बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान पर गुर्रमकोंडा नीरजा की पुस्तक लोकार्पित

चित्र परिचय :
साहित्य मंथन के तत्वावधान में 19 फरवरी 2016 को दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभाहैदराबाद में आयोजित समारोह में 'स्रवंतिकी सह-संपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की पुस्तक
 ‘अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख’ का लोकार्पण करते हुए 
अरबामिंच विश्वविद्यालयइथियोपिया के भाषाविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. गोपाल शर्मा.
 साथ मेंप्रो. ऋषभदेव शर्माप्रो. मन्नार वेंकटेश्वर
डॉ. जी. नीरजा एवं ज्योति नारायण. 

अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परखका लोकार्पण संपन्न


हैदराबाद, 19 फरवरी 2016.

‘’अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की चर्चा पश्चिम में 1920 ई. के आसपास तब शुरू हुई जब एक देश के सैनिकों को शत्रु देश के सैनिकों की भाषा सीखने की आवश्यकता पड़ी. उस कार्य में ब्लूमफील्ड का विशेष योगदान रहा. 1964 में हैलिडे, मैकिंटोश और स्ट्रीवेंस ने लिंग्विस्टिक साइंस एंड लैंग्वेज टीचिंगशीर्षक पुस्तक का सृजन किया. 1999 में विड्डोसन  ने अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञानऔर भाषाविज्ञान का अनुप्रयोगके बीच निहित भेद को स्पष्ट किया. संप्रेषणपरक भाषाशिक्षणके आगमन के साथ-साथ अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान को भाषा शिक्षणके अर्थ में रूढ़ माना जाने लगा. हिंदी की बात करें तो रवींद्रनाथ श्रीवास्तव  हिंदी अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञानके जनक हैं. उन्होंने अपने समकालीनों के साथ मिलकर इसके अनुवाद विज्ञान, शैलीविज्ञान, पाठ विश्लेषण, समाजभाषाविज्ञान, मनोभाषाविज्ञान और कम्प्यूटेशनल भाषाविज्ञान जैसे अन्य विविध पक्षों को भी हिंदी में उद्घाटित किया. डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की वाणी प्रकाशन से आई पुस्तक अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परखको इस परंपरा की तीसरी पीढ़ी में रखा जा सकता है.

ये विचार यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के खैरताबाद स्थित सम्मलेन-कक्ष में साहित्य मंथनद्वारा आयोजित समारोह में अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परखनामक पुस्तक को लोकार्पित करते हुए अरबामिंच विश्वविद्यालय, इथियोपिया के भाषाविज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. गोपाल शर्मा ने व्यक्त किए. उन्होंने लोकार्पित पुस्तक की लेखिका गुर्रमकोंडा नीरजा को साधुवाद देते हुए कहा कि यह पुस्तक इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि  इसमें भाषिक अनुप्रयोग की पड़ताल के अनेक व्यावहारिक मॉडल उपलब्ध हैं. उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि इस पुस्तक में विभिन्न विमर्शों की भाषा के विवेचन द्वारा उत्तरआधुनिक अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञानको भी पुष्ट किया गया है. उन्होंने अपील की कि आम आदमी के दैनंदिन जीवन से जुड़ी समस्याओं को लेकर भी अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की दृष्टि से काम होना चाहिए.     

अपने अध्यक्षीय भाषण में इफ्लू के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. एम. वेंकटेश्वर ने आर्येंद्र शर्मा, कृष्णमूर्ति और श्रीराम शर्मा जैसे भाषावैज्ञनिकों को याद करते हुए कहा कि समय और स्थान के ग्राफ के साथ भाषा के परिवर्तनों को देखना-परखना आज की आवश्यकता है तथा लोकार्पित पुस्तक इस दिशा में उठाया गया एक सही कदम है. उन्होंने कहा कि यह पुस्तक भाषा के अध्येता छात्रों, अध्यापकों, शोधार्थियों और समीक्षकों के लिए समान रूप से उपयोगी है क्योंकि इसमें सैद्धांतिक पिष्टपेषण से बचते हुए लेखिका ने हिंदी भाषा-व्यवहार विषयक प्रयोगात्मक कार्य के परिणामों को प्रस्तुत किया है.  

आरंभ में वुल्ली कृष्णा राव ने अतिथियों का सत्कार किया तथा लेखिका गुर्रमकोंडा नीरजा ने विमोच्य पुस्तक की रचना प्रक्रिया के बारे में चर्चा की. वाणी प्रकाशन के निदेशक अरुण माहेश्वरी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए उन्होंने यह भी बताया कि यह पुस्तक प्रसिद्ध हिंदी-भाषावैज्ञानिक प्रो. दिलीप सिंह को समर्पित है जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से इस पुस्तक के प्रणयन की प्रेरणा दी है. इस अवसर पर प्रो. दिलीप सिंह ने भी दूरभाष के माध्यम से सभा को संबोधित किया और लेखिका को शुभकामनाएं दीं. भास्वर भारतके संपादक डॉ. राधेश्याम शुक्ल, ‘साहित्य मंथनकी परामर्शक ज्योति नारायण, ‘विश्व वात्सल्य मंचकी संयोजक संपत देवी मुरारका और शोधार्थी प्रेक्के पावनी ने लेखिका का सारस्वत सम्मान किया.

