बुधवार, 26 अगस्त 2020

हिंदी भाषा के विकास में पत्र-पत्रिकाओं का योगदान' विषयक ऑनलाइन व्याख्यानमाला संपन्न



'हिंदी भाषा के विकास में पत्र-पत्रिकाओं का योगदान' विषयक ऑनलाइन व्याख्यानमाला संपन्न
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हैदराबाद, 25 अगस्त, 2020।
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास के आंतरिक गुणवत्ता प्रमाणन प्रकोष्ठ (IQAC) एवं पी जी विभाग, हैदराबाद के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘हिंदी भाषा के विकास में पत्र-पत्रिकाओं का योगदान’ विषयक ऑनलाइन व्याख्यानमाला संपन्न हुई।  
आंतरिक गुणवत्ता प्रमाणन प्रकोष्ठ के संयोजक डॉ. सुभाष जी. राणे की अध्यक्षता में संपन्न इस व्याख्यानमाला में बतौर मुख्य वक्ता प्रमुख कवि, तेवरीकार, समीक्षक, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने हिंदी भाषा के विकास में पत्र-पत्रिकाओं के योगदान पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता की शुरूआत बंगाल से हुई और इसका श्रेय राजा राममोहन राय को जाता है। राजा राममोहन राय ने ही प्रेस को सामाजिक उद्देश्य से जोड़ा। उन्होंने 1819 में भारतीय भाषा का पहला समाचार-पत्र ‘संवाद कौमुदी’ (बांग्ला भाषा) प्रकाशित किया। 1822 में गुजराती भाषा का साप्ताहिक ‘मुंबईना समाचार’ प्रकाशित हुआ। प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने जोर देकर कहा  कि हिंदी पत्रकारिता और हिंदी भाषा के विकास में हिंदीतर भाषियों का योगदान उल्लेखनीय है। प्रो. शर्मा ने अनेक उदाहरण देकर यह प्रतिपादित किया कि नए युग के नए विषयों की अभिव्यक्ति के लिए नई संप्रेषणीय भाषा के निर्माण में हिंदी पत्रकारिता सदा सृजनात्मकता को साथ लेकर चली है। उन्होंने बताया कि सृजनात्मकता के अभाव में लोकप्रिय नई भाषा निर्मित नहीं हो सकती तथा इस अभाव ने ही प्रशासनिक हिंदी को जटिल और अबूझ बना दिया है।
इस कार्यक्रम में विशेष अतिथि डॉ. शोडषीमोहन दां (कुलपति, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास) और मुख्य अतिथि प्रो. प्रदीप कुमार शर्मा (कुलसचिव, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास) ने शुभाशंसा प्रस्तुत की।  इस अवसर पर 70 से  अधिक विद्यार्थी और शोधार्थी उपस्थित होकर व्याख्यान से लाभान्वित हुए।     
कार्यक्रम का संयोजन पी जी विभाग, हैदराबाद की आचार्य एवं अध्यक्ष डॉ. पी. राधिका ने किया तथा डॉ. गोरखनाथ तिवारी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। ●
(रिपोर्ट: 
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा)


रविवार, 9 अगस्त 2020

'तुलसी साहित्य की वर्तमान अर्थवत्ता' पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार संपन्न


'तुलसी साहित्य की वर्तमान अर्थवत्ता' पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार संपन्न

 

कोलकाता, 6 अगस्त ( मीडिया विज्ञप्ति) पश्चिम बंगाल की प्रमुख साहित्यिक संस्था  'बंगीय हिंदी परिषद, कोलकाता' द्वारा आयोजित तुलसी जयंती समारोहों  के अंतर्गत 'तुलसी साहित्य की वर्तमान अर्थवत्ता' विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। समारोह की अध्यक्षता विख्यात कवि-समीक्षक तथा उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, हैदराबाद के प्राक्तन प्रोफेसर और अध्यक्ष डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने की। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने अनेक उदाहरण देकर वर्तमान में तुलसी  साहित्य की राजनैतिक, सामाजिक और विमर्शपरक अर्थवत्ता का प्रतिपादन किया। उन्होंने कहा कि तुलसीदास ने राजकाज और सामाजिक कार्यों में स्त्री की सम्मति को आवश्यक बताया है। डॉ. शर्मा ने आगे कहा कि तुलसी को शंबूक वध और सीता परित्याग दोनों स्वीकार नहीं हैं, क्योंकि  वे दलित और स्त्री के प्रति अन्याय का समर्थन नहीं कर सकते।

 

संगोष्ठी के प्रधान वक्ता, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के पूर्व प्रोफेसर और देश के सुप्रसिद्ध विद्वान डॉ. देवव्रत चौबे ने कहा कि तुलसी का आज भी कोई विकल्प नहीं है। रामचरितमानस लोकमंगल की व्यापक अवधारणा का दुनिया के पास  इकलौता महाकाव्य है।

 

मुख्य अतिथि अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त स्त्री-चिंतक एवं डीएवीएसएस, ह्यूस्टन, अमेरिका की निदेशक डॉ. कविता वाचक्नवी ने कहा कि तुलसी साहित्य की मुख्य चिंता व्यक्ति-निर्माण, परिवार-निर्माण और समाज-निर्माण की है। राम को समाज ने उनके गुणों के कारण नायक बनाया। राम और कृष्ण दो ऐसे चरित्र हैं जो पूरे विश्व को अन्याय से लड़ने की प्रेरणा देते रहेंगे।

 

तुलसी साहित्य के चिंतक और  वरिष्ठ पत्रकार डॉ. प्रेमनाथ चौबे ने अपने बीज वक्तव्य में तुलसी साहित्य के उन पक्षों पर सविस्तार प्रकाश डाला जो जनसामान्य के लिए आज सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं।उन्होंने माया, मनुष्य और हरि-तत्व के आपसी संबंधों पर भी प्रकाश डाला।

 

समारोह की शुरूआत परिषद के मंत्री डॉ. राजेंद्रनाथ त्रिपाठी के स्वागत वक्तव्य से हुई। वक्ता आचार्य कौशल्यायन शास्त्री ने कहा कि तुलसी के रामराज्य में स्त्री और दलितों के अधिकारों पर चर्चा की। विश्व भारती के हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ. जगदीश भगत ने कहा कि  कथा संरचना को औदात्य रूप देने के लिए तुलसी ने अतिरिक्त विवेक सजगता अपनाई है। कार्यक्रम का सफल संचालन परिषद के साहित्य मंत्री डॉ. सत्य प्रकाश तिवारी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन परिषद की कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. राजश्री शुक्ला ने किया। लगभग तीन सौ श्रोताओं ने  इस आयोजन से लाइव जुड़कर इसे सफल बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। 

 

प्रस्तुतिडॉ. सत्य प्रकाश तिवारीसाहित्य मंत्री, बंगीय हिंदी परिषद, कोलकाता।