बुधवार, 29 मई 2013

24 एमफिल शोधकार्य प्रस्तुत : दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा


22 मई 2013 को उच्च शिक्षा और शोध संस्थान (दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा) के हैदराबाद परिसर में वर्तमान सत्र के 24 एमफिल शोधार्थियों ने हिंदी भाषा और साहित्य के विविध  पक्षों से संबंधित अद्यतन विषयों पर अपने लघुशोधप्रबंध प्रस्तुत किए.इस अवसर पर विशेषज्ञ विदुषी के रूप में पधारीं डॉ. शुभदा वांजपे [बीच में] के सान्निध्य में कतिपय शोधार्थियों का समूह चित्र. 
साथ में विभागाध्यक्ष डॉ. ऋषभ देव शर्मा, प्राध्यापक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, आंध्र-सभा के सचिव सी.एस.होसगौडर और व्यवस्थापक वी.ज्योत्स्ना कुमारी.

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मंगलवार, 28 मई 2013

नए साहित्य विमर्शों पर शोधकार्य अत्यंत चुनौतीपूर्ण है – प्रो.शुभदा वांजपे



उच्च शिक्षा और शोध संस्थान में 24 नए लघुशोधकार्य संपन्न



हैदराबाद, 22 मई, 2013 (विज्ञप्ति).


उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के स्थानीय परिसर में वर्तमान सत्र के संपन्न होने के साथ यहाँ आज 24 नए लघुशोधप्रबंध प्रस्तुत किए गए. संस्थान के अध्यक्ष डॉ.ऋषभ देव शर्मा ने जानकारी दी कि इन शोधकार्यों में नए विमर्शों के आधार पर मौलिक अनुसंधान को प्रमुखता दी गई है. 

उन्होंने बताया कि 3 शोधार्थियों ने दलित विमर्श पर शोध कार्य संपन्न किया है. इनमें टी.सुभाषिणी का ‘दलित कहानियों में चित्रित सामाजिक यथार्थ’, वै. मिरियम का ‘माताप्रसाद की आत्मकथा में दलित विमर्श’ और संतोष विजय मुनेश्वर का ‘के.एस.तूफ़ान का दलित विमर्श : ‘टूटते संवाद’ का संदर्भ’ सम्मिलित हैं. 

इसी प्रकार 3 शोध छात्रों ने स्त्री विमर्श पर केंद्रित शोधप्रबंध प्रस्तुत किए हैं. माधुरी तिवारी ने जहाँ विष्णु प्रभाकर के महाकाय उपन्यास ‘अर्द्धनारीश्वर’ को तथा देवेंद्र ने कमल कुमार के उपन्यास ‘हैमबरगर’ को आधार बनाकर इन रचानाकारों की स्त्री-दृष्टि की पड़ताल की है वहीं बी.राखी ने मनोज सिंह के सद्यःप्रकाशित उपन्यास ‘कशमकश’ को स्त्रीविमर्श  की दृष्टि से खंगाला  है. 

सुनील कुमार और एच.नरेंदर ने क्रमशः डॉ.हीरालाल बाछोतिया के खंड काव्य ‘विद्रोहिणी शबरी’ तथा संताल संघर्ष पर केंद्रित मधुकर सिंह के उपन्यास ‘बाजत अनहद ढोल’ में आदिवासी विमर्श की खोज की है.

इसी प्रकार चित्रा मुद्गल के प्रसिद्ध उपन्यास ‘गिलिगडु’ के पाठ का गहन विश्लेषण गहनीनाथ ने वृद्धावस्था विमर्श की कसौटी पर किया है. 

नागेश दूबे ने कुसुम खेमानी की कथा भाषा का विश्लेषण भाषा मिश्रण और भाषा परिवर्तन की दृष्टि से करते हुए यह दर्शाया है कि विभिन्न भाषाओं और बोलियों की शब्दावली और उक्तियों को आत्मसात करके हिंदी निरंतर विकास के नए आयाम छू रही है.

विभागाध्यक्ष ने यह भी जानकारी दी कि इस वर्ष के शोध कार्यों में अध्येय विधा की दृष्टि से भी पर्याप्त विविधता है. उन्होंने कहा कि वर्षा कुमारी ने जहाँ पुरुषोत्तम अग्रवाल की आलोचना कृति ‘अकथ कहानी प्रेम की’ को शोध का आधार बनाया है वहीं राजकिरण ने भीष्म साहनी के साक्षात्कारों और एल.विजयलक्ष्मी ने ममता कालिया के ताजा संस्मरणों पर अपना-अपना लघुशोधप्रबंध तैयार किया है.

