29 मार्च 2014 को भोजनोपरांत राजेंद्र यादव की स्मृतियों को समर्पित दूसरा विचार सत्र प्रारंभ हुआ. इस सत्र की अध्यक्षता कोल्हापुर विश्विद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. अर्जुन चव्हाण ने की.
इस सत्र में एर्णाकुलम से पधारी प्रो. पी. राधिका ने राजेंद्र यादव के साहित्य में निहित स्त्री पक्ष को उजागर किया तो धारवाड़ से पधारे डॉ. एच.आर. घरपणकर ने दलित पक्ष से संबंधित राजेंद्र यादव के विचारों को स्पष्ट करने का प्रयास किया. डॉ. के.एस. पाटील ने उनके विचारों में निहित सांप्रदायिकता के संदर्भ को रेखांकित किया.
यह सत्र विचारोत्तेजक सत्र रहा. अपनी प्रतिक्रया व्यक्त करते हुए हैदराबाद से पधारे प्रो. एम. वेंकटेश्वर ने कहा कि हिंदी में आज दलित साहित्य की स्थिति मजबूत है. आज हिंदी में दलित पत्रकारिता भी सशक्त है. दलित समस्या किसी वर्गगत समस्या नहीं है बल्कि यह एक राष्ट्रीय समस्या है. उन्होंने आगे कहा कि हिंदू धार्मिकता के लिए राजेंद्र यादव ने 'तालिबानी' नाम दिया. राजेंद्र यादव मानवतावादी संवेदना से युक्त साहित्यकार है, पाश्चात्य साहित्य के गजब अध्येता. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि जीवन को डिक्टेट नहीं किया जा सकता है बल्कि उसे ऐसी ही जीना पड़ता है. इतना ही नहीं दूसरों के लिए जीने योग्य बनाना भी आवश्यक है.
अपने अध्यक्षीय में डॉ. अर्जुन चव्हाण ने कहा कि राजेंद्र यादव एक व्यक्ति का नहीं है बल्कि एक संस्था का नाम है. वे जिंदगी से भागने वाले व्यक्ति नहीं थे, जिंदगी में सबको साथ लेकर चलने वाले कर्मठ और जीवट व्यक्ति हैं. वे किसी भी मुद्दे पर बेबाक टिप्पणी करते थे.
सत्र का संयोजन डॉ. सी.एन. मुगुटकर ने किया.
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