बाएं से - डॉ. संजय मादर, डॉ. अमर ज्योति, डॉ. टी.आर. भट्ट, डॉ. गोरखनाथ तिवारी, डॉ. वी.एन. हेगड़े , डॉ. मंजुनाथ अंबिग और डॉ. मृत्युंजय सिंह |
30 मार्च 2014 -
दूसरे दिन का पहला सत्र (विचार सत्र-3) ओमप्रकाश वाल्मीकि पर केंद्रित रहा. अध्यक्ष थे प्रो. टी.आर. भट्ट.
डॉ. मृत्युंजय सिंह, डॉ. अमर ज्योति, डॉ. मंजुनाथ अंबिग, डॉ. गोरखनाथ तिवारी, डॉ. संजय मादर और डॉ. वी.एन. हेगडे ने क्रमशः आत्मकथा साहित्य, कथा साहित्य, काव्य, सौंदर्यशास्त्र, दलित प्रश्न तथा भाषिक वैशिष्ट्य की दृष्टि से ओमप्रकाश वाल्मीकि के योगदान का विश्लेषण किया.
दूसरे दिन का पहला सत्र (विचार सत्र-3) ओमप्रकाश वाल्मीकि पर केंद्रित रहा. अध्यक्ष थे प्रो. टी.आर. भट्ट.
डॉ. मृत्युंजय सिंह, डॉ. अमर ज्योति, डॉ. मंजुनाथ अंबिग, डॉ. गोरखनाथ तिवारी, डॉ. संजय मादर और डॉ. वी.एन. हेगडे ने क्रमशः आत्मकथा साहित्य, कथा साहित्य, काव्य, सौंदर्यशास्त्र, दलित प्रश्न तथा भाषिक वैशिष्ट्य की दृष्टि से ओमप्रकाश वाल्मीकि के योगदान का विश्लेषण किया.
अध्यक्षीय टिप्पणी में प्रो. टी.आर. भट्ट ने कहा कि आज के अवर्णों के बीच एक ऐसा वर्ग तैयार हो रहा है जो अपने आपको उच्च मानता है और दूसरे अवर्णों को निम्न. आज सवर्ण और अवर्णों के बीच नहीं बल्कि अवर्ण और अवर्ण के बीच जातिभेद प्रबल होता जा रहा है. उन्होंने कन्नड़ दलित साहित्य की बात करते हुए कहा कि वेंकट सुब्बय्या और देवनूर महादेव जैसे अनेक साहित्यकारों ने दलित लेखन को आगे बढाया है. उन्होंने आगे कहा कि ओमप्रकाश वाल्मीकि की भांति कन्नड़ में भी देवनूर महादेव (1948) दलित साहित्य के अत्यंत सशक्त व प्रतिनिधि कथाकार हैं जिन्होंने भोगे हुए यथार्थ को अपने कथासाहित्य में सशक्त रूप से अभिव्यक्त किया. उनका लेखन स्वानुभूतिपरक सृजनात्मक लेखन है. उन्होंने 1971 में मैसूर जनजातियों की भाषा में उपन्यास का सृजन किया. यह ध्यान देने की बात है कि देवनूर महादेव को उनके उपन्यास 'कुसुम बाले' के लिए 1990 में केंद्र साहित्य अकादमी पुरस्कार से तथा 2011 में 'पद्मश्री' पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
इस सत्र का संचालन उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, एरणाकुलम केंद्र के प्राध्यापक डॉ. बिष्णुकुमार राय ने किया.
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