बुधवार, 22 जनवरी 2014

हैदराबाद साहित्य उत्सव - 24 से 26 जनवरी तक


विश्व हिंदी सचिवालय की प्रतियोगिता में कविता वाचक्नवी को प्रथम स्थान

भारतीय जीवन मूल्यों के प्रचार-प्रसार की संस्था ‘विश्वंभरा’ की संस्थापक-महासचिव एवं वरिष्ठ कवयित्री डॉ. कविता वाचक्नवी को मॉरीशस स्थित विश्व हिंदी सचिवालय द्वारा विश्व हिंदी दिवस – 2014 के उपलक्ष्य में आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिंदी कविता प्रतियोगिता में भौगोलिक क्षेत्र यूरोप के अंतर्गत प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है. ‘विश्वंभरा’ के संवीक्षक डॉ. ऋषभ देव शर्मा ने यह जानकारी दी है कि वर्तमान में लंदन (ब्रिटेन) में रहकर हिंदी में स्वतंत्र लेखन और भारतीय संस्कृति के लिए काम कर रहीं डॉ. कविता वाचक्नवी को यह पुरस्कार उनकी रचना ‘राष्ट्रीय दोहे’ पर दिया जा रहा है. विश्व हिंदी सचिवालय की घोषणा के अनुसार इस अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के अंतर्गत उन्हें 300 डॉलर की सम्मान राशि और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाएगा. 




मंगलवार, 21 जनवरी 2014

अमेरिकी शायर अशरफ गिल की उर्दू गज़लों का हिंदी अवतार लोकार्पित

'शब्द सुगंध' के तत्वावधान में आज यहाँ राजस्थानी स्नातक संघ के प्रेक्षागार में अमेरिका से पधारे पाकिस्तान मूल के वरिष्ठ साहित्यकार अशरफ़ गिल की उर्दू गज़लों के हिंदी रूपांतर का लोकार्पण प्रो. ऋषभ देव शर्मा के हाथों संपन्न हुआ. आरंभ में रऊफ़ खैर ने कवि का परिचय दिया तथा डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने लोकार्पित कृति की समीक्षा की. इस अवसर पर अशरफ़ गिल ने अपनी विशिष्ट गज़लों का सस्वर एवं संगीतबद्ध वाचन एवं गायन किया. पुस्तक के संपादक एवं अनुवादक एफ.एम. सलीम ने संचालन किया. 

लोकार्पण के अवसर पुस्तक के संबंध में दिया गया डॉ.गुर्रमकोंडा नीरजा का वक्तव्य अविकल रूप में यहाँ दिया जा रहा है. 

'सुलगती सोचों से ...' का द्रुतपाठ

आदरणीय अध्यक्ष महोदय, आज के मेहमान शायर आदरणीय श्री अशरफ गिल, परम स्नेही भाई श्री सलीम जी और सभी साहित्य प्रेमी, देवियो और सज्जनो 

आज की शाम सचमुच सुहानी शाम है क्योंकि आज हमारे बीच ग़ज़ल की दुनिया के अत्यंत प्रतिष्ठित विश्व प्रसिद्ध कवि अशरफ गिल (जन्म 1940, गुजराँवाला,) उपस्थित हैं. छोटा हिंदुस्तान समझे जाने वाले हैदराबाद शहर में आपका आना इस शहर की साहित्यिक बिरादरी के लिए अत्यंत हर्ष का विषय है. मैं अपनी ओर से तथा अपनी संस्था दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की ओर से आपका स्वागत और अभिनंदन करती हूँ. 

अभी पिछले हफ़्ते मुझे जनाब अशरफ गिल साहब की ग़ज़लों का हिंदी रूपांतर प्राप्त हुआ. इसका शीर्षक है ‘सुलगती सोचों से’ (2013). बेहद खूबसूरत और टिकाऊ गेटअप सेटअप वाली इस पुस्तक में गिल साहब की 105 ग़ज़लें शामिल हैं. इस संकलन को हिंदी में लाने का श्रेय जिन दो लोगों को है वे हैं श्री रऊफ खैर और श्री एफ. एम. सलीम. गज़लों का संकलन तरतीब और तर्जुमा एफ.एम. सलीम ने बड़ी मेहनत के साथ तैयार किया है. इसके लिए हिंदी और उर्दू दोनों ही हलकों के साहित्य प्रेमियों को उनके प्रति आभारी होना चाहिए. उर्दू साहित्य के हिंदी में रूपान्तरण और देवनागरी में लिप्यंतरण का काम मेरी नज़र में तो बड़े राष्ट्रीय महत्व का काम है. इससे दो भाषाओं के बीच की आपसी समझ तो बढ़ती ही है, दो भाषा समाजों – speech communities – के बीच आपसदारी भी बढ़ती है. इसलिए मैं भाई श्री एफ.एम. सलीम को उनके इस कार्य के लिए सच्चे हृदय से बधाई देती हूँ. 

‘सुलगती सोचों से’ के आरंभ में संक्षेप में इस पुस्तक की दो भूमिकाएँ दी गई हैं जिनसे यह पता चलता है कि – 
  • वयोवृद्ध कवि अशरफ गिल ऊर्जा और जिंदादिली से भरपूर शायर हैं. 
  • उन्हें कविता के साथ साथ संगीत और गायकी पर भी अधिकार प्राप्त है. 
  • उनकी ग़ज़लों में कई भाषाओं की मिठास समाई हुई है. 
  • वे मुख्यतः रोमान के कवि हैं 
  • लेकिन उनकी सामाजिक चेतना भी अत्यंत स्पष्ट है. 
  • वे परंपरा का निर्वाह करने के साथ साथ अपनी ग़ज़लों में नए प्रयोग भी करते रहते हैं. 
  • उनकी शायरी की विषयवस्तु प्रेम, विश्वबंधुत्व, सामाजिक यथार्थ, राजनैतिक पाखंड से लेकर आध्यात्मिक संकेतों तक व्याप्त है. 

