शनिवार, 1 अगस्त 2020

'आत्मनिर्भर भारत : गांधी चिंतन की प्रासंगिकता' विषयक एकदिवसीय ई-संगोष्ठी


हैदराबाद : 31 जुलाई, 2020

जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं में आत्मनिर्भर होना आवश्यक है। आत्मनिर्भरता और स्वायत्त समुदाय के संबंध में महात्मा गांधी ने कहा था कि प्रत्येक गाँव आत्मनिर्भर होगा तो अपनी समस्याओं को स्वयं सुलझाने तथा अपनी सुरक्षा भी करने में सक्षम होगा। इसका यह अर्थ नहीं कि पड़ोसियों द्वारा स्वेच्छा से की गई सहायता को अस्वीकार करें। गांधी जी चाहते थे कि भारत आत्मनिर्भर बनें और स्वस्थ राम राज्य की स्थापना करें।

डॉ अलका धनपत 
गांधी जी के इन्हीं विचारों के मद्देनजर आज दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास ने 'आत्मनिर्भर भारत : गांधी चिंतन की प्रासंगिकता' विषयक एकदिवसीय ई-संगोष्ठी का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता मॉरीशस की डॉ. अलका धनपत ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि महात्मा गांधी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने पहले थे। बल्कि आज कोरोना महामारी के समय उनके द्वारा प्रस्तावित आत्मनिर्भरता की बात और भी प्रासंगिक है। उन्होंने मॉरीशस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, जीवन शैली और शिक्षा व्यवस्था आदि पर विस्तार से प्रकाश डाला और स्पष्ट किया कि मूल्य केंद्रित तथा सांस्कृतिक आयामों को उजागर करने वाली शिक्षा की अत्यंत आवश्यकता है।


प्रो. रमेश भारद्वाज
गांधी भवन, नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो. रमेश चंद्र भारद्वाज ने कहा कि गांधी जी सही अर्थों में भारतीय आत्मा है। उन्होंने 'हिंद स्वराज' के हवाले यह स्पष्ट किया कि महात्मा गांधी ने इस बात की ओर इशारा किया था कि पश्चिमी सभ्यता राक्षसी सभ्यता है। इसमें मनुष्य को घुट घुटकर जीना पड़ता है। यदि भारत इस मॉडल को अपनाया तो मानव चूर चूर हो जाएगा। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की कि भारत ने आधुनिक सभ्यता के नाम पर पश्चिमी संस्कृति को अपनाया। इस संस्कृति ने मनुष्य को आत्मकेंद्रित बनाया। भाषाओं के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक एकता को नष्ट करने के प्रयास किया गया। 

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए भारद्वाज जी ने कहा कि हमें अपनी हीनभावना को त्यागकर अपनी मातृभाषा को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाना चाहिए। गांधी जी द्वारा प्रतिपादित शिक्षा नीति को पूरी तरह से व्यावहारिक बताते हुए उन्होंने सभी से यह अपील की कि स्वदेशी ज्ञान एवं नवाचार युक्त दृष्टि को विकसित करें। और इस प्रयास में मातृभाषा ही कारगर सिद्ध होगी। भारत की भाषाई विविधता उसकी कमजोरी नहीं बल्कि यह उसकी शक्ति है।

प्रो. जी. गोपीनाथन
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति प्रो. जी गोपीनाथन ने कहा कि आज हम आत्मनिर्भर भारत की बात कर रहे हैं लेकिन महात्मा गांधी ने बहुत पहले ही स्वदेश और आत्मनिर्भर की अवधारणा को व्यवहार में लाने का कार्य किया है। उन्होंने यह कहा कि आत्मनिर्भर/ स्वावलंबन बनना है तो हमें अपनी टेक्नालॉजी का विकास करना होगा। नवीकरण का आह्वान करना होगा। ग्रामों का भी पुनर्निर्माण और पुनर्विकास करना होगा। आधुनिक टेक्नोलॉजी के अनुरूप हमारी संस्कृति और मूल्यों को प्रतिस्थापित करना होगा। हिंदी आज बाजार की भाषा बन चुकी है अतः इसके साथ साथ भारतीय भाषाओं को साथ लेकर चलना होगा।


डॉ. सुरेश चंद्र शुक्ल 


नॉर्वे के डॉ. सुरेश चंद्र शुक्ल ने कहा कि कौशल विकास जरूरी है। हिंदी और भारतीय भाषाओं के बीच आदान प्रदान की आवश्यकता है। आत्मनिर्भरता के लिए अपनी भाषा और संस्कृति को सम्मान देना जरूरी है।


दक्षिण भारत प्रचार सभा, मद्रास के विशेष अधिकारी श्री राघवेंद्र औरादकर ने इस कार्यक्रम के उद्देश्य को स्पष्ट किया तथा कुलपति डॉ. षोडशीमोहन दां ने शुभकामना दी। कुलसचिव प्रो. प्रदीप के. शर्मा ने सभी का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास की विभागाध्यक्ष प्रो. अमर ज्योति ने किया तथा शिक्षा महाविद्यालय, बैंगलोर के प्राचार्य डॉ. इसपाक अली ने धन्यवाद ज्ञापित किया।



डॉ. षोडशीमोहन दां 
प्रो. प्रदीप के. शर्मा 
प्रो. अमर ज्योति 
डॉ. इसपाक अली


प्रस्तुति : डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें