मंगलवार, 21 दिसंबर 2021

डॉ. जी. नीरजा की किताब 'समकालीन साहित्य विमर्श' का लोकार्पण संपन्न (न्यूज़ 18 उर्दू पर प्रसारित)

गुर्रमकोंडा नीरजा की पुस्तक ‘समकालीन साहित्य विमर्श’ लोकार्पित


लोकार्पित कृति को स्वीकार करते हुए प्रो.ऋषभदेव शर्मा 


हैदराबाद; 21 दिसंबर, 2021।

साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘साहित्य मंथन’ और दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा-आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना के संयुक्त कार्यक्रम में गुर्रमकोंडा नीरजा की पुस्तक ‘समकालीन साहित्य विमर्श’ का लोकार्पण संपन्न हुआ।

प्रो. गोपाल शर्मा 

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अरबा मींच विश्वविद्यालय के पूर्व अंग्रेजी प्रोफेसर डॉ.गोपाल शर्मा ने कहा कि यह उन विमर्शों का युग है जिनको अब तक विमर्श के बाहर रखा जाता रहा और यह पुस्तक उन विमर्शों का सोदाहरण प्रस्तुतीकरण है। पुस्तक में संकलित 24 आलेखों में सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषिक मुद्दों को रेखांकित किया जा सकता है।
प्रो. शुभदा वांजपे 

लोकार्पण वक्तव्य में मुख्य अतिथि उस्मानिया विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर डॉ. शुभदा वांजपे ने कहा कि आज स्त्री और दलित विमर्श पर अधिकांश रूप से प्रकाश डाला जा रहा है, किंतु लोकार्पित पुस्तक ‘समकालीन साहित्य विमर्श’ में इन दो विमर्शों के अतिरिक्त हरित, किन्नर, आदिवासी, विस्थापन आदि पर भी गंभीर विमर्श किया गया है। उन्होंने आगे कहा कि 'समकालीन साहित्यकार गति-अवरोधक मूल्यों के प्रति सदैव विद्रोही और अपनी रचनाओं में नवीन विचारों की स्थापना कर चेतना भरने वाले रहे हैं। उनकी रचनाएँ नवीन विषय वस्तु और शैलीय भंगिमा की दृष्टि से अभिनव हैं। उनके प्रयोगात्मक वैशिष्ट्य तथा आधुनिक वैचारिक दृष्टि को अभिव्यंजित करने में यह पुस्तक पूरी तरह सफल हुई है।'

श्री प्रवीण प्रणव 
मुख्य वक्ता माइक्रोसॉफ्ट के प्रोग्राम मैनेजमेंट निदेशक प्रवीण प्रणव ने कहा कि इस पुस्तक में पाँच खंडों में सम्मिलित 24 आलेखों में विभिन्न विमर्शों को पुल के अलग-अलग भागों की तरह एक साथ लाकर इस तरह जोड़ा गया है कि अपने स्वरूप में वे पूर्णता को प्राप्त कर लें। ये सभी लेख अलग-अलग समय में लिखे गए हैं इसलिए इनकी अपनी अलग पहचान तो है ही, लेकिन इस किताब में संकलित हो जाने और इन्हें एक साथ पढ़ने से पाठक इन लेखों के ‘तेरहवें स्वाद’ से भी परिचित हो सकेंगे।

प्रो. ऋषभदेव शर्मा 
लोकार्पित पुस्तक की प्रथम प्रति स्वीकार करते हुए प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि इस पुस्तक में बोलने और लिखने की भाषा के द्वैध को मिटाने का प्रयास किया गया है तथा अधिकतर आलेखों में विविध विमर्शों की भाषा पर अलग-अलग ढंग से प्रकाश डाला गया है; और यह पहचानने की कोशिश की गई है कि अलग-अलग पृष्ठभूमि से आने वाले रचनाकार किस तरह से हिंदी भाषा के दायरे को कितना विकसित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि विमर्शीय लेखन ने साहित्य की भाषा को जनता की भाषा के अधिकाधिक नज़दीक लाने का काम किया है।

प्रो. करन सिंह ऊटवाल 


विशेष अतिथि मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. करन सिंह ऊटवाल ने कहा कि कहने का अंदाज अलग अलग भले ही होता है, लेकिन साहित्य हर काल में समाज सापेक्ष रहा है। अवसर पर साहित्य मंथन की ओर से प्रोफेसर ऊटवाल का अभिनंदन किया गया।

