश्व हिंदी दिवस समारोह’



विश्वभर के ज्ञान की खिड़की बनने की ओर अग्रसर  हिंदी

10 जनवरी, 2025, 
एनसीआर दिल्ली/ लंदन (मीडिया विज्ञप्ति)।

विश्व हिंदी दिवस (10 जनवरी, 2025) को “भारत-ऑस्ट्रेलिया साहित्य सेतु” के तत्वावधान में “विश्व में हिंदी, हिंदी में विश्व’ विषय पर साहित्य-विमर्श का आयोजन आभासी-माध्यम ज़ूम पर आयोजित किया गया। 

आयोजन की शुरूआत में संस्था के संस्थापक अध्यक्ष अनिल कुमार शर्मा ने ‘साहित्य सेतु’ के मुख्य उद्देश्य के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि  हिंदी भाषा के समग्र प्रसार हेतु यह संस्था 2018 से काम कर रही है । संस्था द्वारा भारत  के साहित्यकारों व प्रवासी  लेखकों को एक मंच पर लाकर हिंदी भाषा एवं साहित्य के विमर्श व गोष्ठियों का आयोजन करना देश व विदेश में अनवरत जारी है।

अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध हिंदी भाषाविज्ञानविद् डॉ. भगवान सिंह ने विषय पर व्यापक चर्चा करते हुए बताया कि बोलियों का भी  संस्कृत भाषा के सुदृढ़ आधार में योगदान है ।भारत सांस्कृतिक एवं भाषाविज्ञान की विरासत का देश है।  हिंदी, बोलियों एवं अन्य भाषाओं से समृद्ध हुई और यही भाव देश को जोड़े रखता है। हिंदी भाषा संस्कृति,समाज एवं संस्कारों की भाषा है।”

नागरी लिपि परिषद प्रमुख डॉ. हरिसिंह पाल ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा, “वैश्विक स्तर पर हिंदी की पैठ बनने लगी है और इसे प्रवासी भारतीय और विदेशी उत्साह के साथ सीखने लगे हैं।”

हैदराबाद के प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कहा "विश्वभर में प्रसार की दृष्टि से हिंदी प्रथम स्थान प्राप्त कर चुकी है। उसकी विविध बोलियों और शैलियों को काटकर अलग करना उचित नहीं है। आशा की जानी चाहिए कि इस अपार संख्याबल का सम्मान करते हुए संयुक्त राष्ट्र भी देर-सबेर हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्ज़ा देगा ही। रही बात हिंदी में विश्व की, तो कहना ग़लत न होगा कि आज इंटरनेट पर लगातार बढ़ती अपनी उपस्थिति के बल पर हिंदी विश्व के समस्त ज्ञान-विज्ञान और साहित्य को ग्रहण करके स्वयं को समृद्ध कर रही है। इसमें अनुवाद की बड़ी भूमिका है। मेरा सपना है कि हमारी हिंदी सही अर्थों में विश्वभर के ज्ञान की खिड़की बन सके।”

इस अवसर पर चंद्रकांत  पाराशर (हिंदीसेवी व एडिटर आईसीएन-हिंदी) ने हिंदी भाषा के व्यावहारिक पक्ष को सामने रखते हुए कहा कि हिंदी के प्रति अंग्रेज़ी मानसिकता के साथियों को अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। हिंदी की बात’ से अधिक हिंदी में बात’ पर बल देने से हमारी वर्तमान व भावी पीढ़ियों के मन में भी हिंदी भाषा के प्रति गौरव, स्वाभिमान, सम्मान व श्रद्धा जागृत होगी, जो कि हम सभी अपने सहज व्यवहार, मन व वाणी के माध्यम से कर सकते हैं।”

मुख्य अतिथि श्रीमती जया वर्मा (लंदन) ने विदेशों में हिन्दी भाषा की दशा एवं दिशा पर विस्तृत विचार व्यक्त किए एवं ‘जहॉं मैं चली, वहाँ हिंदी चली’ कविता प्रस्तुत करते हुए कहा कि लगता है कि हिंदी में विश्व समाविष्ट हो गया है।

डॉ. आर. रमेश आर्य  (भूतपूर्व निदेशक, राजभाषा विभाग) ने कहा कि “आदिवासी समूहों एवं जनजातियों की बोलियों को भी हिंदी में  स्थान देना होगा। भारत का लोक साहित्य इन बोलियों से प्रभावित है। बोलियों की स्वीकृति  से हमें हिंदी को समृद्ध करने में मदद मिलेगी।”

प्रांजल धर (दिल्ली) ने अपने व्याख्यान में कहा कि “हर साल विश्व हिंदी दिवस पर एक थीम यानी विषय निर्धारित किया जाता है, जो इसके महत्व को दर्शाते हुए इसके प्रचार-प्रसार को सुगम और तेज बनाए। इस बार विश्व हिन्दी दिवस का विषय 'एकता और सांस्कृतिक गौरव की वैश्विक आवाज' रखा गया है, जिसका उद्देश्य भाषाई और अंतरराष्ट्रीय आदान-प्रदान के लिए हिंदी भाषा के उपयोग को बढ़ावा देना है। दरअसल हिंदी को दो-तरफा प्रतिस्पर्धा झेलनी पड़ रही है। वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा तो है ही, हिंदी को देश में भी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।” उन्होंने आगे कहा कि “रोजनामचा, जमा, तलाशी, फौजदारी, दरियाफ्त, मौजा, हुकम, हिकमत, अमली, मुखबिर, मजमून, फिकरा, तहरीर, शहादतआदि अनेक ऐसे शब्द हैं जिन्हें हिंदुस्तान का ज्यादातर आम आदमी जानता है, और जीवन में कभी न कभी पुलिस थाना और कचहरी में उसका पाला भी इनसे पड़ता है। हर रोज हजारों लाखों बार ये शब्द काम में आते हैं। जरूरी नहीं है कि इन शब्दों को हटा दिया जाए या खत्म कर दिया जाए। हिंदी भाषा के समक्ष आने वाली इन चुनौतियों से हमें निपटना होगा। इसे रोजगार से जोड़ना होगा। हिंदी यूनेस्को की सात भाषाओं में शामिल है, दुनिया में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी बड़ी भाषा है जो लगभग दो सौ देशों में बोली या समझी जाती है और ग्लोब के करीब एक अरब लोग हिंदी बोल या समझ लेते हैं।” 

डा.कीर्ति बंसल दिल्ली ने कहा आज 10 जनवरी 2025 का यह दिन 1975 में नागपुर, भारत में आयोजित पहले विश्व हिंदी सम्मेलन की ऐतिहासिक घटना की याद दिलाता है, जिसने हिंदी को एक वैश्विक भाषा के रूप में पहचान दिलाने की शुरूआत की। आज हिंदी केवल भारत में नहीं, बल्कि दुनिया भर के कई देशों में बोली, लिखी और समझी जाती है। इंटरनेट, ई-कॉमर्स और तकनीकी क्षेत्र में भी हिंदी का महत्व तेजी से बढ़ रहा है। आज, इस विशेष अवसर पर, हमें यह स्मरण करना चाहिए कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, पहचान और आपसी संवाद का एक सशक्त माध्यम है और हमें हिंदी के प्रसार और उसकी वैश्विक भूमिका को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।”

आशुतोष (लंदन) ने कविता पाठ किया और कहा कि “परदेस में रहकर जब हम, जड़ से कटने लगते हैं,/ पूरब और पश्चिम में जब, रस्ते बँटने लगते हैं,/ हिंदी मिट्टी से जुड़कर, रहने का हुनर देती है,/ अनजाने देशों में भी, अपना सा वो घर देती है।”

गीतकार विजय कुमार सिंह सुनाया, “क्या गाऊँ क्या गाऊँ क्या गाऊँ क्या गाऊँ,/ रुद्ध कंठ है खंडित है स्वर मन ही मन घबराऊँ।/ सुर नर मुनि सब महिमा गाते, गाते सब किन्नर किन्नरियाँ,/ राग नए दिन रात सजाते, आह्लादित करती हैं ध्वनियाँ,/  मन के टूटे इन तारों पर कौन सा राग सजाऊँ,/ क्या गाऊँ क्या गाऊँ क्या गाऊँ क्या गाऊँ!”

डॉ. भावना कुँअर (सिडनी) का ग़ज़ल पाठ कुछ इस तरह रहा, “कुछ असर ऐसा हुआ, उनसे हुई बातों के बाद/ 
बन गए अपने वो हमदम, दो मुलाक़ातों के बाद।”

कवि प्रगीत कुँअर (आस्ट्रेलिया) ने सुनाया, “थक चुका है अब नहीं तू काम कर,/ मैं दवा देता हूँ तू आराम कर।”

वरिष्ठ साहित्यकार गोपाल बघेल ‘मधु’ (कनाडा) ने बताया कि “विश्व की मूल भाषा संस्कृत थी और उसी से देशकाल- पात्रों की आवश्यकता, शरीर तंत्र की अवस्थिति और भौगोलिक व सांस्कृतिक स्थिति के अनुसार हिंदी व अन्य सभी विश्व की भाषाओं का आविर्भाव हुआ। आज हिंदी वैज्ञानिक, कंप्यूटर तकनीक, व्यावहारिक, व्यावसायिक, साहित्यिक और बड़ी जनसंख्या में उपयोग में आने वाली उत्कृष्ट विश्वभाषा बन गई है। आज हिंदी भाषा और साहित्य का पूरा विश्व प्रयोग कर आनन्द ले रहा है। हिंदी भाषी लोग अब विश्व भर में हैं। अनेक हिंदी बोलने, समझने, लिखने वाले और साहित्य पढ़ने वाले जन समुदाय, होने वाले कार्यक्रमों, विभिन्न पटलों, व्यवहार, आदि को देखकर लगता है कि हिंदी में विश्व समाविष्ट हो गया है।”  
 
भूतपूर्व पीसीएस अधिकारी कवि प्रभात कुमार शर्मा ने अपनी गीत गंगा के माध्यम से हिंदी भाषा को प्रतिष्ठित किया, “ हिंद से हिंदी बनी, साक्षी है संस्कृति की। /देव-लिपि है, जो लिखें कहती वही है।/ गागरों के मन से बहती,/ सागरों को पार करती,/ चीरती बहु बिघ्न-बाधा,/ तोड़ती बंधन निराले,/ मन में फैलाती उजाले,/ दंभियों से जूझकर भी, विश्व में छाई हुई है।/  वर्तनी के भेद से परिशुद्ध है,/ भावनाओं से भरी औ प्रबुद्ध है,/ गीत गाती, गुनगुनाती,/ देश के अंचलों, बहुरंगियों के शौर्य के/, व्योम-भू के बीच के सौंदर्य को,/  सहज कह जाती छिपे अति गूढ़ को।/ ग्राह्य है सबको सहज ही,/ भावना के भाव लेकर,/ हृदय अंतर में उतरती,/  और प्रस्फुट कर ही देती सरलता से,/ अनकही सी बात जो मन कह न पाए,/ घुमड़ कर अस्पष्ट सा कहीं अटक जाए,/ ढूँढ़ता जब अनकहे से शब्द प्रतिपल,/ भाव की बन सहज भाषा,/  भाषिनी सी सार बन,/  जब तरलता से लुढ़क जाए,/ मन मुकुर को स्वच्छ कर,/ वह शर्करा सी कर्ण-प्रिय बन/  हृदय-मरु में, / तरलता मृदु पेय की ज्यों शांति लाए।/ यह सुरभि मृदुला सहज पय-वारि की./ विश्व की भाषा विविध में हो सुशोभित,/  शीर्ष भाषा विश्व की बन शौर्य पाए,/  प्रभु! कृपा कर,  गीत फिर से गुनगुनाए।”

सुशील कश्यप (चेन्नई)  ने कहा कि “हिंदी विश्व की भाषा नहीं, बल्कि विश्व की आत्मा है। आज भारत और हिंदी विश्व को एकजुट करने के लिए कृत-संकल्प है। हिंदी 21वीं सदी की और संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनकर विश्व मे उभरेगी।”

संस्था के सचिव अंतरराष्ट्रीय कवि राजीव खंडेलवाल ने कहा विश्व में हिंदी को स्थापित करने के लिये हमें दूसरी भाषाओं को भी साथ लेकर चलना होगा।

रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के भूतपूर्व कुलपति डॉ. विमल कुमार शर्मा ने कहा कि हिंदी  दुनिया में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषाओं में से एक है। यह लगभग 60 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा मातृभाषा के रूप में बोली जाती है, और 90 करोड़ से ज्यादा लोग इसे दूसरी भाषा के रूप में उपयोग करते हैं। हिंदी को अंतरराष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिलने से इसे संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं (जैसे अंग्रेजी, फ्रेंच, चीनी, अरबी, स्पेनिश और रूसी) में शामिल करने की संभावना बढ़ सकती है। यह भारत के वैश्विक प्रभाव को और मजबूत करेगा।”

