सोमवार, 29 जून 2020

'विंडोज 10 : कितना जाना, कितना अनजाना' विषयक तकनीकी कार्यशाला संपन्न

हैदराबाद (प्रेस विज्ञप्ति)।


पहले हम सब कार्य मैनुअल रूप से ही करते थे। चाहे जनसंख्या गणना हो या चाहे किसी दस्तावेज को लिखकर या टंकित करके सुरक्षित रखने का काम हो। लेकिन कुछ दशकों से हम कंप्यूटर का प्रयोग कर रहे हैं। सामान्य रूप से ईमेल करने या नेट पर कुछ ढूँढ़ने या मनोरंजन के लिए या वर्ड डॉक्युमेंट टाइप करने के लिए कंप्यूटर का प्रयोग करते थे। जैसे जैसे प्रौद्योगिकी का विकास होने लगा वैसे वैसे कंप्यूटर की कार्य प्रणाली भी बदलने लगी। पहले जहाँ पंच कार्ड की सहायता से डेटा संग्रहण का काम चलता था अब वहीं डिजिटल रूप में डेटा का संग्रहण हो रहा है। पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन और एनिमेशन का काम भी कंप्यूटर के माध्यम से कर रहे हैं। डिजाइनिंग भी कंप्यूटर की सहायता से कर रहे हैं।

माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम उपलब्ध कराया। जिसके माध्यम से हम आसानी से बहुत काम कर सकते हैं। अब तो स्थिति यह है कि कंप्यूटर के बिना हम जिंदगी की कल्पना नहीं कर सकते। हम सब कंप्यूटर का प्रयोग करते हैं लेकिन प्रश्न यह है कि हम इस कंप्यूटर को कितना जानते हैं?

इन सभी प्रश्नों के समाधान हेतु वैश्विक हिंदी परिवार और अक्षरम (भारत), हिंदी भवन (भोपाल), निर्बाध (भारत), वातायन (यू.के.), हिंदी राइटर्स गिल्ड (कनाडा), झिलमिल (अमेरिका), विश्वंभरा (हैदराबाद और अमेरिका), सिंगापुर संगम, कविताई (सिंगापुर) और विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वाधान में आयोजित 'विंडोज 10 : कितना जाना, कितना अनजाना' विषयक तकनीकी कार्यशाला में बतौर मुख्य वक्ता बालेंदु शर्मा दाधीच ने व्यावहारिक रूप से विंडोज 10 की कार्य प्रणाली पर प्रकाश डाला।
बालेंदु शर्मा दाधीच


उनके अनुसार विंडोज हमारी डिजिटल दुनिया की वर्चुअल आइडेंटिटी है। विंडोज के भीतर एक तरह से हमारा पूरा कार्यालय ही समाहित है। विंडोज10 ऑपरेटिंग सिस्टम में तमाम एडवांस्ड तकनीक उपलब्ध है जिसकी सहायता से हम सॉफ्टवेयर को अलग से इंस्टॉल किए बिना ही अधिकांश काम कर सकते हैं। यदि कहें कि यह यूज़र फ्रेंडली ऑपरेटिंग सिस्टम नए दौर की सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है तो गलत नहीं होगा।

इस कार्यशाला में देश-विदेश से लगभग 250 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया और लाभान्वित हुए।

कार्यक्रम की शुरूआत में मोहन बहुगुणा ने सभी का स्वागत किया। अनूप भार्गव ने मुख्य वक्ता का परिच दिया और अंत में धन्यवाद ज्ञापित किया।


प्रस्तुति : डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा

'भारत में व्याप्त भाषा भ्रम' पर वेबिनार संपन्न

हैदराबाद (प्रेस विज्ञप्ति)


भारत बहुभाषिक एवं बहुसांस्कृतिक देश है। और अकसर यह कहा जाता है कि इस अनेकता में एकता विद्यमान है। लेकिन इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि भाषिक विविधता के कारण अनेक समस्याएं पैदा होती हैं। अब तो स्थिति यह है कि भाषा के नाम पर देश बँट रहा है। वस्तुतः हम सब अनेक तरह के भ्रम पालते रहते हैं। कई प्रकार की भ्रांतियों का शिकार होते रहते हैं। लेकिन हमें इसका बोध ही नहीं होता कि हम उलझे हुए हैं। 


राहुल देव 
न सब विषयों पर प्रकाश डालने हेतु वैश्विक हिंदी परिवार ने 'भारत में व्याप्त भाषा भ्रम' विषयक वेबिनार का आयोजन किया था। बतौर मुख्य वक्ता प्रसिद्ध भाषाविद राहुल देव ने कहा कि भाषिक विविधता एक समस्या है। भारत ही नहीं बल्कि लगभग सभी देशों में इस भाषायी विविधता को देखा जा सकता है। इस विविधता के कारण ही भाषा नियोजन (लैंग्वेज प्लानिंग) सामने आई।

उनका मानना है कि प्रमुख रूप से दो प्रकार के भाषा भ्रम विद्यमान हैं। एक सार्वभौमिक भ्रम है। अर्थात लोगों में यह धारणा बनी हुई है कि भाषा मात्र संवाद या संप्रेषण का माध्यम है। लेकिन यह भाषा की एक भूमिका मात्र है। दूसरा है सामान्य भ्रम। जिसे भ्रांतियाँ कहा जा सकता है। कुछ लोग हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा मानते हैं। लेकिन हिंदी भारत संघ की राजभाषा है।

आम तौर पर यह भ्रम है कि सारे भारतीय हिंदी समझते हैं और बोलते हैं अतः हिंदी समस्त भारत की भाषा है। राहुल देव ने आंकड़ों के साथ इस बात को स्पष्ट किया कि ऐसा नहीं है, यह केवल एक भ्रम है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि जिस औपचारिक खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग हम सब करते हैं वस्तुतः किसी की मातृभाषा नहीं है। क्योंकि हिंदी के संदर्भ में भोजपुरी, मैथली, बुंदेली, ब्रज आदि प्रथम भाषाएँ या मातृबोलियाँ हैं।

राहुल देव इस बात पर बल देते हैं कि भाषा की शक्ति उसके प्रयोग में निहित है। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की कि भारतीय लोगों ने इस भ्रम को आत्मसात कर लिया है कि अंग्रेजी ही आधुनिक भारत के निर्माण और उद्धार की भाषा है। उन्होंने टोव स्कटनब और केंगेस की कृति 'लिंग्विस्टिक जीनोसाइड इन एजुकेशन' के हवाले से यह कहा कि इस भ्रम के कारण अन्य भाषाओं के लिए घातक स्थिति पैदा हुई है।

उन्होंने यह सुझाया कि सभी भ्रमों को दूर करने के लिए हमें एक ऐसी व्यवस्था चाहिए जो भारतीय भाषाओं से उभरने वाली प्रतिभा को अवसर प्रदान करे। इस हेतु हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के बीच भाषा पुल का निर्माण करना ही होगा।

इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम के सहयोगी हैं अक्षरम (भारत), हिंदी भवन (भोपाल), निर्बाध (भारत), वातायन (यू.के.), हिंदी राइटर्स गिल्ड (कनाडा), झिलमिल (अमेरिका), विश्वंभरा (हैदराबाद और अमेरिका), सिंगापुर संगम, कविताई (सिंगापुर) और विश्व हिंदी सचिवालय।


कार्यक्रम की शुरूआत में जवाहर कर्नाट ने सभी का स्वागत किया। अंत में केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष और 'अक्षरम' के अध्यक्ष अनिल जोशी ने कार्यक्रम का समाहार प्रस्तुत किया तथा पद्मेश गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

प्रस्तुति - डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा 

सोमवार, 22 जून 2020

'उच्च शिक्षा और भारतीय भाषाएँ' पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार संपन्न।

