हैदराबाद, 17 सितंबर 2012.
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सम्मलेन कक्ष में ‘विश्वंभरा’, ‘साहित्य मंथन’ और ‘हिंदी भारत’ के संयुक्त तत्वावधान में नगर के वरिष्ठ कलमकार चंद्रमौलेश्वर प्रसाद की स्मृति में श्रद्धांजलि-सभा आयोजित की गई. उल्लेखनीय है कि ‘कलम’ नामक ब्लॉग के लेखक, साहित्य समीक्षक, कवि और अनुवादक चंद्रमौलेश्वर प्रसाद का गत सप्ताह निधन हो जाने से हैदराबाद के हिंदी जगत में शोक की लहर व्याप्त है. उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए प्रो.एम.वेंकटेश्वर ने कहा कि चंद्रमौलेश्वर प्रसाद परम आत्मीय मित्र, स्नेही परिजन और मानवतावादी संत के समान थे जिनका सामाजिक और साहित्यिक योगदान चिरकालिक है.
आंध्रप्रदेश मारवाड़ी युवा मंच के उपाध्यक्ष द्वारका प्रसाद मायछ ने प्रसाद जी की आत्मीयता और स्नेह को याद किया और अनेक प्रेरक प्रसंगों की चर्चा करते हुए उनके निधन को साहित्यिक परिवार की अपूरणीय क्षति बताया.
कवि, समीक्षक और व्यंग्यकार लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने कहा कि चंद्रमौलेश्वर जी के लिए साहित्य की साधना एक गंभीर उद्देश्य थी तथा ईमानदारी और सहृदयता उनके जीवन और लेखन दोनों में झलकती थी.
आंध्रप्रदेश हिंदी अकादमी के शोध-अधिकारी प्रो.बी.सत्यनारायण ने उनकी साहित्य सेवा को अनुकरणीय बताया तो संपत देवी मुरारका ने उन्हें अपने ब्लॉग-गुरु के रूप में श्रद्धांजलि अर्पित की.
गुरुदयाल अग्रवाल ने अत्यंत भावाकुल होकर कहा कि एक मानवालंकार नहीं रहा, हम अधूरे हो गए.
‘दस रंग’ के अध्यक्ष हास्य-व्यंग्य कवि अजित गुप्ता ने कहा कि कलम का खामोश सिपाही खामोश हो गया और झीनी सी चदरिया को ज्यों की त्यों धर कर चला गया.
कवयित्री एलजाबेथ कुरियन मोना ने चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के कोमल स्वभाव और मधुर मुस्कान को याद किया तो डॉ.करन सिंह ऊटवाल ने उनकी निष्ठा और ईमानदारी की प्रशंसा की. राधाकृष्ण मिरियाला ने प्रसाद जी को हिंदी का एक प्रमुख ब्लॉगर बताया और कहा कि ब्लॉग जगत के सभी छोटे-बड़े लेखकों को उनकी धारदार और संतुलित टिप्पणी की प्रतीक्षा रहती थी.
भारत डायनामिक्स लिमिटेड से जुड़े डॉ.बी.बालाजी ने याद दिलाया कि चंद्रमौलेश्वर जी विविध विषयों के विद्वान थे तथा जटिल विषयों पर बड़ी ही साफ़, सरल और बोधगम्य भाषा में लिखने में सिद्धहस्त थे.
चवाकुल नरसिंह मूर्ति, भंवरलाल उपाध्याय और डॉ.देवेंद्र शर्मा ने दिवंगत लेखक के सरल स्वभाव और साफ़-सुथरे लेखन पर चर्चा की तो पवित्रा अग्रवाल, जी.संगीता, विनीता शर्मा और ज्योति नारायण ने उनकी सादगी, विद्वत्ता, मिलनसारिता और हाईकू लेखन के क्षेत्र में उनके योगदान का स्मरण किया.
