‘संपादकीयम्’
पिछले कुछ महीनों में समसामयिक
विषयों पर लिखी मेरी कुछ टिप्पणियों का संग्रह है। इन टिप्पणियों को हैदराबाद के
प्रतिष्ठित और यशस्वी दैनिक समाचार पत्र ‘डेली हिंदी मिलाप’ ने अपने संपादकीय पृष्ठ पर स्थान दिया
– इस हेतु संपादक महोदय सहित समस्त ‘मिलाप’ परिवार के प्रति आभारी हूँ। साथ ही,
इस दिशा में प्रेरित करने वाले रवि श्रीवास्तव जी के समक्ष शब्दहीन हूँ।
बिखरी हुई सामग्री को पुस्तक का रूप प्रदान करने के लिए सौभाग्यवती डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा को तो मेरा रोम-रोम असीसता है। 
26 जनवरी,
2019                                                              
- ऋषभ
1.      
नोबेल शांति पुरस्कार : एक असाधारण वीरांगना
को
2.     
बोलने वाली औरतें बनाम पुरुष प्रधान समाज
3.     
जबकि हर पुरुष स्वयं आयोग है 
4.     
विवाहेतर संबंध : निजता बनाम नैतिकता
5.     
परंपरा के नाम पर भेदभाव कब तक 
6.     
समानता और पूजा-पद्धति के अधिकारों
का टकराव
7.     
सुपौल से बॉलीवुड तक पीड़ित बेटियाँ
8.     
बेटियों के सामने शर्मिंदा एक महादेश 
9.     
सबसे खतरनाक जगह : घर?
10.  
अमानुषिक है प्रथा के नाम पर औरत पर बर्बरता
11.   
एक स्त्री-विरोधी कुप्रथा से
मुक्ति 
12.  
मुस्लिम स्त्री के मानवाधिकार की खातिर
13.  
भारतीय संविधान के बावजूद अन्य संविधान क्यों? 
14.  
उपेक्षित लद्दाख का दर्द 
15.  
रिश्ता वोट का शराब से
16.  
मतदाता की उदासीनता का अर्थ 
17.  
राजनीति की भाषा में बढ़ती
अशिष्टता 
18.  
जाति और गोत्र की वेदी पर लोकतंत्र
19.  
क्या बदल रहा है भाजपा का भी चरित्र
20.  सवर्ण आरक्षण :  हल या छल?
21.  
विरोध भी, समर्थन भी : खूबी लोकतंत्र की 
22.  ज़ोर-आजमाइश से पहले
शक्ति-प्रदर्शन 
23.  चुनाव
का मौसम और डांस बार 
24.  सबका अन्नदाता हड़ताल पर है !?
25.  अन्नदाता से दिल्ली दूर क्यों ?
26.  कर्ज माफ करने की
राजनीति
27.  आत्महत्याओं का इलाज़
कर्जमाफ़ी नहीं
28.  अब
जिसे भी देखिए, उस पर गुलेलें हैं
29.  लोकतंत्र को कलंकित
करता भीड़-न्याय 
30.  अब  किसके पिता की बारी है?
31.  
न्याय का शासन
32.  कैसे टूटेगा फेक
न्यूज़ का चक्रव्यूह? 
33.  ऊपरवाला देख रहा है
34.  अल्पसंख्यकों का
स्वर्ग 
35.  इंतज़ाम की पोल खोलती पहली बारिश 
36.  ये मौत की सड़कें...
37.  बिन पानी सब सून 
38.  ये सेप्टिक टैंक साफ
करने वाले...
39.  हिंसा के महिमामंडन
का दुष्परिणाम
40.  हिंसा और हताशा 
41.  
आधुनिक गुलामी और हम 
42.  क्यों होती हैं
बुराड़ी जैसी भीषण घटनाएँ 
43.  तो शब्दकोश में नहीं
रहेगा –
दलित ?
44. ‘प्रणय’ की हत्या, प्रतिष्ठा के नाम पर
! 
45.  तुम्हारी जाति क्या
है, डॉक्टर?
46.  मंदिर प्रवेश : समाज सुधार या
राजनीति
47.  ये बच्चे भारत के
नागरिक नहीं?
48.  सुरक्षित नहीं हैं
हमारे बच्चे 
49.  असहाय और असुरक्षित
बुढ़ापा
50.  भुखमरी : सब पर अभिशाप !
51.  
विकास बनाम भुखमरी 
52.  धरती का बढ़ता बुखार
53.  ...तो क्या समुद्र में
समा जाएँगे
तटीय शहर?
54.  जलाओ
पटाखे पर रहे ध्यान इतना...
55.  दुर्गा पूजा में
विदेशी रुचि का अर्थ 
56.  लद गए वैश्वीकरण के
दिन ?
57.  आतंक बनाम सभ्य
रिश्तों का पाखंड
58.  हथियार चमका रहा
ड्रैगन!
59.  संयुक्त राष्ट्र की
बंधक स्थिति 
60.  अंतरिक्ष पर कब्जे की खातिर
61.  
युद्ध करना नहीं, शांति लाना है बहादुरी
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