रविवार, 24 फ़रवरी 2013

गिडुगु वेंकट राममूर्ति और महावीर प्रसाद द्विवेदी : भाषा आंदोलन

हैदराबाद, 21 फ़रवरी 2013.

बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में देश भर में भाषा आंदोलन चल रहा था जिसमें भाषा और साहित्य के अग्रणी मनीषियों ने साहित्य की भाषा  और जनता की भाषा के बीच की दूरी को समाप्त करने बीड़ा उठाया और जनभाषा को प्रतिष्ठा दिलाई. तेलुगु के लिए यह कार्य गिडुगु वेंकट राममूर्ति ने ग्रांथिक भाषा के स्थान पर व्यावहारिक भाषा को लाकर तथा उसे शिक्षा का माध्यम बनवाकर किया तो हिंदी के लिए आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने खड़ी बोली का मानकी कारण करके उसे काव्य के साथ गद्य की भी भाषा बनवाकर किया.इस प्रकार इन दोनों परस्पर समकालीन भाषा-चिंतकों ने भाषा को जड़ रूढ़ियों से मुक्त करते हुए लोकतांत्रिक स्वरूप  प्रदान किया.


ये विचार यहाँ  आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी द्वारा विश्व मातृभाषा दिवस पर आयोजित व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए प्रो. ऋषभ देव शर्मा [हैदराबाद] ने व्यक्त किए.


"गिडुगु वेंकट राममूर्ति और महावीर प्रसाद द्विवेदी : भाषा आंदोलन" विषय पर मुख्य व्याख्यान देते हुए डॉ. पेरिसेट्टि श्रीनिवास राव [एरणाकुलम] ने दोनों विद्वानों के योगदान की विस्तृत चर्चा करते हुए तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया. इस अवसर पर प्रो. वी कृष्णा [हैदराबाद] मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे. उन्होंने अपने संबोधन में भारतीय भाषा समाजों की कथनी और करनी के अंतर पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारी अंग्रेज़ीपरस्ती के कारण हमारी मातृभाषाएं उपेक्षा भोग रही हैं.

विशेष अतिथि के रूप में  बोलते हुए प्रो. वशिनी शर्मा [आगरा] ने भाषा आंदोलन के विविध पक्षों पर प्रकाश डालते हुए प्रतिपादित किया कि जनभाषा की प्रतिष्ठा का आंदोलन वस्तुतः प्रयोजनमूलक भाषा की खोज का आंदोलन था जिसे आगे चलकर मोटूरि सत्यनारायण ने सहेजा-संवारा. उन्होंने देश-विदेश में हिंदी की वर्तमान  स्थिति की तुलना करते हुए कहा कि सिनेमा और मीडिया द्वारा भाषा को नए रूपों में ढालना भी भाषा आंदोलन  का एक आयाम है जिसके कारण हिंदी में रोज़गार के अनेक अवसर सामने आ रहे हैं; साथ ही आप्रवासी भारतीयों द्वारा रचे जा रहे साहित्य को भी उन्होंने हिंदी को वैश्विक स्वरूप प्रदान करने वाले आंदोलन का प्रभावशाली और अनिवार्य हिस्सा बताया.


प्रो. बी. सत्य नारायण ने संचालन, डॉ. बी उज्ज्वला वाणी ने स्वागत-सत्कार और एप्पल नायुडु ने धन्यवाद देने का दायित्व निभाया.
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पुनश्च -
व्याख्यानमाला के बीच में अचानक अधिकतर उपस्थितों के मोबाइल बजने लगे और  दिलसुखनगर मे दो विस्फोटों का समाचार सबको बेचैन करने लगा.सभी आशंकित/आतंकित थे और अपने-अपने घर पहुँचने को उतावले भी. दुर्घटना की गंभीरता का पता तो बाद में चला - मीडिया से. विश्व मातृभाषा दिवस जैसे आयोजन अपनी जगह और हमारा आतंकग्रस्त यथार्थ अपनी जगह् !

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

ज्ञानपीठ पुरस्कृत साहित्यकारों पर राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

दीप-प्रज्वलन : [दाएँ से] डॉ. रेणु शुक्ल, डॉ. आरसु, डॉ. ऋषभ देव शर्मा, डॉ. विनय यादव, डॉ. कोयल विश्वास .

बीज भाषण : प्रो. ऋषभ देव शर्मा 

बैंगलूर, 22 फरवरी, 2013. 

