सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

डॉ. रामनिवास साहू की आत्मकथा 'मुझे कुछ कहना है' लोकार्पित


हैदराबाद, 19 फरवरी, 2017.
कादंबिनी क्लब के तत्वावधान में रविवार  को श्रीकृष्णदेवराय सभागार में प्रो. ऋषभ देव शर्मा की अध्यक्षता में क्लब की 295वीं मासिक गोष्ठी आयोजित की गई जिसमें मैसूर से पधारे डॉ. रामनिवास साहू की आत्मकथा  ‘मुझे कुछ कहना है’ के प्रथम भाग तथा क्लब द्वारा प्रकाशित  'पुष्पक -33’ का लोकार्पण संपन्न हुआ.

क्लब अध्यक्षा डॉ. अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी संयोजिका मीना मुथा ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि इस अवसर पर डॉ. गोपाल शर्मा (मुख्य अतिथि एवं पुस्तक लोकार्पणकर्ता ), डॉ. शकुंतला रेड्डी (विशेष अतिथि), डॉ. रामनिवास साहू (लेखक, क्षेत्रीय निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, मैसूर) और डॉ. अहिल्या मिश्र मंचासीन हुए. सर्वप्रथम दीप प्रज्वलन कर माँ शारदा का आशीष लिया गया. शुभ्रा महंतो ने निराला रचित सरस्वती वन्दना ‘वर दे वीणावादिनी वर दे’ की सुमधुर प्रस्तुति दी. डॉ. मिश्र ने स्वागत भाषण में संस्था की संक्षिप्त जानकारी व अतिथियों का परिचय दिया तथा मैसूर के रचनाकार डॉ. साहू का इस मंच पर आना क्लब के लिए गौरव की बार बताया. इस अवसर पर मंचासीन अतिथियों का क्लब की ओर से सम्मान किया गया. डॉ. रमा द्विवेदी और सरिता सुराणा ने व्यवस्था में सहयोग प्रदान किया.

प्रथम सत्र में महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के रचना संसार पर केंद्रित चर्चा सत्र में अपने विचार रखते हुए प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने कहा कि निराला का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर जिले में हुआ तथा बसंत पंचमी को अपनी जन्मतिथि मनाना उन्होंने खुद ही तय किया. गुलामी के युग में अपनी संस्कृति के प्रति गहरा लगाव जगाने का कार्य निरालाजी ने किया. उन्होंने विषयवस्तु और शिल्प दोनों ही दृष्टि से हिंदी कविता को एक नया आयाम दिया. हालांकि अधिक प्रसिद्धि उन्हें अपनी कविताओं से मिली लेकिन उनके लिखे उपन्यास और कहानियाँ भी हिंदी साहित्य में उतने ही महत्वपूर्ण हैं. ‘वर दे वीणावादिनी वर दे’ के अलावा उन्होंने कई और भक्ति गीत और प्रभातगीत लिखे. अध्यात्म से भी उनका जुड़ाव रहा, वे रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद से प्रभावित थे. प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने नौचंदी मेले में आयोजित कविसम्मेलन का जिक्र करते हुए निराला की पंक्तियों को उद्धृत किया.

डॉ. अहिल्या मिश्र ने कहा कि निराला ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाओं को समेटते हुए 3 खंडों की पहले ग्रंथावली निकली और बाद में 13 खंडों में रचनावली निकली है. स्वाभिमानी निराला ने स्त्री विमर्श पर प्रमुखता से लेखन किया है. उनकी रचना ‘भिक्षुक’ और ‘वह तोड़ती पत्थर’ का डॉ. मिश्र ने पाठ किया.

डॉ. मदनदेवी पोकरणा ने ‘पुष्पक-33’ का परिचय देते हुए कहा कि सशक्त संपादकीय के साथ साथ विभिन्न साहित्य विधाओं से यह अंक सुसज्जित है. रचनाकारों का उल्लेख करते हुए उनकी कृतियों की संक्षिप्त समीक्षा करते हुए उन्होंने संपादक मंडल को साधुवाद दिया. डॉ रामनिवास साहू ने ‘पुष्पक-33’ को लोकार्पित किया.

द्वितीय सत्र में डॉ. रामनिवास साहू की आत्मकथा ‘मुझे कुछ कहना है’ [प्रथम भाग] को लोकार्पित करते हुए मुख्य अतिथि डॉ. गोपाल शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि इस किताब को पढ़ते समय पाठक सहसा इस कहानी में अपने आपको ढूंढने लगता है. यह उपन्यास अनेक विमर्शों का जाल है जो एक नहीं अपितु अनेक दृष्टियाँ ले कर चलता है. यहाँ बनवासी विमर्श पर प्रमुखता से बात की गई है. लेखक आज लिखते हुए पीछे मुड़कर देखता है तो पाता है कि आज भी कुछ भी नहीं बदला है. यह किताब बार-बार पढ़ने योग्य है. 

‘मुझे कुछ कहना है’ की समीक्षा करते हुए लक्ष्मी नारायण अग्रवाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा की आंचलिकता, बनवासी प्रथा, बनवासियों की जीवन शैली, उस कालखंड की परिस्थितियाँ आदि का सशक्त चित्रण इस पुस्तक में मौजूद है. इस रचना में चित्रित चरवाहे के पात्र को लक्ष्मी नारायण अग्रवाल ने सराहते हुए कहा कि अपने मैनेजमेंट और अर्थशास्त्री गुणों के बल पर उसने अपने गाँव को जिस तरह से सूखा पीड़ित होने से बचाया वह प्रेरणास्पद है. लेखक ने अपनी स्मरण शक्ति के बल पर काफी कुछ लिखा है और इस कृति को कहीं भी क्लिष्ट नहीं होने दिया है. ठाकुर, मुखिया, सौतेला व्यवहार, षड्यंत्र, शादी-ब्याह के समय होने वाले छल-कपट, प्रथा-कुप्रथा सब इस आत्मकथा में मौजूद हैं. आत्मकथा केवल मैं पर केन्द्रित नहीं है बल्कि इर्द गिर्द घूमते सभी किरदारों को भी उतना ही महत्त्व दिया गया है. ऐसा लेखन बहुत कम पढ़ने को मिलता है. अंग्रेजी शासन काल में जो स्थितियां थी आज भी उनमे कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आया है. डॉ. साहू ने आत्मकथा विधा की सीमाओं में रहकर जो भी लिखा है, सराहनीय है, साहसिक है. 

डॉ. शकुंतला रेड्डी ने संस्था एवं डॉ. साहू को साधुवाद दिया. प्रवीण प्रणव ने कहा कि यह आत्मकथा आदि से अंत तक पाठकों को बांधे रखती है. कुछ प्रसंग बेहद ही भावपूर्ण लिखे गए हैं. डॉ.अहिल्या मिश्र ने कहा कि बहुत आसान है दूसरों पर हँसना पर बहुत कठिन है खुद पर हँसना, बहुत आसान है दूसरों पर लिखना पर बहुत कठिन है खुद पर लिखना. मेले, बाइस्कोप की यादों को टटोलते हुए स्त्री विमर्श पर सुन्दर बातें रखी गई है. यह आत्मकथा हर भारतीय की आम कहानी है. डॉ. साहू के लेखन ने फणीश्वरनाथ रेणु की याद दिला दी. लालटेन, दलदल, कीचड़, पहाड़ आदि का सुन्दर वर्णन है तथा पात्रों के सजीव वर्णन से सत्यता का जुड़ाव नज़र आता है. 

आत्म्कथाकार डॉ. रामनिवास साहू ने कहा कि मैं एक ऐसे बनवासी गाँव से आया हूँ जहाँ से पढ़कर कोई इस मुकाम पर पहुँचता है तो बहुत दुर्लभ उदाहरण के रूप में यह देखा जाएगा. इस सफ़र में मार्गदर्शन दे रहे सभी गुरुओं को वंदना. 238 देशों में हमारी भारतीयता फैली है परन्तु दुर्भाग्य है कि दिया तले अँधेरा. 'जिओ और जीने दो' का संदेश पहले भी हुआ करता था, आज भी है, लेकिन हालात सुधरने की बजाय बिगड़ते जा रहे हैं.

प्रो० ऋषभ देव ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि मैंने डॉ. साहू से कहा था कि आप जिस अंचल से आते हैं उस पर कोई प्रामाणिक साहित्य उपलब्ध नहीं है और आपको अपनी आत्मकथा आंचलिक संस्कृति और आंचलिक जीवन के संघर्षों को उभारते हुए लिखनी चाहिए. डॉ. साहू ने इस चुनौती के अनुरूप बहुत स्पष्टता के साथ विशिष्ट देश-काल की घटनाओं का बहुत बेबाकी से चित्रण किया है. डॉ. शर्मा ने पुस्तक से कुछ अंशों पर प्रकाश डाला और इस आत्मकथा के 4 और भागों के प्रकाशन की योजना की सूचना दी. प्रो. शर्मा ने कहा कि वनवासी गाँवों का कोई लिखित इतिहास नहीं होता. मौखिक परंपरा के आधार पर यह खड़ा होता है. मेरा ‘मैं’ सबका ‘मैं’ बन जाए, यह रचनाकार की सफलता है जिस पर डॉ. साहू खरे उतरते हैं. अंचल के निर्माण, विकास और इस दौरान मनुष्य के संघर्ष का पुस्तक में बेहतर चित्रण है. आगे के खण्डों को पढ़ने की उत्सुकता बनी रहेगी.

इस अवसर पर डॉ. साहू ने मंचासीन विद्वानों को स्मृतिचिह्न के रूप में छात्रकोष की प्रति भेंट की. प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने डॉ. साहू का व ज्योतिनारायण ने डॉ. गोपाल शर्मा का व्यक्तिगत तौर पर सम्मान किया. लोकार्पण समारोह का संचालन प्रवीण प्रणव और मीना मुथा ने किया, डॉ. रमा द्विवेदी ने  धन्यवाद ज्ञापित किया.

समापन सत्र में ऋतुराज वसंत पर आधारित कवि गोष्ठी नरेंद्र राय की अध्यक्षता में हुई. प्रो० ऋषभदेव शर्मा, डॉ. रामनिवास साहू, अजित गुप्ता और डॉ.अहिल्या मिश्र मंचासीन हुए. भंवरलाल उपाध्याय के संचालन में भावना पुरोहित, सरिता गर्ग, डॉ. गीता जांगिड़, मंगला अभ्यंकर, सुषमा वैद्य, जी० परमेश्वर, दर्शन सिंह, सूरज प्रसाद सोनी, उमा सोनी, प्रवीण प्रणव, देविदास घोडके, ज्योति नारायण, श्रीमन्नारायण चारी ‘विराट’, एल. रंजना, दीपा ठाकर, डॉ. साहू, अजित गुप्ता, प्रो० ऋषभ देव शर्मा, डॉ. अहिल्या मिश्र और मीना मुथा ने काव्यपाठ किया. नरेन्द्र राय ने अध्यक्षीय काव्यपाठ किया. सुरेश जैन, देवा प्रसाद मायला, जुगल बंग जुगल, डॉ. जी० नीरजा, जी० कृष्णा राव, श्रीसाहिती, मधुकर मिश्र, भूपेंद्र मिश्र, डॉ. बुधप्रकाश सागर, डॉ. मिथिलेश सागर, डॉ. अनीता गांगुली, पवित्रा अग्रवाल, चन्द्र प्रताप सिंह, श्रुतिकांत भारती, शोभा महाबल आदि की उपस्थिति रही. मीना मुथा के आभार एवं सामूहिक राष्ट्रगान के साथ समारोह का समापन हुआ. 
[प्रस्तुति : कादंबिनी क्लब, हैदराबाद]

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017

‘मुझे कुछ कहना है’ का लोकार्पण 19 फरवरी को ‘कादंबिनी क्लब’ में


हैदराबाद, 17 फरवरी, 2017.

कादंबिनी क्लब, हैदराबाद के तत्वावधान में रविवार दिनांक 19 फरवरी, 2017 को प्रातः 11.30 बजे सुलतान बाज़ार, हैदराबाद में दिलशाद प्लाजा के समीप स्थित श्रीकृष्णदेव राय सभागार में क्लब की 295वीं मासिक गोष्ठी एवं पुस्तक लोकार्पण समारोह का आयोजन किया जा रहा है.

इस अवसर पर अरबामिंच विश्वविद्यालय, इथियोपिया (पूर्वी अफ्रीका) के अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. गोपाल शर्मा बतौर मुख्य अतिथि मंचासीन होंगे तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान, मैसूर के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. राम निवास साहू की औपन्यासिक आत्मकथा ‘मुझे कुछ कहना है’ (प्रथम भाग) को लोकार्पित करेंगे. साथ ही, कादंबिनी क्लब द्वारा प्रकाशित ‘पुष्पक-33’ का लोकार्पण डॉ. राम निवास साहू के हाथों संपन्न होगा. लोकार्पित कृतियों का परिचय क्रमशः लक्ष्मी नारायण अग्रवाल और डॉ. मदनदेवी पोकरणा द्वारा दिया जाएगा. डॉ. अहिल्या मिश्र आशीर्वचन देंगी तथा डॉ. ऋषभ देव शर्मा अध्यक्षता करेंगे.

आरंभ में सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ पर संक्षिप्त चर्चा के साथ उनकी कविता का पाठ किया जाएगा तथा अंत में ऋतुराज वसंत के संदर्भ में विशिष्ट कविगोष्ठी होगी. विभिन्न सत्रों का संयोजन प्रवीण प्रणव, अवधेश कुमार सिन्हा, डॉ. रमा द्विवेदी, मीना मुथा एवं मंगला अभ्यंकर द्वारा किया जाएगा.

सभी साहित्यप्रेमियों से अनुरोध है कि समय पर उपस्थिति प्रदान कर समारोह को सफल बनाएँ.

[प्रस्तुति : कादंबिनी क्लब, हैदराबाद]

[पुस्तक] 'मुझे कुछ कहना है' : डॉ. राम निवास साहू



मुझे कुछ कहना है (आत्मकथा) / डॉ. राम निवास साहू/ 2017/
अनन्य प्रकाशन, ई-17, पंचशील गार्डन, नवीन शाहदरा, दिल्ली -110032/
 192 रुपए/ 395 पृष्ठ/ सजिल्द.


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वनवासी विमर्श का  नया आयाम


डॉ. रामनिवास साहू मूलतः एक भाषा-अध्येता हैं. उन्होंने मुंडा भाषाओँ के अपने सर्वेक्षण के लिए पर्याप्त ख्याति अर्जित की है जिसका भौगोलिक क्षेत्र छतीसगढ़ रहा है. छतीसगढ़ से उनका लगाव स्वाभाविक है क्योंकि वह उनकी जन्मभूमि है तथा उसके सौंदर्य और विद्रूप के मिले-जुले अनुभवों ने उनके व्यक्तित्व को बनाया, निखारा और सँवारा है. उनके मानस में छतीसगढ़ का आंचलिक परिवेश और जीवन उसकी बोली-बानी के साथ निरंतर बजता रहता है. वे प्रायः बेचैन रहते हैं कि किस प्रकार इस अंचल की नई पीढ़ी को शिक्षा के प्रकाश के सहारे राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल किया जाए ताकि वह गरीबी, पिछड़ेपन और शोषण से मुक्त हो सके और सही अर्थ में प्रजातांत्रिक व्यवस्था का अंग बनकर विकास के लाभ अपने जन, ज़मीन और जंगल तक पहुँचा सके. यह बेचैनी ही उन्हें कथा और आत्मकथा लिखने के लिए प्रेरित करती है. 

