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उल्लेखनीय है कि ‘सूँ साँ माणस गंध’ से पहले डॉ. ऋषभदेव शर्मा की 5 काव्यकृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें 2 तेवरी-संग्रह ‘तेवरी’ और ‘तरकश’, 1 स्त्रीवादी कविताओं का संग्रह ‘देहरी’, 1 दीर्घ कविताओं का संग्रह ‘ताकि सनद रहे’ और 1 प्रेम कविताओं का संग्रह ‘प्रेम बना रहे’ शामिल हैं. विमोच्य कविता संग्रह ‘सूँ साँ माणस गंध’ में ऋषभदेव शर्मा की 91 नई कविताएँ संकलित हैं. इसकी भूमिका में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के अधिष्ठाता प्रो. देवराज ने यह कहा है कि यह कवि अपनी कविता के माध्यम से हर बार एक नई हवा लेकर सामने आता है तथा इस बार इस हवा में लोक-जीवन की भाषा का हस्तक्षेप पहले से अधिक है. कविता में ऐसी बेलौस और निजी भाषा के लौटने को उन्होंने हमारी जातीय चेतना के लिए शुभ संकेत माना है.
यह भी उल्लेखनीय है कि डॉ. ऋषभदेव शर्मा द्वारा ही संपादित एवं भाषाचिंतक प्रो. दिलीप सिंह को समर्पित वृहद अभिनंदन ग्रंथ “भाषा की भीतरी परतें” की लेखकीय प्रतियाँ भी हैदराबाद-निवासी सहयोगी लेखकों को इस समारोह में सौंपी जाएँगी.
सभी साहित्यप्रेमियों से समारोह में सम्मिलित होने का विनम्र अनुरोध है.
-समारोह संयोजक
डॉ.गुर्रमकोंडा नीरजा ,
सह-संपादक : ‘स्रवंति’ एवं ‘भास्वर भारत’,
प्राध्यापक, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान,
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा,
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