मैं यहाँ बताना जरूरी समझती हूँ कि मैं उच्च उर्दू (High Urdu) से लगभग अपरिचित हूँ. बातचीत में या साधारण हिंदी में जितनी उर्दू (या हिंदुस्तानी) समायी हुई है, बस उतनी तक की मेरी पहुँच है. इसलिए मैं अपनी बात ‘सुलगती सोचों से’ शीर्षक ग़ज़ल संग्रह के उतने हिस्से तक ही सीमित रखूँगी जितना आम भाषा में मेरी समझ में आता है.

हम शैलीविज्ञान यानि stylistics में आमतौर पर किसी लेखक की रचनाओं में बार बार आने वाले विषयों और शब्दों की बारंबारता (frequency) खोजा करते हैं. इस दृष्टि से अशरफ गिल की ग़ज़लों में इश्क, मुहब्बत, आंसूं, अश्क, याद, आइना, गलतफहमी, दोस्ती, दुश्मनी, हादसा और माँ जैसे अनेक बीज शब्द (key words) प्राप्त होते हैं जिन्हें उन्होंने बार बार दुहराया है, frequently repeat किया है. 

कवि की श्रेष्ठता का आधर यह है कि वे इन शब्दों को जितनी बार प्रयोग करते हैं हर बार उन्हें नए अंदाज के साथ नई ध्वनि और नए अर्थ में प्रयोग करते हैं. 

समय सीमित है इसलिए व्याख्या और विस्तार की गुंजाइश नहीं है. बस कुछ नमूने देखते चलें – 

आइना कई तरह इन ग़ज़लों में प्रकट हुआ है. जैसे – 

  • एक जगह शायर ने कहा है कि ‘कभी हाथों में नादानों के आइने नहीं देते’ क्योंकि ज़रा सी असावधानी होते ही उनके टूटने का ख़तरा रहता है. 
  • अन्यत्र वे अपने प्रिय को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हम तुम्हारे अत्यंत समीप रहते हुए भी उन आइनों की तरह हैं जो तुम्हारे दर्शन को तरसते हैं. ‘अगरचे पास तेरे, इर्द गिर्द बसते हैं/ हम आइने हैं, तेरी दीद को तरसते हैं’ 
  • कहना न होगा कि पहले कथन में जहाँ दृष्टांत और सूक्ति का सौंदर्य है वहीं इस दूसरे कथन में विरोधाभास का कमाल है. बात यहीं नहीं थमती कभी ऐसा भी होता है कि प्रिय को अपना स्वरूप निहारने के लिए प्रेमी की आँखों से उजला आइना कहीं और नहीं मिलता – ‘अपनी सूरत वह देखने के लिए/ मेरी आँखों का आइना माँगे.’
  • कभी जब कवि को दार्शनिक लहजे में बात करनी होती है तब भी दिल के आइने में झाँकने का निर्देश देते हैं. यह आइना बड़ा ईमानदार है. झूठ नहीं बोलता. आपको भी अपना चेहरा दिखा देगा. दूसरों से गिला करने से पहले बस एक बार इस आइने में झाँकिए तो सही – ‘अपने अंदर ही तुम्हारे, आइना मौजूद है.’ 
ये चारों उदाहरण यह बताने के लिए काफी है कि अशरफ गिल शब्दों को दुहराते हैं पर उनके संकेतार्थ (signified meaning) हर बार नए होते हैं. इसे हम यूँ भी कह सकते हैं कि वे अपने कथन को ताज़गी से भरने की कलाकारी जानने वाले जादूगर हैं. 

विस्तार से फिर कभी बात होगी. आज बस इतना ही. धन्यवाद. 
- गुर्रमकोंडा नीरजा 

कादंबिनी क्लब की नववर्ष गोष्ठी


मंगलवार, 14 जनवरी 2014

चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन : सत्रवार रिपोर्ट

तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी - चेन्नई के 
द्वितीय अंतरराष्ट्रीय विश्वभाषा सम्मलेन
 - 10/11/12 जनवरी 2014 -  
की 
सत्रवार रिपोर्टिंग पढ़ने के लिए कृपया 
निम्नलिखित संपर्क-सूत्रों को देखें - 











सोमवार, 13 जनवरी 2014

चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन : समापन समारोह

प्रमाण पत्र स्वीकार करते हुए डॉ. ऋषभ देव शर्मा. (डॉ. मधु धवन से डॉ. दिलीप सिंह तक सभी प्रमुदित हैं!)

12 जनवरी 2014 को तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी-चेन्नई, केंद्रीय हिंदी निदेशालय - नई दिल्ली, केंद्रीय हिंदी संस्थान-आगरा, स्टेल्ला मॉरिस (स्वायत्तशासी) कॉलेज-चेन्नई, तमिलनाडु बहुभाषी लेखिका धर्मार्थ संघ- चेन्नई के तत्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीयअंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन का समापन समारोह संपन्न हुआ. समापन समारोह की अध्यक्षता प्रो. दिलीप सिंह ने की. 

इस अवसर पर डॉ. हबीबुल्लो रजाबोव, ईश्वर करुण, डॉ. मधु धवन आदि मंच पर उपस्थित थे. सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों, छात्रों, शोधार्थियों, साहित्यकारों, हिंदी सेवियों और विद्वानों को संस्था की ओर से समानित किया  गया.

(सम्मेलन/ समारोह के चित्र अभी प्रतीक्षित हैं. इस बीच डॉ. राजकुमार नायक (चेन्नई) के सौजन्य से जो चित्र प्राप्त हुए हैं उन्हें यहाँ लगा रही हूँ.)
                                                                                                                                                              - जी. नीरजा 


 अंडमान - निकोबार से पधारीं  डॉ. एन. लक्ष्मी : प्रमाण पत्र स्वीकार करते हुए

हैदराबाद के पी. आर. घनाते, चेन्नई के डॉ. राजकुमार नायक और
 गोरखपुर के डॉ. चितरंजन मिश्र के साथ डॉ. ऋषभ देव शर्मा 
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा को अंगवस्त्र से सम्मानित करते हुए डॉ. हबीबुल्लो रजाबोव (ताजिकिस्तान)
डॉ. हबीबुल्लो रजाबोव से प्रमाण पत्र और "साहित्य सेवी सम्मान" स्वीकार करते हुए डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा.

