बुधवार, 18 अप्रैल 2018

‘रामसंस्कृति की विश्वयात्रा’ पर रूस में होगी संगोष्ठी

                                                         हैदराबाद.  

मूल्यमूढ़ता से घिरे वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व के बुद्धिजीवी भारत की ओर आशा की दृष्टि से देखते हैं तथा विश्वबंधुत्व और सह-अस्तित्व के आदर्शों की पुनः प्रतिष्ठा द्वारा मानवाधिकारों की बहाली की कामना रखते हैं. इस परिप्रेक्ष्य में रामकथा में निहित मूल्य किस प्रकार आज की दुनिया को कुटुंब के रूप में जीने की राह दिखा सकते हैं, इस विषय पर व्यापक विचार विमर्श करने के लिए रूस और भारत के हिंदी जगत से जुड़े हुए कुछ हस्ताक्षर आगामी 10 मई से 17 मई के बीच रूस के नगरों कज़ान, मॉस्को और सेंट पीटर्सबर्ग में जुटेंगे. इस अवधि में वे “रामसंस्कृति की विश्वयात्रा : साहित्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी” विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में वैचारिक मंथन करेंगे. 

इस कार्यक्रम के संयोजन में अग्रणी साहित्यिक-सांस्कृतिक शोध संस्था, मुंबई के संस्थापक सचिव डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने उक्त आशय की जानकारी देते हुए बताया कि यह अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी रूस स्थित कज़ान संघीय विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय संबंध संस्थान, रूसी-भारतीय फ्रेंडशिप सोसाइटी तथा तातरस्तान-भारत पीपुल्स फ्रेंडशिप सेंटर के सहयोग से आयोजित की जा रही है. उन्होंने यह भी बताया कि अयोध्या शोध संस्थान के सौजन्य से इस अवसर पर ‘रामसंस्कृति की विश्वयात्रा’ शीर्षक एक ग्रंथ भी प्रकाशित किया जा रहा है.
डॉ. योगेंद्रप्रताप सिंह 

संस्थान के निदेशक डॉ. योगेंद्रप्रताप सिंह ने एक भेंट में बताया कि दुनिया के 120 देशों में रामकथा व रामलीलाएँ होने के साक्ष्य मिले हैं. संस्थान उन देशों के विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों व कलाकारों से यह शोध कराएगा. शोध पूरा होने के बाद दुनिया में रामायण देशों का एक समूह बनेगा जो अपने आप में पहला इतना बड़ा समूह होगा. 

डॉ. प्रदीप कुमार सिंह 
इस विशिष्ट वैचारिक मंथन में भाग लेने वाले रूसी विद्वानों में डॉ. रामेश्वर सिंह, डॉ. गुजेल म्रात्खूजीना, डॉ. मीनू शर्मा, देमात्री बोबकोव, सुशील कुमार आजाद, कुमार विनायक और डॉ. इंदिरा गजियवा के नाम शामिल हैं, तो भारतीय विद्वानों में डॉ. योगेंद्रप्रताप सिंह, डॉ. प्रदीप कुमार सिंह, डॉ. ऋषभदेव शर्मा, डॉ. सविता सिंह, डॉ. रघुनाथ प्रसाद, डॉ. अमरज्योति, डॉ. पुष्पा गुप्ता, डॉ. करमा देवी, डॉ. जगदीश प्रसाद शर्मा, डॉ. मीना डोले, डॉ. शिरोड़कर, डॉ. सत्यनारायण, डॉ. मधु व्यास और डॉ. वंदना प्रदीप  सम्मिलित हैं. 

उल्लेखनीय है कि संयोजक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने ‘राम साहित्य’ पर ही दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा से डीलिट की उपाधि भी अर्जित की है. उन्होंने बताया कि राम संस्कृति को विश्व भर में पुनः प्रतिष्ठित करने के लिए इस शृंखला में अन्य देशों में भी ऐसे आयोजन किए जाएँगे. 

मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

लोकतंत्र और समकाल के सापेक्ष साहित्य और मीडिया पर समग्र मंथन

डॉ. ऋषभदेव शर्मा सहित दस लेखक-पत्रकार सम्मानित 

आजमगढ़ में ‘मीडिया समग्र मंथन-2018’ के अवसर पर सम्मानित लेखक और पत्रकार
 (बाएँ से) डॉ. ऋषभदेव शर्मा, डॉ. मधुर नज्मी, गिरीश पंकज, डॉ. देवराज,
डॉ. योगेंद्र्नाथ शर्मा अरुण, जयशंकर गुप्त, यशवंत, सतीश सिंह रघुवंशी एवं अन्य.

आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश, (डॉ. चंदन कुमारी)। 

पुराण-प्रसिद्ध तमसा नदी के तट पर बसे नगर आजमगढ़ में हर दूसरे वर्ष मीडियाकर्मियों और साहित्यकारों का जलसा होता जो आजमगढ़ की पहचान और परंपरा में बदलाव का प्रतीक बनता जा रहा “मीडिया समग्र मंथन – 2018” के रूप में इस वर्ष यह जलसा 7 और 8 अप्रैल को जनपद मुख्यालय के नेहरु हाल में संपन्न हुआ। 

प्रथम दिवस कार्यक्रम का उद्घाटन समारोह अध्यक्ष जैन राम साहित्य के विशेषज्ञ डॉ. योगेंद्रनाथ शर्मा अरुण और मुख्य अतिथि पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने अन्य अतिथियों महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से आए प्रो. देवराज, दैनिक देशबंधु, दिल्ली के कार्यकारी संपादक जयशंकर गुप्त, गोपाल जी राय, विजयनारायण, गोपाल नारसन आदि ने सरस्वती के दीप प्रज्ज्वलित कर किया। इसके बाद ‘लोकतंत्र, मीडिया और हमारा समय’ विषय पर अत्यंत गंभीर व सार्थक संवाद के आयोजन के साथ-साथ ‘शार्प रिपोर्टर’ मासिक पत्रिका के उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड विशेषांक का विमोचन भी किया गया। 

उपस्थित विद्वानों के संबोधन के अतिरिक्त उद्घाटन सत्र में दिल्ली से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के चर्चित पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी का लाइव टेलीकास्ट के माध्यम से संवाद अत्यंत विचारोत्तेजक रहा। उन्होंने प्रतिभागियों के प्रश्नों के बेबाकी से जवाब भी दिए। उन्होंने कहा कि भारत में राजनीतिक सत्ता ही सब कुछ नियंत्रित करना चाहती है। राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में संविधान से कॉपी-पेस्ट किया हुआ माल होता है। संवैधानिक संस्थाओं पर सत्ता का दबाव लोकतंत्र को कमजोर करता है। मीडिया उस राजनीतिक सत्ता से ही प्रभावित और सरकार केंद्रित हो जाता है। 

प्रो. देवराज ने ‘मीडिया, लोकतंत्र और हमारा समय’ विषय का प्रवर्तन करते हुए लोकतंत्र के बारे में लोहिया, अंबेडकर और नरेंद्रदेव के योगदान का स्मरण किया। उन्होंने तीनों विद्वानों के बारे में बताया कि वे ऐसा लोकतंत्र चाहते थे, जिसमें व्यक्ति महज मत न होकर मूल्य होना चाहिए, सौंदर्य की कसौटी गौर नहीं श्याम वर्ण को होना चाहिए तथा विचार की आवश्यकता और उसकी स्वतंत्रता के अनुकूल वातावरण होना चाहिए। उन्होंने चिंता जताई कि लोकतंत्र में लोक की भागीदारी कम हुई है तथा पिछले सात दशक में सबसे अधिक उपेक्षा शिक्षा और संस्कृति की हुई उन्होंने कहा कि जब मीडिया ने अपनी रखवाली करने की कोशिश की तब उसे सकारात्मक बने रहने के नाम पर उद्देश्य से भटका दिया गया है। सकारात्मक मीडिया के नाम पर मीडिया भटकाव की राह पर है। सकारात्मक या नकारात्मक कुछ नहीं होता जो आप देते हैं वही जरूरत है। आज सकारात्मक वह है जो सत्ता को सुख पहुँचाए। मीडिया को इससे बचकर देश के ज़मीनी यथार्थ से जुड़ना होगा अन्यथा आने वाला समय उसे माफ़ नहीं करेगा। 

डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हम संविधान के नाम पर जातियों को बांट रहे हैं। हम माइंड गिनने के बजाय सिर गिनने की नीतियों का पालन कर रहे हैं। कथित सोशल मीडिया सर्वेंट की जगह मास्टर बन गया है। उन्होंने मीडिया को पुनः मिशन बनाने का आह्वान करते हुए शाश्वत मूल्यों से जुड़ने की प्रेरणा दी। 

‘मीडिया से उम्मीदें’ पर केंद्रित विचार सत्र में विविध प्रांतों से आए मीडियाकर्मियों ने अपने अनुभव साझा किए। ‘आज तक’ के पत्रकार रामकिंकर ने कहा कि मीडिया की निष्पक्षता को लेकर कितनी भी आलोचना क्यों न करें लेकिन जब लोग संकट मे होते हैं तो वे अपनी आवाज उठाने के लिए मीडिया के पास ही आते है। ‘मीडिया मिरर’ के संपादक प्रशांत राजावत ने कहा कि मीडिया में जो सच्चाई परोसना चाहता है उनकी आवाज मीडिया के लोग ही निजी स्वार्थ की चाहत में दबा देते हैं। जुझारू पत्रकार अखिलेश अखिल ने बिहार में सत्ताधीशों द्वारा पत्रकारों की आवाज दबाने के लिए अपनाए जाने वाले हथकंडों की जानकारी दी और अपने उत्पीड़न की दास्तां सुनाई। 

वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त ने मीडिया को कमजोर करने के लिए सरकार द्वारा बनाए जा रहे मनमाने कानूनों पर सवाल उठाए। पत्रकार अतुल मोहन सिंह ने कहा कि पत्रकार को खबरों के साथ न्याय करना चाहिए। अनामी शरण बबल ने कहा कि हम अंतहीन महाभारतकाल में जी रहे हैं और समाज नपुंसकता की ओर जा रहा है। ‘भड़ास 4 मीडिया’ के संचालक एवं सोशल मीडिया विशेषज्ञ यशवंत सिंह ने कहा कि आधुनिक समाज में समस्त परिवर्तन टेक्नालाजी से आए हैं, विचार से नहीं। अतः टेक्नालाजी से ही क्रांति भी लाई जा सकती है और लोकतंत्र को बचाया जा सकता है। 

दूसरे दिन ‘लोकतंत्र, साहित्य व हमारा समय’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के पूर्व आचार्य डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि भारत में लोकतंत्र अभी प्रयोग की दशा में है तथा उसे असफल घोषित करना जल्दबाजी माना जाएगा। हर चुनाव में भारतीय जनता निरंतर परिपक्वता के प्रमाण देती है और संसदीय लोकतंत्र के निजी प्रादर्श की उसकी तलाश अभी जारी है। उन्होंने आगे कहा कि हमारा समय निस्संदेह खतरनाक समय है जिसमें सारी दुनिया आतंक, युद्ध और तानाशाही की ओर बही जा रही है लेकिन सृष्टि का इतिहास गवाह है कि खतरों के बीच ही मनुष्यता ने सदा नई राहें खोजी हैं। वर्तमान में मीडिया और साहित्य को इस चुनौती का सामना करना है और लोकतंत्र के विकेंद्रीकरण द्वारा जनपक्ष को मजबूती प्रदान करने की जिम्मेदारी निभानी है। उन्होंने विरुद्धों के सामंजस्य के भारतीय दर्शन को व्यावहारिक रूप देने का आह्वान करते हुए समकालीन साहित्य के जुझारू तेवर की प्रशंसा की। 

इस सत्र के मुख्य वक्ता मदनमोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान, काशी विद्यापीठ के निदेशक प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि समाज के कल्याण के लिए लिखा गया साहित्य ही श्रेष्ठ होता है। उन्होंने कहा कि आजादी से राजसत्ता तो मिली मगर विचारसत्ता को भुला दिया गया। उन्होंने यह भी कहा कि नागरिक आचरण गिर रहा है। उस पर संवाद आखिर कब होगा? नागरिक ही पत्रकार, साहित्यकार व मतदाता होता है। उसका आचरण खराब होगा तो लोकतंत्र कैसे आएगा? 

