बीजापुर (कर्नाटक), 14 मार्च 2014.
एस.बी. कला एवं विज्ञान महाविद्यालय तथा रानी चन्नम्मा विश्वविद्यालय कॉलेज हिन्दी प्राध्यापक संघ के संयुक्त तत्वावधान में ‘हिंदी-कन्नड़ आधुनिक काव्य की प्रवृत्तियाँ’ विषय पर एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. प्रो. एस.एच. लागली ने संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए कहा कि ऐसी संगोष्ठियाँ दो भिन्न भाषियों को जोड़ने के लिए सेतुओं काम करती हैं और ऐसी समेकित संगोष्ठियों का सभी प्रांतों में करने से देश की अखंडता को पुष्ट किया जा सकता है.
हैदराबाद से पधारे कवि एवं समीक्षक प्रो.ऋषभदेव शर्मा ने अपने बीज वक्तव्य में इक्कीसवीं सदी कीं हिंदी कविता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज कविता भी भूमंडलीकरण और ‘भूमंडीकरण’ की चपेट में आ गई है और सत्य को टुकड़ों-टुकड़ों में देख व बखान रही है. आगे कहा कि स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, मुस्लिम विमर्श, आदिवासी विमर्श, पर्यावरण विमर्श के नाम प्रचारित साहित्य की बहुकेंद्रीयता का ही यह परिणाम है कि आज की कविता कोई प्रतिरोध खड़ा करती नहीं दिखाई देती.
विशेष अतिथि डॉ. श्रीशैल नागराल ने कन्नड़ की आधुनिक कविता पर बीज व्याख्यान में कहा कि आज का कन्नड कवि अपने सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति अधिक जागरूक है. नूतन कला महाविद्यालय, तिकोटा (बीजापुर) के प्राचार्य प्रो. एस जी गनी ने उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता की और ‘भारतीय भाषाएँ: नई सदी का कथा साहित्य’ और ‘वचनगल प्रस्तुतते’ नामक दो पुस्तकों का लोकार्पण किया. प्रो. एस जे जहागीरदार ने संचालन किया.
विचार सत्रों में कर्नाटक विश्वविद्यालय धारवाड़ की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रभा भट्ट ने ‘इक्कीसवी सदी की हिंदी कविता और स्त्री विमर्श’ तथा किरण पाटिल ने आधुनिक कन्नड़ काव्य में तकनीक के प्रयोग पर विषय प्रवर्तन किया जिसकी अध्यक्षता प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने की.
समापन समारोह में मुख्य अतिथि प्रो. एम.बी. दिलशाद ने साहित्यकार को संवेदनशील मानते हुए सामाजिक परिवर्तन में योगदान का स्मरण कराया. प्रो. के.एस. बिरादार ने समारोह की अध्यक्षता की. डॉ. एस.जे. पवार तथा प्रो. एस.बी. हडलगेरी मंच पर उपस्थित थे. संगोष्ठी में डॉ. एस.टी. मेरवाडे, प्रो. ई.एम. सिद्दीकी, प्रो.बी.बी. डेगनवर और प्रो. आर.वी. पाटिल सहित सैंकड़ों हिंदी तथा कन्नड़ प्रेमियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया.
(रिपोर्ट : प्रो.एस.जे.जहागीरदार)
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