डॉ. हबीबुल्लो रजाबोव से प्रमाण पत्र और "साहित्य सेवी सम्मान" स्वीकार करते हुए डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा.
साथ में डॉ. मधु धवन, श्री ईश्वर करुण.
बैठे हुए - प्रो. दिलीप सिंह और छत्तीसगढ़ी फिल्म अभिनेता अनुज शर्मा 


आपकी तो सदा जरूरत है आदरणीया !
(डॉ. मधु धवन को डॉ. ऋषभ देव शर्मा का आश्वासन)
                     
                     

चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन : विचार सत्र 5

'भूमंडलीकरण एवं नई प्रौद्योगिकी व भाषाएँ' विषयक विचार सत्र की अध्यक्षता प्रमुख समाजभाषावैज्ञानिक प्रो. दिलीप सिंह ने की. डॉ. चंद्रमोहन, डॉ. व्यास नारायण मिश्र, डॉ. दोड्डा शेषुबाबू, डॉ. शेषन,  डॉ. श्रीराम परिहार, डॉ. राजवीर आदि मंचासीन थे. इस सत्र में 38 शोधपत्र प्रस्तुत किए गए.

प्रो. दिलीप सिंह ने अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी में कहा कि हिंदी अतिवाद से हमें बचना चाहिए. सावधानी और सूक्ष्म आकलन की जरूरत तो है ही. हमारी भाषाएँ भूमंडलीकरण और प्रौद्योगिकी के कारण कहाँ पहुँची हैं इसको देखना होगा. छापाखाने, रेडियो, टेलीविजन आदि के माध्यम से भाषा में परिवर्तन हुआ  तो भी शुद्धतावादियों को कष्ट हुआ था और अब प्रौद्योगिकी के प्रभाव से आ रहे परिवर्तनों से भी उन्हें शिकायत है जो अनुचित है.. भाषा परिवर्तन ही भाषा विकास का प्रमाण है. बदलाव सांकेतिक और तर्कपूर्ण है. इसे सूक्ष्म दृष्टि से देखना होगा. जब हमने प्रौद्योगिकी के साथ भाषा को जोड़ा, कम्प्युटर से साथ भाषा को जोड़ा तो दो शाखाएँ सामने आईं - भाषा इंजीनीयरी तथा भाषा सिद्धांत परीक्षण. भाषा इंजीनीयरी natural language processing को भी समेटे हुए है  जिसकी शुरूआत 1975 में हुई. इसमें भाषा के व्यावहारिक प्रयोग तथा अनुवाद की बात की जाती है. भाषा सिद्धांत परीक्षण में मशीनी भाषा के विकास पर बल दिया जाता है.  

प्रो.दिलीप सिंह ने आगे कहा कि अब हम बिना क्रिया की भाषा भी  लिखते हैं. पहले Telegraphic English सामने आई. अब हम sms लिखने के लिए बिना क्रिया की भाषा का प्रयोग कर रहे हैं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यदि प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना है तो हमें व्याकरणिक भाषा प्रयोग का मोह छोड़ना होगा. संप्रेषण टेक्नोलॉजी की मदद से तकनीकी भाषा  बनानी होगी. हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं को मशीनों के योग्य भाषाएँ बनानी होंगी. भाषा के मामले में हम बहुत ही conservative हैं. इसके नए स्वरुप के प्रयोग के साथ हमें familiar बनना होगा, दोस्ताना रिश्ता बनाना होगा. बाजार में हमें अपनी भाषाओं को सँवारना है. चाहे विज्ञापन हो या बाजार समाचार हो - इन्होने हमारे सामने एक थिरकती  हुई भाषा को पेश किया है.

                                                                                                                                         -जी. नीरजा  

चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन : विचार सत्र 4

12 जनवरी 2014.

'विदेशों में हिंदी का स्वरूप' विषय पर केंद्रित इस विचार सत्र की अध्यक्षता डॉ. हबीबुल्लो रजाबोव (तजकिस्तान) ने की. प्रो. ऋषभ देव शर्मा, कृष्ण कुमार ग्रोवर, डॉ. साई प्रसाद, डॉ. प्रणातार्तिहरण, डॉ. अनिरुद्ध सेंगर, डॉ. नरेंद्र मिश्र, डॉ. मुकेश  मिश्र, डॉ. व्यास नारायण दुबे, डॉ. वत्सला किरण और डॉ. जगन्नाथ रेड्डी मंचासीन थे. इस सत्र में कुल 14 शोधपत्र प्रस्तुत किए गए. 

प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि जो भारतवंशी अंग्रेजों के समय भारत से मारीशस- सूरीनाम आदि स्थानों में  गए , वे अपने साथ अपनी भाषा तथा अपनी बोली को भी  लेकर गए और वहाँ की भाषा से भी प्रभावित हुए. परिणामस्वरूप  वहाँ नए भाषा रूपों अथवा कोड़ों का विकास हुआ. मारीशस में फ्रेंच के दबाव के कारण पिजिन विकसित हुई. बाद में वह मातृबोली के रूप में प्रतिष्ठित होकर क्रियोल बन गई. कोड मिक्सिंग की प्रवृत्ति उनकी व्यावहारिक भाषा में परिलक्षित है तथा एक सीमा तक साहित्य में भी. परन्तु व्यापक रूप में वहां के लेखन में भी मानक हिंदी ही प्रयुक्त दिख रही है क्योंकि उसकी रचना भारत के पाठक को ध्यान में रखकर की जा रही है.उन्होंने आगे कहा कि हिंदीतर देश में एक भिन्न प्रकार की हिंदी प्राप्त होनी चाहिए लेकिन ऐसा बहुत कम देखने में आया है. सूरीनाम आदि में भोजपुरी के पुराने रूप के संरक्षण की प्रवृत्ति पर भी डॉ. ऋषभ ने सोदाहरण प्रकाश डाला.     