वरिष्ठ व्यंग्यकार गिरीश पंकज ने अध्यक्षासन से संबोधित करते हुए कहा कि साहसी साहित्यकार और पत्रकार कभी समझौता नहीं करता । उन्होंने कहा कि सही कलम वही होती है जो किसी भी परिस्थिति में न रुके, न झुके और न ही बिके। 

इस द्विदिवसीय राष्ट्रीय उत्सव के अंतर्गत इसकी संयोजक संस्था ‘शार्प रिपोर्टर’ द्वारा पत्रकारिता व साहित्य जगत से दस कलमकारों को आजमगढ़ अंचल की विश्वप्रसिद्ध महान विभूतियों की स्मृति में सम्मानित किया गया। सम्मानित विद्वानों में डॉ. योगेन्द्रनाथ शर्मा अरुण को ‘महापंडित राहुल सांकृत्यायन स्मृति साहित्य सम्मान-2018’, गिरीश पंकज को ‘मुखराम सिंह स्मृति पत्रकारिता सम्मान-2018’, जयशंकर गुप्त को ‘गुंजेश्वरी प्रसाद स्मृति पत्रकारिता सम्मान-2018’, प्रो. ऋषभदेव शर्मा को ‘विवेकी राय स्मृति साहित्य सम्मान-2018’, पुण्यप्रसून
ऋषभदेव शर्मा को 'विवेकी राय साहित्य सम्मान-2018' प्रदान करते हुए
दीनपाल राय, देवराज, अरविंद कुमा सिंह एवं अन्य 
वाजपेयी को ‘सुरेंद्र प्रताप सिंह स्मृति टीवी पत्रकारिता सम्मान-2018’, यशवंत सिंह को ‘विजयशंकर वाजपेयी स्मृति पत्रकारिता सम्मान-2018’, विजयनारायण को ‘शार्प रिपोर्टर लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड-2018’, सतीश सिंह रघुवंशी को ‘शार्प रिपोर्टर युवा पत्रकारिता सम्मान-2018’ तथा डॉ. मधुर नज्मी को ‘अल्लामा शिब्ली नोमानी स्मृति अदबी अवार्ड-2018’ दिया गया। सम्मान समारोह की अध्यक्षता वर्धा से पधारे प्रो. देवराज ने की। 

पहले दिन भोजपुरी गायिका चंदन तिवारी की लोक आधारित गीत संध्या विशेष रसपूर्ण रही तो दूसरे दिन के अर्धरात्रि के बाद तक चले कवि सम्मेलन व मुशायरे ने आयोजन को नई ऊँचाई दीजिसमें महेन्द्र अश्क, हैदर किरतपुरी, डॉ. मधुर नज्मी, ईश्वरचन्द त्रिपाठी, रूचि दुबे, गीता त्रिपाठी, शीला पांडे, अनामिका श्रीवास्तव, पुरुषार्थ सिंह, मैकश आजमी, प्रेम ग़म आजमी, शिवकुमार सैनी डंक, नागेश शांडिल्य, बालेदीन बेसहारा, राजाराम सिंह, भालचन्द त्रिपाठी, आनंद श्रीवास्तव आदि ने काव्यपाठ किया। 

कार्यक्रम का सफल संचालन अमन त्यागी ने किया तो शार्प रिपोर्टर पत्रिका के संपादक अरविंद सिंह व संस्थापक वीरेंद्र सिंह ने अतिथियों का भावपूर्ण स्वागत किया। 

इस अवसर पर तीन प्रस्ताव भी पारित किए गए जिनमें आजमगढ़ में महापंडित राहुल सांकृत्यायन के नाम पर केंद्रीय विश्वविद्यालय की मांग, पत्रकारों की राष्ट्रव्यापी सुरक्षा के लिए केंद्र व राज्यों की सरकारों द्वारा तुरंत प्रभावी कानून बनाए जाने की मांग और अपना दायित्व निभाते हुए पत्रकार की हत्या पर या मौत पर उसके परिवार को शहीद सैनिकों के परिवार जैसी सुविधा दी जाने की मांग की गई। 

[डॉ. चंदन कुमारी : आजमगढ़ से लौट कर] 
द्वारा : श्री संजीव कुमार IDAS, एकाउंट्स ऑफिस, 
स्माल आर्म्स फैक्टरी, 
अरमापुर, कानपुर-208009, उत्तर प्रदेश