रविवार, 5 जनवरी 2014

‘संकल्य’ व्याख्यानमाला संपन्न : ‘हिंदी के विकास में भारतीय भाषाओं का योगदान’


हैदराबाद, 4 जनवरी 2014 (मीडिया विज्ञप्ति).

आज यहाँ हिंदी अकादमी, हैदराबाद द्वारा संचालित ‘संकल्य’ विचार मंच के तत्वावधान में ‘संकल्य’ व्याख्यानमाला का आयोजन दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सभागार में संपन्न हुआ. शांतिनिकेतन से पधारे मुख्य वक्ता डॉ. रामचंद्र रॉय ने ‘हिंदी के विकास में भारतीय भाषाओं का योगदान’ विषय पर संबोधित करते हुए कहा कि समस्त भारतीय भाषाएँ परस्पर घुली-मिली हैं परंतु हिंदी वालों की कट्टरवादी मानसिकता इसमें व्यवधान उत्पन्न करती है. उन्होंने बलपूर्वक हिंदी के ऐसे स्वरूप को विकसित करने की जरूरत बताई जो कबीर की संधा भाषा के समान हो, उर्दू से लेकर तमिल और बंगला तक तमाम भारतीय भाषाओं की शब्दावली को आत्मसात कर सके तथा भले ही व्याकरण सम्मत न हो परंतु संप्रेषण में समर्थ हो.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के आचार्य डॉ. ऋषभ देव शर्मा ने कहा कि बहुभाषिकता भारत का सहज भाषिक यथार्थ है. इसीलिए हिंदी और अन्य भाषाओं के बीच सतत लेन-देन चलता रहता है जिसके परिणामस्वरूप हिंदी में अनेक भारतीय भाषाओं के शब्दों का तो समावेश हुआ ही है अन्य भारतीय भाषाओं के अनुवादों और मौलिक लेखन के द्वारा हिंदी की समाजभाषिक संपदा का भी विस्तार हुआ है.  
मुख्य अतिथि केंद्रीय हिंदी निदेशालय के उपनिदेशक डॉ. प्रदीप के. शर्मा ने अपने संबोधन में याद दिलाया कि हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसे जनता का प्यार मिला. आज हिंदी हर तरह से सक्षम है. हिंदी के माध्यम से रोजगार की स्थितियाँ बढ़ चुकी हैं. जनता को जागृत होना चाहिए. हमें अपने पहचान को भूलना नहीं चाहिए. अपनी भाषा से ही हमारा बौद्धिक विकास हो सकता है. सृजनात्मक शक्ति का विकास अपनी भाषा के माध्यम के माध्यम से ही हो सकता है. उन्होंने निदेशालय की विभिन्न गतिविधियों और योजनाओं के बारे में भी जानकारी दी.
हिंदी अकादमी के अध्यक्ष प्रो. टी. मोहन सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्था का परिचय दिया और कहा कि हिंदी का प्रचार-प्रसार ही हिंदी अकादमी तथा ‘संकल्य’ का मुख्य उद्देश्य है.
हिंदी अकादमी के सचिव और ‘संकल्य’ के प्रकाशक डॉ. गोरख नाथ तिवारी ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा और कहा कि दक्षिण भारत ही नहीं बल्कि देश भर में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के समन्वय के लिए काम करने हेतु ‘संकल्य’ संकल्पबद्ध है.
इस व्याख्यानमाला में विभिन्न शिक्षा संस्थानों और राजभाषा विभागों से जुड़े हुए हिंदी सेवियों व छात्र-छात्राओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया जिनमें डॉ. राधेश्याम शुक्ल, डॉ. माणिक्याम्बा, डॉ. प्रभाकर त्रिपाठी, डॉ. आन्जनेयुलू, डॉ. जे. आत्माराम, डॉ, भीमसिंह, डॉ, के. श्याम सुंदर, डॉ. दुर्गेश नंदिनी, डॉ. शकुंतला रेड्डी, डॉ. अनिता गांगुली, डॉ. देवेन्द्र शर्मा, विनीता शर्मा, डॉ. विनीता सिन्हा, डॉ. सरोजिनी श्रीपाद, डॉ. शकीला खानम, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, डॉ. मृत्युंजय सिंह, डॉ. साहिरा बानू, डॉ. बलविंदर कौर, डॉ. ए.जी. श्रीराम, डॉ. सुषमा, विक्रम, गहनीनाथ, संतोष, संपत देवी मुरारका, रमा द्विवेदी, जुबेर अहमद, डॉ. टी.रेखा रानी, डॉ. उमा, जूजू गोपिनाथन, राधाकृष्ण मिरियाला, भानुप्रताप, पावनी, झांसी लक्ष्मी बाई, डॉ. शशिकांत मिश्र,  डॉ. सीता मिश्र, मोहम्मद कासिम, अनामिका उपाध्याय, जी. परमेश्वर, डॉ. स्नेहलता शर्मा, के. चारुलता, डॉ. के.बी.मुल्ला, डॉ. सीमा मिश्रा आदि के नाम सम्मिलित हैं.
सरस्वती वंदना रेखा तिवारी ने की तथा कार्यक्रम का संचालन कवयित्री ज्योति नारायण ने किया.

प्रस्तुति - डॉ गुर्रमकोंडा नीरजा,     सह संपादक ‘स्रवंति’  

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