प्रसाद जी के स्नेहिल व्यक्तित्व को याद करते हुए वी.कृष्णा राव ने कहा कि वे जब भी मिलते थे भरपूर शुभकामनाएं और आशीर्वाद देते थे तथा उनके वक्तव्यों को सुनकर ऐसा लगता था कि वे सारे विषय को आत्मसात करके अत्यंत सहज और बोधगम्य बनाकर पेश करने में माहिर है.
‘स्रवन्ति’ की सह-संपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा तथा उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के भाषा और साहित्य संबंधी कार्यक्रमों में चंद्रमौलेश्वर प्रसाद की सदा सन्नद्ध रहने की भूमिका पर चर्चा करते हुए कहा कि उनके रूप में हमने एक सच्चे शुभचिंतक और अभिभावक को खो दिया है.
डॉ.बलविंदर कौर ने एक सुलझे हुए ब्लॉगर तथा सफल अनुवादक के रूप में प्रसाद जी के योगदान को अविस्मरणीय बताया और कहा कि वे सदा नए लोगों को आगे आने के लिए प्रोत्साहित करते थे और स्वयं परदे के पीछे रहकर सेवा और सहयोग करते थे.
सीमा मिश्रा और अशोक तिवारी ने कहा कि प्रसाद जी का अवसान हिंदी जगत की अपूरणीय क्षति है क्योंकि वे एक संवेदनशील साहित्यकार थे और निरंतर सहकारिता और सहयोगपूर्ण साहित्यिक परिवेश के निर्माण के लिए कार्यरत थे.
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, आंध्र के अपर सचिव गुत्तल, प्राध्यापक गोरखनाथ तिवारी, व्यवस्थापक ज्योत्स्ना कुमारी, ग्रंथपाल संतोष कांबले और कोसनम नागेश्वर राव ने भी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की.
प्रो.टी.मोहन सिंह ने चंद्रमौलेश्वर प्रसाद को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि हमने एक अच्छे समीक्षक और एक अच्छे साहित्यकार को खो दिया है. यह क्षति अपूरणीय है. उनके परिवार के लोगों को भगवान इस दुःख में सहारा दे.
श्रद्धांजलि सभा के दौरान लगातार फोन पर भी संवेदना सन्देश आते रहे. दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के कुलसचिव प्रो.दिलीप सिंह ने फोन पर कहा कि चंद्रमौलेश्वर जी एक अच्छे और सच्चे इंसान थे तथा उन्हें मनुष्यों के साथ-साथ साहित्य और भाषा की खरी पहचान थी.
लन्दन से डॉ.कविता वाचक्नवी ने फोन पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के रूप में हमने एक अहेतुक स्नेही, परम आत्मीय, निस्स्वार्थ मित्र को खो दिया है. उन्होंने कहा कि प्रसाद जी जैसे निस्पृह मनुष्य विरले और दुर्लभ होते हैं.
प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने भी प्रसाद जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में बताते हुए उनके साथ बिताए अंतरंग क्षणों को याद किया और कहा कि भाषा, साहित्य और संस्कृति के उन जैसे मौन साधक की कमी कभी पूरी नहीं हो सकती.
इस अवसर पर सभी ने एक स्वर में स्वर्गीय चंद्रमौलेश्वर प्रसाद की रचनाओं के पुस्तक के रूप में प्रकाशन की आवश्यकता बताई और कहा कि उनके द्वारा अनूदित कहानियों, सिमोन द बुआ की कृति ‘द ओल्ड एज’ के सार-संक्षेप ‘वृद्धावस्था विमर्श’, मौलिक सृजन और ब्लॉग-लेखन को अलग अलग जिल्दों में प्रकाशित करने की जरूरत है क्योंकि यह सारी सामग्री शोध और अध्ययन के लिए स्थायी महत्त्व रखती है.
दिवंगत आत्मा की चिरशांति के लिए मौन प्रार्थना और शान्तिपाठ के साथ श्रद्धांजलि सभा का विसर्जन हुआ.