दूसरा वर्ग वह है जिसने आजादी के पश्चात विदेश जाकर कॉर्पोरेट जगत में अपने आपको स्थापित कर लिया है. वे अब अपनी तीसरी पीढी को भारतीय संस्कृति से जोड़ने की खातिर अपनी भाषा को कायम रखना चाहते हैं. इस वर्ग के लेखकों की हिंदी  में अधिक तत्समता दिखाई देती है. उन्होंने आगे कहा कि विदेशों में हिंदी के स्वरूप पर बहुत गंभीर और सूक्ष्म अध्ययन की जरूरत है.  तीसरे वर्ग में डॉ. ऋषभ देव शर्मा ने कई देशों में  उर्दू शैली के रूप में हिंदी के व्यवहार की भी चर्चा की.  

अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ. हबीबुल्लो रजबोव  ने कहा कि हिंदी सबकी सहोदरा भाषा है. उन्होंने आगे कहा कि एक भाषा महात्मा गांधी की भाषा है, एक जवाहरलाल नेहरू की भाषा है और एक प्रेमचंद की भाषा है. उन्होंने यह सूचना दी कि तजाकिस्तान के तीन विश्वविद्यालयों में हिंदी सिखाई  जा रही  है और वहाँ के लोग हिंदी भाषा से बहुत प्यार करते हैं
   
-जी. नीरजा 

रविवार, 12 जनवरी 2014

चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन : विचार सत्र 3

आज के चौथे सत्र का विषय रहा 'आज के संदर्भ में नारी के प्रति पुरुषों की मानसिकता'. इस सत्र के अध्यक्ष थे डॉ. गंगा प्रसाद विमल. डॉ. शौरीराजन, डॉ. बालकृष्ण शर्मा रोहिताश्व, डॉ. ललिताम्बा, डॉ. एन. लक्ष्मी, डॉ. साई प्रसाद, संतोष परिहार, सुशीला सिंह और संपत देवी मुरारका मंचासीन थे. इस सत्र में कुल 19 शोधपत्र प्रस्तुत किए गए. 

अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी में डॉ. गंगा प्रसाद विमल ने कहा कि यह बहुरंगी विमर्श है. पुरुष की स्त्री- दृष्टि को देखने के लिए साहित्यिक प्रमाणों के आधार पर ठोस निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं, परंतु ऐसे प्रयास बहुत कम मिलते हैं. उन्होंने यह कहा कि स्त्री-पुरुष के बिना युग्म सृष्टि का निर्माण नहीं हो सकता है. इस समूची सृष्टि में हम लोग कैद हैं. हम समझ नहीं पा रहे हैं कि स्त्री-पुरुष क्या है. स्त्री-पुरुष का असंतुलन विनाश पैदा करता है. विकृत मानसिकता के कारण ही इस समाज में बलात्कार जैसे  जघन्य अपराध हो रहे हैं. 

उन्होंने आगे कहा कि इस समाज में पितृसत्तात्मक और मातृसत्तात्मक पक्ष हैं. मातृसत्तात्मक समाज में बलात्कार नहीं होते. वहाँ वरण की स्वतंत्रता है. स्त्री-पुरुष के झगड़े स्वतंत्रता को लेकर है. स्वतंत्रता के हनन के कारण ही लड़ाई हो रही है. आजादी के बाद के हिन्दुस्तान की तस्वीर में पिछडा हुआ कानून है. आज भी उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में कन्या भ्रूण हत्या की संख्या ज्यादा है. स्त्रियों का सामूहिक रूप में इसके विरोध न उठ खड़े होना भी इसका बड़ा कारन है. पुरुष वर्चस्व से दबी स्त्रियाँ पंचायतों में उपस्थित होकर भी स्त्री विरोधी फैसलों का प्रतिरोध नहीं कर पातीं. पश्चिम में यह स्थिति नहीं है. 

प्रो. गंगा प्रसाद विमल ने आगे कहा कि आज के स्त्री लेखन को यदि देखें तो पता चलता है कि स्त्री को देह बनाने में पुरुष के जाल का विस्तार किया जा रहा है. स्त्री को देह बनाने का धंधा कॉरपोरेट जगत का है. कॉर्पोरेट जगत, फिल्मी दुनिया, मेडिकल फील्ड, व्यवसाय आदि क्षेत्रों में स्त्रियों के प्रति भयंकर वीभत्स मनोवृत्ति विद्यमान है. स्त्रियों को उनके अधिकार का लाभांश बहुत कम मिल रहा है. इस तरह के धंधे में जो शामिल हैं उन्हें सजा मिलनी चाहिए. 

उन्होंने यह भी कहा कि स्त्री-पुरुष में मोह/ संवेदना का संबंध यदि न हो तो समाज का विकास नहीं हो सकता है. अतः इन्हें अलग करके देखना नहीं चाहिए. प्रेम और संवेदना नष्ट हो जाएगी तो स्त्री देह भर रह जाएगी. अपराध बढ़ जाएगा. सृजनात्मक दृष्टि के लिए स्त्री और पुरुष के बीच संतुलन की आवश्यकता है. यह संतुलन युग्म सृष्टि के लिए अनिवार्य है. 
- जी. नीरजा    

शनिवार, 11 जनवरी 2014

चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन : विचार सत्र 2

भोजन अवकाश के उपरांत.

तीसरा सत्र 'कामकाजी माताओं के बच्चों की समस्याओं' पर केंद्रित रहा. इस सत्र की अध्यक्षता जापान से पधारी डॉ. तोमोको किकुची ने की. डॉ. उषा महाजन, डॉ. केवल कृष्ण पाठक, डॉ. शशिप्रभा वाजपेयी, डॉ. सरदार मुजावर, डॉ. अनिता नायर तथा  डॉ. सुंदरम मंचासीन थे. इस सत्र में कुल 20 शोधपत्रों का वाचन हुआ. 