हैदराबाद (प्रेस विज्ञप्ति)। 

भारत सरकार ने उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय के स्तर की पाठ्य सामग्री को आठवीं अनुसूची में उल्लिखित 22 भाषाओं में अनुवाद करने तथा प्रकाशित करने की योजना बनाई है। प्रकाशन के लिए अनुदान भी प्रदान किया जा रहा है। भारत के पास सुनिश्चित भाषा नीति नहीं है। इसीलिए भाषा नीति तैयार करने और उसे क्रियान्वित करने के लिए मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान की स्थापना की गई थी। अब अनेक विश्वविद्यालयों में लुप्तप्राय भाषाओं के लिए अलग केंद्र भी खोले जा रहे हैं। साथ ही संस्कृत भाषा के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। आज हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में बुनियादी और उच्च शिक्षा से संबंधित मौलिक सामग्री उपलब्ध कराने के लिए अनेक कदम उठाए जा रहे हैं। 

इन सब विषयों पर विमर्श हेतु गठित "वैश्विक हिंदी परिवार" के तत्वावधान में 'उच्च शिक्षा और भारतीय भाषाएँ' विषय पर 21 जून, 2020 को ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी/ वेबिनार संपन्न हुई। बतौर मुख्य वक्ता रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उच्च शिक्षा में भारतीय भाषाओं की स्वीकार्यता तब बढ़ेगी जब भारतीय भाषाएँ स्कूली शिक्षा में स्थापित होंगी। यह स्वीकार्यता तब और सुनिश्चित होगी जब रोजगार का सृजन होगा। 

संतोष चौबे
विषय को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि सारी भारतीय भाषाओं को साथ लेकर एक डोमेन बनाते हुए हमें आगे चलना चाहिए। उच्च शिक्षा हमें अपनी अपनी भाषाओं में ही देनी चाहिए। और यह ग्रास रूट स्तर पर होना चाहिए। इसके लिए कौशल विकास जरूरी है। और इस काम को हिंदी और भारतीय भाषाओं में करना होगा। इतना ही नहीं भारतीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ने की जरूरत को महसूस करना होगा। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की कि ज्यादातर बच्चे निजी विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे हैं। और वहाँ अंग्रेजी को बढ़ावा दिया जा रहा है। अतः भारतीय भाषाओं को प्रोमोट करने का काम इन निजी विश्वविद्यालयों को करना चाहिए। 

संतोष चौबे ने यह भी कहा कि हमारे पास जो रोल मॉडल है वह है शांतिनिकेतन। इस रोल मॉडल के साथ क्या नहीं किया जा सकता। और तो और भारतीय भाषओं में लिबरल आर्ट्स के रूप में बहुत बड़ा काम हो सकता है। कल्चरल डिस्कोर्स में 'गाना' एक महत्वपूर्ण चीज है। इससे अपनी भाषा के प्रति सम्मान बढ़ता है। अलग अलग मातृभाषा भाषियों के बीच यह गीत सौहार्दपूर्ण वातावरण का निर्माण करता है। बच्चों के बीच सौहार्द पैदा करना चाहिए क्योंकि इससे भाषाओं के बीच सौहार्द की भावना पैदा हो सकती है जो अत्यंत आवश्यक है। 

भारत के समक्ष आज एक चुनौती है। अब करोना महामारी के बाद उच्च शिक्षा की पूरी पद्धति बदलने वाली है। अतः उन्होंने कहा कि अब समय आ चुका है मैकाले की भाषा नीति को उलटने की। इस हेतु उन्होंने सुझाव दिया कि वर्चुअल लैब्स का निर्माण करना होगा। तत्काल सामग्री को डिजिटाइज़ करने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि एक तरह से भाषा विमर्श सत्ता विमर्श है।