‘रेवा विज्ञान एवं प्रबंधन संस्थान’ बैंगलूर के हिंदी विभाग के तत्वावधान में हिंदी के ज्ञानपीठ पुरस्कृत चार साहित्यकारों पर एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई जिसमें सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, अज्ञेय और निर्मल वर्मा के भारतीय साहित्य को योगदान पर प्रकाश डाला गया. उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता संस्थान के अध्यक्ष पी.श्यामराजु ने की. मुख्य अतिथि के रूप में प्रो.आरसु (कालीकट) ने भारतीय संस्कृति और भारतीयता को बांसुरी के दृष्टांत द्वारा समझाते हुए कहा कि जिस प्रकार कई सारे छेद मिलकर एक संगीत की सृष्टि करते हैं उसी प्रकार सारी भारतीय भाषाएँ मिलकर भारतीय साहित्य रूपी सरगम का निर्माण करती हैं. प्रो.ऋषभ देव शर्मा (हैदराबाद) ने बीज भाषण में हिंदी के ज्ञानपीठ पुरस्कृत साहित्यकारों की भारतीय चेतना को रेखांकित किया और समय तथा समाज से उनके जुड़ाव को उनकी कालजयी कीर्ति का आधार बताया. प्राचार्य डॉ.एन.रमेश और प्राचार्या डॉ.बीना ने विज्ञान और प्रबंधन के युग में साहित्य की प्रासंगिकता और मूल्यवत्ता की चर्चा की. 

राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम सत्र में प्रो.आरसु ने ‘प्रकृति सत्य और मानवीय सत्य : चिदंबरा के अमृत घट में’ विषय पर तथा डॉ.रेणु शुक्ला (बैंगलूर) ने ‘अज्ञेय के साहित्य का सामाजिक संदर्भ’ विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किए. अध्यक्षीय भाषण में प्रो.ऋषभ देव शर्मा ने पंत और अज्ञेय की वैचारिकता के निर्माण में देशी–विदेशी विचारधाराओं के योगदान की चर्चा करते हुए इन कवियों को युगप्रवर्तक साहित्यकार बताया. 

प्रो. ऋषभ देव शर्मा का सारस्वत सम्मान करते हुए प्राचार्य डॉ.बीना 
द्वितीय सत्र में भी दो शोध पत्र प्रस्तुत किया गए. डॉ.विनय कुमार यादव ने ‘निर्मल वर्मा का युगबोध : रात का रिपोर्टर’ पर तथा प्रो.ऋषभ देव शर्मा ने ‘महादेवी वर्मा के साहित्य में लोकतत्व’ पर प्रकाश डाला. अध्यक्षता करते हुए प्रो.आरसु ने कहा कि लोकतत्व की दृष्टि से महादेवी के साहित्य का मूल्यांकन लीक से हटकर सर्वथा मौलिक चिंतन का द्योतक है. उन्होंने ‘रात का रिपोर्टर’ में चित्रित मानसिक घुटन की तुलना वर्तमान मीडिया जगत पर पड़ रहे राजनैतिक और व्यावसायिक दबावों  से करते हुए कहा कि निर्मल वर्मा ने इसका प्रामाणिक चित्रण किया है. 

समाकलन सत्र की अध्यक्षता प्रो. एन.रमेश ने की तथा डॉ.बीना ने अतिथि विद्वानों का स्वागत-सत्कार किया. इस अवसर पर ज्ञानपीठ पुरस्कृत साहित्यकारों से संबंधित वीडियो भी प्रदर्शित किए गए. विभिन्न सत्रों का संयोजन संगोष्ठी की सूत्रधार डॉ. रत्न प्रभा दास और उनके सहयोगियों निशा भारद्वाज, कोयल विश्वास, लता माली और एम.वसंत ने सफलतापूर्व किया. रेवा विश्वविद्यालय के छात्रों के अतिरिक्त बैंगलूर के विभिन्न महाविद्यालयों के पाध्यापक, शोधार्थी और छात्रों की उपस्थिति ने आयोजन को गरिमा प्रदान की. 

प्रस्तुति – डॉ.गुर्रमकोंडा नीरजा

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

नेहरु युवा केंद्र में राजभाषा कार्यशाला संपन्न

नेहरु युवा केंद्र, हैदराबाद में आयोजित राजभाषा कार्यशाला को संबोधित करते हुए प्रो. ऋषभ देव शर्मा.
साथ में - मंडल निदेशक जे पी एस नेगी, उप निदेशक सी वी राव, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा एवं डॉ. बलविंदर कौर.