आरंभ में अतिथियों ने दीप-प्रज्वलन किया और शिक्षा महाविद्यालय की प्राध्यापक शैलेषा नंदूरकर ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। संचालन और धन्यवाद ज्ञापन की जिम्मेदारी मिश्र धातु निगम के हिंदी अनुभाग एवं निगम संचार उपनिदेशक डॉ. बी. बालाजी ने निभाई।


इस अवसर पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा-आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना, हैदराबाद द्वारा निरंतर 66 वर्षों से प्रकाशित द्विभाषा (हिंदी-तेलुगु) मासिक 'स्रवंति' (नवंबर 2021) के अंक का लोकार्पण करते हुए प्रो. गोपाल शर्मा ने कहा कि यह पत्रिका शोध की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।  

इस अवसर पर वीरेंद्र कुमार, सुरेश राचपूड़ी, डॉ. रियाजुल अंसारी, डॉ. साहिराबानू बी. बोरगल, डॉ. बलविंदर कौर, डॉ. गोरखनाथ तिवारी, डॉ. शक्ति कुमार द्विवेदी, डॉ. सी. एन. मुगुटकर, डॉ. ए. जी. श्रीराम, खादर अली खान, जकिया परवीन, डॉ. डी. डी. देसाई, एकांबरेश्वरुडु, जुबेर अहमद, डॉ. शंकर सिंह ठाकुर, के. राजन्ना, जी. परमेश्वर, डॉ. सुपर्णा मुखर्जी, जी. संगीता, डॉ. सीमा मिश्रा, अशोक तिवारी, डॉ. श्याम सुंदर, अब्दुल हमीद खान, हुड़गे नीरज, रूपा प्रभु, फिज़ा बानू, पार्वती देशपांडे, डॉ. संतोष विजय मुनेश्वर, वी. कृष्णा राव, लोहित्या, श्रीसाहिती, राधाकृष्ण मिरियाला, किशोर बाबू, रमाकांत, नेक परवीन, जी. शिरीष बाबू, डॉ. राजेंद्र, संजय, शारदा आदि साहित्य प्रेमियों, विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों, विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों, छात्रों और शोधार्थियों ने उपस्थित होकर लेखिका को शुभकामनाएँ दीं। संकल्य, हिंदी अकादमी, साहित्य मंथन और हिंदी हैं हम विश्व मैत्री मंच ने लेखिका का सारस्वत सम्मान किया। 000




मंगलवार, 14 दिसंबर 2021

डॉ. नीरजा की पुस्तक ‘समकालीन साहित्य विमर्श’ का विमोचन 18 को

हैदराबाद, 14 दिसंबर, 2021।


साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘साहित्य मंथन’ और दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के संयुक्त तत्वाधान में आगामी शनिवार, 18 दिसंबर, 2021 को दोपहर 2:30 बजे सभा के खैरताबाद स्थित परिसर में डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की नवीनतम आलोचना कृति ‘समकालीन साहित्य विमर्श’ का विमोचन समारोह आयोजित किया जा रहा है। समारोह की अध्यक्षता अरबा मींच विश्वविद्यालय, इथियोपिया के पूर्व प्रोफेसर डॉ. गोपाल शर्मा करेंगे। उस्मानिया विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर डॉ. शुभदा वांजपे मुख्य अतिथि का आसन ग्रहण करेंगी। मुख्य वक्ता के रूप में युवा कवि प्रवीण प्रणव पुस्तक की समीक्षा करेंगे। मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. करन सिंह ऊटवाल तथा सभा के सचिव एस. श्रीधर विशेष अतिथि होंगे।

‘समकालीन साहित्य विमर्श’ तेलुगुभाषी हिंदी लेखिका डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की छठी मौलिक पुस्तक है। साथ ही वे अब तक 9 ग्रंथों का संपादन तथा हिंदी से एक कहानी संग्रह का तेलुगु में अनुवाद प्रस्तुत कर चुकी हैं। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के ‘हिंदीतर भाषी हिंदी लेखक सम्मान’ से पुरस्कृत डॉ. नीरजा ने बताया कि ‘समकालीन साहित्य विमर्श’ के प्रकाशन पर वे विशेष प्रसन्न हैं, क्योंकि इसकी शुभाशंसा और भूमिका प्रो. रमेश चंद्र शाह और प्रो. दिविक रमेश जैसे आज के शीर्षस्थ साहित्यकारों ने लिखी है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में हरित विमर्श, किन्नर विमर्श, स्त्री विमर्श, लघुकथा विमर्श, लोक विमर्श, दलित विमर्श, विस्थापन विमर्श, आदिवासी विमर्श, वृद्धावस्था विमर्श और उत्तर आधुनिक विमर्श पर केंद्रित 24 शोधपूर्ण आलेख शामिल हैं।

