गुरुनानक खालसा कॉलेज के हिंदी विभाग तथा महारष्ट्र राज्य हिंदी समिति के संयुक्त तत्वावधान में ‘भूमंडलीकरण : 21वीं शती के प्रथम दशक का हिंदी साहित्य’ विषय पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न हुई.
संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए ‘समीक्षा’ के संपादक और इग्नू के प्रोफ़ेसर डॉ. सत्यकाम ने हिंदी साहित्य की कालजयी कृतियों के हवाले से यह कहा कि ‘बाजार हमेशा मौजूद रहा है. वह ईमानदार आदमी को खरीदता है. हिंदी में आधी रचनाएँ विरोध से आशंकित हैं. आज हमारे समक्ष केवल बाजार का ही संकट नहीं बल्कि साहित्य और पर्यावरण का भी संकट उपस्थित है.’ उन्होंने आगे कहा कि ‘बाजार इतना मजबूत हो चुका है कि वह साहित्य से दोस्ताना करने का प्रयास कर रहा है. आज हिंदी साहित्य से गाँव लुप्त होते जा रहे हैं.’
भोपाल से पधारे प्रो. रमेश दवे ने कहा कि ‘आज के इस बनावटी संसार में साहित्य में जंग हो रही है, मीडिया में नहीं. भूमंडलीकरण के इस युग में साहित्य मंडी के हाथों कठपुतली बनकर रह गया है.’
उद्घाटन सत्र के अध्यक्षीय संबोधन में अकादमी के कार्याध्यक्ष डॉ. दामोदर खडसे ने कहा कि ‘वैश्वीकरण के इस युग में साहित्य पूरी तरह से बाजार से प्रभावित होता दिखाई दे रहा है. कलम की स्वतंत्रता बाजारवाद के बढ़ते प्रभाव से बाधित है.’
शुरू में खालसा कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अजीत सिंह ने अतिथियों का स्वागत-सत्कार किया. डॉ. रत्ना शर्मा ने विषय की प्रस्तावना प्रस्तुत की. उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ. मृगेंद्र राय ने किया.
‘भूमंडलीकरण और वर्तमान परिप्रेक्ष्य’ पर आधारित प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रो. रामजी तिवारी ने की. मुख्य वक्ता डॉ. त्रिभुवन राय ने कहा कि ‘भूमंडलीकरण के इस दौर में पश्चिम की चकाचौंध से युवा वर्ग अधिक प्रभावित है. वर्तमान समय में साहित्यकारों के समक्ष अनेक चुनौतियाँ हैं जिनसे उन्हें निरंतर जूझते रहना है.’ इस अवसर पर डॉ. हूबनाथ पांडेय, डॉ. मनप्रीत कौर, डॉ. विनीता सहाय और डॉ. वंदना शर्मा ने शोधपत्र प्रस्तुत किए.
दो दिन के इस कार्यक्रम में विभिन्न सत्रों में भूमंडलीकरण और काव्य, भूमंडलीकरण और कथासाहित्य, भूमंडलीकरण और जनसंचार तथा साहित्य की अन्य विधाओं पर विस्तार से चर्चा हुई. इस चर्चा में इलाहाबाद से आए डॉ. रामकिशोर शर्मा, हैदराबाद से पधारे डॉ. ऋषभ देव शर्मा, डॉ. रतन कुमार पांडेय, डॉ. चंद्रदेव कवडे, डॉ. सत्यदेव त्रिपाठी, डॉ. विष्णु सर्वदे, डॉ. मधुलिका पाठक, दयानंद भुबाल, डॉ. उषा श्रीवास्तव, डॉ. उषा मिश्रा, डॉ. शीला अहुजा, भुवेंद्र त्यागी और डॉ. सूर्यबाला ने विभिन्न सत्रों में अध्यक्ष तथा विषय प्रवर्तक के रूप में अपने विचार व्यक्त किए.
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