मंगलवार, 3 मार्च 2020

भाषा और संस्कृति पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न


दीप प्रज्वलन :
गोवा की पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा। साथ में, डॉ. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी, प्रो. दिलीप सिंह, प्रो. विनय कुमार, डॉ, विनय कुमार, डॉ. विद्योत्तमा कुंजल एवं ऋषभदेव शर्मा। 


नई दिल्ली, 29 फरवरी, 2020.
"आज का समय पूरी दुनिया में मानवीय मूल्यों के संकट, आसुरी शक्तियों के आतंक और आदर्शों के अभाव का समय है। ऐसे में पूरी दुनिया भारत की ओर उम्मीद की नज़रों से देख रही है। भारत के पास राम और कृष्ण जैसे आदर्श चरित्र उपलब्ध हैं, जो विश्व कल्याण की प्रेरणा दे सकते हैं। इनके माध्यम से दुनिया भर में मानवमूलक संस्कृति की पुनः स्थापना की जा सकती है। तरह-तरह के खंड-खंड विमर्शों के स्थान पर 'परिवार विमर्श' आज की आवश्यकता है और इसी के साथ रामत्व और कृष्णत्व की प्रतिष्ठा जुड़ी है।" ये विचार प्रख्यात साहित्यकार, लोक संस्कृति विशेषज्ञ और गोवा की पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने नई दिल्ली महानगर निगम  के विशाल कन्वेंशन हॉल में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए प्रकट किए।
पुस्तक लोकार्पण सत्र :
पूर्व सांसद सुनील शास्त्री, डॉ. लीना सरीन, डॉ. ऋषभदेव शर्मा, डॉ. विपिन कुमार, प्रो. दिलीप सिंह एवं डॉ. यंतु देव बुधु

सम्मेलन का आयोजन साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था (मुंबई), इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय (अमरकंटक) तथा विश्व हिंदी परिषद (दिल्ली) ने संयुक्त रूप से किया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता अमरकंटक से पधारे कुलपति डॉ. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने की और बीज वक्तव्य प्रो. दिलीप सिंह ने दिया। समारोह में देश भर से आए विद्वानों और साहित्यकारों के अलावा रूस की डॉ. लीना सरीन तथा हिंदी प्रचारिणी सभा, मॉरीशस के अध्यक्ष डॉ. यंतुदेव बुधु, महात्मा गांधी संस्थान, मॉरीशस की निदेशक डॉ. विद्योत्तमा कुंजल तथा प्रो.अलका धनपत और लिथुआनिया की कत्थक नृत्यांगना कैटरीना ने विभिन्न विचार सत्रों को संबोधित किया। पटना विश्वविद्यालय के प्रो. विनय कुमार ने अतिथियों का स्वागत-सत्कार करते हुए संगोष्ठी के विचारणीय विषयों का परिचय दिया। समारोह के विचारणीय विषय 'आधुनिक समय में रामकथा और कृष्णकथा का वैश्विक संदर्भ' तथा 'नई शिक्षा नीति और हिंदी भाषा' रहे। 

समापन सत्र के मुख्य अतिथि पूर्व सांसद सुनील शास्त्री।
साथ में- डॉ. लीना सरीन, डॉ. ऋषभदेव शर्मा, प्रो. दिलीप सिंह, डॉ. यंतु देव बुधु, डॉ. विद्योत्तमा कुंजल एवं प्रो- गिरीश जोशी। 

समापन सत्र में बतौर  मुख्य अतिथि पधारे पूर्व सांसद सुनील शास्त्री ने राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण में राम और कृष्ण की लोक कल्याणकारी संघर्षगाथाओं के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा और संस्कृति का सीधा संबंध हमारी भाषाओं के साथ है तथा हमारी भाषाओं में ही जीवन मूल्यों की जड़ें होती हैं, इसलिए यह जरूरी है कि हम भारतीय लोग अपनी भाषाओं का सम्मान करें। उन्होंने हिंदी के साथ साथ अन्य भारतीय भाषाओं को शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाने पर ज़ोर दिया।
भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के तृतीय सुपुत्र सुनील शास्त्री के हाथों 'संपादक रत्न' सम्मान ग्रहण करते हुए डॉ. ऋषभदेव शर्मा। साथ में - प्रो. दिलीप सिंह, डॉ. यंतु देव बुधु, डॉ. विद्योत्तमा कुंजल एवं अन्य। 

अवसर पर कई हिंदीसेवियों,साहित्यकारों और शिक्षाविदों को अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से अलंकृत किया गया, जिनमें प्रो.दिलीप सिंह, प्रो. विनय कुमार, प्रो. टी वी कट्टीमनी, प्रो ऋषभदेव शर्मा, ज्ञानचंद्र मर्मज्ञ, डॉ. श्रीराम परिहार, डॉ. कैलाश नाथ पांडे, डॉ. मधुकर पाड़वी, और डॉ. भावेश जाधव आदि सम्मिलित हैं। समारोह का समापन  डॉ.प्रदीप कुमार सिंह के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ।0

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