लेखिका ने बताया कि विमोचित पुस्तक की पहली प्रति प्रतिष्ठित कवि-समीक्षक प्रो. ऋषभदेव शर्मा स्वीकार करेंगे। समारोह का संचालन मिश्र धातु निगम के राजभाषा अधिकारी डॉ. बी. बालाजी करेंगे।




अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति का 15 वां राष्ट्रीय अधिवेशन एवं कर्नाटक साहित्य महोत्सव 26 को बेंगलुरु में


अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति (नई दिल्ली) का तीन-दिवसीय पंद्रहवां राष्ट्रीय अधिवेशन एवं कर्नाटक साहित्य महोत्सव आगामी 26 से 28 दिसंबर को बेंगलुरु में आयोजित किया जा रहा है। उद्घाटन 26 दिसंबर, रविवार, को शाम 4 बजे द वर्ल्ड कल्चर सेंटर, बसवनगुडी, बेंगलुरु में संपन्न होगा। इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अधिवेशन की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं पत्रकार प्रज्ञान पुरुष पंडित सुरेश नीरव (दिल्ली) करेंगे तथा इस राष्ट्रीय अधिवेशन के संयोजक बेंगलुरु के प्रतिष्ठित साहित्यकार ज्ञान चंद मर्मज्ञ हैं, जिनके कुशल मार्गदर्शन में अधिवेशन की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।

अधिवेशन में देश के विभिन्न प्रांतों के प्रतिष्ठित साहित्यकार और पत्रकार सम्मिलित हो रहे हैं, जिन्हें इस अवसर पर उनके उल्लेखनीय रचनात्मक योगदान हेतु अलंकृत किया जाएगा। इसके अलावा पुस्तक प्रदर्शनी और पुस्तक लोकार्पण के साथ ही “राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता” विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी और कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया जाएगा। याद रहे कि अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति देश-विदेश के दस हज़ार बहुभाषी लेखकोंवाली देश की एक ऐसी गैर-राजनीतिक, अग्रणी वैश्विक साहित्यिक (पंजीकृत) संस्था है, जो राष्ट्रपति भवन में कवि सम्मेलन के अलावा देश के विभिन्न चौदह राज्यों में अपने सफल और सार्थक राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित कर चुकी है। इन विभिन्न राष्ट्रीय अधिवेशनों में पद्मश्री टी.एन. चतुर्वेदी (राज्यपाल कर्नाटक), डॉक्टर मृदुला सिन्हा (महामहिम राज्यपाल गोवा), कप्तान सिंह सोलंकी (राज्यपाल पंजाब, हरियाणा), पद्मभूषण डॉक्टर विन्देश्वर पाठक (संस्थापक: सुलभ सेनेटरी ओर्गेनाइजेशन), लब्ध-प्रतिष्ठ साहित्यकार एवं राजनेता डॉक्टर कर्ण सिंह एवं सुप्रसिद्ध गीतकार पद्मभूषण डॉक्टर गोपाल दास नीरज जैसी अनेक विशिष्ट विभूतियाँ शिरकत कर चुकी हैं। अनेक विश्वविद्यालयों के कुलपति, राजदूत और गृहसचिव भी इसके साथ संबद्ध रहे हैं।

अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के इस पंद्रहवें राष्ट्रीय अधिवेशन में जो साहित्यकार सम्मिलित हो रहे हैं उनमें सर्वश्री सुरेश चौधरी (कोलकाता), ऋचा सिन्हा (मुंबई), रामवरण ओझा (ग्वालियर),पंडित सुरेश नीरव (ग़ाज़ियाबाद),मधु मिश्रा (ग़ाज़ियाबाद), अरुण कुमार पासवान (दिल्ली), विमल बहुगुणा (श्रीनगर), नीरज नैथानी (रुड़की), सविता चड्ढा (दिल्ली), डॉक्टर कल्पना पांडेय (नोएडा), डॉक्टर सविता तिवारी उपाध्याय (गुरुग्राम), डॉक्टर मधु चतुर्वेदी (गजरौला),डॉक्टर वीणा मित्तल (ग़ाज़ियाबाद), धीरेन्द्र रांगड (ऋषिकेश), यशपाल सिंह यश (गुरुग्राम), माधुरी नैथानी (श्रीनगर), शिवनरेश पांडेय, (नोएडा),अनीता पांडेय (नोएडा), डॉक्टर प्रकाश चमोली, मीनाक्षी चमोली (श्रीनगर), आरती पुण्डीर (श्रीनगर), ब्रह्मदेव शर्मा(दिल्ली), सुधा अहलुवालिया तथा दर्शन बेज़ार (बैंगलुरु) प्रमुख हैं।