अपनी औपन्यासिक आत्मकथा ‘’मुझे कुछ कहना है’’ में लेखक ने अपने बहाने छतीसगढ़ के वनवासी समुदायों की आंचलिक जीवनचर्या को उनकी आदिम जिजीविषा के संदर्भ में भली प्रकार उकेरा है. इस प्रक्रिया में सामने आने वाली वनवासी समुदायों के स्थापन-विस्थापन-पुनर्स्थापन की रोचक ऐतिहासिक कथा, वन के देवी-देवताओं की लोकगाथा, जनता और सत्ता के संबंध, शोषण और लोकोपकार की द्वंद्वात्मक उपस्थिति, पुरुषों की भोगवादी-वर्चस्ववादी प्रवृत्ति तथा स्त्रियों की लुटते-घुटते रहने की अनंत शोकांतिका इस आत्मकथा को वैयक्तिक निजता के द्वीप से निकालकर लोकमंगल के व्यापक कथ्य में परिणत कर देती है. 

हिंदी में वनवासी विमर्श को नया आयाम प्रदान करने वाली इस कृति के प्रणयन के लिए लेखक को भूरिशः साधुवाद! 


- प्रो. ऋषभदेव शर्मा 

पूर्व अध्यक्ष, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, 
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद केंद्र.

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एक हाशियाकृत अंचल की छटपटाहट 


भारतवर्ष अपने वर्तमान स्वरूप में इतनी अधिक विविधताओं से भरा हुआ महादेश है कि इसमें सभ्यता की आदिम अवस्था से लेकर उत्तर आधुनिक अवस्था तक को एक साथ देखा जा सकता है. खास तौर पर यदि हम वनवासी समुदायों को निकट से देखें तथा उनके जीवन-संघर्ष को समझने का प्रयास करें तो कबीलाई सभ्यता से चलकर ग्राम सभ्यता और फिर नगर सभ्यता के विकास के विविध चरणों के लोक-इतिहास को सहज ही परिलक्षित कर सकते हैं. इसी के साथ, शिक्षा और विकास के समांतर मनुष्य के हाथ से रेत की तरह भोलेपन और आनंद की संपदा का फिसलते-रिसते जाना भी एक ऐसा विषम यथार्थ है जिसे नकारा नहीं जा सकता. वनवासी समुदाय प्रकृति के सामीप्य के बावजूद कई प्रकार की विसंगतियों के भी शिकार दिखाई देते हैं; आर्थिक-राजनैतिक शोषण तो है ही. 


‘’मुझे कुछ कहना है’’ शीर्षक अपनी औपन्यासिक आत्मकथा में डॉ. रामनिवास साहू ने इन सब सामाजिक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में छत्तीसगढ़ के एक वनवासी अंचल के परिवेश, संघर्ष, सौंदर्य और विद्रूप को रेखांकित करने का सफल प्रयास किया है. लेखक ने इस अंचल को किसी जिज्ञासु पर्यटक या खोजी पत्रकार की दृष्टि से बाहर-बाहर से नहीं देखा है, बल्कि वह इस अंचल का निवासी होने के कारण इसके सारे सुख-दुःख का स्वयं भोक्ता है. अतः इसकी प्रामाणिकता असंदिग्ध है. सभ्यता की दौड़ में पीछे छोड़ दिए गए एक हाशियाकृत अंचल से संबद्ध लेखक के मन की छटपटाहट का एक कारण इस द्वंद्व में भी निहित दीखता है कि वह विकास तो चाहता है पर इसके लिए निसर्ग की बलि देना उसे स्वीकार नहीं. 

आशा है, साहित्य-जगत इस वनवासी विमर्श का स्वागत करेगा; इसमें शामिल होगा. 
 - प्रो. देवराज 

अधिष्ठाता, अनुवाद विद्यापीठ, 
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी वि.वि., वर्धा

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

'अभिनव विमर्श' के लिए शोध-आलेख आमंत्रित



अभिनव विमर्श

(शोधपत्र संग्रह)
आईएसबीएन : 978-93-84068-50-9.
संपादक :
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
प्रायोजना निदेशक :  
डॉ. ऋषभदेव शर्मा
प्रकाशक :
परिलेख प्रकाशन, नजीबाबाद – 246763.
वितरक :
श्रीसाहिती प्रकाशन, हैदराबाद – 500048.