कार्यक्रम के संयोजक प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि लोकार्पित पुस्तक अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के अनेक आयामों की व्यावहारिकता को उद्घाटित करने के साथ-साथ उनका परीक्षण एवं मूल्यांकन भी करती है जिसमें लेखिका का गहरा स्वाध्याय और शोधपरक रुझान झलकता है.

इस समारोह में डॉ. बी. सत्यनारायण,डॉ. एम. रंगय्या, डॉ. राजकुमारी सिंह, डॉ. सुनीला सूद, डॉ. बालकृष्ण शर्मा रोहिताश्व’, डॉ. के. श्याम सुंदर, डॉ. मंजुनाथ एन. अंबिग, डॉ. बलबिंदर कौर,  डॉ. मिथिलेश सागरडॉ. गोरखनाथ तिवारी, डॉ. करन सिंह ऊटवाल, डॉ. बी. एल. मीणाडॉ. ए. श्रीरामगुरुदयाल अग्रवाल, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, वेमूरि ज्योत्स्ना कुमारी, मटमरि उपेंद्र, जी. परमेश्वर, भंवरलाल उपाध्याय, वुल्ली कृष्णा राव,  मनोज शर्मा, संतोष विजय मुनेश्वर, टी. सुभाषिणी, संतोष काम्बले, के. नागेश्वर राव, किशोर बाबू, इंद्रजीत कुमार, आनंद, वी. अनुराधा, जूजू गोपीनाथन, गहनीनाथ, झांसी लक्ष्मी बाई, माधुरी तिवारी, सी.एच. रामकृष्णा राव, प्रमोद कुमार तिवारी, रामकृष्ण, दुर्गाश्री, जयपाल, अरुणा, नागराज, जूडे लेसली आदि भाषा-प्रेमियों और शोधार्थियों ने उत्साहपूर्वक भागीदारी निबाही.

रविवार, 14 फ़रवरी 2016

'अन्वेषी' : शोधपत्र आमंत्रित

अन्वेषी
शोधपत्र संग्रह


ISBN : 
978-93-84068-36-3




प्रधान संपादक :
प्रो. ऋषभदेव शर्मा
rishabhadsharma@gmail.com






प्रकाशक :
परिलेख प्रकाशन,
कोतवाली मार्ग,
नजीबाबाद - 246763


नियमावली
  1. ‘अन्वेषी’ का प्रकाशन हिंदी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में अभिनव अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से किया जा रहा है.
  2. यह एक अव्यावसायिक और परस्पर सहयोग पर आधारित प्रायोजना है.
  3. इसमें प्रतिष्ठित विद्वानों, प्राध्यापकों और आचार्यों के साथ-साथ हिंदी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में अनुसंधानरत एम.फिल. और पीएच.डी. के शोधार्थी शामिल हो सकते हैं.
  4. इस प्रायोजना के अंतर्गत हिंदी भाषा और साहित्य के विविध क्षेत्रों से संबंधित शोधपत्र प्रकाशित किए जाएँगे.
  5. विद्वान/ शोधार्थी अपने शोधपत्र प्रधान संपादक को ईमेल द्वारा प्रेषित कर सकते हैं.
  6. शोधपत्र के साथ लेखक द्वारा मौलिकता का प्रमाणपत्र देना अनिवार्य है.  
  7. शोधपत्र अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होने चाहिए तथा संदर्भ/ उद्धरण/ ग्रंथ सूची के लिए ‘APA स्टाइल’ का पालन अनिवार्य है.   
  8. प्रकाशनार्थ प्रेषित शोधपत्र अनिवार्यतः कृतिदेव 010 अथवा हिंदी यूनिकोड फॉण्ट में वर्ड फ़ाइल में ही टंकित होने चाहिए. अन्य किसी फॉण्ट या फोर्मेट में भेजे गए शोधपत्र स्वीकार नहीं किए जाएँगे. पीडीएफ और स्कैन प्रतियाँ न भेजें.
  9. प्रकाशनार्थ प्रेषित शोधपत्र लगभग 3000 शब्दों के होने चाहिए.
  10. बहुत छोटे और बहुत बड़े शोधपत्र स्वीकार नहीं किए जाएँगे.
  11. प्रकाशन के लिए प्राप्त आलेख ‘अन्वेषी’ की विशेषज्ञ समिति के समक्ष रखे जाएँगे. समिति की स्वीकृति मिलने पर ही उन्हें प्रकाशन के लिए स्वीकार किया जाएगा.
  12. स्वीकार किए गए प्रत्येक शोधपत्र के प्रकाशन हेतु लेखक को 1000 रु. सहयोग राशि परिलेख प्रकाशन के खाते में अग्रिम जमा करनी होगी.
  13. प्रकाशित होने पर ‘अन्वेषी’ की 1000 रु. मूल्य की प्रतियाँ प्रत्येक सहयोगी लेखक को सादर भेंट की जाएँगी.