हैदराबाद, 20 फरवरी, 2013. 
युवा एवं खेल मंत्रालय द्वारा संचालित नेहरु युवा केंद्र संगठन के तत्वावधान में यहाँ मंडल कार्यालय में आंध्रप्रदेश के लेखालिपिकों और युवा समन्वयकों के लिए राजभाषा क्रियान्वयन पर एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. मंडल निदेशक जयपाल सिंह नेगी ने कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए कहा कि भारत के विशाल बहुभाषी समाज की संपर्क भाषा और भारत संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी की उपयोगिता स्वतःसिद्ध है, इसलिए हमारा यह लोकतांत्रिक कर्तव्य है कि अपने कार्यालय के दैनिक कार्य में हिंदी का अधिक से अधिक प्रयोग करें.

मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए प्रो.ऋषभ देव शर्मा ने हिंदी की संवैधानिक स्थिति की व्याख्या की और आधुनिक व्यवसाय जगत, मीडिया तथा कम्प्यूटर पर हिंदी के निरंतर बढ़ते हुए व्यवहार की ओर ध्यान दिलाया और कहा कि राजभाषा केवल कार्यालय की भाषा नहीं होती बल्कि ज्ञान, विज्ञान, न्याय और पत्रकारिता का भी इसमें समावेश है.

कार्यशाला के दूसरे चरण में डॉ.बलविंदर कौर ने कार्यालयीन हिंदी की विशेषताओं और राजभाषा के विकास में अनुवाद की भूमिका पर सारगर्भित व्याख्यान दिया.

तीसरे चरण में डॉ.गुर्रमकोंडा नीरजा ने राजभाषा के विविध अनुप्रयोगों पर पावरपोइंट प्रस्तुति दी और प्रतिभागियों से पत्राचार,  अनुवाद तथा टिप्पणी लेखन संबंधी व्यावहारिक कार्य कराया.

नेहरु युवा केंद्र के उपनिदेशक सी.वैद्यनाथ राव के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ कार्यशाला समापन हुआ.

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

निराला जयंती पर रचना पाठ संपन्न

हैदराबाद, 15 फरवरी, 2013.

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के उच्च शिक्षा और शोध संस्थान द्वारा संचालित साहित्य-संस्कृति मंच के तत्वावधान में वसंत पंचमी के अवसर पर निराला जयंती समारोहपूर्वक मनाई गई. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो.ऋषभ देव शर्मा ने निराला की संघर्षशीलता और महाप्राणता से प्रेरणा लेने की बात कही. 

इस अवसर पर निराला की विभिन्न विधाओं की रचनाओं का वाचन एवं सस्वर पाठ किया गया. डॉ.गोरखनाथ तिवारी ने ‘राम की शक्ति पूजा’ का वाचन करते हुए कहा कि इस कविता में ओज गुण का समावेश इसे महाकाव्यत्व प्रदान करता है. डॉ.बलविंदर कौर ने ‘बाहरी स्वतंत्रता और स्त्री’ शीर्षक निराला का निबंध प्रस्तुत किया और कहा कि वे स्त्री विमर्श के भारतीय स्वरूप के स्वप्नद्रष्टाओं में एक थे. 

निराला की हिंदी भाषा संबंधी चिंताओं की चर्चा करते हुए डॉ.मृत्युंजय सिंह ने  हिंदी और साहित्य के बारे में गांधी जी से उनके विवाद विषयक संस्मरण का पाठ किया तथा कार्यक्रम की संयोजिका डॉ.साहिरा बानू बी. बोरगल ने निराला के व्यक्तित्व और कृतित्व का समग्र परिचय देते हुए उन्हें युगपुरुष की संज्ञा दी. राधाकृष्ण मिरियाला ने निराला की कविता ‘मैं अकेला’ का तेलुगु काव्यानुवाद प्रस्तुत किया. 

समारोह में विशेष रूप से निराला की वसंत संबंधी कविताओं, राष्ट्रीयता संबंधी गीतों और आधुनिक विमर्शों की झलक देने वाली कविताओं का वाचन किया गया जिसमें दीप्ति रावत, अर्चना, टी.परवीन सुल्ताना, उमा दुर्गा देवी, माधुरी तिवारी, दीपशिखा पाठक, वर्षा कुमारी, एल.विजयलक्ष्मी, आलोकराज सक्सेना, रामप्रकाश शाह, सुमैया बेगम आदि छात्रों और शोधार्थियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया. धन्यवाद जी. संगीता ने ज्ञापित किया.