नियमावली

  1. ‘अभिनव विमर्श’  एक अव्यावसायिक और परस्पर सहयोग पर आधारित प्रायोजना है.
  2. ‘अभिनव विमर्श’ का प्रकाशन हिंदी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में अभिनव अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से किया जा रहा है.
  3. इसमें प्रतिष्ठित विद्वानों, प्राध्यापकों और आचार्यों के साथ-साथ हिंदी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में अनुसंधानरत एम.फिल. और पीएच.डी. के शोधार्थी शामिल हो सकते हैं.
  4. इस प्रायोजना के अंतर्गत हिंदी भाषा और साहित्य के विविध क्षेत्रों से संबंधित शोधपत्र प्रकाशित किए जाएँगे.
  5. विद्वान/ शोधार्थी अपने शोधपत्र  संपादक को ईमेल द्वारा प्रेषित कर सकते हैं.
  6. संपादक का ईमेल पता है : srisahitiprakashan@yahoo.com
  7. शोधपत्र के साथ लेखक द्वारा मौलिकता का प्रमाणपत्र देना अनिवार्य है.  
  8. शोधपत्र अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होने चाहिए तथा संदर्भ/ उद्धरण/ ग्रंथ सूची के लिए ‘APA स्टाइल’ का पालन अनिवार्य है.   
  9. प्रकाशनार्थ प्रेषित शोधपत्र अनिवार्यतः कृतिदेव 010 अथवा हिंदी यूनिकोड फॉण्ट में वर्ड फ़ाइल में ही टंकित होने चाहिए. अन्य किसी फॉण्ट या फोर्मेट में भेजे गए शोधपत्र विचारार्थ स्वीकार नहीं किए जाएँगे. पीडीएफ और स्कैन प्रतियाँ न भेजें.
  10. प्रकाशनार्थ प्रेषित शोधपत्र लगभग 3000 शब्दों के होने चाहिए.
  11. बहुत छोटे और बहुत बड़े शोधपत्र विचारार्थ स्वीकार नहीं किए जाएँगे.
  12. प्रकाशन के लिए प्राप्त आलेख ‘अभिनव विमर्श’ की विशेषज्ञ समिति के समक्ष रखे जाएँगे. समिति की स्वीकृति मिलने पर ही उन्हें प्रकाशन के लिए स्वीकार किया जाएगा.
  13. स्वीकार किए गए प्रत्येक शोधपत्र के प्रकाशन हेतु लेखक को 1000 रु. सहयोग राशि अग्रिम जमा करनी होगी.
  14. प्रकाशित होने पर ‘अभिनव विमर्श’ की 1000 रु. मूल्य की प्रतियाँ प्रत्येक सहयोगी लेखक को सादर भेंट की जाएँगी.
  15. शोधपत्र भेजने की अंतिम तिथि : 31 मार्च, 2017.

सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

राजमहेंद्रवरम में प्रो. ऋषभदेव शर्मा का षष्ठिपूर्ति समारोह संपन्न



चित्र परिचय – 
1. शहनाई के साथ कल्याण मंडपम की ओर प्रस्थान. 2. गणेश वंदना : कुचिपुड़ी नृत्य.3. डॉ. ऋषभदेव शर्मा और डॉ. पूर्णिमा शर्मा : आसन पर.  4. प्रो. देवराज समीक्षात्मक उद्धरणों की दीवार का उद्घाटन करते हुए.  

5. डॉ. भागवतुल हेमलता कविता-पोस्टरों का उद्घाटन करते हुए.  6. वरमाला का आदान-प्रदान .
 7. ‘रामभक्ति काव्य का लोक पक्ष’ का समर्पण. 8. प्रो. देवराज का स्वागत-सत्कार. 

9. कुमार लव की काव्यकृति का समर्पण. 10. ‘तेलुगु साहित्य : एक अंतर्यात्रा’ प्रो. ऋषभदेव शर्मा को समर्पित. 11. प्रो. देवराज का अध्यक्षीय संबोधन. 12. प्रो. देवराज द्वारा प्रो. ऋषभदेव शर्मा की पुस्तक ‘कथाकारों की दुनिया’ का लोकार्पण.



राजमहेंद्रवरम, 29 जनवरी, 2017 (मीडिया विज्ञप्ति).

यहाँ आदित्य डिग्री कॉलेज, राजमहेंद्रवरम के सभाकक्ष में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के अधिष्ठाता प्रो. देवराज की अध्यक्षता में प्रतिष्ठित तेवरीकार, कवि, समीक्षक, हिंदीसेवी एवं शोध निर्देशक प्रो. ऋषभदेव शर्मा के षष्ठिपूर्ति समारोह का आयोजन भव्यतापूर्वक संपन्न हुआ. समारोह का संयोजन डॉ. पोलवरपु जयलक्ष्मी और डॉ. सिरिपुरपु तुलसी देवी ने किया. 

दक्षिण भारत में यह परंपरा है कि परिवार के वरिष्ठ जन अथवा गुरुजन की साठवीं वर्षगाँठ पर विशिष्ट समारोह करके उनके सुखद भविष्य की कामना की जाती है. इसके अंतर्गत सम्मानित वरिष्ठ जन का ‘कल्याणम’ और ‘कनकाभिषेकम’ करते हुए उनसे संबंधित स्मृतियों का बखान किया जाता है. इसी रीति के अनुसार प्रो. ऋषभदेव शर्मा और उनकी पत्नी डॉ. पूर्णिमा शर्मा का वैदिक विधि-विधान से ‘कल्याणम’ (विवाह) संपन्न कराया गया जिसके उपरांत उनके परिवारी जन के साथ संपूर्ण दक्षिण भारत के विविध अंचलों से आए हुए पूर्व छात्रों और शोधार्थियों ने उनका अभिनंदन किया. 

वाणीश्री के कुचिपुड़ी नृत्य तथा मोहम्मद आबिद की संगीतमय प्रस्तुतियों के अलावा डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा और प्रवीण प्रणव द्वारा निर्मित लघु फिल्म भी प्रदर्शित की गई. कुल 38 मिनट की इस लघुफिल्म में प्रो. शर्मा के जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व की रोचक अवं अंतरंग झांकी प्रस्तुत की गई. 

षष्ठिपूर्ति समारोह के द्वितीय सत्र में प्रो. ऋषभदेव शर्मा की विभिन्न काव्यकृतियों और समीक्षा पुस्तकों के उद्धरणों की पोस्टर-प्रदर्शनी भी तीन दीवारों पर प्रदर्शित की गई जिनका उद्घाटन प्रो. देवराज के साथ जयदीप मुखर्जी और डॉ भागवतुल हेमलता ने अलग अलग भाषाओं में हस्ताक्षर करके किया. 

तृतीय सत्र में प्रो. ऋषभदेव शर्मा की सद्यः प्रकाशित पुस्तक “कथाकारों की दुनिया” लोकार्पित की गई. साथ ही उन्हें समर्पित तीन अन्य ग्रंथों को भी लोकार्पित किया गया जिनमें डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की साहित्य-इतिहास की पुस्तक “तेलुगु साहित्य : एक अंतर्यात्रा”, उत्तरआधुनिकतावादी कवि कुमार लव का कविता संग्रह “गर्भ में”, तथा पटना ,बिहार, की लेखिका डॉ. चंदन कुमारी का समीक्षाग्रंथ “राम भक्ति काव्य का लोकपक्ष” सम्मिलित हैं. 

अध्यक्षीय संबोधन में प्रो. देवराज ने कहा कि दक्षिण भारत आधुनिकता और परंपरा को एक साथ साध कर चलनेवाला सांस्कृतिक क्षेत्र है और यहाँ के हिंदी विद्वानों तथा छात्रों द्वारा जिस पारिवारिक आत्मीयता के साथ ऋषभदेव शर्मा की षष्ठिपूर्ति का उत्सव मनाया जा रहा है, वह आधुनिक समय में गुरु-शिष्य संबंध की अनुकरणीय मिसाल है. राष्ट्रगान के साथ समारोह का समापन हुआ. संचालन डॉ. रविचंद्र राव और डॉ. बी. बालाजी ने किया.