संतोष तनेजा
'संकल्प फाउंडेशन ट्रस्ट' के अध्यक्ष और शिक्षाविद संतोष तनेजा ने अपने विचार रखते हुए यह चिंता व्यक्त की कि अंग्रेजी भाषा में उच्च शिक्षा के लिए काफी सामग्री उपलब्ध है लेकिन भारतीय भाषाओं में बहुत कम। अतः उन्होंने सबसे यह आग्रह किया कि पहले सामग्री निर्माण पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आज मुद्दा अंग्रेजी बनाम भारतीय भाषाएँ नहीं है बल्कि हिंदी बनाम भारतीय भाषाएँ है। क्योंकि हम अंग्रेजियत के गुलाम बन चुके हैं। और यह चिंता का विषय है। उच्च शिक्षा के स्तर पर भारतीय भाषाओं को डिमांड की भाषाएँ बनाना होगा। उन्हें उचित सम्मान दिलाना होगा। पैराडाइम शिफ्ट लाने के लिए ऊपर से तार हिलाने ही पड़ेंगे।


राहुल देव 
वरिष्ठ भाषा चिंतक राहुल देव ने यह चिंता व्यक्त की कि भाषाई विविधता के लिए प्रसिद्ध भारत के पास कोई भाषा नीति नहीं है। न ही राज्यों के पास अपनी भाषाओं को बचाने के लिए कोई नीति है और न ही केंद्र के पास। उन्होंने यह याद दिलाया कि 1967 में शिमला के उच्च शिक्षा संस्थान में भाषा और समाज के संबंधों को लेकर उच्चतम स्तरीय वैचारिक मंथन लगातार सात दिनों तक हुआ था जिसकी बृहत रिपोर्ट 1969 में प्रकाशित हुई। उसके बाद से हमारे देश में भाषा, शिक्षा और समाज के संबंधों को लेकर उच्च स्तरीय गंभीर मंथन नहीं हुआ। उन्होंने यह भी बताया कि आज शिक्षा 'निजी क्षेत्र' अर्थात अंग्रेजी में जा रही है और भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा समाप्त हो रही है। उन्होंने यह अपील की कि भारतीय भाषाओं के अस्तित्व को सुनिश्चित रखना हो तो शिक्षा को निजी क्षेत्र में जाने से रोकना होगा। 

इस वेबिनार में डॉ. कविता वाचक्नवी सहित अनूप भार्गव, वीरेंद्र शर्मा, उषा राजे सक्सेना, रंजना अरगड़े, अनुपमा, ममता, राजीव कुमार रावत, गुर्रमकोंडा नीरजा आदि देश-विदेश के हिंदी प्रेमी सम्मिलित हुए।


अनिल जोशी
'अक्षरम्' के अध्यक्ष अनिल जोशी ने विषय प्रवर्तन एवं संचालन किया तथा पद्मेश गुप्त ने धन्यवाद ज्ञापित किया। 

 'अक्षरम्' (भारत), हिंदी भवन , भोपाल, वातायन (यू. के.), हिंदी राइटर्स गिल्ड (कनाडा), झिलमिल (अमेरिका), विश्वंभरा (हैदराबाद और अमेरिका), सिंगापुर संगम, कविताई (सिंगापुर) के सहयोग से यह महत्वपूर्ण आयोजन संपन्न हुआ। 


प्रस्तुति : डॉ गुर्रमकोंडा नीरजा

सोमवार, 1 जून 2020

तकनीकी और डिजिटल संप्रेषण की दुनिया में हिंदी साहित्य के बढ़ते कदम : अंतरराष्ट्रीय वेबिनार संपन्न


हैदराबाद, 1 जून 2020 (मीडिया विज्ञप्ति)।

हिंदी हैं हम विश्व मैत्री मंच, हैदराबाद के तत्वावधान में 1 जून, 2020 को मध्याह्न 3 बजे से 5 बजे तक "तकनीकी व डिजिटल संप्रेषण की दुनिया में हिंदी साहित्य के बढ़ते क़दम" विषय पर एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेबिनार सफलतापूर्वक आयोजित किया गया।

मुख्य वक्ता के रूप में प्रसिद्ध कवि-समीक्षक प्रो. ऋषभदेव शर्मा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार तेजेंद्र शर्मा उपस्थित थे। हैदराबाद केंद्र से संचालित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में दोनों विद्वानों ने महत्वपूर्ण विचार रखे।