'श्रीरामकथा का विश्वसंदर्भ महाकोश' के पहले खंड का लोकार्पण संपन्न




30 नवंबर 2021 को नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन के प्लेनरी हॉल में संपन्न "रामकथा में सुशासन" विषयक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के अवसर पर 56 खंडों के 'श्रीरामकथा विश्वसंदर्भ महाकोश' के पहले खंड 'लोकगीत और लोक कथाओं में श्रीरामकथा का संदर्भ' का लोकार्पण मुख्य अतिथि जी. किशन रेड्डी (संस्कृति, पर्यटन व डोनर मंत्री, भारत सरकार) ने अतिविशिष्ट अतिथि अश्विनी कुमार चौबे (पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्यमंत्री,भारत सरकार) तथा विशिष्ट अतिथिगण साध्वी प्रज्ञा ठाकुर (सांसद,लोकसभा), स्वामी परिपूर्णानंद, विजय गोयल, श्याम जाजू, प्रोफेसर दिलीप सिंह, प्रोफेसर विनय कुमार, प्रोफेसर प्रदीप कुमार सिंह, डॉ. अमित जैन एवं समारोह अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण भाला की गरिमामय उपस्थिति में संपन्न किया।
इस अवसर पर बोलते हुए मुख्य अतिथि जी. किशन रेड्डी ने राम संस्कृति के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार के लिए साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था के कार्यों की प्रशंसा की तथा विश्वास प्रकट किया कि 56 खंडों के महाकोश के प्रकाशन की यह विराट योजना आगे और भी तीव्र गति से विकसित होगी। महाकोश के लोकार्पित प्रथम खंड के बारे में बताते हुए जी. किशन रेड्डी ने कहा की राम भारतवर्ष के आम जन के रोम-रोम में बसे हुए हैं, इसका जीता जागता प्रमाण हमारे सभी प्रान्तों, भाषाओं और समुदायों के लोकगीतों और लोककथाओं में राम कथा के प्रसंगों के गुँथे होने से मिलता है।


समारोह के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय से पधारे भाषाचिंतक प्रो. दिलीप सिंह ने की और संचालन दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के पूर्व प्रोफेसर डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने किया। "रामकथा में सुशासन" विषय पर न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय की प्रोफेसर बिंदेश्वरी अग्रवाल, 'उपमा' केलिफोर्निया की प्रतिनिधि डॉक्टर अलका भटनागर और डॉक्टर हेमप्रभा एवं साठये महाविद्यालय, मुंबई से पधारे प्रोफेसर लोखंडे और डॉ. सतीश कनौजिया सहित विभिन्न विद्वानों ने सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए और प्रोफेसर प्रदीप कुमार सिंह के द्वारा चलाए जा रहे चलाई जा रही 56 खंडों के महाकोश की प्रकाशन योजना का हार्दिक स्वागत किया। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री डॉ. श्याम सिंह शशि ने विस्तार से देश विदेश की रामकथाओं में उपलब्ध रामराज्य के विवेचन के आधार पर प्रजा के राज्य को सुशासन का श्रेष्ठ रूप सिद्ध किया। आरंभ में अंतरराष्ट्रीय पाक्षिक पत्रिका 'चाणक्य वार्ता' के संपादक डॉ. अमित जैन ने अतिथियों का स्वागत सत्कार किया।

कार्यक्रम के दूसरे चरण में डॉ. विनोद बब्बर, डॉ रंजय कुमार सिंह, डॉ. नारायण, डॉ. शीरीन कुरेशी तथा डॉ.आशा ओझा तिवारी ने रामराज्य और सुशासन के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला। इस सत्र की अध्यक्षता हंसराज कॉलेज, नई दिल्ली की प्रधानाचार्य प्रोफेसर रमा ने की और संचालन डॉ. भावना शुक्ल ने किया।


समापन सत्र में मुख्य अतिथि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और अति विशिष्ट अतिथि अश्विनी कुमार चौबे के हाथों देश- विदेश के हिंदी सेवियों और राम संस्कृति के पोषक सहयोगियों का सम्मान किया गया तथा प्रो. ऋषभदेव शर्मा सहित कई विशिष्ट विद्वानों को "विश्व राम संस्कृति सम्मान" से अलंकृत किया गया। अवसर पर छत्तीसगढ़ से रामकथा की मंचीय प्रस्तुति के लिए पधारे लोक कलाकारों का भी 'चाणक्य वार्ता' और साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था की ओर से अभिनंदन किया गया। सम्मान सत्र का संचालन प्रो. माला मिश्रा ने किया।