समाजशास्त्र, समकालीनता और यथार्थवाद की दृष्टि से इस वर्ष कविता, कहानी और उपन्यास साहित्य के अध्ययन को समर्पित 11 लघुशोधप्रबंध प्रस्तुत किए गए. दीपशिखा पाठक ने महेंद्र भटनागर के काव्य का यथार्थ की दृष्टि से विश्लेषण किया तो सुमैया बेगम ने राजकुमार गौतम की कहानियों में जीवन मूल्य तलाशे हैं. शीतल कुमारी, रोहिणी जाब्रस, रीमा कुमारी और संजय कुमार ने क्रमशः रमेशचंद्र शाह, विवेकानंद, नीलाक्षी सिंह और रोहिताश्व के कथासंग्रहों को अपने शोध का उपजीव्य बनाया.

समकालीन उपन्यास साहित्य में गुँथी हुई सामाजिकता और उत्तरआधुनिकता का विश्लेषण 5 शोधकार्यों में किया गया जिनमें मुहाफिज़ (विजय) पर नीलोफर, बारहमासी (ज्ञान चतुर्वेदी) पर प्रीति कुमारी, दूसरा घर (रामदरश मिश्र) पर मनोज कुमार मिश्र, नमामि ग्रामम् (विवेकी राय) पर इंद्रजीत सिंह और डर हमारी जेबों में (प्रमोद कुमार तिवारी) पर विनोद चौरसिया के लघुशोधप्रबंध शामिल हैं.

इन शोध कार्यों की प्रस्तुति के अवसर पर आयोजित मौखिकी में विशेषज्ञ के रूप में पधारीं प्रो.शुभदा वांजपे ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि नए रचनाकारों और नए विमर्शों पर एम.फिल. के स्तर पर शोध करना और कराना अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है. इस चुनौती को स्वीकार करने तथा स्तरीय शोधकार्य संपन्न कराने के लिए उन्होंने इन शोधकार्यों के निर्देशकगण डॉ.गोरखनाथ तिवारी, डॉ.बलविंदर कौर, डॉ.जी.नीरजा, डॉ.मृत्युंजय सिंह, डॉ.साहिराबानू बी. बोरगल तथा विभाग के आचार्य एवं अध्यक्ष डॉ.ऋषभ देव शर्मा को बधाई दी. 



22 मई 2013 को उच्च शिक्षा और शोध संस्थान (दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा) के हैदराबाद परिसर में वर्तमान सत्र के 24 एमफिल शोधार्थियों ने हिंदी भाषा और साहित्य के विविध पक्षों से संबंधित अद्यतन विषयों पर अपने लघुशोधप्रबंध प्रस्तुत किए. इस अवसर पर विशेषज्ञ विदुषी के रूप में पधारीं डॉ. शुभदा वांजपे [बीच में] के सान्निध्य में कतिपय शोधार्थियों का समूह चित्र. साथ में विभागाध्यक्ष डॉ. ऋषभ देव शर्मा, प्राध्यापक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, आंध्र-सभा के सचिव सी.एस.होसगौडर और व्यवस्थापक वी.ज्योत्स्ना कुमारी.

मंगलवार, 21 मई 2013

आधुनिकता और उत्तरआधुनिकता : (व्याख्यान : ऋषभ देव शर्मा )






16/17 मई 2013 को कर्नाटक विश्वविद्यालय [धारवाड] के हिंदी विभाग में विशेष व्याख्यानमाला के
अंतर्गत 'संरचनावाद', 'उत्तर संरचनावाद', 'आधुनिकता' और 'उत्तर आधुनिकता' पर
डॉ. ऋषभ देव शर्मा (प्रोफ़ेसर और अध्यक्ष, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान,
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद) के 4 व्याख्यान हुए.

प्रस्तुत है उनमें से चौथा व्याख्यान -
"आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता".