प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने अंतरराष्ट्रीय  स्तर पर हिंदी साहित्य के क्षेत्र में हैदराबाद नगर को एक विशेष स्थान दिलाया है। उन्होंने तकनीकी संप्रेषण के माध्यम से हिंदी साहित्य की बढ़ोतरी के बारे में अपने विचर अभिव्यक्त किए। प्रो. ऋषभ ने कहा कि वर्तमान समाज सही अर्थ में 'सूचना समाज' है। अब साहित्य पुस्तकों की दहलीज लाँघ कर डिजिटल मल्टीमीडिया के सहारे अधिक लोकतांत्रिक बनने की ओर अग्रसर है। उन्होंने मुक्त वितरण के लिए तकनीकी के उपयोग की जानकारी देने के साथ ही विभिन्न आधुनिक संचार माध्यमों में स्टोरी-टेलिंग की तुलना करते हुए 'डिगिंग' और 'स्प्रेडिंग' की अवधारणाओं का खुलासा किया।

वरिष्ठ साहित्यकार तथा विदेशों में हिंदी के प्रमुख हस्ताक्षर के रूप में अपना परचम लहराने वाले तेजेंद्र शर्मा  ने अपने विचारों में डिजिटल रूप से हिंदी के विकास के बारे में अपनी राय रखी। डिजिटल एवं ऑनलाइन संचार ऐसी क्रांति है, जो नि:संदेह देश को प्रगति के पथ पर त्वरित गति से ले जा सकती है। इसी का लाभ आज हिंदी साहित्य उठा रहा है। आज इतनी सारी वेबसाइटें, ब्लाग हैं कि वे हिंदी की कथा, कहानी, कविताएँ, निबंध, जीवनी, आत्मकथा, रिपोर्ताज, संस्मरण, एकांकी, नाटक तथा अन्य विधाओं को सुंदर मंच प्रदान कर रहे हैं। डिजिटल एवं ऑनलाइन संचार में भाषा का संयम, शब्दों का चयन उपयुक्त होना चाहिए। भावनाओं की अभिव्यक्ति के साथ-साथ दूसरों की भावनाओं का सम्मान भी अवश्य होना चाहिए। ऐसा करने पर ही हिंदी साहित्य का विकास तकनीकी तथा डिजिटल रूप में हो सकता है। आज रचनाकार, हिंदी कुंज, कविताकोश, गद्यकोश, प्रतिलिपि जैसे कई साइट इन बातों का ध्यान रखते हिंदी साहित्य की सेवा में निरंतर लगे हुए हैं। पढ़ने को तो कई किताबें हैं, लेकिन गुलजार के शब्दों में कहना हो तो सारी किताबें अलमारी में पड़े-पड़े अपनी बेबसी पर रो रही हैं। हम यह सोच रहे हैं कि किताबें अलमारी में बंद हैं, जबकि सच्चाई यह है कि हम कहीं न कहीं अपनी मजबूरियों में बंद हैं।

मंच के महासचिव डॉ. डी. विद्याधर ने अपने स्वागत भाषण में हिंदी के विकास को लेकर अपनी कटिबद्धता व्यक्त की। साथ ही कोरोना महामारी के काल में भी हिंदी का अलख जगाने की पुरजोर अभिव्यक्ति की। अध्यक्ष डॉ. मो. रियाजुल अंसारी ने मंच के हिंदी के प्रचार-प्रसार कार्यक्रमों की जानकारी दी। इसके अतिरिक्त वेबिनार में मंच की ओर से उपाध्यक्ष डॉ. राजेश अग्रवाल, डॉ. राकेश शर्मा, डॉ. सुषमा देवी, डॉ. डी. जयप्रदा तथा डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उपस्थित थे। गौरतलब है कि इस वेबिनार में प्रत्यक्ष रूप से 500 प्रतिभागियों ने तो यूट्यूब के सीधे प्रसारण पर 2500 प्रतिभागियों ने ज्ञानवर्धन किया। सभी तीन हजार प्रतिभागियों को ई-प्रमाण पत्र प्रदान किए गए।  

प्रस्तुति : 
डॉ. विद्याधर, महासचिव
हिंदी हैं हम विश्व मैत्री मंच
हैदराबाद।