'आज की प्रगतिशील नारी का पुरुषों के प्रति नजरिया' विषय पर केंद्रित विचार सत्र की अध्यक्षता डॉ. चितरंजन मिश्र ने की. डॉ. एन. लक्ष्मी अय्यर, डॉ. ललिताम्बा, उषा जायसवाल, शौरिराजन, डॉ. पद्मप्रिया, डॉ. संदीप पाठक के साथ साथ मैं भी मंचासीन थी. इस सत्र में कुल 30 प्रपत्रों का वाचन हुआ. सबने तैयारी के साथ अपने अपने विचार प्रकट किए.
अध्यक्षीय भाषण में डॉ. चितरंजन मिश्र ने कहा कि साहित्य की दुनिया मूल्य निर्माण की दुनिया है. साहित्यकार अपनी भाषा और अभिव्यक्ति के माध्यम से मनुष्य के दिमाग को ऐसा बदलते हैं जिससे कि वह मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध हो. मनुष्य और समाज को अलग करके देखना संभव नहीं है. समाज संस्कारों से संचालित होता है. आज के परिप्रेक्ष्य में संस्कारवान होना आवश्यक है. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि मानसिकता में बदलाव आना जरूरी है.
- जी. नीरजा
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