उषा महाजन ने कहा कि कामकाजी स्त्रियों को Flexible Time देना चाहिए ताकि वे बच्चों की अच्छी परवरिश कर सके, अच्छी Guidance दे सकें. माता-पिता के बीच यदि संबंध अच्छे हो तो घर-परिवार का वातावरण भी अच्छा होगा और बच्चे भी स्वस्थ परिवेश में पलेंगे-बढ़ेंगे. स्त्री-पुरुष को एक-दूसरे के Competitor बनकर नहीं बल्कि सहयोगी बनकर रहना होगा. 

इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए  तोमोको किकुची ने कहा कि जापान और भारत में बहुत समानताएँ हैं विशेष रूप से कामकाजी माताओं के बच्चों की समस्याओं के संदर्भ में. उन्होंने एक सर्वे के हवाले से यह कहा कि जापान की आधी जनसंख्या (5 करोड)  महिलाएँ हैं - कामकाजी महिलाएँ. उन्होंने कहा कि एक सार्वजनिक व्यवस्था होनी चाहिए ताकि बच्चों को माँ का भरपूर प्यार मिले.
- जी. नीरजा 

चेन्नई में अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन : पुस्तक लोकार्पण

आज चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन का दूसरा दिन है. सुबह 10.30  बजे पहला सत्र शुरू हुआ. यह सत्र प्रमुख रूप से पुस्तक लोकार्पण के लिए समर्पित था. इस सत्र में कविता, कहानी, निबंध, आलोचना, नाटक आदि  विधाओं की पुस्तकों का लोकार्पण हुआ.  तजाकिस्तान से पधारे डॉ. हबीबुल्लो रजाबोव, जापान से पधारी डॉ. तोमोको किकुची, डॉ. केवल कृष्ण पाठक, डॉ. चंद्रमोहन, डॉ. ललिताम्बा, डॉ. राजवीर, डॉ. पी. के.बी., डॉ. कन्हैया त्रिपाठी तथा डॉ. तनूजा मजूमदार मंचासीन थे.

मंचासीन अतिथियों ने हिंदी साहित्य के बहुआयामी कोण (प्रो. निर्मला एस. मौर्य), हिंदी के ऐतिहासिक उपन्यासों में समकालीन सरोकार (डॉ. पी. नज़ीम बेगम), रामकुमार वर्मा का नाट्य रंग एवं प्रयोग (डॉ. बी. संतोषी कुमारी), ललित निबंध संग्रह (श्रीराम परिहार), शब्द आबद्ध (डॉ. वर्षा पुणवटकर), दलित कविता का यथार्थवादी परिदृश्य (डॉ. दोड्डा शेषुबाबू), हेमंत में पवन (डॉ. वत्सला किरण) तथा पनघट पनघट प्यास (डॉ. श्याम मनोहर सिल्होठिया) आदि पुस्काओं का लोकार्पण किया.  रविता भाटिया के कविता संग्रह का लोकार्पण सायंकालीन सत्र में डॉ. गंगा प्रसाद विमल ने किया. ईश्वर करुण की पुस्तक छुप नहीं है ईश्वर को पहले दिन उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि ने लोकार्पित किया ही था. 

चेन्नई में अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन : विचार सत्र 1

'आज की प्रगतिशील नारी का पुरुषों के प्रति नजरिया' विषय पर केंद्रित विचार सत्र की अध्यक्षता डॉ. चितरंजन मिश्र ने की. डॉ. एन. लक्ष्मी अय्यर, डॉ. ललिताम्बा,  उषा जायसवाल,  शौरिराजन, डॉ. पद्मप्रिया, डॉ. संदीप पाठक के साथ साथ मैं भी मंचासीन थी. इस सत्र में कुल 30 प्रपत्रों का वाचन हुआ. सबने तैयारी के साथ अपने अपने विचार प्रकट किए.

अध्यक्षीय भाषण में डॉ. चितरंजन मिश्र ने कहा कि साहित्य की दुनिया मूल्य निर्माण की दुनिया है. साहित्यकार अपनी भाषा और अभिव्यक्ति के माध्यम से मनुष्य के दिमाग को ऐसा बदलते हैं जिससे कि वह मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध हो. मनुष्य और समाज को अलग करके देखना संभव नहीं है. समाज संस्कारों से संचालित होता है. आज के परिप्रेक्ष्य में संस्कारवान होना आवश्यक है. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि मानसिकता में बदलाव आना जरूरी है.
- जी. नीरजा 

शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन : सांस्कृतिक संध्या संपन्न

तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी के त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन के पहले दिन की संध्या संस्कृति और कविता के नाम रही. वैष्णव कॉलेज की छात्राओं ने मनमोहक भरतनाट्यम प्रस्तुत किया. पारंपरिक नृत्य रचनाओं के अतिरिक्त महादेवी वर्मा के गीत 'प्रिय मैं एक पहेली हूँ' की भावपूर्ण प्रस्तुति ने प्रेक्षकों को सम्मोहित कर दिया है. 

इसके बाद कवी सम्मलेन शुरू हुआ. इतने सारे कवि, कवयित्री! एक से एक बड़े भी और एक से एक नए भी. संचलन ईश्वर करूँ जी ने किया और मंच पर आसीन हुए अध्यक्ष के रूप में प्रो. ऋषभ देव शर्मा के साथ ताजकिस्तान के प्रो. हबिबुल्लो राजबोव, डॉ. परिणिता घोष, संपत देवी मुरारका, डॉ. अजाज़ हुसैन आदि. डॉ. सुधा त्रिवेदी, आचार्य भागवत दुबे, डॉ. गायत्री शरण मिश्र मराल, ईशवर चन्द्र झा करुण, वर्षा बरखा, सरदार मुजावर, डॉ. गार्गी और डॉ. ऋषभ देव शर्मा की रचनाओं ने विशेष प्रशंसा बटोरी. 

चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन : उद्घाटन भाषण


आज 10 जनवरी 2014 - विश्व हिंदी दिवस को सायंकाल चेन्नई में त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन का उद्घाटन सत्र संपन्न हुआ.

