चित्र परिचय :
साहित्य मंथन के तत्वावधान में 19 फरवरी 2016 को दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद में आयोजित समारोह में 'स्रवंति' की सह-संपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की पुस्तक
‘अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख’ का लोकार्पण करते हुए
अरबामिंच विश्वविद्यालय, इथियोपिया के भाषाविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. गोपाल शर्मा.
साथ में, प्रो. ऋषभदेव शर्मा, प्रो. मन्नार वेंकटेश्वर,
डॉ. जी. नीरजा एवं ज्योति नारायण.
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‘अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख’ का लोकार्पण संपन्न
हैदराबाद, 19 फरवरी
2016.
‘’अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की चर्चा पश्चिम में 1920 ई. के आसपास तब शुरू हुई जब एक देश के सैनिकों को शत्रु देश के सैनिकों की भाषा सीखने की आवश्यकता पड़ी. उस कार्य में ब्लूमफील्ड का विशेष योगदान रहा. 1964 में हैलिडे, मैकिंटोश और स्ट्रीवेंस ने ‘लिंग्विस्टिक साइंस एंड लैंग्वेज टीचिंग’ शीर्षक पुस्तक का सृजन किया. 1999 में विड्डोसन ने ‘अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान’ और ‘भाषाविज्ञान का अनुप्रयोग’ के बीच निहित भेद को स्पष्ट किया. ‘संप्रेषणपरक भाषाशिक्षण’ के आगमन के साथ-साथ अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान को ‘भाषा शिक्षण’ के अर्थ में रूढ़ माना जाने लगा. हिंदी की बात करें तो रवींद्रनाथ श्रीवास्तव ‘हिंदी अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान’ के जनक हैं. उन्होंने अपने समकालीनों के साथ मिलकर इसके अनुवाद विज्ञान, शैलीविज्ञान, पाठ विश्लेषण, समाजभाषाविज्ञान, मनोभाषाविज्ञान और कम्प्यूटेशनल भाषाविज्ञान जैसे अन्य विविध पक्षों को भी हिंदी में उद्घाटित किया. डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की वाणी प्रकाशन से आई पुस्तक ‘अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख’ को इस परंपरा की तीसरी पीढ़ी में रखा जा सकता है.”
ये विचार यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के खैरताबाद स्थित
सम्मलेन-कक्ष में ‘साहित्य मंथन’ द्वारा आयोजित
समारोह में ‘अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख’
नामक पुस्तक को लोकार्पित करते हुए अरबामिंच विश्वविद्यालय, इथियोपिया के भाषाविज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. गोपाल शर्मा ने व्यक्त
किए. उन्होंने लोकार्पित पुस्तक की लेखिका गुर्रमकोंडा नीरजा को साधुवाद देते हुए
कहा कि यह पुस्तक इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि इसमें भाषिक अनुप्रयोग
की पड़ताल के अनेक व्यावहारिक मॉडल उपलब्ध हैं. उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त
किया कि इस पुस्तक में विभिन्न विमर्शों की भाषा के विवेचन द्वारा ‘उत्तरआधुनिक अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान’ को भी पुष्ट
किया गया है. उन्होंने अपील की कि आम आदमी के दैनंदिन जीवन से जुड़ी समस्याओं को
लेकर भी अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की दृष्टि से काम होना चाहिए.
अपने अध्यक्षीय भाषण में इफ्लू के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो.
एम. वेंकटेश्वर ने आर्येंद्र शर्मा, कृष्णमूर्ति और श्रीराम शर्मा
जैसे भाषावैज्ञनिकों को याद करते हुए कहा कि समय और स्थान के ग्राफ के साथ भाषा के
परिवर्तनों को देखना-परखना आज की आवश्यकता है तथा लोकार्पित पुस्तक इस दिशा में
उठाया गया एक सही कदम है. उन्होंने कहा कि यह पुस्तक भाषा के अध्येता छात्रों,
अध्यापकों, शोधार्थियों और समीक्षकों के लिए
समान रूप से उपयोगी है क्योंकि इसमें सैद्धांतिक पिष्टपेषण से बचते हुए लेखिका ने
हिंदी भाषा-व्यवहार विषयक प्रयोगात्मक कार्य के परिणामों को प्रस्तुत किया है.
आरंभ में वुल्ली कृष्णा राव ने अतिथियों का सत्कार किया तथा लेखिका गुर्रमकोंडा
नीरजा ने विमोच्य पुस्तक की रचना प्रक्रिया के बारे में चर्चा की. वाणी प्रकाशन के
निदेशक अरुण माहेश्वरी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए उन्होंने यह भी बताया कि
यह पुस्तक प्रसिद्ध हिंदी-भाषावैज्ञानिक प्रो. दिलीप सिंह को समर्पित है जिन्होंने
प्रत्यक्ष रूप से इस पुस्तक के प्रणयन की प्रेरणा दी है. इस अवसर पर प्रो. दिलीप
सिंह ने भी दूरभाष के माध्यम से सभा को संबोधित किया और लेखिका को शुभकामनाएं दीं.
‘भास्वर
भारत’ के संपादक डॉ. राधेश्याम शुक्ल, ‘साहित्य मंथन’ की परामर्शक ज्योति नारायण, ‘विश्व वात्सल्य मंच’ की संयोजक संपत देवी मुरारका और
शोधार्थी प्रेक्के पावनी ने लेखिका का सारस्वत सम्मान किया.
कार्यक्रम के संयोजक प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि लोकार्पित पुस्तक
अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के अनेक आयामों की व्यावहारिकता को उद्घाटित करने के
साथ-साथ उनका परीक्षण एवं मूल्यांकन भी करती है जिसमें लेखिका का गहरा स्वाध्याय
और शोधपरक रुझान झलकता है.
इस समारोह में डॉ. बी. सत्यनारायण,डॉ. एम. रंगय्या, डॉ. राजकुमारी सिंह, डॉ. सुनीला सूद, डॉ. बालकृष्ण शर्मा ‘रोहिताश्व’, डॉ. के. श्याम सुंदर, डॉ. मंजुनाथ एन. अंबिग, डॉ. बलबिंदर कौर, डॉ. मिथिलेश सागर, डॉ. गोरखनाथ तिवारी, डॉ. करन सिंह ऊटवाल, डॉ. बी. एल. मीणा, डॉ. ए. श्रीराम, गुरुदयाल अग्रवाल, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, वेमूरि ज्योत्स्ना कुमारी,
मटमरि उपेंद्र, जी. परमेश्वर, भंवरलाल उपाध्याय, वुल्ली कृष्णा राव, मनोज शर्मा, संतोष विजय मुनेश्वर, टी. सुभाषिणी, संतोष काम्बले, के.
नागेश्वर राव, किशोर बाबू, इंद्रजीत
कुमार, आनंद, वी. अनुराधा, जूजू गोपीनाथन, गहनीनाथ, झांसी
लक्ष्मी बाई, माधुरी तिवारी, सी.एच.
रामकृष्णा राव, प्रमोद कुमार तिवारी, रामकृष्ण,
दुर्गाश्री, जयपाल, अरुणा,
नागराज, जूडे लेसली आदि भाषा-प्रेमियों और
शोधार्थियों ने उत्साहपूर्वक भागीदारी निबाही.