उत्तर संरचनावाद : ( व्याख्यान : ऋषभ देव शर्मा )



16/17 मई 2013 को कर्नाटक विश्वविद्यालय [धारवाड] के हिंदी विभाग में
 विशेष व्याख्यानमाला के अंतर्गत 'संरचनावाद', 'उत्तर संरचनावाद', 'आधुनिकता' और 'उत्तर आधुनिकता' पर
डॉ. ऋषभ देव शर्मा (प्रोफ़ेसर और अध्यक्ष, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद) के 4 व्याख्यान हुए. प्रस्तुत है उनमें से तीसरा व्याख्यान -
 "उत्तर संरचनावाद (POST STRUCTURALISM)".

रविवार, 19 मई 2013

संरचनावाद - 2/2 : (व्याख्यान : ऋषभ देव शर्मा)


!! पहले दिन का दूसरा व्याख्यान ...... ताकि अपने छात्रों के काम आ सके !!




16/17 मई 2013 को कर्नाटक विश्वविद्यालय [धारवाड] के हिंदी विभाग में विशेष व्याख्यानमाला के
अंतर्गत 'संरचनावाद', 'उत्तर संरचनावाद', 'आधुनिकता' और 'उत्तर आधुनिकता' पर
डॉ. ऋषभ देव शर्मा (प्रोफ़ेसर और अध्यक्ष, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, 
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद) के 4 व्याख्यान हुए.
प्रस्तुत है उनमें से दूसरा व्याख्यान - "संरचनावाद -2".

संरचनावाद 1 (व्याख्यान : ऋषभ देव शर्मा)


प्रो. सुमंगला मुम्मिगट्टी के बुलावे पर कर्नाटक विश्वविद्यालय, धारवाड, जाना हुआ. रास्ते भर मेरे खर्राटों ने पिछली सीट वाली एक भद्र महिला को इतना सताया कि वे पूरी रात मुझे अंग्रेजी में गरियाती रहीं और सो न सकीं. मैं आत्मग्लानि से भरा-भरा रहा - पर अवोमिन भी खा रखी थी वमन टालने को इसलिए चाहकर भी जाग नहीं पा रहा था. धारवाड पहुंचकर भी मन अपराधबोध से ग्रस्त रहा काफी देर. पर जब व्याख्यान-कक्ष में गया और पूरा भरा हाल श्रवणोत्सुक पाया तो भला लगा. खैर! यहाँ है पहले दिन का पहला व्याख्यान.... (शायद हमारे विद्यार्थियों के किसी काम का हो).....


16/17 मई 2013 को कर्नाटक विश्वविद्यालय [धारवाड] के हिंदी विभाग में विशेष व्याख्यानमाला के
अंतर्गत 'संरचनावाद', 'उत्तर संरचनावाद', 'आधुनिकता' और 'उत्तर आधुनिकता' पर
डॉ. ऋषभ देव शर्मा (प्रोफ़ेसर और अध्यक्ष, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, 
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद) के 4 व्याख्यान हुए.
प्रस्तुत है उनमें से पहला व्याख्यान - "संरचनावाद -1".

बुधवार, 1 मई 2013

आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी का पुरस्कार [2012] समारोह संपन्न : तेलुगुभाषी युवा लेखक पुरस्कार गुर्रमकोंडा नीरजा को : वरिष्ठ हिंदीसेवी ईमनि दयानंद को एक लाख का मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार प्रदत्त


आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद द्वारा 29 अप्रैल 2013  को आयोजित हिंदी महोत्सव के अवसर पर   
बाएँ से - डॉ.बी.सत्यनारायण, शशि नारायण  स्वाधीन, डॉ.ए.वी.सुरेश कुमार, अजय मिश्रा,
  'पद्मभूषण डॉ मोटूरि सत्यनाराण पुरस्कार' ग्रहीता ईमनि  दयानंद,  डॉ .के.दिवाकराचारी. 
 'तेलुगुभाषी युवा हिंदी लेखक पुरस्कार' ग्रहीता  डॉ.जी.नीरजा और मुनुकुटला पद्माराव


वरिष्ठ तेलुगुभाषी हिंदी लेखक  ईमनि दयानंद को
 'पद्मभूषण डॉ मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार' प्रदान करते हुए
मुख्य अतिथि अजय मिश्र और अकादमी के अध्यक्ष डॉ.के.दिवाकराचारी  

आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी के निदेशक डॉ. के. दिवाकराचारी और
 समारोह के मुख्य अतिथि व उच्च शिक्षा विभाग के मुख्य सचिव  अजय मिश्र  के हाथों 
 'तेलुगुभाषी युवा हिंदी लेखक पुरस्कार'  ग्रहण करते हुए डॉ.जी.नीरजा 