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पधारे पुदुचेरी के महामहिम लेफ्टिनेंट गवर्नर, श्री वीरेंद्र कटारिया ने कहा कि साहित्य, संस्कृति और सभ्यता हमारी विरासत है. साहित्य और जीवन का संबंध शास्वत है. आज ऐसा वक्त आ गया है कि कर्मठता और दायित्वबोध के स्थान पर पुरस्कार और राजनीति का बोलबाला है. जनसेवकों में कर्तव्यबोध होना चाहिए.

उन्होंने आगे कहा कि स्वतंत्रता संघर्ष के समय की चेतना को पुनः जगाना होगा. और यह काम कलाकारों , साहित्यकारों और भाषा प्रेमियों से ही संभव होगा. हिंदी का प्रचार प्रसार आवश्यक है क्योंकि यह देश बहुभाषिक है. देश भक्ति का जज्बा पैदा करने के लिए हिंदी का प्रचार प्रसार जरूरी है.

महामहिम ने जोर देकर कहा - Don't Criticize anybody or any political system. Human values are totally degenerated today. Authors and Artists are opinion builder's. By your Literature, Songs, Culture, Language you can influence the feeling of the young generation. We should not surrender. We shall rise up.

चेन्नई में अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन आज से

चेन्नई, 10 जनवरी 2014

आज से यहाँ त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक सम्मलेन आरंभ हो रहा है. तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी के भावभरे आमंत्रण पर देश विदेश के प्रतिनिधि यहाँ आ रहे हैं. मैं भी आज सुबह हैदराबाद से यहाँ पहुँची हूँ. सवेरे 6.30 बजे होटल विजय पार्क पहुँची तो देखा कि आगंतुकों का तांता लगा हुआ है. आगंतुकों को रिसीव करने और ठहराने की बहुत सुंदर व्यवस्था ने यात्रा की थकान मिटा दी. धन्यवाद डॉ. मधु धवन जी. 

नाश्ता भरपेट किया और फिर जी भर सोई. अभी लंच के लिए जाना है. 3.00 बजे से उद्घाटन सत्र है. 

उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि पुदुच्चेरी के महामहिम लेफ्टिनेंट गवर्नर श्री वीरेंद्र कटारिया होंगे. विशिष्ट अतिथियों में डॉ. हबीबुलो रजबोव (तजिक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, तजाकिस्तान), डॉ. केशरीलाल वर्मा (निदेशक, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली), डॉ. विभूति नारायण राय (कुलपति, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा), प्रो. मोहनजी (निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा) और श्री प्यारेलाल पीतलिया (पूर्व सदस्य, तमिलनाडु अल्पसंख्यक आयोग) शामिल हैं.

विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता डॉ. त्रिभुवननाथ शुक्ल, डॉ. चितरंजन मिश्र, डॉ. तोमुकोकी किकुची, डॉ. गंगा प्रसाद विमल, डॉ. हबिबुलो रजबोव् और डॉ. दिलीप सिंह एवं डॉ. रत्नाकर पांडेय करने वाले हैं.

अकादमी का सहयोग स्टेल्ला मेरिस कॉलेज, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान और तमिलनाडु बहुभाषी लेखिका धर्मार्थ संघ भी कर रहे हैं. 

- डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा 
10. 1. 2014; 1.25 PM  

बुधवार, 8 जनवरी 2014

ऋषभ देव शर्मा कृत ‘तेलुगु साहित्य का हिंदी पाठ’ लोकार्पित

हैदराबाद, 8 जनवरी 2014 (मीडिया विज्ञप्ति).

‘भारतीय भाषाओं में तेलुगु भाषा का भाषिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष महत्व है तथा तेलुगु साहित्य का हिंदी में बड़ी मात्रा में अनुवाद भी हो चुका है जो तेलुगु संस्कृति को निकट से जानने-समझने के लिए बहुत सहायक है.’ ये विचार अंग्रेज़ी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य डॉ. एम. वेंकटेश्वर ने यहाँ श्री त्यागराय गान सभा के प्रेक्षागृह में बिंदु आर्ट्स के तत्वावधान में संपन्न साहित्यिक समारोह में प्रो. ऋषभ देव शर्मा की समीक्षा पुस्तक ‘तेलुगु साहित्य का हिंदी पाठ’ का लोकार्पण करते हुए प्रकट किए. मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए उन्होंने आगे कहा कि इस पुस्तक में तेलुगु साहित्य का विवेचन हिंदी में अनूदित पाठ के आधार पर किया गया है जो तेलुगु के प्रति लेखक की सहज संवेदना का प्रतीक है.

लोकार्पित पुस्तक की पहली प्रति को स्वीकार करते हुए केंद्रीय साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत प्रमुख तेलुगु साहित्यकार प्रो. एन. गोपि ने कहा कि अन्नमाचार्य से लेकर आज तक के तेलुगु साहित्यकारों के रचनाकर्म पर हिंदी में प्रस्तुत यह समीक्षा कृति वास्तव में हिंदी और तेलुगु के मध्य एक नए स्नेह संबंध की शुरूआत है. उन्होंने आगे कहा कि इस पुस्तक को स्वीकार करते हुए मुझे अत्यंत हर्ष है क्योंकि इससे हिंदी समाज का तेलुगु समाज के प्रति प्रेम प्रकट हो रहा है.

‘स्रवंति’ पत्रिका की सह-संपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने लोकार्पित पुस्तक की समीक्षा करते हुए बताया कि इस पुस्तक में 36 निबंध और 1 विस्तृत शोधपत्र शामिल हैं जिनसे यह पता चलता है कि तेलुगु साहित्य ने अनुवाद के माध्यम से हिंदी के भाषा समाज को सामाजिक, सासंकृतिक, भाषिक और साहित्यिक स्तर पर निश्चित तौर पर समृद्ध किया है तथा भारत की सामासिक संस्कृति के विकास में उल्लेखनीय योगदान किया है. 

विश्व रिकार्डधारी डॉ. कलावेंकट दीक्षितुलु ने बतौर आत्मीय अतिथि ‘तेलुगु साहित्य का हिंदी पाठ’ के प्रकाशन को हिंदी-तेलुगु साहित्य की महत्वपूर्ण साझा घटना बताया और कहा कि इसके लिए तेलुगु साहित्य जगत कृतज्ञ रहेगा.

समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रमुख तेलुगु साहित्यकार डॉ. सी. भवानी देवी ने लेखक ऋषभ देव शर्मा के कृतित्व की चर्चा करते हुए कहा कि उनकी यह पुस्तक हिंदी और तेलुगु दोनों भाषाओं के पाठकों के लिए तो उपयोगी है ही अनुवाद, भारतीय साहित्य और तुलनात्मक अध्ययन के शोधार्थियों और अध्येताओं के लिए भी समान रूप से लाभकारी है.

इस अवसर पर श्री साहिती प्रकाशन की ओर से वी. कृष्णा राव तथा बिंदु आर्ट्स की ओर से डॉ. सी. एस. आर. मूर्ति सहित तेलुगु और हिंदी की विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों, साहित्यकारों और शोधार्थियों ने विमोचित पुस्तक के लेखक ऋषभ देव शर्मा का सारस्वत सम्मान भी किया.

समन्वयक डॉ. एस. रघु ने सभी अतिथियों और आगंतुकों का आभार व्यक्त किया.

रविवार, 5 जनवरी 2014

‘संकल्य’ व्याख्यानमाला संपन्न : ‘हिंदी के विकास में भारतीय भाषाओं का योगदान’


हैदराबाद, 4 जनवरी 2014 (मीडिया विज्ञप्ति).

आज यहाँ हिंदी अकादमी, हैदराबाद द्वारा संचालित ‘संकल्य’ विचार मंच के तत्वावधान में ‘संकल्य’ व्याख्यानमाला का आयोजन दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सभागार में संपन्न हुआ. शांतिनिकेतन से पधारे मुख्य वक्ता डॉ. रामचंद्र रॉय ने ‘हिंदी के विकास में भारतीय भाषाओं का योगदान’ विषय पर संबोधित करते हुए कहा कि समस्त भारतीय भाषाएँ परस्पर घुली-मिली हैं परंतु हिंदी वालों की कट्टरवादी मानसिकता इसमें व्यवधान उत्पन्न करती है. उन्होंने बलपूर्वक हिंदी के ऐसे स्वरूप को विकसित करने की जरूरत बताई जो कबीर की संधा भाषा के समान हो, उर्दू से लेकर तमिल और बंगला तक तमाम भारतीय भाषाओं की शब्दावली को आत्मसात कर सके तथा भले ही व्याकरण सम्मत न हो परंतु संप्रेषण में समर्थ हो.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के आचार्य डॉ. ऋषभ देव शर्मा ने कहा कि बहुभाषिकता भारत का सहज भाषिक यथार्थ है. इसीलिए हिंदी और अन्य भाषाओं के बीच सतत लेन-देन चलता रहता है जिसके परिणामस्वरूप हिंदी में अनेक भारतीय भाषाओं के शब्दों का तो समावेश हुआ ही है अन्य भारतीय भाषाओं के अनुवादों और मौलिक लेखन के द्वारा हिंदी की समाजभाषिक संपदा का भी विस्तार हुआ है.  
मुख्य अतिथि केंद्रीय हिंदी निदेशालय के उपनिदेशक डॉ. प्रदीप के. शर्मा ने अपने संबोधन में याद दिलाया कि हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसे जनता का प्यार मिला. आज हिंदी हर तरह से सक्षम है. हिंदी के माध्यम से रोजगार की स्थितियाँ बढ़ चुकी हैं. जनता को जागृत होना चाहिए. हमें अपने पहचान को भूलना नहीं चाहिए. अपनी भाषा से ही हमारा बौद्धिक विकास हो सकता है. सृजनात्मक शक्ति का विकास अपनी भाषा के माध्यम के माध्यम से ही हो सकता है. उन्होंने निदेशालय की विभिन्न गतिविधियों और योजनाओं के बारे में भी जानकारी दी.
हिंदी अकादमी के अध्यक्ष प्रो. टी. मोहन सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्था का परिचय दिया और कहा कि हिंदी का प्रचार-प्रसार ही हिंदी अकादमी तथा ‘संकल्य’ का मुख्य उद्देश्य है.
हिंदी अकादमी के सचिव और ‘संकल्य’ के प्रकाशक डॉ. गोरख नाथ तिवारी ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा और कहा कि दक्षिण भारत ही नहीं बल्कि देश भर में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के समन्वय के लिए काम करने हेतु ‘संकल्य’ संकल्पबद्ध है.
इस व्याख्यानमाला में विभिन्न शिक्षा संस्थानों और राजभाषा विभागों से जुड़े हुए हिंदी सेवियों व छात्र-छात्राओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया जिनमें डॉ. राधेश्याम शुक्ल, डॉ. माणिक्याम्बा, डॉ. प्रभाकर त्रिपाठी, डॉ. आन्जनेयुलू, डॉ. जे. आत्माराम, डॉ, भीमसिंह, डॉ, के. श्याम सुंदर, डॉ. दुर्गेश नंदिनी, डॉ. शकुंतला रेड्डी, डॉ. अनिता गांगुली, डॉ. देवेन्द्र शर्मा, विनीता शर्मा, डॉ. विनीता सिन्हा, डॉ. सरोजिनी श्रीपाद, डॉ. शकीला खानम, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, डॉ. मृत्युंजय सिंह, डॉ. साहिरा बानू, डॉ. बलविंदर कौर, डॉ. ए.जी. श्रीराम, डॉ. सुषमा, विक्रम, गहनीनाथ, संतोष, संपत देवी मुरारका, रमा द्विवेदी, जुबेर अहमद, डॉ. टी.रेखा रानी, डॉ. उमा, जूजू गोपिनाथन, राधाकृष्ण मिरियाला, भानुप्रताप, पावनी, झांसी लक्ष्मी बाई, डॉ. शशिकांत मिश्र,  डॉ. सीता मिश्र, मोहम्मद कासिम, अनामिका उपाध्याय, जी. परमेश्वर, डॉ. स्नेहलता शर्मा, के. चारुलता, डॉ. के.बी.मुल्ला, डॉ. सीमा मिश्रा आदि के नाम सम्मिलित हैं.
सरस्वती वंदना रेखा तिवारी ने की तथा कार्यक्रम का संचालन कवयित्री ज्योति नारायण ने किया.