सभी वक्ताओं के व्याख्यान पर संस्था के प्रवक्ता डॉ. आर. एस. तिवारी ‘शिखरेश’ ने प्रभावी समीक्षा प्रस्तुत करते हुऐ कहा कि हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है और हमें सकारात्मक एवं भाषाई व्यावहारिक दर्शन की अवधारणा से आगे बढ़ना चाहिए।  सतत प्रयास ही हमारी मंज़िल की गारंटी है।”

संस्था के उपाध्यक्ष डॉ. बलराम गुमास्ता ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुऐ हिंदी को विश्व मंच पर सार्थक स्थान दिलाने के ‘भारत-आस्ट्रेलिया साहित्य सेतु’ संस्था की हृदय से सराहना की।

आयोजन की सफलता इस बात से समझी जा सकती है कि समय सीमा की समाप्ति के बाद भी देश-विदेश के श्रोताओं की सहभागिता बनी रही और अनिल कुमार शर्मा (आगरा) के कुशल संचालन में आयोजन काफी देर तक चलता रहा। 000

(प्रेषक: अनिल कुमार शर्मा, आगरा। 
मो. +91 94125 88226। 
ईमेल: omanilsharma@gmail.com )

गुरुवार, 2 जनवरी 2025

"चुनावी लोकतंत्र और श्रीलाल शुक्ल का साहित्य" : अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

"चुनावी लोकतंत्र और श्रीलाल शुक्ल का साहित्य" : अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न







जनता सजग, लोकतंत्र सफल                  - - श्रीराम तिवारी आईपीएस

हैदराबाद, 1 जनवरी, 2025। 
श्रीलाल शुक्ल स्मारक राष्ट्रीय संगोष्ठी समिति  तथा हिंदी प्रचार सभा  के संयुक्त तत्वावधान में 31 दिसंबर को "चुनावी लोकतंत्र और श्रीलाल शुक्ल का साहित्य" विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी डॉ. सीमा मिश्रा के संयोजन में सफलतापूर्वक संपन्न हुई।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्रीराम तिवारी (आईपीएस (से.नि.), आंध्र प्रदेश सरकार) ने अपने वक्तव्य में कहा कि यदि जनता सजग है तो लोकतंत्र सफल होगा। अपने वक्तव्य को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि ज्ञान और मोक्ष भारत भूमि में ही मिलता है और कहीं नहीं। उन्होंने कहा श्रीलाल शुक्ल द्वारा रचित उपन्यास उस समय के समाज का दर्पण है। आज व्यक्ति दुखी नहीं है, वह पड़ोसी के सुख से दुखी है। उन्होंने चुनावी प्रक्रिया पर कहा कि जैसी सरकार चुनोगे तो उसके परिणाम भी आप वैसे ही भोगोगे। अपने विवेक का प्रयोग कर अच्छे लोगों को चुनें और भारत का भविष्य उज्ज्वल बनाएँ।

समारोह के अध्यक्ष  प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि भारत को लोकतंत्र की जननी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में सुधार तभी होगा जब जनता जागरूक होगी और जनता तभी जागरूक होगी जब सत्य को जानेगी। आपने आगे कहा कि समाज और लोकतंत्र में सुधार करना साहित्यकारों का काम है और हमने यह काम नेताओं के हाथ में दे दिया। परिणामस्वरूप जो विसंगतियाँ श्रीलाल शुक्ल के समय थीं, वही विसंगतियाँ आज भी अंगद की तरह पैर धँसाए बैठी हैं।

मुख्य वक्ता प्रो. गोपाल शर्मा (पूर्व प्रो. एवं अध्यक्ष, अंग्रेज़ी विभाग, अरबा मींच विश्वविद्यालय, इथियोपिया, अफ्रीका) ने अपने बीज भाषण में अपने व्यंग्य लेखन  और श्रीलाल शुक्ल से  भेंटवार्ता के दौरान हुए कई खट्टे-मीठे अनुभव साझा किए। उन्होंने व्यंग्य की चर्चा करते हुए कहा कि लेक्चर का मजा तो तब है, जब सामने वाला समझ जाए कि ये बकवास कर रहा है!

विशिष्ट अतिथि प्रो. गंगाधर वानोडे (क्षेत्रीय निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र) ने ‘राग दरबारी’ एवं अन्य पुस्तकों पर चर्चा कर अपने विचार साझा किए।

अफगानिस्तान से पधारे मो. फ़हीम ज़लांद ने अपने वक्तव्य में श्रीलाल शुक्ल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की चर्चा करते हुए उनकी रचनाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। 

अर्मीनिया से सुश्री अलीना ने अपने ऑनलाइन संदेश में संगोष्ठी के विषय पर चर्चा करते हुए संयोजकों को बधाई दी।

'पुष्पक'-संपादक डॉ. आशा मिश्रा ने अपने वक्तव्य में कहा कि श्रीलाल शुक्ल ने प्रजातंत्र की पीड़ा को भोगा है। उन्होंने आगे कहा कि राजनीति को समझने के लिए ‘राग दरबारी’ से बेहतर पुस्तक नहीं है। उन्होंने श्रीलाल शुक्ल के कई उपन्यासों की चर्चा करते हुए कहा कि भारत भले ही इंडिया बन जाए पर रहेगा वह गाँवों का ही देश।

साहित्य गरिमा पुरस्कार समिति, हैदराबाद की संस्थापक,-अध्यक्ष डॉ. अहिल्या मिश्रा ने  संयोजक दंपति डॉ. सीमा मिश्रा व अधिवक्ता पं. अशोक तिवारी एवं उनके सुपुत्र अभियंता चि. आकाश तिवारी को ऑनलाइन माध्यम से आशीर्वाद दिया। 

सम्माननीय अतिथि अनिल कुमार वाजपेयी (से. नि. पुलिस अधीक्षक, गुप्तचर विभाग, तेलंगाना) ने विगत 17 वर्षों से होती आ रही संगोष्ठियों एवं इस बार अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में गणमान्य अतिथियों को एक मंच पर एकत्रित करने के लिए  विशेष बधाई दी।

आत्मीय अतिथि नौमीन् सूरपराज कर्लापालेम् ने अपने वक्तव्य में आज की नई पीढ़ी पर व्यंग्य करते हुए कहा कि युवक पढाई पर कम और फ़ोन पर ज़्यादा ध्यान देती है। साथ ही उन्होंने चुनावी लोकतंत्र एवं 'राग दरबारी' पर संक्षेप में प्रकाश डाला।

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस वामन राव ने अपने वक्तव्य में कहा कि चुनाव तंत्र भावनाओं से खेलना/भावनाओं का दुरुपयोग करना है। अपने सुझाव देते हुए कहा कि गलत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए, लेकिन खेद की बात है कि कोई आवाज़ उठाता नहीं है। साथ ही उन्होंने इस अभूतपूर्व कार्य की सराहना करते हुए इस निरंतर की जाने वाली संगोष्ठी शृंखला के लिया साधुवाद एवं बधाई दी।

मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के डॉ. इरशाद अहमद ने अपने वक्तव्य में चुनावी लोकतंत्र एवं श्रीलाल शुक्ल के साहित्य पर प्रकाश डाला। 

कार्यक्रम का शुभारंभ अभियंता चि. आकाश तिवारी के शंखनाद एवं सरस्वती वंदना से हुआ। 

कवि एवं उपन्यासकार रवि वैद ने अपने संचालन के माध्यम से मंच व सभागार को बाँधे रखा/मंत्रमुग्ध कर दिया एवं संचालन के दौरान श्रीलाल शुक्ल की रचनाओं के प्रासंगिक उद्धरणों के माध्यम से सभी का ज्ञानवर्धन भी किया।

संयोजक डॉ सीमा मिश्रा ने आरंभ में  अपने आलेख ‘चुनावी लोकतंत्र और श्रीलाल शुक्ल’ की प्रस्तुति द्वारा संगोष्ठी विषय प्रवर्तन किया तथा अंत में  संगोष्ठी में उपस्थित सभी शोधार्थियों, अध्यापकों एवं देश के सभी गणमान्य साहित्यकारों एवं पत्रकारों का आभार प्रकट किया।

दक्षिण भारत कान्यकुब्ज ब्राह्मण महासभा, कान्यकुब्ज ब्राह्मण समिति, हैदराबाद एवं अखिल भारतीय कान्यकुब्ज ब्राह्मण महासभा के सदस्यगण एवं 'कहानीवाला' ग्रुप के संस्थापक सुहास भटनागर, सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) से पधारे मिश्रा दंपति पं. राजेंद्र जोशी ज्योतिर्विद, नदीम हसन, राजशेखर रेड्डी, श्रीमती संगीता अमरेन्द्र पांडे, गिरजा शंकर पांडे, शफीक, शिल्की मुनमुन शर्मा, अनीता महेश टाठी आदि ने उपस्थिति दर्ज कराई। 

(प्रतिवेदन :  डॉ. सीमा मिश्रा, संगोष्ठी संयोजक)