डॉ. जी. नीरजा को 'तेलुगुभाषी युवा हिंदी लेखक पुरस्कार' का स्मृति चिह्नभेंट करते हुए 
आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी के निदेशक डॉ. के. दिवाकराचारी और 
समारोह के मुख्य अतिथि व उच्च शिक्षा विभाग के मुख्य सचिव अजय मिश्र 



हिंदी अकादमी का पुरस्कार वितरण संपन्न


आंध्र-प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद के तत्वावधान में ‘हिंदी दिवस 2012’ के उपलक्ष्य में आयोजित पुरस्कार वितरण समारोह प्रतिष्ठित पद्मभूषण मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार ईमनि दयानंद को दिया गया | इसके तहत उन्हें एक लाख रुपये की राशि दी गयी | 

गगन विहार स्थित आंध्र-प्रदेश हिंदी अकादमी सभागार में आयोजित समारोह में उपस्थित मुख्य अतिथि प्रदेश उच्च शिक्षा विभाग के मुख्य सचिव अजय मिश्र ने ईमनि दयानंद को पुरस्कार दिया | इसके अलावा हिंदी युवा लेखक पुरस्कार डॉ.नीरजा को, तमिल भाषी हिंदी लेखक पुरस्कार डॉ.ए. वी. सुरेश कुमार को, हिंदी भाषी हिंदी लेखक पुरस्कार शशिनारायण स्वाधीन को, उत्तम हिंदी अनुवाद पुरस्कार पारनंदि निर्मला को व मराठी भाषी हिंदी लेखक पुरस्कार श्रीनिवास सावरीकर को दिया गया | इन्हें भी अजय मिश्र ने पुरस्कृत करते हुए 25-25 हजार रुपये की राशि प्रदान की | कार्यक्रम की अध्यक्षता अकादमी के निदेशक डॉ. के. दिवाकर चारी ने की | मंच का संचालन अकादमी के अनुसंधान अधिकारी डॉ. बी. सत्यनारायण एवं पी. उज्जवला वाणी ने किया | मुख्य अतिथि अजय मिश्र का सम्मान निदेशक डॉ. के दिवाकर चारी ने किया | इन्द्राणी व पद्मजा ने अतिथियों को पुष्पगुच्छ भेंट कर उनका सम्मान किया एन. उप्पल नायुडू ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया |

 उल्लेखनीय है कि पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार ग्रहीता ईमनि दयानंद ने हिंदी और तेलुगु में लेखन कार्य किया है और ‘पत्थर भी गाते हैं’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘जनता बनी अनाड़ी’, ‘एकलव्य की मूक वेदना’, ‘वेमन पदावली’ आदि हिंदी रचनाएँ की है | 

श्रीमती पारनंदि निर्मला ने आचार्य वकुला भरण रामकृष्णा की पुस्तक ‘कन्दुकुरि वीरेशलिंगम’ का हिंदी में उत्तम अनुवाद किया है | डॉ. ए. वी. सुरेश कुमार ने अंग्रेजी उपन्यास ‘लव स्टोरी’ का ‘प्रेम कहानी’ के नाम से हिंदी में अनुवाद किया है | श्रीनिवास सावरीकर ने ‘गुरु महिमा’ को अंग्रेजी से मराठी में तथा यार्लागडा लक्ष्मीप्रसाद के तेलुगु उपन्यास द्रौपदी का मराठी में अनुवाद किया है | 

डॉ.जी. नीरजा द्विभाषिक मासिक पत्रिका स्रवंति में सह-संपादिका है | शशिनारायण स्वाधीन ने ‘सोच के गलीच पर’, ‘अपनी जमीन पर सड़क सिर्फ रास्ता नहीं’, ‘दस्तक का सच’, ‘कालजयी’ इत्यादि पुस्तकें प्रकाशित की हैं | इस अवसर पर यात्रा विवरण लेखिका संपत देवी मुरारका द्वारा शशिनारायण स्वाधीन जी को “यात्रा-क्रम द्वितीय भाग” पुस्तक सादर भेंट किया गया एवं डॉ. जी. नीरजा जी को मुक्तामाला भेंट कर उनका भी सम्मान किया | इस अवसर पर टी. मोहन सिंह, मदन देवी पोकरणा, संपत देवी मुरारका, गोविन्द मिश्र, एवं नगरद्वय के गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे |