गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

तेलुगु कवि के शिवा रेड्डी की रचनावली लोकार्पित

हैदराबाद, 16 दिसंबर 2012.
यहाँ बंजारा हिल्स स्थित  लामकान में प्रसिद्ध तेलुगु कवि  के. शिवा रेड्डी के 14 काव्य संग्रहों पर आधारित  तीन खंडों में प्रकाशित उनकी  लगभग पचास सालों में लिखित कृतियों [रचनावली]  का लोकार्पण कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम में तेलुगु, अंग्रेज़ी और हिंदी भाषाओं में कवि की कृतियों का परिचय, कविताओं का मूल तेलुगु पाठ तथा अन्य दो भाषाओं में उनके अनुवाद पढ़े गए। तीन घंटे तक चले इस  कार्यक्रम में हैदराबाद के जाने माने कवि, लेखक और अनुवादक उपस्थित रहे। कार्यक्रम के आख़िरी  भाग के रूप में कवि  शिवा रेड्डी ने अपनी चालीस चुनी हुई कविताओं का पाठ किया।

कार्यक्रम के आयोजक थे  सुमनास्पति रेड्डी और साहिती मित्र मंडली

[प्रस्तुति- आर.शांता सुंदरी, 506,WEST END APTS ,  MASEED BANDA,  KONDAPUR, HYDERABAD - 500084 / मोबाइल -. 2301 0258]

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

पुष्पक-21 लोकार्पित

कादंबिनी क्लब की महीने  के तीसरे रविवार की नियमित गोष्ठी में इस बार डॉ. अहिल्या मिश्र ने अपनी अनियतकालीन साहित्यिक पत्रिका 'पुष्पक' के 21 वें अंक का लोकार्पण भी कराया. 
यह शुभ सारस्वत कृत्य अपुन की अध्यक्षता में संपन्न हुआ. 
मुख्य अतिथि थीं अपोलो की महिलारोगविशेषज्ञ डॉ. रूमा सिन्हा.

11 बजे घर से निकला था, लौटते लौटते 5  बज गए. पर 
 लंबे अरसे बाद हैदराबाद के वरिष्ठतम गीतकार जनकवि दुली चंद शशि से मिलकर बहुत अच्छा लगा.
 उन्होंने कवि गोष्ठी वाले सत्र की अध्यक्षता की. 

आरंभ में डॉ. अर्चना झा ने 5 कविताएँ पढीं जिन पर अच्छी खासी सृजनात्मक बहस हुई. 


बुधवार, 5 दिसंबर 2012

कबीर और जायसी पर व्याख्यान संपन्न


अभी उस दिन डॉ. शशिकांत मिश्र बोले - हमारे कॉलेज आएँगे?
आप बुलाएंगे तो आना पड़ेगा ही - हमने जवाब दे मारा.
तो ठीक है, कल आजाइए.
किस विषय पर बोलना होगा?
निर्गुण भक्ति ठीक है- कबीर और जायसी.

और अगले दिन हो गया व्याख्यान.
आज उन्होंने समाचार भी  छाप दिया
डॉ. मिश्र प्राध्यापक के साथ साथ पत्रकार भी हैं .

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

पुरुषभाषा : स्त्रीभाषा :: धमकाना : रिरियाना

हैदराबाद, 23 नवंबर 2012 

हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के अकादमिक स्टाफ कॉलेज में समकालीन हिंदी साहित्य के अध्ययन-अध्यापन और शोध की संभावनाओं पर केंद्रित 21 दिवसीय पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के अंतर्गत ‘स्त्री विमर्श : स्त्रीभाषा’ पर उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रो.ऋषभ देव शर्मा का विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया. 

आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और पूर्वोत्तर राज्यों से इस पुनश्चर्या कार्यक्रम में आए प्रतिभागी हिंदी प्राध्यापकों को संबोधित करते हुए प्रो.शर्मा ने कहा कि साहित्य की भाषा समाज की वास्तविक भाषा पर आधारित होती है जिसमें वक्ता-श्रोता संबंध, परिस्थिति, प्रसंग और प्रयोजन के अनुसार ही नहीं सामाजिक स्तर और प्रतिष्ठा के भेद के आधार पर भी भाषा वैविध्य पाए जाते हैं. उन्होंने अनेक उदाहरणों के माध्यम से यह प्रतिपादित किया कि समाज में गौण स्थान होने के कारण परंपरागत स्त्री भाषा में जहाँ विनम्रता और अनुरोध की मूल प्रवृत्ति पाई जाती है वहीं आत्मनिर्भर और स्वतंत्र स्त्री की भाषा में आदेश और निषेध की नई प्रवृत्ति को परिलक्षित किया जा सकता है.  

परिवार और समाज में वर्चस्व के साथ भाषिक व्यवहार का अपरिहार्य संबंध बताते हुए प्रो. शर्मा ने पुरुषसत्तात्मक समाज में पुरुषभाषा को ‘धमकाने’ की भाषा तथा स्त्रीभाषा को ‘रिरियाने’ की भाषा मानते हुए स्त्रियों के भाषा व्यवहार के वर्जित क्षेत्रों की ओर भी इशारा किया और कहा कि हिंदी भाषा का स्त्री केन्द्र बनना अभी बाकी है.

आरंभ में प्रतिभागियों की ओर से विशेष वक्ता का स्वागत किया गया. इस अवसर पर पुनश्चर्या कार्यक्रम के संयोजक प्रो.वी.कृष्णा और अकादमिक स्टाफ कॉलेज के निदेशक प्रो.आर.एस.सर्राजू भी उपस्थित थे.

मंगलवार, 20 नवंबर 2012

दीपावली मिलन एवं पुस्तक लोकार्पण संपन्न



हैदराबाद, १८ नवंबर.
कादम्बिनी क्लब के तत्वावधान में रविवार को दीपावली मिलन के साथ शशि कोठारी कृत काव्य संग्रह “जब नदिया बहना भूल गई” का लोकार्पण उल्लासमय वातावरण में संपन्न हुआ |

इस अवसर पर प्रो.ऋषभदेव शर्मा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की | प्रो.आलोक पांडे, निर्मल कुमार सिंघवी, विमलेश सिंघी, एम. प्रभु, शशि कोठारी एवं डॉ.अहिल्या मिश्र मंचासीन हुए | लक्ष्मीनारायण अग्रवाल के संचालन में मंचासीन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित किया गया | शुभ्रा महंतो ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की |


शशि कोठारी कृत “जब नदिया बहना भूल गई” काव्यसंग्रह का परिचय देते हुए डॉ. रमा द्विवेदी ने कहा कि यह काव्यसंग्रह व्यक्तिगत-वैचारिक अनुभूतियों का समूह है | कविताएँ भक्तिभाव से पूर्ण एवं अध्यात्म से संबंधित हैं | शीर्षक आकर्षित करता है और यह कविता संग्रह का सार तत्व है | 

तत्पश्चात प्रो.आलोक पांडे एवं अतिथियों के करकमलों से तालियों की गूँज में काव्यसंग्रह का लोकार्पण हुआ | प्रो.पांडे ने कहा कि सुन्दर भावों के साथ ये कविताएँ एक लम्बी प्रार्थना है | नए तरिके से सोचने पर पाठक को मजबूर करती है | भाषा सक्षम है, कवयित्री को साधुवाद | 

प्रो.ऋषभदेव जी ने अध्यक्षीय बात में कहा कि कवयित्री के पास विशेष शब्दों की बुनावट है | शीर्षक काव्यात्मक है | प्रेम और शांति की कामना करने वाला व्यक्ति कविता लिखे य न लिखे कवि ज़रूर होता है | पूरे जगत के साथ अपनी अनुभूतियों को जोड़ने की बात शशि करती है | भाषा काव्योचित है, नि:संदेह वे आगे बढ़ सकती है | कविता और वार्ता में फर्क बताते हुए उन्होंने कहा कि वार्ता सूचना देती है, कविता भावना और विचार को भाषा में गूंथ कर सौन्दर्य की सृष्टि करती है |

कवयित्री शशि कोठारी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि जीवन और कविता दोनों में सकारात्मक दृष्टिकोण द्वारा मैंने खुश रहने और खुशियाँ फैलाने की सच्चाई को पहचाना है | क्लब की ओर से शशि जी का सम्मान हुआ तथा डॉ.रमा को भी पुष्पगुच्छ भेंट किया गया | प्रथम सत्र के समापन पर मीना मूथा ने आभार व्यक्त किया |

दितीय सत्र में प्रो. ऋषभदेव शर्मा की अध्यक्षता, नरेंद्र राय तेजराज जैन, डॉ.अहिल्या मिश्र के सान्निध्य तथा लक्ष्मीनारायण अग्रवाल के संचालन में ''दीपावली स्नेह मिलन काव्य गोष्ठी'' आयोजित हुई | डॉ. सीता मिश्र, वेणुगोपाल भट्टड़, अजित गुप्ता, जुगल बंग जुगल, विनीता शर्मा, ए. कुरियन मोना, वी.वरलक्ष्मी, गौतम दीवाना, संपत देवी मुरारका, सुषमा वैद, सत्यनारायण काकडा, सरिता सुराना जैन, उमा सोनी, सूरज प्रसाद सोनी, तनुजा व्यास, तन्मय-संजय, पनिया, स्नेहिता कोठारी, रायचंद राकेचा, सुमेर सिंग, बालाप्रसाद गोयल, दीपक वाल्मीकि, डॉ. पूर्णिमा शर्मा, प्रो.सुरेश पूरी, बिशनलाल संघी, मुकुंददास डांगर, सीताराम, पुरुषोत्तम कड़ेल, भावना पुरोहित, हेमांगी ठाकर, आनंद सुराना और डॉ. देवेन्द्र शर्मा ने काव्यपाठ किया| सरिता सुराणा के धन्यवाद के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ |
प्रस्तुति - डॉ.अहिल्या मिश्र

'टीसों ने ली जब अंगडाई' का लोकार्पण 20 नवंबर को


सोमवार, 12 नवंबर 2012

डॉ. अशोक भाटिया का काव्यपाठ और कथाकथन संपन्न

हैदराबाद, 12 नवंबर 2012.
नवोदित सांस्कृतिक-साहित्यिक पत्रिका ''भास्वर भारत'' के तत्वावधान में यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के खैरताबाद स्थित सम्मलेन कक्ष में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पधारे साहित्यकार डॉ. अशोक भाटिया का सारस्वत सम्मान किया गया.  कार्यक्रम की अध्यक्षता अंग्रेज़ी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. एम. वेंकटेश्वर  ने की  तथा संचालन 'स्रवंति'  की  सहसंपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने किया.

आयोजन का विशेष आकर्षण था 'कथाकथन', जिसके अंतर्गत  अतिथि रचनाकार अशोक भाटिया ने अपनी 'भीतर का सच', 'तीसरा चित्र ', 'रिश्ते', 'रंग', 'पीढ़ी दर पीढ़ी' और 'श्राद्ध' जैसी लघुकथाओं का भावपूर्ण वाचन किया. साथ ही उन्होंने अपनी कुछ कविताएँ भी प्रस्तुत कीं.चर्चा में उनकी रचना  'ज़िंदगी की कविता' के इस अंश को खूब सराहा गया - ''कविता/ घरैतिन के हाथों से होकर/ तवे पर पहुंचती है/ तो बनती है रोटी/ xxx / जहाँ कहीं भी कविता है/ वहाँ जीवन का/ जिंदा इतिहास रचा जा रहा है.''  पठित लघुकथाओं पर डॉ. एम. वेंकटेश्वर, डॉ. राधेश्याम शुक्ल,  लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, आशीष नैथानी, पवित्रा अग्रवाल, वेत्सा पांडुरंगा राव, संपत देवी मुरारका, ऋतेश सिंह, अशोक तिवारी, डॉ. सीमा मिश्र, वी. कृष्णा राव और नागेश्वर राव ने समीक्षात्मक टिप्पणियाँ कीं.

आरंभ में आर.राजाराव ने मंगलाचरण किया तथा आगंतुकों के परस्पर परिचय और स्वागत-सत्कार की जिम्मेदारी समारोह के संयोजक प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने निभाई.


चित्र परिचय :
'भास्वर भारत' द्वारा आयोजित 'कथाकथन' कार्यक्रम के अवसर पर लिया गया समूह चित्र. बाएँ से - डॉ. सीमा मिश्र, अशोक तिवारी, वेत्सा पांडुरंगा राव, आर.राजाराव, प्रो. ऋषभ देव शर्मा, आशीष नैथानी, डॉ. राधे श्याम शुक्ल, डॉ. अशोक भाटिया, डॉ. एम. वेंकटेश्वर, के. नागेश्वर, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, संपत देवी मुरारका, पवित्रा अग्रवाल, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल एवं वी. कृष्णा  राव.

[इस आयोजन के अन्य चित्र यहाँ देखे जा सकते हैं.]

शनिवार, 10 नवंबर 2012

कथाकार अशोक भाटिया का ''कथा-कथन'' 11 नवंबर को





हैदराबाद, 10 नवंबर 2012.
कुरुक्षेत्र [हरियाणा] से हैदराबाद पधारे कवि एवं लघुकथाकार डॉ. अशोक भाटिया के सम्मान में नवोदित मासिक पत्रिका ''भास्वर भारत'' के तत्वावधान में रविवार, 11 नवंबर को अपराह्न 3 बजे से खैरताबाद स्थित दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सम्मलेन कक्ष में ''कथा-कथन'' कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है. कार्यक्रम की अध्यक्षता अंग्रेज़ी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व-हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. एम. वेंकटेश्वर करेंगे तथा नगरद्वय के विशिष्ट साहित्यकार उपस्थित रहेंगे.आयोजकों ने सभी साहित्यप्रेमियों से अनुरोध किया है  यथासमय पधार कर ''कथा-कथन'' का रसास्वादन करें और अपनी गरिमामयी उपस्थिति से कार्यक्रम को सफल बनाएँ.

बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

ऑडियो : 'भास्वर भारत' पर प्रो. ऋषभ देव शर्मा



भारतीय अस्मिता और भास्वर भारत' पर प्रो.ऋषभ देव शर्मा का व्याख्यान 
स्थान : आंध्रप्रदेश हिंदी अकादमी 
दिनांक : 21 अक्टूबर 2012. 

'BHASWAR BHARAT' IS A MONTHLY MAGAZINE FROM HYDERABAD LAUNCHED ON 21/10/2012. 
IN ITS CONTEXT A P HINDI ACADEMY ORGANISED A LECTURE BY PROF. RISHABHA DEO SHARMA 
ON 'BHARATEEYA ASMITA AUR BHASWAR BHARAT' 
ON 26/10/2012.

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

'भारतीय अस्मिता और भास्वर भारत' पर व्याख्यान संपन्न


चित्र परिचय : आंध्रप्रदेश हिंदी अकादमी द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला के अंतर्गत
'भारतीय अस्मिता और भास्वर भारत' पर बोलते हुए प्रो.ऋषभ देव शर्मा. 
साथ में डॉ.जी.नीरजा, डॉ.राधेश्याम शुक्ल एवं डॉ.एम.वेंकटेश्वर.

हैदराबाद 26 अक्टूबर 2012. (प्रेस विज्ञप्ति).

आंध्रप्रदेश हिंदी अकादमी के तत्वावधान में आयोजित मासिक व्याख्यानमाला के अंतर्गत ‘भारतीय अस्मिता और भास्वर भारत’ विषय पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के विभागाध्यक्ष प्रो. ऋषभ देव शर्मा का व्याख्यान संपन्न हुआ. कार्यक्रम की अध्यक्षता हैदराबाद से सद्यःप्रकाशित मासिक पत्रिका ‘भास्वर भारत’ के संपादक डॉ.राधेश्याम शुक्ल ने की. अंग्रेज़ी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो.एम.वेंकटेश्वर विशेष अतिथि के रूप में मंचासीन हुए. संचालन मासिक पत्रिका ‘स्रवंति’ की सहसंपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने किया.


मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए प्रो.ऋषभ देव शर्मा ने कहा कि भारतीय अस्मिता भौगोलिक या राजनैतिक तत्वों की अपेक्षा हमारे सांस्कृतिक जुड़ावों के समुच्चय से आकार प्राप्त करती है जिसमें मनुष्य, प्रकृति, धर्म, मूल्य, आत्म, समाज और विश्व से हमारे संबंधों की मौलिक दृष्टि शामिल है. उन्होंने कहा कि भारतीय दृष्टि का यह वैशिष्ट्य है कि वह पश्चिम की भाँति प्रकृति से उपभोग और दोहन का संबंध नहीं रखती बल्कि उसे चिति स्वरूप मानती है और सबके अभ्युदय और कल्याण की कामना से संचालित होती है. उन्होंने जोर देकर कहा कि भारतीय अस्मिता का मूल स्वभाव सबके विकास और आनंद में अभिव्यक्त होता है और संगम संस्कृति तथा लोक संवेदना के रूप में प्रतिफलित. ‘भास्वर भारत’ को भारतीय अस्मिता के लिए समर्पित पत्रिका बताते हुए डॉ. शर्मा ने ध्यान दिलाया कि यह पत्रिका आज की दुनिया के लिए उपादेय भारतीय चिंतन को दुनिया के सामने लाने तथा दुनिया के आधुनिक श्रेष्ठ विचारों से भारतीय समाज को अवगत कराने के उद्देश्य से भाषा, संस्कृति और विचार को अपने केंद्रीय विषय के रूप में प्रतिष्ठित करने वाली पर्याप्त महत्वाकांक्षी पत्रिका है.

विशिष्ट अतिथि प्रो.एम.वेंकटेश्वर ने ‘भास्वर भारत’ के लक्ष्य और उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए बलपूर्वक यह कहा कि खांटी राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करना इस पत्रिका का प्रमुख प्रयोजन है तथा इसके प्रवेशांक में सम्मिलित ज्वलंत आवरणकथा से लेकर हिंदी भाषा, लिपि, हेमचंद्र राय, ब्रजगोपियों के महारास, अरुणाचल के तीर्थ और अमेरिकी विज्ञानकथा ‘अमरों का द्वीप’ तक सारी सामग्री अत्यंत विचारपूर्ण, स्तरीय एवं संग्रहणीय बन पड़ी है.

परिचर्चा के दौरान डॉ. देवेंद्र शर्मा ने भारत की प्रगतिशील वैज्ञानिक चेतना को प्रमुखता प्रदान करने की सराहना की तो डॉ. विनीता सिन्हा ने कविता को भी सम्मिलित करने की माँग उठाई. लालचंद सिंघल ने जनजागरण के लिए पत्रकारिता के समक्ष उपस्थित चुनौती की बात की तो भवंरलाल उपाध्याय ने याद दिलाया कि शिखरों की चर्चा में नींव के पत्थरों को कदापि न भुलाया जाए और हर अत्याचार और शोषण के संदर्भ में पत्रिका गरीब आम जन की पक्षधर बनकर उभरे. दयानिधि ने पत्रिका की वैचारिकता को उच्च कोटि के चिंतन से युक्त मानते हुए कहा कि हमें भारतीय समाज की जड़ रूढ़ियों से टकराना होगा तो जी. परमेश्वर ने भाषा, संस्कृति और विचारों को समर्पित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका के प्रकाशन को साहसिक कदम बताते हुए कहा कि यह पत्रिका नई चेतना के जागरण के लिए चिंगारी का काम करेगी.  

व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए डॉ.राधेश्याम शुक्ल ने कहा कि इस पत्रिका में मनुष्य जाति के उत्कर्ष से सबंधित सभी विषयों का समावेश रहेगा तथा इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाएगा कि भारतीय चिंतन की वैज्ञानिकता और प्रगतिशीलता को आधुनिक विश्व के समक्ष उजागर किया जा सके. डॉ. शुक्ल ने उदात्त नागरिक चेतना, सात्विक चिंतन, बदलाव की स्वीकृति, विचारों की सार्वभौमिकता और खुलेपन को ‘भास्वर भारत’ की नीति के रूप में रेखांकित करते हुए यथाशीघ्र इसके अंतर्गत युवा मंच और महिला मंच गठित करने की योजना की भी जानकारी दी.

आरंभ में प्रो. बी. सत्यनारायण और इंद्राणी ने आंध्रप्रदेश हिंदी अकादमी की ओर से अतिथियों का सत्कार किया. एन.एप्पल नायुडु के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ समारोह का समापन हुआ.

[प्रस्तुति – डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा]

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

''भास्वर भारत'' का प्रवेशांक : मुखपृष्ठ और विषयसूची

अभी २१ अक्टूबर २०१२ को हैदराबाद से प्रकाशित नई मासिक पत्रिका

 इस अंक के मुखपृष्ठ और विषयसूची  को यहाँ सहेजा जा रहा है. 

बड़े आकार में देखने-पढ़ने के लिए कृपया चित्र पर क्लिक करें.




सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

पवित्रा अग्रवाल का बालकथा संग्रह लोकार्पित

 14 अक्टूबर 2012 को प्रेस क्लब [हैदराबाद] में  पवित्रा अग्रवाल के
बाल-कथा संग्रह 'फूलों से प्यार' का लोकार्पण किया गया.
यह शुभ कार्य आथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के  महासचिव
डॉ. शिव शंकर अवस्थी के हाथों संपन्न हुआ.
अध्यक्षता केंद्रीय हिंदी संस्थान
 की प्रोफ़ेसर डॉ. शकुंतला रेड्डी [एकदम बाएँ] ने की. 
लेखिका ने यह पुस्तक अपने जीवनसाथी कविवर 
लक्ष्मी नारायण अग्रवाल [एकदम दाएँ] 
को समर्पित की है.

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इस क्षण के सहभागी मित्रों का एक स्मरणीय समूह चित्र नीचे सहेजा जा रहा है.


द्रष्टव्य

मासिक 'भास्वर भारत' का प्रवेशांक रमेश चंद्र शाह के हाथों लोकार्पित



हैदराबाद, 21 अक्टूबर, 2012 [प्रेस विज्ञप्ति / भास्वर भारत]. 

‘’ आधुनिक हिंदी के इतिहास को देखने से यह स्पष्ट होता है कि इसके विकास में साहित्यकारों और पत्रकारों की विस्मयकारी जुगलबंदी का बड़ा योगदान रहा है. जब-जब कोई संकट उपस्थित हुआ तब-तब इन दोनों ने समाज को नया प्रकाश दिया है. आज भी हम एक ऐसे संकट काल से गुजर रहे हैं जहाँ विभिन्न क्षेत्रों में मानवीय मूल्यों का चरम अधःपतन हो चुका है. साहित्य और पत्रकारिता को आज फिर प्रकाश पुंज की भूमिका निभानी होगी.’’ 

ये विचार विख्यात साहित्यकार पद्मश्री रमेशचंद्र शाह ने आज यहाँ हिंदी महाविद्यालय के सभागार में आयोजित भारतीय भाषा, संस्कृति एवं विचारों की अंतरराष्ट्रीय मासिक पत्रिका ‘भास्वर भारत’ के प्रवेशांक का लोकार्पण करते हुए व्यक्त किए. 
रमेशचंद्र शाह ने आगे कहा कि भास्वर भारत से यह अपेक्षा है कि वह पत्रकारिता के क्षेत्र में नए मानदंड स्थापित करे और वर्तमान घोर यथार्थवाद से टकराते हुए व्यावहारिक आदर्शों की स्थापना करे. उन्होंने हिंदी के सर्जक पत्रकारों की परंपरा का उल्लेख करते हुए याद दिलाया कि हिंदी आम जन की तथा भारतीय अस्मिता की भाषा है और सदा सत्ता के संरक्षण के बिना अपनी लोकशक्ति के आधार पर सुदृढ़ हुई है. उन्होंने जोर देकर कहा कि हर प्रकार के अलोकतांत्रिक व्यवहार के विरुद्ध ‘सात्विक कठोरता’ ही हिंदी की पूंजी है तथा ‘भास्वर भारत’ के प्रवेशांक में यह सात्विक कठोरता पाठक को आश्वस्त करने के लिए पर्याप्त है. 

डॉ.राधेश्याम शुक्ल द्वारा संपादित मासिक पत्रिका ‘भास्वर भारत’ के लोकार्पण के अवसर पर हिंदी, तेलुगु और उर्दू के साहित्यकारों और पत्रकारों ने शुभाशंसाएं प्रकट कीं.

वरिष्ठ तेलुगु कवि प्रो.एन गोपि ने पत्रिका की विशिष्ट भाषादृष्टि से सहमति जताते हुए कहा कि कोई भाषा बड़ी और छोटी नहीं है बल्कि सभी भारतीय भाषाएँ हमारी संस्कृति की विशेषताओं को प्रकट करती हैं इसलिए भारत की भाषा को एक सामूहिक नाम ‘भारती’ देना उचित होगा. 
रामगोपाल गोयनका, रमेश अग्रवाल, डॉ जे पी वैद्य, डॉ रामकुमार तिवारी, मधुसूदन सोंथालिया, अमृत कुमार जैन, परसराम डालमिया, रमेश कुमार बंग, डॉ बी सत्यनारायण, सुरेद्र लूणिया, डॉ. अहिल्या मिश्र, डॉ. जगदीश प्रसाद डिमरी एवं अन्य अनेक महानुभावों ने इस अवसर पर शुभकामनाएं देते हुए ‘भास्वर भारत’ के सतत सहयोग का आश्वासन दिया. 
समारोह की अध्यक्षता विख्यात कला समीक्षक पद्मश्री जगदीश मितल ने की. उन्होंने अपने उद्बोधन में याद दिलाया कि हैदराबाद को ‘कल्पना’ पत्रिका के लिए जाना जाता रहा है जो अपने समय की सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिका थी. उन्होंने आगे कहा कि ‘कल्पना’ ने जिस प्रकार साहित्य का नेतृत्व किया था उसी भांति ‘भास्वर भारत’ भी भारतीय भाषाओं, संस्कृति और विचारों के आंदोलन को नेतृत्व प्रदान करेगी. 
संपादक डॉ राधेश्याम शुक्ल ने स्पष्ट किया कि ‘भास्वर भारत’ अपनी तरह की हिंदी की पहली अंतरराष्ट्रीय पत्रिका है जिसका लक्ष्य प्राचीन भारत की विस्मृत हो चुकी वैज्ञानिक विचारधारा और देश-दुनिया की आधुनिक प्रगति के बीच सेतु निर्माण करने का है. 
कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन और शुभ्रा महंतो के ‘वंदे मातरम’ गायन से हुआ. अतिथियों का परिचय प्रो.एम वेंकटेश्वर ने कराया. इस अवसर पर पत्रिका-परिवार की ओर से साहित्य, संस्कृति और भाषा के क्षेत्र में कार्यरत हैदराबाद के विशिष्ट नागरिकों का सम्मान भी किया गया. 

कार्यक्रम के संयोजन में रत्नकला मिश्र, निर्मला सिंघल, डॉ जी नीरजा, अंशुल शुक्ल, रितेश सिंह और विकास कुमार ने सक्रिय सहयोग दिया. संचालन प्रसन्न भंडारी  ने  किया.

गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

वरिष्‍ठ अधिकारियों में हिंदी के कामकाज के प्रति रुचि बढ़ी!




टॉलिक (उपक्रम) की 36वीं अर्द्धवार्षिक बैठक एवं वार्षिक समारोह संपन्‍न
      दि. 17 अक्‍तूबर को नगर राजभाषा कार्यान्‍वयन समिति (उ) की 36वीं अर्द्ध वार्षिक बैठक एवं वार्षिक समारोह मिश्र धातु निगम लिमिटेड (मिधानि) के सौजन्‍य से होटल स्‍वागत ग्रैंड (नागोल) में संपन्‍न हुआ.
      कार्यक्रम की अध्‍यक्षता बीडीएल के सी एम डी एवं इस समिति के अध्‍यक्ष श्री एस एन मंथा ने की. अजय कुमार श्रीवास्‍तव, उप निदेशक (कार्यान्‍वयन), दक्षिण क्षेत्र, बेंगलूरु समारोह में राजभाषा विभाग के प्रतिनिधि के रूप में उपस्‍थित रहे. बैठक में नगरद्वय के उपक्रमों के प्रधान, हिंदी अधिकारी / प्रभारी सहित हिंदी शिक्षण योजना के प्रतिनिधि व टॉलिक अंतर उपक्रम प्रतियोगिताओं के पुरस्‍कार विजेताओं ने भाग लिया.
      बैठक के आरंभ में मिधानि के अपर महाप्रबंधक श्री आर एन रॉय ने सभी का स्‍वागत करते हुए कहा कि पिछले कुछ वर्षों से टॉलिक की गतिविधियों से कई स्‍थानीय कार्यालयों के वरिष्‍ठ अधिकारियों में हिंदी के कामकाज के प्रति रुचि बढ़ी है जिससे अन्‍य साथी भी प्रेरित हुए हैं. उन्‍होंने समिति के कामकाज के आधार पर कहा कि यह समिति निश्‍चित ही अपने उद्देश्‍य प्राप्‍त करने में सफल होगी. टॉलिक सचिव श्री होमनिधि शर्मा ने जून से अक्‍तूबर माह तक संपन्‍न गतिविधियों का विवरण प्रस्‍तुत किया और शहर के उपक्रमों से राजभाषा प्रयोग के संबंध में प्राप्‍त होने वाली तिमाही प्रगति रिपोर्टों के आधार पर मदवार कंप्‍यूटर प्रस्‍तुति दी. अध्‍यक्षीय संबोधन में श्री एस एन मंथा ने बैठक के आयोजन के लिए मिधानी के सीएमडी श्री एम नारायण राव का आभार व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि टॉलिक, हिन्‍दी के कामकाज में आने वाली कठिनाइयों को आपस में मिलकर दूर करने और एक-दूसरे के अच्‍छे कामकाज को आपस में बॉंटने का मंच है. उन्‍होंने सभी से टॉलिक की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेकर भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार हिन्‍दी संबंधी कामकाज को आगे बढ़ाने का आह्वान किया. उन्‍होंने यह भी कहा कि यदि वरिष्‍ठ अधिकारी नियमित तौर पर ध्‍यान दें तो हिंदी का कामकाज तेजी से आगे बढ़ सकता है. हम सभी बातचीत में हिन्‍दी इस्‍तेमाल करते हैं पर फाइलों पर भी हिंदी नियमित रूप से लिखी जाए तो हमारे अन्‍य साथियों को इससे बहुत प्रेरणा मिलेगी. संबोधन के अंत में उन्‍होंने राजभाषा शील्‍ड/ट्रॉफी/कप विजेता प्रतिष्‍ठानों तथा अंतर-उपक्रम प्रतियोगिताओं के विजेताओं को बधाई दी.
बैठक में राजभाषा कार्यान्‍वयन संबंधी विभिन्‍न मदों की समीक्षा करते हुए श्री अजय कुमार श्रीवास्‍तव, उप निदेशक (कार्यान्‍वयन), दक्षिण क्षेत्र, बेंगलूर ने कहा कि हैदराबाद टॉलिक प्रभावशाली ढंग से काम कर रही है और यहॉं के कार्यालयों में अन्‍य क्षेत्रों की तुलना में कार्यान्‍वयन कार्य गंभीरतापूर्वक किया जा रहा है. उन्‍होंने सभी कार्यालय प्रधानों से राजभाषा नीति के अंतर्गत अनिवार्य मदों का सख्‍ती से सुनिश्‍चयन बनाये रखने की अपील की.
इस अवसर पर सेवा मेडल सम्‍मानित मेजर जनरल संजीव लुंबा, प्रभारी सी एम डी, ईसीआईएल ने कहा कि टॉलिक के मंच से सभी संगठन आपस में जुड़ जाते हैं और इस मंच से एक दूसरे के कामकाज को जानने का अवसर मिलता है. उन्‍होंने कहा कि इस मंच से कई मुख्‍य धारा के काम भी आपसी सहयोग बन जाने से सुकर बन जाते हैं. इस तरह हिन्‍दी के मंच मुख्‍य धारा के लक्ष्‍य प्राप्‍त करने में भी मदद करते हैं. अत: सभी को हिन्‍दी से जुड़े रहना चाहिए. डॉ दिनेश कुमार लेखी, निदेशक (उत्‍पादन), मिधानी ने भी टॉलिक की गतिविधियों की प्रशंसा करते हुए हिन्‍दी में मुख्‍य धारा के विषयों पर संगोष्‍ठी-सेमिनार आयोजित किये जाने पर बल दिया. साथ ही, उन्‍होंने कहा कि टॉलिक की गृह-पत्रिका पथिक का ई-प्रकाशन भी होना चाहिए जिससे पत्रिका अधिक पाठकों तक पहुँच पायेगी. इसी तरह इंटरनेट पर टॉलिक की गतिविधयॉं दिये जाने का भी उन्‍होंने सुझाव दिया. बी एच ई एल के अधिशासी निदेशक श्री वांछू ने कहा कि अंग्रेजी से हिन्‍दी में काम करने ऑन लाइन अनुवाद की सुविधा होने से दैनिक कामकाज में हिन्‍दी का प्रयोग कर्मचारी शौ़क से करने लगेंगे. उन्‍होंने टॉलिक की कार्यशैली की प्रशंसा करते हुए समिति अध्‍यक्ष को आयोजन की बधाई दी. एन एम डी सी के महाप्रबंधक श्री यादव ने दैनिक प्रयोग में आने वाली विभिन्‍न संगठनों की तकनीकी शब्‍दावली के आपस में आदान-प्रदान किये जाने की बात कही जिससे कामकाज में हिन्‍दी शब्‍दावली का प्रयोग अधिक सुलभ हो पायेगा.
बैठक के दौरान बीएचईएल-रामचंद्रपुरम, एच ए एल, ई सी आई एल, बीएसएनएल-आं.प्र. परिमंडल, एन एम डी सी लिमिटेड, एल आई सी, पॉवर ग्रिड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, एन टी पी सी, एअर इंडिया-सीटीई को उत्‍कृष्‍ट राजभाषा कार्यान्‍वयन के लिए क्रमश: बड़े, मध्‍यम और लघु उपक्रमों की श्रेणी में राजभाषा शील्‍ड, ट्रॉफी और कप से सम्‍मानित किया गया. इन पुरस्‍कारों के साथ-साथ टॉलिक द्वारा आयोजित हिन्‍दी एवं अन्‍य भाषी वर्ग में आयोजित अंतर उपक्रम प्रतियोगिताओं के विजेताओं को भी सम्‍मानित किया गया.
     कार्यक्रम के सफल आयोजन में टॉलिक सचिव श्री होमनिधि शर्मा सहित मिधानी की ओर से अपर महाप्रबंधक श्री आर एन रॉय, श्री रत्‍नेश भट्ट, श्रीमती विजय लक्ष्‍मी तथा बी डी एल हिंदी विभाग के स्‍टॉफ का उल्‍लेखनीय योगदान रहा


[प्रस्तुति : होमनिधि शर्मा]

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

पंचम साहित्य गरिमा पुरस्कार एवं `फूलों से प्यार’ का लोकार्पण समारोह



साहित्य गरिमा पुरस्कार समिति एवं आथर्स गिल्ड आफ इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में प्रेस क्लब, बशीरबाग़ हैदराबाद में दिनांक 14 अक्टूबर को 2 बजे पंचम साहित्य गरिमा पुरस्कार एवं `फूलों से प्यार' का लोकार्पण समारोह संपन्न हुआ ।


समारोह की अध्यक्षता प्रो शकुन्तलम्मा (क्षेत्रीय निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, हैदऱाबाद केंद्र) ने की। इस अवसर पर डॉ.शिवशंकर अवस्थी (असोसिएट प्रोफ़ेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय एवं सेक्रेटरी जनरल, ए.ज़ी.आई) मुख्य अतिथि और उदघाटन कर्ता, जैनरत्न सुरेन्द्र लूणिया सम्मानीय अतिथि,  कमल नारायण अग्रवाल गौरवनीय अतिथि,  मधु सूदन सोंथालिया विशेष अतिथि, प्रो ऋषभ देव शर्मा पुस्तक परिचय कर्ता एवं डॉ.अहिल्या मिश्र संस्थापक अध्यक्ष के रूप में मंचासीन हुए । मुख्य अतिथि डॉ.शिव शंकर अवस्थी एवं अन्य सभी अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित किया एवं शुभ्रा मोहन्तो की सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ ।

संस्था की संस्थापक अध्यक्ष एवं ए.जी.आई. की संयोजिका (हैदराबाद चैप्टर) डॉ.अहिल्या मिश्र ने स्वागत भाषण में कहा कि पूरे  देश  में महिला लेखिकाओं के हेतु यह विशेष पुरस्कार है। दक्षिण के पांच प्रान्तों की महिला लेखन हेतु यह पुरस्कार निरंतर दिया जा रहा है । महिलाओं के लेखन को प्रतिष्ठित एवं प्रोत्साहित करना इसका विशेष उद्देश्य है । ए.जी.आई. का परिचय देते हुए  कहा कि यह भारतीय लेखको के हेतु महत्व पूर्ण अखिल भारतीय संस्था है । सभी अतिथियों का स्वागत शाल, मोती माला एवं पुष्प गुच्छ से संस्था के सदस्यों द्वारा किया गया । प्रो.शुभदा वांजपे ने अतिथियों का परिचय दिया | डॉ. रमा द्विवेदी ने संस्था का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया एवं डॉ. सीता मिश्र ने प्रशस्ति पत्र का वाचन किया । तत्पश्चात नगर की वरिष्ठ लेखिका  शान्ति अग्रवाल को उनके कहानी संग्रह `गुलमोहरकी पांडुलिपि पर  पंचम साहित्य गरिमा पुरस्कार के रूप में ग्यारह हजार की राशि का चेकशाल,प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिह्न, श्री फल और पुष्प गुच्छ प्रदान कर उनका सम्मान किया गया।

पवित्रा अग्रवाल कृत `फूलो से प्यार’  बाल कहानी संग्रह का परिचय देते हुए प्रो ऋषभ देव शर्मा ने कहा - इन कहानियों में   बच्चो में चरित्र निर्माण, राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत करना, रीति रिवाजों का सकारात्मक रूप और रिश्तो की कद्र करना अभिव्यक्त हुआ है एवं वैज्ञानिक चेतना जाग्रत करने के साथ-साथ इनमे सूक्तियाँ-उक्तियों का प्रयोग भी दिखाई पड़ता है। यह संग्रह   बच्चो के लिए उपयोगी सिद्ध होगा ।

तत्पश्चात `फूलो से प्यार’ बाल कहानी  संग्रह का लोकार्पण मुख्य अतिथि एवं अन्य अतिथियों के द्वारा किया गया।  लेखिका पवित्रा अग्रवाल ने अपनी पुस्तक को अपने पति   लक्ष्मीनारायण अग्रवाल   को समर्पित किया है । लेखिका ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी बचपन  से ही यह इच्छा थी  कि वह  बच्चो के लिए उपयोगी कुछ लिखें और उनका यह सपना आज पूरा हो गया है और इसका श्रेय उनके पति और परिवार को जाता है ।

मुख्य  अतिथि डॉ.शिव शंकर अवस्थी ने ए.जी. आई. का परिचय देते हुए कहा कि यह एक आन्दोलन है जो लेखको के हित के लिए चल रहा है । साहित्य गरिमा पुरस्कार की सराहना  करते हुए कहा कि हमारे देश में महिला लेखिकाओं के लिए ऐसे पुरस्कार की व्यवस्था नहीं है । पांडुलिपि पर पुरस्कार देकर साहित्य गरिमा पुरस्कार समिति न केवल लेखिकाओं को प्रोत्साहित कर रही है बल्कि नए रचनाकार भी  पैदा कर रही है ।
जैन रत्न  सुरेन्द्र लूणिया ने साहित्य गरिमा पुरस्कार समिति को शुभकामनाएँ देते हुए कहा की संस्था महिलाओं की उन्नति के लिए सराहनीय कार्य कर  रही है। श्री कमल नारायण अग्रवाल और श्री मधु सूदन  सोंथालिया ने भी अपने विचार व्यक्त किए
डॉ. राधेश्याम शुक्ल जी ने शान्ति अग्रवाल और पवित्रा   अग्रवाल को  अपनी शुभकामनाएँ प्रेषित की।  

अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो शकुन्तलम्मा ने   इस समारोह को अत्यंत सारगर्भित बताते हुए कहा, सच में साहित्य गरिमा पुरस्कार समिति महिला लेखिकाओं के हित में कार्य कर रही है इससे निश्चित ही महिला लेखन को प्रोत्साहन मिलेगा एवं  यह पुरस्कार अपने आप में अप्रतिम है । 

 भंवर लाल उपाध्याय ने सफल संचालन किया एवं मीना मुथा ने आभार प्रदर्शन ज्ञापित किया । इस समारोह में प्रो सत्यनारायण, प्रो रोहिताश्व डॉ.त्रिवेणी झा, पूर्व पार्षद विजय लक्ष्मी काबरा, श्री जगजीवन लाल अस्थाना, डॉ.पूर्णिमा शर्मा, डॉ.कर्ण सिंह, अजित गुप्ता, नीरज कुमार, आशा मिश्र, मानवेन्द्र मिश्रा, जी परमेश्वर, विनय कुमार झा, संयोग ठाकुर, उमा सोनी, संपत देवी मुरारका, डॉ.राधे श्याम शुक्ल, तेजराज जैन, एस नारायण राव, श्रीनिवास सोमानी, आशा देवी सोमानी, वी वरलक्ष्मी, रत्नमाला साबू, डॉ.अर्चना झा, भावना पुरोहित, डॉ.मदन देवी पोकरणा तनुजा व्यास, सरिता सुराना जैन, विनीता शर्मा, मधु भटनागर, डॉ.सीता मिश्र, शीला सोंथालिया, दयानंद झा, नीरज त्रिपाठी, विशेषवर  राज अस्थाना की उपस्थिति के साथ-साथ  साहित्य प्रेमियों से  सभागृह खचाखच भरा हुआ था ।
प्रस्तुति : संपत देवी मुरारका, मीडिया प्रभारी, हैदराबाद  

आमंत्रण : 'भास्वर भारत' के प्रवेशांक का लोकार्पण 21 को

स्पष्टता के लिए चित्र को  क्लिक करें.

मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

डॉ विजय लक्ष्मी पंडित की दो तेलुगु कृतियों का हिंदी अनुवाद लोकार्पित

हैदराबाद, 9 अक्टूबर 2012.डॉ. पी. विजय लक्ष्मी पंडित 'विश्वपुत्रिका' तेलुगु की समकालीन कवयित्री हैं. डॉ. एम. रंगय्या द्वारा हिंदी में अनूदित उनके दो कविता संग्रहों का लोकार्पण 7 अक्टूबर 2012 को दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में डॉ. राधे श्याम शुक्ल की अध्यक्षता में हुआ. 'विश्वपुत्रिका हूँ मैं...विश्वशांति  मेरा लक्ष्य है' शीर्षक पुस्तक को  नानीलु काव्यांदोलन के प्रवर्तक प्रो. एन. गोपि ने तथा 'धरती का विलाप' शीर्षक पुस्तक को तेवरी काव्यांदोलन के प्रवर्तक प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने लोकार्पित किया. विमोचित दोनों दीर्घ कविताओं पर डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा तथा प्रो. शकीला खानम ने समीक्षात्मक आलेख प्रस्तुत किए. संचालन डॉ. बी. बालाजी ने किया.

बेंगलूरु में विष्णु प्रभाकर शताब्दी



22 सितंबर 2012 बेंगलूरु के सिंधी कॉलेज में विष्णु प्रभाकर के जन्मशती समारोह के अंतर्गत एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया - ''हिंदी साहित्य : विष्णु प्रभाकर की विरासत''. 
उद्घाटन किया प्रो. तिप्पे स्वामी ने; और
 बीज भाषण प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने दिया. 


संयोजक डॉ. रंजना पिल्लै ने उद्घाटन सत्र के दो फोटो भेजे हैं - यहाँ सहेजे जा रहे हैं. 
रिपोर्ट की प्रतीक्षा है.

रविवार, 23 सितंबर 2012

सोमवार, 17 सितंबर 2012

हिंदी हमारी संस्कृति का दर्पण है - डॉ. ऋषभ देव शर्मा





'भाषा एवं संवेदना' पर प्रो.ऋषभ देव शर्मा का व्याख्यान संपन्न


- भारी पानी संयंत्र, मणुगूरु में हिंदी दिवस समारोह -
मणुगूरु, 17 सितंबर 2012.

भारी पानी संयंत्र, मणुगूरु की राजभाषा कार्यान्वयन समिति के तत्वावधान में 14 सितंबर, 2012 को प्रशासन भवन के सभागार में हिंदी दिवस का आयोजन किया गया ।  इस अवसर पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद के उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ.ऋषभदेव शर्मा मुख्य अतिथि थे । आपने 'भाषा एवं संवेदना' विषय पर अत्यंत सारगर्भित व्याख्यान दिया । अपनी वार्ता के दौरान जहाँ आपने एक ओर वाल्मिकी की संवेदना से जागृत उनके हृदय परिवर्तन के संदर्भ में ऐतिहासिक घटनाओं से श्रोताओं को अभिभूत किया वहीं तुलसीकृत 'रामचरितमानस' से लेकर आधुनिक कवियों की कविताओं में मानव सहज संवेदना के उद्धरणों को सिलसिलेवार ऐसे ताने-बाने में प्रस्तुत किया कि बुद्धिजीवी वैज्ञानिक वर्ग भाषा के प्रवाह रूपी सागर में बह गए ।

हिंदी दिवस समारोह के प्रारंभ में संयंत्र के सहायक निदेशक (राजभाषा) श्री सैयद मासूम रज़ा ने अतिथि डॉ.ऋषभदेव शर्मा, डॉ.पूर्णिमा शर्मा, श्री सी.शेषसाई, मुख्य महाप्रबंधक, श्री एन.के.शाह, उप मुख्य महाप्रबंधक(यू), श्री वीकेएम पार्तिबन, उप महाप्रबंधक(पी), श्री वी.पी.नेमा, उप मुख्य महाप्रबंधक(ईएस), प्रशासनिक अधिकारी श्री एन.वेंकटेश्वर्लु सहित सभी आमंत्रित वरिष्ठ अधिकारियों, कर्मचारियों और हिंदी माह - 2012 के दौरान आयोजित 13 प्रतियोगिताओं के विजेताओं का स्वागत किया और पूरे वर्ष राजभाषा के कार्यान्वयन के संबंध में हुई प्रगति की संक्षिप्त रिपोर्ट प्रस्तुत की । 

प्रशासनिक अधिकारी ने अपने संबोधन में राजभाषा के कार्यान्वयन में प्रशासकीय प्रयासों की एक ओर जहाँ चर्चा की वहीं यह संकल्प लिया कि वर्ष 2012-13 के दौरान संयंत्र में अधिकाधिक टिप्पणियाँ हिंदी में लिखने की कोशिश की जाएगी ताकि राजभाषा विभाग एवं पऊवि द्वारा निर्धारित किए गए लक्ष्य को हासिल करने में कठिनाई न आने पाए ।






संयंत्र के मुख्य महाप्रबंधक एवं अध्यक्ष, राजभाषा कार्यान्वयन समिति श्री सी.शेषसाई ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में राजभाषा की उत्तरोत्तर प्रगति के लिए संयंत्र में किए जा रहे उपायों की चर्चा करते हुए बताया कि किस प्रकार वे स्वयं फाइलों में हिंदी में टिप्पणियाँ लिख रहे हैं और धारा 3(3) के उल्लंघन के नाममात्र के मामलों को भी गंभीरता से लेकर सुधारात्मक कार्रवाई पर विशेष ध्यान दे रहे हैं । आपने यह भी बताया कि धारा 3(3) से संबंधित अगर कोई फाइल/कागजात बिना हिंदी प्रति के प्रस्तुत हो भी जाता है तो वे उसे बिना हस्ताक्षर के द्विभाषी रूप में प्रस्तुत करें.... जैसी टिप्पणी लिखकर वापस भेज देते हैं । 
आपने उपस्थित वरिष्ठ अधिकारियों से कहा कि यद्यपि कार्य हो रहा है लेकिन लक्ष्य से आगे जाने के लिए और भी बहुत कुछ किया जाना है सभी मिलकर इस कार्य को करें ।  राजभाषा हिंदी देश को जोड़ने वाली भाषा है इसलिए इसका प्रयोग न केवल सरकारी फाइलों तक सीमित रहे बल्कि आचार-विचार एवं व्यवहार का एक हिस्सा बन जाना चाहिए ।  आपने यह भी कहा कि हमें आदर्श प्रस्तुत करना होगा तभी हमारे मातहत अधिकारी और कर्मचारी उनका अनुसरण करेंगे । केवल अनुदेश से काम नहीं बनेगा।


हिंदी दिवस के अवसर पर संयंत्र की गृह-पत्रिका गुरुजल गौतमी एवं दो पोस्टरों का भी लोकार्पण मुख्य महाप्रबंधक एवं अध्यक्ष, राजभाषा कार्यान्वयन समिति के करकमलों से हुआ ।

सभी प्रतियोगिताओं के प्रतिभागियों को मुख्य महाप्रबंधक एवं अध्यक्ष, राजभाषा कार्यान्वयन समिति ने पुरस्कार रा‍शि एवं प्रमाणपत्र वितरित किए । प्रतियोगिताओं के निर्णायकों को स्‍मृति-चिह्न प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ.ऋषभदेव शर्मा जी के कर कमलों से वितरित कराया गया । संयंत्र के वरि.हिंदी अनुवादक श्री सैयद इरफान अली के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हिंदी दिवस समारोह का समापन हुआ ।

प्रस्तुति : सैयद मासूम रज़ा, सहायक निदेशक (राजभाषा), भारी पानी संयंत्र, मणुगूरु

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद की स्मृति में श्रद्धांजलि-सभा संपन्न


हैदराबाद, 17 सितंबर 2012.
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सम्मलेन कक्ष में ‘विश्वंभरा’, ‘साहित्य मंथन’ और ‘हिंदी भारत’ के संयुक्त तत्वावधान में नगर के वरिष्ठ कलमकार चंद्रमौलेश्वर प्रसाद की स्मृति में श्रद्धांजलि-सभा आयोजित की गई. उल्लेखनीय है कि ‘कलम’ नामक ब्लॉग के लेखक, साहित्य समीक्षक, कवि और अनुवादक चंद्रमौलेश्वर प्रसाद का गत सप्ताह निधन हो जाने से हैदराबाद के हिंदी जगत में शोक की लहर व्याप्त है. उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए प्रो.एम.वेंकटेश्वर ने कहा कि चंद्रमौलेश्वर प्रसाद परम आत्मीय मित्र, स्नेही परिजन और मानवतावादी संत के समान थे जिनका सामाजिक और साहित्यिक योगदान चिरकालिक है. 

आंध्रप्रदेश मारवाड़ी युवा मंच के उपाध्यक्ष द्वारका प्रसाद मायछ ने प्रसाद जी की आत्मीयता और स्नेह को याद किया और अनेक प्रेरक प्रसंगों की चर्चा करते हुए उनके निधन को साहित्यिक परिवार की अपूरणीय क्षति बताया. 

कवि, समीक्षक और व्यंग्यकार लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने कहा कि चंद्रमौलेश्वर जी के लिए साहित्य की साधना एक गंभीर उद्देश्य थी तथा ईमानदारी और सहृदयता उनके जीवन और लेखन दोनों में झलकती थी.

आंध्रप्रदेश हिंदी अकादमी के शोध-अधिकारी प्रो.बी.सत्यनारायण ने उनकी साहित्य सेवा को अनुकरणीय बताया तो संपत देवी मुरारका ने उन्हें अपने ब्लॉग-गुरु के रूप में श्रद्धांजलि अर्पित की.

गुरुदयाल अग्रवाल ने अत्यंत भावाकुल होकर कहा कि एक मानवालंकार नहीं रहा, हम अधूरे हो गए. 

‘दस रंग’ के अध्यक्ष हास्य-व्यंग्य कवि अजित गुप्ता ने कहा कि कलम का खामोश सिपाही खामोश हो गया और झीनी सी चदरिया को ज्यों की त्यों धर कर चला गया. 

कवयित्री एलजाबेथ कुरियन मोना ने चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के कोमल स्वभाव और मधुर मुस्कान को याद किया तो डॉ.करन सिंह ऊटवाल ने उनकी निष्ठा और ईमानदारी की प्रशंसा की. राधाकृष्ण मिरियाला ने प्रसाद जी को हिंदी का एक प्रमुख ब्लॉगर बताया और कहा कि ब्लॉग जगत के सभी छोटे-बड़े लेखकों को उनकी धारदार और संतुलित टिप्पणी की प्रतीक्षा रहती थी. 

भारत डायनामिक्स लिमिटेड से जुड़े डॉ.बी.बालाजी ने याद दिलाया कि चंद्रमौलेश्वर जी विविध विषयों के विद्वान थे तथा जटिल विषयों पर बड़ी ही साफ़, सरल और बोधगम्य भाषा में लिखने में सिद्धहस्त थे. 

चवाकुल नरसिंह मूर्ति, भंवरलाल उपाध्याय और डॉ.देवेंद्र शर्मा ने दिवंगत लेखक के सरल स्वभाव और साफ़-सुथरे लेखन पर चर्चा की तो पवित्रा अग्रवाल, जी.संगीता, विनीता शर्मा और ज्योति नारायण ने उनकी सादगी, विद्वत्ता, मिलनसारिता और हाईकू लेखन के क्षेत्र में उनके योगदान का स्मरण किया. 

प्रसाद जी के स्नेहिल व्यक्तित्व को याद करते हुए वी.कृष्णा राव ने कहा कि वे जब भी मिलते थे भरपूर शुभकामनाएं और आशीर्वाद देते थे तथा उनके वक्तव्यों को सुनकर ऐसा लगता था कि वे सारे विषय को आत्मसात करके अत्यंत सहज और बोधगम्य बनाकर पेश करने में माहिर है. 

‘स्रवन्ति’ की सह-संपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा तथा उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के भाषा और साहित्य संबंधी कार्यक्रमों में चंद्रमौलेश्वर प्रसाद की सदा सन्नद्ध रहने की भूमिका पर चर्चा करते हुए कहा कि उनके रूप में हमने एक सच्चे शुभचिंतक और अभिभावक को खो दिया है. 

डॉ.बलविंदर कौर ने एक सुलझे हुए ब्लॉगर तथा सफल अनुवादक के रूप में प्रसाद जी के योगदान को अविस्मरणीय बताया और कहा कि वे सदा नए लोगों को आगे आने के लिए प्रोत्साहित करते थे और स्वयं परदे के पीछे रहकर सेवा और सहयोग करते थे. 

सीमा मिश्रा और अशोक तिवारी ने कहा कि प्रसाद जी का अवसान हिंदी जगत की अपूरणीय क्षति है क्योंकि वे एक संवेदनशील साहित्यकार थे और निरंतर सहकारिता और सहयोगपूर्ण साहित्यिक परिवेश के निर्माण के लिए कार्यरत थे. 

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, आंध्र के अपर सचिव गुत्तल, प्राध्यापक गोरखनाथ तिवारी, व्यवस्थापक ज्योत्स्ना कुमारी, ग्रंथपाल संतोष कांबले और कोसनम नागेश्वर राव ने भी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की. 

प्रो.टी.मोहन सिंह ने चंद्रमौलेश्वर प्रसाद को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि हमने एक अच्छे समीक्षक और एक अच्छे साहित्यकार को खो दिया है. यह क्षति अपूरणीय है. उनके परिवार के लोगों को भगवान इस दुःख में सहारा दे. 

श्रद्धांजलि सभा के दौरान लगातार फोन पर भी संवेदना सन्देश आते रहे. दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के कुलसचिव प्रो.दिलीप सिंह ने फोन पर कहा कि चंद्रमौलेश्वर जी एक अच्छे और सच्चे इंसान थे तथा उन्हें मनुष्यों के साथ-साथ साहित्य और भाषा की खरी पहचान थी. 

लन्दन से डॉ.कविता वाचक्नवी ने फोन पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के रूप में हमने एक अहेतुक स्नेही, परम आत्मीय, निस्स्वार्थ मित्र को खो दिया है. उन्होंने कहा कि प्रसाद जी जैसे निस्पृह मनुष्य विरले और दुर्लभ होते हैं. 

प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने भी प्रसाद जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में बताते हुए उनके साथ बिताए अंतरंग क्षणों को याद किया और कहा कि भाषा, साहित्य और संस्कृति के उन जैसे मौन साधक की कमी कभी पूरी नहीं हो सकती. 

इस अवसर पर सभी ने एक स्वर में स्वर्गीय चंद्रमौलेश्वर प्रसाद की रचनाओं के पुस्तक के रूप में प्रकाशन की आवश्यकता बताई और कहा कि उनके द्वारा अनूदित कहानियों, सिमोन द बुआ की कृति ‘द ओल्ड एज’ के सार-संक्षेप ‘वृद्धावस्था विमर्श’, मौलिक सृजन और ब्लॉग-लेखन को अलग अलग जिल्दों में प्रकाशित करने की जरूरत है क्योंकि यह सारी सामग्री शोध और अध्ययन के लिए स्थायी महत्त्व रखती है. 

दिवंगत आत्मा की चिरशांति के लिए मौन प्रार्थना और शान्तिपाठ के साथ श्रद्धांजलि सभा का विसर्जन हुआ.