प्रस्तुति - डॉ गुर्रमकोंडा नीरजा,     सह संपादक ‘स्रवंति’  

बुधवार, 1 जनवरी 2014

निमंत्रण : 'संकल्य' व्याख्यान 4 को 3 बजे


‘श्रीलाल शुक्ल की कथा भाषा और व्यंग्य’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

हैदराबाद, 31 दिसंबर 2013(मीडिया विज्ञप्ति)

संस्कृत साहित्य में व्यंग्यात्मक लेखन की अत्यंत पुष्ट परंपरा रही है. आधुनिक कथासाहित्य में श्रीलाल शुक्ल ने इस परंपरा को नए सन्दर्भों में पुनर्जीवन प्रदान किया. उन्होनें ‘राग दरबारी’ जैसे उपन्यास के माध्यम से हिंदी कथा साहित्य को एक नयी शैली प्रदान की. भाषा की व्यंजना शक्ति का भरपूर प्रयोग करते हुए श्रीलाल शुक्ल ने आज़ादी के बाद के एक भारतीय गाँव के रूपक के माध्यम से समकालीन, सामजिक, आर्थिक और राजनैतिक विसंगतियों पर चुटीला व्यंग्य किया तथा इन परिस्थितियों से आजिज़ आकर भाग खड़े होने वाले बुद्धिजीवियों के छद्म को भी खोल कर सामने रखा.

ये विचार यहाँ आन्ध्र प्रदेश हिंदी अकादमी के सभागार में कथाकार श्रीलाल शुक्ल के 89वें जन्मदिवस पर आयोजित ‘श्रीलाल शुक्ल की कथा भाषा और व्यंग्य’ विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में उस्मानिया विश्वविद्यालय और ईफ्लू के पूर्व आचार्य डॉ. एम. वेंकटेश्वर ने बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किये.

निरंतर 7 वर्ष से आयोजित होने वाली संगोष्ठी श्रंखला की नवीनतम कड़ी के रूप में संपन्न इस कार्यक्रम की अध्यक्षता मेरठ विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य डॉ. कृष्ण चन्द्र गुप्त ने की. उन्होनें अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि एक व्यंग्कार के रूप में श्रीलाल शुक्ल का स्थान इसलिए अत्यंत विशिष्ट है कि उन्होनें व्यवस्था के भीतर रहते हुए उसकी विकृतियों को पहचान कर अभिव्यक्ति के हथियार की तरह व्यंग्य का सहज प्रयोग किया है.

‘भास्वर भारत’ के संपादक डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने साहित्य, सत्ता, संस्कृति और मनुष्यता के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए यह प्रतिपादित किया कि श्रीलाल शुक्ल ने अपने उपन्यास साहित्य के माध्यम से नेहरू युग की विफलताओं से आक्रान्त जनमानस की यथार्थ अनुभूतियों को सटीक अभिव्यक्ति प्रदान की है. इसी क्रम में प्रो. शुभदा वांजपे ने कहा कि श्रीलाल शुक्ल ज़मीन से जुड़े ऐसे कथाकार हैं जिन्होंने ‘राग दरबारी’ जैसा सफल महाकाय उपन्यास पारिवारिक परिवेश और स्त्री पात्रों के बिना रच कर व्यंग्य की मौलिक शैली स्थापित की.

इस अवसर पर आन्ध्र प्रदेश सरकार के शासकीय मुद्रणालय से सम्बद्ध आई.पी.एस. अधिकारी श्रीराम तिवारी ने विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि श्रीलाल शुक्ल का साहित्य समाजोपयोगी होने के कारण कालजयी माना जाएगा.

इसी प्रकार सम्माननीय अतिथि पूर्व जिला कलेक्टर जगदीश प्रताप सिंह, आई.ए.एस. ने अपने संबोधन में इस बात पर बल दिया कि साहित्य को सामाजिक संबंधों और राष्ट्रीय संस्कृति की रक्षा के लिए सदा सनद्ध रहना चाहिए.

आरम्भ में आकाश तिवारी ने शंखनाद एवं सरस्वती वन्दाना की. मंगलदीप प्रज्वलन के बाद अतिथियों का स्वागत सत्कार किया गया.

कार्यक्रम की संयोजक डॉ. सीमा मिश्रा ने संगोष्ठी के मूल विषय का प्रवर्तन करते हुए अपना आलेख प्रस्तुत किया जिसमें यह कहा गया कि श्रीलाल शुक्ल ने अपने साहित्य के केंद्र में ‘साधारण’ की प्रतिष्ठा की तथा इसके लिए किस्सागोई से लेकर व्यंग्य तक का सधा हुआ उपयोग किया.

संचालक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने अपने आरंभिक वक्तव्य में कहा कि श्रीलाल शुक्ल का यह मत विचारणीय है कि व्यंग्य सत्य की खोज नहीं, बल्कि झूठ की खोज है तथा व्यंग्य के टेढ़े मेढ़े रास्ते से गुज़र कर व्यंग्यकार उन मूल्यों तक पहुँचते हैं जो उत्कृष्ट साहित्य का अंतिम लक्ष्य रहे हैं.


इस अवसर पर उत्कृष्ट साहित्य सृजन और हिंदी सेवा के लिए कवयित्री एवं लेखिका डॉ. पूर्णिमा शर्मा तथा तेवरी काव्यान्दोलन के प्रवर्तक प्रो. ऋषभ देव शर्मा का सारस्वत सम्मान भी किया गया.

कार्यक्रम में नगरद्वय के विशिष्ट साहित्यकारों, हिंदी प्रेमियों, पत्रकारों, अध्यापकों और शोधार्थियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया. 

संयोजक सीमा मिश्रा के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ कार्यक्रम का विधिवत समापन हुआ.